इस खुबसूरत ग्रह को बचाना ही होगा…..
संदीप तोमर
हमारे सौर मंडल में पृथ्वी इकलौता अकेला ऐसा ग्रह है जहाँ जल और जीवन मौजूद है। जीवन के अस्तित्व को बनाये रखने के लिये जल का संरक्षण और बचाव दोनों ही बहुत जरूरी हैं क्योंकि बिना जल के जीवन संभव ही नहीं है। सम्पूर्ण पृथ्वी पर लगभग ८०% जल होते हुए भी विश्व की अधिकांश आबादी को पेय जल की उपलब्धता से जूझना पड़ रहा है। स्वच्छ जल बहुत तरीकों से भारत और पूरे विश्व के दूसरे देशो में लोगों के जीवन को प्रभावित कर रहा है। स्वच्छ जल का अभाव एक बड़ी समस्या बनता जा रहा है। इस बड़ी समस्या को अकेले या कुछ समूह के लोग मिलकर नहीं सुलझाया जा सकता। इस समस्या पर वैश्विक स्तर पर लोगों के मिलकर प्रयास करने की आवश्यकता है।
महासागर में लगभग पूरे जल का 97% लवणीय है, जिसका उपयोग पेयजल के रूप में नहीं किया जा सकता। पृथ्वी पर उपलब्ध पूरे जल का केवल 3% ही उपयोग के लायक है जिसका 70% हिस्सा बर्फ की परत और ग्लेशियर के रुप में है। मोटे तौर पर कुल जल का 1% ही पेय जल के रुप में उपलब्ध है।
भारत और दुनिया के दूसरे देश जल की भारी कमी का सामना कर रहे हैं। अधिकांश पेय जल हमें नदियों तालाबों कुओं या फिर भौमजल से प्राप्त होता है। जिसकी वजह से आम लोगों को पीने और खाना बनाने के साथ ही रोजमर्रा के कार्यों को पूरा करने के लिये जरूरी पानी के लिये लंबी दूरी तय करनी पड़ती है। जबकि दूसरी ओर, पर्याप्त जल के क्षेत्रों में लोग अपनी दैनिक जरुरतों से ज्यादा पानी बर्बाद कर रहें हैं।
समस्या तब और अधिक विकट हुई जब हमने स्वच्छ जल में औद्योगिक कचरे, सीवेज़, खतरनाक रसायनों और अन्य गंदगियों को नदियों में डालना शुरू कर दिया। इससे जल प्रदुषण का खतरा बढ़ा है। पानी की कमी और जल प्रदूषण का मुख्य कारणों में बढ़ती जनसंख्या और तेजी से बढ़ता औद्योगिकीकरण और शहरीकरण को मुख्य माना गया है। ऐसा अनुमान है कि स्वच्छ जल की कमी के कारण, निकट भविष्य में लोग अपनी मूल जरुरतों को भी पूरा नहीं कर पाएंगे।
भारत के कुछ राज्यों जैसे राजस्थान, गुजरात और उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड के कुछ भागों में महिलाओं और लड़कियों को साफ पानी के लिये लंबी दूरी तय करनी पड़ती है। जिससे उनके अन्य दैनिक क्रियाकलाप भी प्रभावित होते हैं परिवार के लिए जल आपूर्ति में ही उनका सारा समय बर्बाद हो जाता है। गर्मियों में ये परेशानी और अधिक बढ़ जाती है।ये क्षेत्र हमेशा ही सूखे से प्रभावित रहते हैं। इससे इतर अनुमान है कि लगभग 25% शहरी जनसंख्या तक साफ पानी नहीं पहुंच पाता है। कहने का तात्पर्य ये है कि ग्रामीण और शहरी दोनों ही आबादी को पेय जल की समस्या से जूझना पड़ रहा है।
पेय जल की उपलब्धता/अनुपलब्धता कई प्रकार से जीवन को प्रभावित करती है। सूखा प्रभावित इलाकों में किसान अपनी फसल के नष्ट होने के कारण बढ़ते कर्ज के चलते आत्महत्या कर रहा है। राष्ट्रीय अपराध रिकार्डस् ब्यूरो के सर्वेक्षण के अनुसार, ये रिकार्ड किया गया है कि लगभग 16,632 किसान जिनमे 2,369 महिलाएँ हैं, आत्महत्या के द्वारा अपने जीवन को समाप्त कर चुकें हैं, जिनमे से 14.4% मामले सूखे के कारण घटित हुए हैं। कहा जा सकता है कि किसान की आत्महत्या का एक कारण जल की अनुपलब्धता भी है। इसके साथ ही पानी की कमी वाले क्षेत्रों में बच्चे दिन भर पानी ढोने के चलते स्कूल नहीं जा पाते अर्थात अपने शिक्षा के मूल अधिकार और खुशी से जीने के अधिकार को प्राप्त नहीं कर पाते हैं। ध्यान रहे इससे बच्चियों की शिक्षा अधिक प्रभावित होती है। विकासशील देशो के शहरों के झुग्गी-झोंपड़ी इलाकों की अनेक गलियों में लड़ाई और दूसरे सामाजिक मुद्दों का कारण भी पानी की कमी है। कितनी ही बार देखने में आता है कि पानी के टेंकर से पानी भरने को लेकर मार-पिटाई और हत्या तक की नौबत आ जाती है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि जल कितनी बड़ी सामाजिक समस्या है।
ऐसा नहीं है कि हम जल समस्या का निवारण नहीं कर सकते। इसका निवारण मेरी समझ से बहुत मुश्किल भी नहीं है। छोटे छोटे प्रयास करके हम इस बड़ी समस्या से आसानी से निजात पा सकते हैं।जल संरक्षण के लिये हमें अधिक अतिरिक्त प्रयास करने की जरुरत नहीं है, हम केवल अपनी प्रतिदिन की गतिविधियों में कुछ सकारात्मक बदलाव करके सहयोग कर सकते हैं, जैसे हर इस्तेमाल के बाद नल को ठीक से बंद कर देना चाहिए, पाईप से फर्श धोने या फव्वारे से नहाने के बजाय बाल्टी और मग का इस्तेमाल करें। फ्लस के लिए कम क्षमता के सिस्टर्न का इस्तेमाल करें, गाड़ियों, कारों इत्यादि को कपडे से साफ़ करके गीले कपडे से पोंछे बजाय इसके कि उसे पाइप से धोया जाए। गाँव के स्तर पर लोगों के द्वारा बरसात के पानी को इकट्ठा करने की शुरुआत करनी चाहिये। उचित रख-रखाव के साथ छोटे या बड़े तालाबों को बनाने के द्वारा बरसात के पानी को बचाया जा सकता है। शहरों में सडको के किनारे नालियां बनाकर बरसाती पानी को एक स्थान पर इकठ्ठा करके उसे पेय जल के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। नई कालोनी या सोसायटी बनाते समय सरकार ये सुनिश्चित करे कि कालेनायजर सभी प्लेट्स की छतों को एक साथ जोड़कर वर्षाजल संग्रहण की युक्ति का इस्तेमाल कर रहा है या नहीं? पानी को बचाने के लिये सूखा अवरोधी पौधा लगाना अच्छा तरीका हो सकता है।
जल की बर्बादी में एक बात जो बहुत अहम सामने आती है वह है पानी का रिसाव। इससे बचने के लिये पाइपलाइन और नलों के जोड़ दुरुस्त होने चहिये साथ ही साथ रिसाव की स्थिति में तुरन्त उसकी मरम्मत होनी चहिये। देखने में आता है कि जल बोर्ड के कर्मचारी इस मामले में अनदेखी करते हैं जिससे पेय जल की बहुत अधिक बर्बादी होती है।
जल प्रदूषण के बारे में एक चौकाने वला तथ्य शुद्ध जल की बोतल बंद बिक्री भी है। बहुत सारी कम्पनियाँ बोतलबंद पानी बेच रही हैं। जिसकी कीमत अमूमन 20 रूपये प्रति लीटर है। एक समय था जब लोगो को पानी के बिकने पर आश्चर्य होता था लेकिन अब ये भी जीवन शैली में सरीक हो चुका है। आज पूरे विश्व में लोगों ने पानी के बॉटल का इस्तेमाल शुरु कर दिया है जिसका खर्च $60 से $80 बिलियन प्रति वर्ष है। समझा जा सकता है कि इसने बड़े व्यापार के लिए किस प्रकार पहले रसायन का उपयोग करके कैसे जल प्रदूषित किया जा रहा है तदुपरांत बोतलबंद पानी को दिनचर्या का हिस्सा बनाया जा रहा है। प्रदूषित जल से बहुत सारे लोग पानी से होने वाली बीमारियों के कारण मर रहें हैं, इनकी संख्या 4 मिलियन से ज्यादा हैं। साफ पानी की कमी और गंदे पानी की वजह से होने वाली बीमारियों से सबसे ज्यादा विकासशील देश पीड़ित हैं। इसलिए समाधान भी इन देशों को ही सोचना होगा।
धरती पर जीवन को सुरक्षित रखने और पीने के पानी के बहुत कम प्रतिशत उपलब्ध होने के चलते जल संरक्षण या जल बचाओ अभियान हम सभी के लिये बहुत जरूरी है। औद्योगिक कचरे की वजह से रोजाना पानी के बड़े स्रोत प्रदूषित हो रहे हैं। जल को बचाने में अधिक कार्यक्षमता लाने के लिये सभी औद्योगिक बिल्डिंगस, अपार्टमेंटस्, स्कूल, अस्पतालों आदि में बिल्डरों के द्वारा उचित जल प्रबंधन व्यवस्था को बढ़ावा देने की जरुरत है। पीने के पानी या साधारण पानी की कमी के द्वारा होने वाली संभावित समस्या के बारे में आम लोगों को अवगत कराने के लिये जागरुकता कार्यक्रम चलाया जाने की भी जरुरत है। जल की बर्बादी के बारे में लोगों के व्यवहार में बदलाव लाकर ही इस खुबसूरत ग्रह पर जीवन को बचाया जा सकता है।
लेख प्रकाशित करने के लिए आभार