विश्वहिंदीजन कोश

अंगद का पाँव : श्रीलाल शुक्ल वैसे तो मुझे स्टेशन जा कर लोगों को विदा देने का चलन नापसंद है, पर इस बार मुझे स्टेशन जाना पड़ा और मित्रों को विदा देनी पड़ी। इसके कई कारण थे। पहला तो यही कि वे मित्र थे। और, मित्रों के सामने सिद्धांत का प्रश्न उठाना ही बेकार होता Read More
अंडे के छिलके (नाटक) : मोहन राकेश Ande Ke Chhilke (Hindi Play) : Mohan Rakesh पात्र श्याम, वीना, राधा, गोपाल, जमुना, माधव परदा उठने पर गैलरी वाला दरवाज़ा खुला दिखाई देता है। बायीं ओर के दरवाज़े के आगे परदा लटक रहा है जिससे पता नहीं चलता कि दरवाज़ा खुला है या बन्द। कमरे में कोई Read More
Adalati Faisla Kamleshwar अदालती फ़ैसला कमलेश्वर अदालत में एक संगीन फ़ौजदारी मुकद्दमे के फ़ैसले का दिन। मुकद्दमा हत्या की कोशिश का था क्योंकि जिसे मारने की साजिश की गई थी वह गहरे जख्म खाकर भी अस्पताल की मुस्तैद देखभाल और इलाज की बदौलत जिन्दा बच गया था। इस मुकहमे में पाँच अभियुक्त थे। जज ने Read More
अंधा युग (नाटक) : धर्मवीर भारती Andha Yug (Hindi Play) : Dharamvir-Bharati पात्र अश्वत्थामा, गान्धारी, विदुर, धृतराष्ट्र, युधिष्ठिर, कृतवर्मा, कृपाचार्य, संजय, युयुत्सु, वृद्ध याचक, गूँगा भिखारी, प्रहरी 1, प्रहरी 2, व्यास, बलराम, कृष्ण घटना-काल महाभारत के अट्ठारहवें दिन की संध्या से लेकर प्रभास-तीर्थ में कृष्ण की मृत्यु के क्षण तक। स्थापना [नेपथ्य से उद्घोषणा तथा Read More
ज़िन्दगी के... कमरों में अँधेरे लगाता है चक्कर कोई एक लगातार; आवाज़ पैरों की देती है सुनाई बार-बार....बार-बार, वह नहीं दीखता... नहीं ही दीखता, किन्तु वह रहा घूम तिलस्मी खोह में ग़िरफ्तार कोई एक, भीत-पार आती हुई पास से, गहन रहस्यमय अन्धकार ध्वनि-सा अस्तित्व जनाता अनिवार कोई एक, और मेरे हृदय की धक्-धक् पूछती है--वह Read More
Anamika Suryakant Tripathi Nirala अनामिका सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला 1. गीत जैसे हम हैं वैसे ही रहें, लिये हाथ एक दूसरे का अतिशय सुख के सागर में बहें। मुदें पलक, केवल देखें उर में,- सुनें सब कथा परिमल-सुर में, जो चाहें, कहें वे, कहें। वहाँ एक दृष्टि से अशेष प्रणय देख रहा है जग को निर्भय, Read More
अपने सामने कुँवर नारायण एक अंतिम ऊँचाई कितना स्पष्ट होता आगे बढ़ते जाने का मतलब अगर दसों दिशाएँ हमारे सामने होतीं हमारे चारो ओर नहीं। कितना आसान होता चलते चले जाना यदि केवल हम चलते होते बाक़ी सब रुका होता। मैंने अक्सर इस ऊल-जुलूल दुनिया को दस सिरों से सोचने और बीस हाथों से पाने Read More
Abhangvani Sant Namdev  अभंगवाणी संत नामदेव जी राग टोडी 1 हरि नांव हीरा हरि नांव हीरा । हरि नांव लेत मिटै सब पीरा ॥टेक॥ हरि नांव जाती हरि नांव पांती । हरि नांव सकल जीवन मैं क्रांती ॥1॥ हरि नांव सकल सुषन की रासी । हरि नांव काटै जम की पासी ॥2॥ हरि नांव सकल Read More
 Amritsar Aa Gaya Hai -Bhisham Sahni अमृतसर आ गया है -भीष्म साहनी गाड़ी के डिब्बे में बहुत मुसाफिर नहीं थे। मेरे सामनेवाली सीट पर बैठे सरदार जी देर से मुझे लाम के किस्से सुनाते रहे थे। वह लाम के दिनों में बर्मा की लड़ाई में भाग ले चुके थे और बात-बात पर खी-खी करके हंसते Read More
असाध्य वीणा: अज्ञेय  आ गये प्रियंवद! केशकम्बली! गुफा-गेह! राजा ने आसन दिया। कहा: "कृतकृत्य हुआ मैं तात! पधारे आप। भरोसा है अब मुझ को साध आज मेरे जीवन की पूरी होगी!" लघु संकेत समझ राजा का गण दौड़े! लाये असाध्य वीणा, साधक के आगे रख उसको, हट गये। सभा की उत्सुक आँखें एक बार वीणा Read More
Aakashdeep Jaishankar Prasad आकाशदीप जयशंकर प्रसाद 1 “बन्दी!” “क्या है? सोने दो।” “मुक्त होना चाहते हो?” “अभी नहीं, निद्रा खुलने पर, चुप रहो।” “फिर अवसर न मिलेगा।” “बड़ा शीत है, कहीं से एक कम्बल डालकर कोई शीत से मुक्त करता।” “आँधी की सम्भावना है। यही अवसर है। आज मेरे बन्धन शिथिल हैं।” “तो क्या तुम Read More
Aangan Ke Par Dwar Agyeya आँगन के पार द्वार- अज्ञेय अन्तःसलिला 1. सरस्वती पुत्र मन्दिर के भीतर वे सब धुले-पुँछे उघड़े-अवलिप्त, खुले गले से मुखर स्वरों में अति-प्रगल्भ गाते जाते थे राम-नाम। भीतर सब गूँगे, बहरे, अर्थहीन, जल्पक, निर्बोध, अयाने, नाटे, पर बाहर जितने बच्चे उतने ही बड़बोले। बाहर वह खोया-पाया, मैला-उजला दिन-दिन होता जाता Read More
Aatamjayi Kunwar Narayan आत्मजयी कुँवर नारायण पूर्वाभास ओ मस्तक विराट, अभी नहीं मुकुट और अलंकार। अभी नहीं तिलक और राज्यभार। तेजस्वी चिन्तित ललाट। दो मुझको सदियों तपस्याओं में जी सकने की क्षमता। पाऊँ कदाचित् वह इष्ट कभी कोई अमरत्व जिसे सम्मानित करते मानवता सम्मानित हो। सागर-प्रक्षालित पग, स्फुर घन उत्तरीय, वन प्रान्तर जटाजूट, माथे सूरज Read More
आधे अधूरे (नाटक) : मोहन राकेश Aadhe Adhoore (Hindi Play) : Mohan Rakesh का.सू.वा. (काले सूटवाला आदमी) जो कि पुरुष एक, पुरुष दो, पुरुष तीन तथा पुरुष चार की भूमिकाओं में भी है। उम्र लगभग उनचास-पचास। चेहरे की शिष्टता में एक व्यंग्य। पुरुष एक के रूप में वेशान्तर : पतलून-कमीज। जिंदगी से अपनी लड़ाई हार चुकने की छटपटाहट Read More
Ashadh Ka Ek Din Mohan Rakesh आषाढ़ का एक दिन मोहन राकेश पात्र परिचय अंबिका : ग्राम की एक वृद्धा मल्लिका : वृद्धा की पुत्री कालिदास : कवि दंतुल : राजपुरुष मातुल : कवि मातुल निक्षेप : ग्राम-पुरुष विलोम : ग्राम-पुरुष रंगिणी : नागरी संगिनी : नागरी अनुस्वार : अधिकारी अनुनासिक: अधिकारी प्रियंगुमंजरी: राज कन्या Read More
Aansu Jaishankar Prasad आंसू जयशंकर प्रसाद आंसू इस करुणा कलित हृदय में अब विकल रागिनी बजती क्यों हाहाकार स्वरों में वेदना असीम गरजती? मानस सागर के तट पर क्यों लोल लहर की घातें कल कल ध्वनि से हैं कहती कुछ विस्मृत बीती बातें? आती हैं शून्य क्षितिज से क्यों लौट प्रतिध्वनि मेरी टकराती बिलखाती-सी पगली-सी Read More
In Dino Kunwar Narayan इन दिनों कुँवर नारायण नदी के किनारे हाथ मिलाते ही झुलस गई थीं उँगलियाँ मैंने पूछा, “कौन हो तुम ?” उसने लिपटते हुए कहा, “आग !” मैंने साहस किया- खेलूँगा आग से धूप में जगमगाती हैं चीज़ें धूप में सबसे कम दिखती है चिराग़ की लौ। कभी-कभी डर जाता हूँ अपनी Read More
Urvashi Ramdhari Singh Dinkar उर्वशी रामधारी सिंह 'दिनकर' पात्र परिचय पुरुष पुरुरवा: वेदकालीन, प्रतिष्ठानपुर के विक्रमी ऐल राजा, नायक महर्षि च्यवन: प्रसिद्द; भृगुवंशी, वेदकालीन महर्षि सूत्रधार: नाटक का शास्त्रीय आयोजक, अनिवार्य पात्र कंचुकी: सभासद: प्रतिहारी: प्रारब्ध आदि आयु: पुरुरवा-उर्वशी का पुत्र महामात्य: पुरुरवा के मुख्य सचिव विश्व्मना: राज ज्योतिषी नारी नटी: शास्त्रीय पात्री, सूत्रधार की Read More
उलटबाँसियाँ अमीर खुसरो Ulatbaansiyan Amir Khusro ढकोसले काकी फूफा घर में हैं कि नायं, नायं तो नन्देऊ पांवरो होय तो ला दे, ला कथूरा में डोराई डारि लाऊँ खीर पकाई जतन से और चरखा दिया जलाय आयो कुत्तो खा गयो, तू बैठी ढोल बजाय, ला पानी पिलाय पीपल पकी पपेलियाँ, झड़ झड़ पड़े हैं बेर Read More
Oont Ki Karwat Rangeya Raghav ऊँट की करवट रांगेय राघव एक गंगापुत्रों की उस छोटी-सी बस्ती में किसी को भी हैसियत वाला नहीं कहा जा सकता, क्योंकि किसी की भी खास आमदनी नहीं थी। रामदीन पांडे ही के पास थोड़ा-बहुत धन था, और वह भी इसलिए कि उनके पास कुछ खेत थे, जिनमें वे काश्त Read More