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साहित्यिक विमर्श

अज्ञेय की विभाजन संबंधी कहानियों में अभिव्यक्त मानवीय मूल्य और उनकी प्रासंगिकता-ताजवर बानो

अज्ञेय की कहानियों के केंद्र में रोटी ,कपड़ा और मकान न होकर विभाजन की त्रासदी से क्षीण हुई मानवीय संवेदना की अभिव्यक्ति है .

फणीश्वरनाथ रेणु के साहित्य में आंचलिक सैद्धांतिकी का सौन्दर्यशास्त्रीय अध्ययन-सपना दास

सौंदर्यशास्त्र, वास्तव में कला एवं साहित्यिक सौंदर्य जैसे कल्पना, कार्य निर्माण स्थल, इंद्रिय बोधगम्यता, अनुभूति, मनोदशा, विश्वास आदि के अध्ययन करने की एक विशिष्ट शाखा है।

संत साहित्य: सामाजिक चेतना के स्त्रोत-मनीष कुमार कुर्रे

सारांश संत साहित्य आचरण की पवित्रता एवं शुद्धता लेकर लोक के समक्ष आया। उसमें युगबोध एवं लोक चेतना का व्यापक स्वरूप प्रतिफलित है। मध्यकालीन सामाजिक, आर्थिक एवं साँस्कृतिक समस्याओं का संत साहित्य में स्वाभाविक चित्रण हुआ।

हिंदी लघुकथा का समकालीन परिदृश्य वाया कमल चोपड़ा-चेतन विष्णु रवेलिया

हिंदी साहित्य में सर्वथा नवीन कथा विधा लघुकथा रूप रचना की दृष्टी से है तो अदनी सी लेकिन अपने सूक्ष्म और प्रभावकारी कथ्यों, सीमित किंतु सटीक शब्दों, सारगर्भितता, प्रभावी और तीक्ष्ण संवादों के कारण आज साहित्य के केंद्र में आ गई है।

सरगुन निर्गुण मन की छाया बड़े सयाने भटके

एक बूंद,एकै माल मूतर, एक कहां, एक गूदा। एक जोती से सब उतपना, को बामन को शूदा।|

रवीन्‍द्रनाथ और निराला : कितने दूर, कितने पास

‘रवीन्‍द्र कविता- कानन’ जैसी भावनापूर्ण और आधिकारिक समालोचना लिखकर निराला ने हिन्‍दी साहित्यिकों का ध्‍यान टैगोर की ओर आकर्षित किया।

नये काव्यशास्त्र/ सौंदर्यशास्त्र की आवश्यकता और नये कवि

नये काव्यशास्त्र की मांग के संदर्भ में हिंदी साहित्य में वस्तु और शिल्प दोनों ही स्तरों पर नवीनता का प्रवेश विशेष रूप से आधुनिक काल से उपलब्ध होता है

समकालीन युग बोध के कवि कुँवर बेचैन

कुंवर बेचैन ने समय को केवल परखा ही नहीं तराशा भी है | बेहतरीन गीतकार तो वह हैं ही बेहतरीन ग़ज़लकार के रूप में उन्होने पाठकों को हिन्दी ग़ज़ल के रूप में खूबसूरत सौगात भेंट की है |

गोविंद मिश्र के यात्रा साहित्य में अंतर्निहित लोक संस्कृति

हिंदी यात्रा-साहित्य के विकास में समकालीन गोविंद मिश्र का प्रदान अहमियत रखता है | वे बहुमुखी प्रतिभासम्पन्न रचनाकार हैं |

गुमनामी के अंधेरों में खोया सितारा : इंद्र बहादुर खरे-डॉ.नूतन पाण्डेय

दी साहित्य का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि उनके जीवनकाल में उनकी रचनाएं लोगों तक नहीं पहुँच सकीं लेकिन उनकी लेखनी में एक ऐसा जादू था, शिल्प का एक ऐसा चमत्कार था, भावों का एक ऐसा अपूर्व संयोजन था, पाठक जिसके वशीभूत हुए बिना नहीं रह सकते।
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