मध्यकालीन कविता का पुनर्पाठ पुनर्जागरण का कारक बनेगी
राज्यपाल कोश्यारी दिनांक 6 मार्च 2022 को महाराष्ट्र व गोवा के माननीय राज्यपाल श्री भगत सिंह कोश्यारी के कर कमलों से मुंबई विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के प्रोफेसर एवं अध्यक्ष डाॅ.करुणाशंकर उपाध्याय की सद्यःप्रकाशित पुस्तक ‘मध्यकालीन कविता का पुनर्पाठ ‘ का लोकार्पण राजभवन के दरबार हाल में सम्पन्न हुआ। इस अवसर पर माननीय राज्यपाल ने कहा कि मध्यकालीन साहित्य सागर की भांति व्यापक और सार्वभौम-शास्वत महत्व का है। वह कभी समाप्त नहीं हो सकता । जिस तरह चौदहवीं शताब्दी में दांते के डिवाइन कामेडी से यूरोपीय पुनर्जागरण का आरंभ हुआ उसी तरह यह पुस्तक हिंदी और भारतीय साहित्य में पुनर्जागरण का कारक बनेगी ।आपने संत नामदेव, कबीर, जायसी, सूर, तुलसी, रहीम , रसखान, तुकाराम, स्वामी समर्थ रामदास, जाम्भोजी और वील्होजी का उल्लेख करते हुए उनके संदेशों की प्रासंगिकता को उभारने की दृष्टि से इस पुस्तक के महत्व को रेखांकित किया । आपने कहा कि यह पुस्तक एक नए प्रस्थान के साथ ही नहीं आई है अपितु इसकी सामग्री इसे लंबे समय तक चर्चा में रखने वाली है।इसमें विश्लेषण की नयी दृष्टि है ।हम जानते हैं कि कविता लिखने की तरह आलोचना करना भी कठिन कार्य है।इस दृष्टि से डाॅ.उपाध्याय ने कोरोना काल का सार्थक उपयोग किया है। इस मौके पर विशिष्ट अतिथि और ईशान्य मुंबई के माननीय सांसद श्री मनोज कोटक ने कहा कि जब माननीय प्रधानमंत्री ने कोरोना काल को अवसर में बदलने की अपील की तो डाॅ.उपाध्याय ने उसे गंभीरता से लिया और उसका सार्थक उपयोग किया।

इस पुस्तक के अंतर्गत ‘ जिसमें सब रम जाएं वही राम हैं’ तथा ‘अयोध्या कालयात्री है’ जैसे अध्याय भारतीय संस्कृति के महत्व का प्रकाशन करते हैं। इन्होंने अयोध्या के उद्धारकों में मनु, कुश, जनमेजय, अजातशत्रु, वृहद्रथ, चंद्रगुप्त विक्रमादित्य और चंदेल राजाओं की कड़ी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी जी की चर्चा करके अयोध्या को भारत की सांस्कृतिक अस्मिता के रूप में रखा है। इस पुस्तक से हमारे संतों-भक्तों के योगदान के साथ-साथ राष्ट्रीय-सांस्कृतिक अस्मिता को बल मिलता है। कार्यक्रम के आरंभ में डाॅ.उपाध्याय ने अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि कोरोना काल ने उन्हें यह अवसर दिया कि वे मध्यकालीन कविता पर नयी पाठ-केन्द्रित आलोचना पद्धतियों के आलोक में एक नया पाठ तैयार करें।

आज हिंदी का औसत प्राध्यापक, आलोचक, शोधार्थी और छात्र मध्यकालीन साहित्य से बचने का प्रयास कर रहे हैं।जो हमारे गौरव चिह्न हैं उनसे पूरी पीढ़ी को दूर करने का प्रयास होता रहा है। पिछले एक हजार सालों में भारत ही नहीं बल्कि संपूर्ण विश्व के किसी भी भाषा के साहित्य में गोस्वामी तुलसीदास से बड़ा कवि नहीं हुआ है। कुछ लोग ज्ञान के इन अपार स्रोतों और ऐसी कविता के सर्वोत्तम रूपों से जिसमें चराचर जगत के हितों की चिंता तथा मनुष्य मात्र के उज्जवल भविष्य के प्रति विवेकपूर्ण संकेत करने वाली कविता से समाज को दूर करने का जो अपकर्म कर रहे हैं उसके प्रतिकार में यह पुस्तक तुलसीदास के समय की महामारी की सापेक्षता में लिखी गई है।
दैनिक जागरण के स्थानीय संपादक ओमप्रकाश तिवारी ने पुस्तक की सारगर्भित समीक्षा करते हुए कहा कि यह पुस्तक पिछले सत्तर सालों से प्रतीक्षित थी।आचार्य रामचंद्र शुक्ल के बाद मध्यकालीन साहित्य पर यह एक नया प्रस्थान है, यह 267 पृष्ठों का निवेदन है जो मध्यकालीन साहित्य के वरेण्य और सारभूत तत्त्वों की तरफ करीने से संकेत करती है। हमारे आलोचकों ने मध्यकालीन काव्य और छांदस्य कविता के प्रति जो वितृष्णा पैदा की है यह पुस्तक उसका जवाब है। इन्होंने तुलसीदास को उद्धरण और प्रमाण सहित हिंदी का पहला नारीवादी कवि सिद्ध किया है। तुलसीदास और ताजमहल शीर्षक आलेख में तुलसीदास का एक बिल्कुल नया पक्ष सामने आता है।इस पुस्तक के नए कोण इसे अपार ख्याति प्रदान करेंगे।
यह पुस्तक बताती है कि हम किस तरह अपनी परंपरा को नये सिरे से समझें। इस अवसर पर श्रीभागवत परिवार के समन्वयक वीरेंद्र याज्ञिक ने कार्यक्रम का सुन्दर संचालन करते हुए कहा कि डाॅ.उपाध्याय ने कोरोना काल में जो करुणा की है वह हम सबके लिए अमृत तुल्य है।इन्होंने उपस्थित अतिथियों के प्रति आभार ज्ञापित किया। इस अवसर पर महाकवि जयशंकर प्रसाद के प्रपौत्र विजयशंकर प्रसाद, राज्यपाल की उपसचिव श्रीमती श्वेता सिंघल, रिलायंस इंडस्ट्रीज के महाप्रबंधक चंद्रजीत तिवारी निर्भय पथिक के संपादक अश्विनी कुमार मिश्र, हिंदी मीडिया के संपादक चंद्रकांत जोशी,पत्रकार नित्यानंद शर्मा, पंकज मिश्रा, वैज्ञानिक पत्रिका के संपादक दीनानाथ सिंह, अंग्रेजी विभाग के प्रोफेसर डाॅ. शिवाजी सरगर , डाॅ.मुंडे, डाॅ.बिनीता सहाय, डाॅ.सचिन गपाट और प्रा. सुनील वल्ली समेत अच्छी संख्या में साहित्य प्रेमी, प्राध्यापक और पत्रकार उपस्थित थे।
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I’d like to shout regarding a very special video
of Getting Through The middle of East Borneo Forest for Very Traditional Roasting chicken in the Ricefield
https://www.youtube.com/watch?v=gEUqYxb-I7w
I’d seriously be thankful if you would go check the video