और माओरी न्यूज़ीलैंड की
आधिकारिक भाषाएं है। सामान्यतः अँग्रेज़ी का उपयोग किया जाता है। न्यूज़ीलैंड
की लगभग
46
लाख की जनसंख्या में फीजी भारतीयों सहित भारतीयों की कुल संख्या
डेढ लाख से अधिक है। 2013 की जनगणना के अनुसार हिंदी न्यूज़ीलैंड में सर्वाधिक बोले जाने वाली
भाषाओं में चौथे नम्बर पर है। अँग्रेज़ी,
माओरी व सामोअन के बाद हिंदी सर्वाधिक बोले/समझे जाने वाली
भाषा है। 2013 की जनगणना के अनुसार 66,309 लोग हिंदी का उपयोग करते हैं।
न्यूज़ीलैंड जनगणना 2013 में
सर्वाधिक बोले जानी वाली शीर्षस्थ 10 भाषाएं
यूं
तो न्यूज़ीलैंड कुल 40 लाख की आबादी वाला छोटा सा देश है, फिर भी हिंदी
के मानचित्र पर अपनी पहचान रखता है। पंजाब और गुजरात के भारतीय न्यूज़ीलैंड में
बहुत पहले से बसे हुए हैं किन्तु 1990 के आसपास बहुत से लोग मुम्बई, देहली, आंध्रप्रदेश, कर्नाटक, हरियाणा
इत्यादि राज्यों से आकर यहां बस गए। फीजी से भी बहुत से भारतीय राजनैतिक तख्ता-पलट
के दौरान यहां आ बसे। न्यूज़ीलैंड में फीजी भारतीयों की अनेक रामायण मंडलियां
सक्रिय हैं। यद्यपि फीजी मूल के भारतवंशी मूल रुप से हिंदी न बोल कर हिंदुस्तानी
बोलते हैं तथापि यथासंभव अपनी भाषा का ही उपयोग करते हैं। उल्लेखनीय है कि फीजी में
गुजराती,
मलयाली, तमिल, बांग्ला, पंजाबी और
हिंदी भाषी सभी भारतवंशी लोग हिंदी के माध्यम से ही जुडे़ हुए हैं।
न्यूजीलैंड
में मंदिर,
मस्जिद, गुरुद्वारा, हिंदी सिनेमा, भारतीय
रेस्तरॉ,
भारतीय
दुकानें,
हिंदी
पत्र-पत्रिका,
रेडियो
और टीवी सबकुछ है। यहां दीवाली का मेला भी लगता है और स्वतंत्रता-दिवस समारोह का
आयोजन भी धूमधाम से होता है। यहां बसे भारतीयों को लगता ही नहीं कि वे देश से दूर
हैं।
फीजी
में रामायण ने गिरमिटिया लोगों के संघर्ष के दिनों में हिंदी और भारतीय संस्कृति
को बचाए रखने में महान भूमिका निभाई है। इसीलिए ये लोग तुलसीदास को श्रद्धा से स्मरण
करते हैं। तुलसी कृत रामायण यहां के भारतवंशियों के लिए सबसे प्रेरक ग्रंथ है।
जन्म-मरण,
तीज-त्योहार
सब में रामायण की अहम् भूमिका रहती है। फीजी के मूल निवासी भी भारतीय संस्कृति से
प्रभावित हैं। भारतीय त्योहारों में फीजी के मूल निवासी भी भारतीयों के साथ मिलकर
इनमें भाग लेते हैं। बहुत से मूल निवासी अपनी काईबीती भाषा के साथ-साथ हिंदी भी
समझते और बोलते हैं। न्यूज़ीलैंड में बसे फीजी मूल के भारतवंशी यहां भी अपनी भाषा
व संस्कृति से जुड़े हुए हैं।
न्यूज़ीलैंड
में 1996
में
हिंदी पत्रिका भारत-दर्शन के प्रयास से एक वेब आधारित ‘हिंदी-टीचर’ का आरम्भ
किया गया। यह प्रयास पूर्णतया निजी था। इस प्रोजेक्ट को विश्व-स्तर पर सराहना मिली
लेकिन कोई ठोस साथ नहीं मिला। पत्रिका का अपने स्तर पर हिंदी प्रसार-प्रचार जारी
रहा। भारत-दर्शन इंटरनेट पर विश्व की पहली हिंदी साहित्यिक पत्रिका थी।
आज
न्यूज़ीलैंड में हिंदी पत्र-पत्रिका के अतिरिक्त हिंदी रेडियो और टीवी भी है
जिनमें ‘रेडियो तराना‘ और ‘अपना एफ एम‘ अग्रणी हैं। हिंदी
रेडियो और टी वी अधिकतर मनोरंजन के क्षेत्र तक ही सीमित है किंतु मनोरंजन के इन
माध्यमों को आवश्यकतानुसार
हिंदी अध्यापन का एक सशक्त माध्यम बनाया जा सकता है। न्यूज़ीलैंड में हर सप्ताह
कोई न कोई सांस्कृतिक कार्यक्रम होता है। हर सप्ताह हिंदी फिल्में प्रदर्शित होती
हैं। 1998
में
भारत-दर्शन द्वारा आयोजित दीवाली आज न्यूज़ीलैंड की संसद में मनाई जाती है और इसके
अतिरिक्त ऑकलैंड व वेलिंग्टन में सार्वजनिक रुप से स्थानीय-सरकारों द्वारा दीवाली
मेले आयोजित किए जाते हैं।
औपचारिक
रुप से हिन्दी शिक्षण की कोई विशेष व्यवस्था न्यूज़ीलैंड में नहीं है लेकिन पिछले
कुछ वर्षों से ऑकलैंड विश्वविद्यालय में ‘आरम्भिक‘ व ‘मध्यम’ स्तर की
हिन्दी
‘कंटिन्यूइंग
एजुकेशन‘
के
अंतर्गत पढ़ाई जा रही है ।
ऑकलैंड
का भारतीय हिंदू मंदिर भी पिछले कुछ वर्षों से आरम्भिक हिंदी शिक्षण उपलब्ध करवाने
में सेवारत है। कुछ अन्य संस्थाएं भी अपने तौर पर हिंदी सेवा में लगी हुई हैं।
हिंदी के इस अध्ययन-अध्यापन का कोई स्तरीय मानक नहीं है। स्वैच्छिक हिंदी अध्यापन
में जुटे हुए भारतीय मूल के लोगों में व्यावसायिक स्तर के शिक्षकों का अधिकतर अभाव
रहा है।
हिन्दी
पठन-पाठन का स्तर व माध्यम अव्यावसायिक और स्वैच्छिक रहा है। कुछ संस्थाओं द्वारा अपने स्तर पर हिंदी पढ़ाई
जाती है। पिछले कई वर्षों से वेलिंग्टन हिंदी स्कूल में भी आंशिक रुप से हिंदी
पढ़ाई जा रही है जिसके लिए
सुश्री सुनीता नारायण की हिंदी सेवा सराहनीय है। वेलिंग्टन के हिंदी स्कूल की
सुनीता नारायण 1995
से
हिंदी पढ़ा रही हैं। भारत-दर्शन का ऑनलाइन
हिंदी टीचर 1996
से
उपलब्ध है। वायटाकरे हिंदी स्कूल हैंडरसन में हिंदी कक्षाओं के माध्यम से हिंदी का
प्रचार कर रहा है व सुश्री रूपा सचदेव अपने स्तर पर हिंदी पढ़ाती हैं। महात्मा
गांधी सेंटर में भी हिंदी पढ़ाई जाती है। प्रवीना प्रसाद हिंदी लैंगुएज एंड कल्चर
में हिंदी की कक्षाएं लेती हैं। पापाटोएटोए हाई स्कूल एकमात्र मुख्यधारा का ऐसा
स्कूल है जहाँ हिंदी पढ़ाई जाती है, यहाँ सुश्री अनीता बिदेसी हिंदी का
अध्यापन करती हैं। । इसके अतिरिक्त सुश्री सुशीला शर्मा भी कई वर्ष तक ऑकलैंड
यूनिवर्सिटी की कंटिन्यूइंग एजुकेशन में हिंदी पढ़ाती रही हैं। स्व० एम सी विनोद
ने बहुत पहले ऑकलैंड में हिंदी शिक्षण की व्यवस्था की थी लेकिन समुचित सहयोग न
मिलने के कारण कक्षाएं बंद करनी पड़ी थी। न्यूज़ीलैंड में हिंदी पत्रकारिता में भी
उनका योगदान भुलाया नहीं जा सकता। 1998 में भारत-दर्शन द्वारा आयोजित दीवाली
आज न्यूज़ीलैंड की संसद में मनाई जाती है और इसके अतिरिक्त ऑकलैंड व वेलिंग्टन में
सार्वजनिक रुप से स्थानीय-सरकारों द्वारा दीवाली मेले आयोजित किए जाते हैं।
पिछले
कुछ वर्षों से काफी गैर-भारतीय भी हिंदी में रुचि दिखाने लगे हैं। विदेशों में
हिंदी को बढ़ावा देने के लिए पाठ्यक्रम को स्तरीय व रोचक बनाने की आवश्यकता है।
विदेशों
में हिन्दी पढ़ाने हेतु उच्च-स्तरीय कक्षाओं के लिए अच्छे पाठ विकसित करने की
आवश्यकता है। यह पाठ स्थानीय परिवेश में, स्थानीय रुचि वाले
होने चाहिए। हिंदी में संसाधनों का अभाव हिन्दी जगत के लिए विचारणीय बात है!
अच्छे
स्तरीय पाठ तैयार करना, सृजनात्मक/रचनात्मक अध्यापन प्रणालियां
विकसित करना,
पठन-पाठन
की नई पद्धतियां और पढ़ाने के नए वैज्ञानिक तरीके खोजना जैसी बातें विदेशों में
हिन्दी के विकास के लिए एक चुनौती है।
भारत
की पाठ्य-पुस्तकों को विदेशों के हिंदी अध्यापक अपर्याप्त महसूस करते हैं क्योंकि
पाठ्य-पुस्तकों में स्थानीय जीवन से संबंधित सामग्री का अभाव अखरता है। विदेशों
में हिंदी अध्यापन का बीड़ा उठाने वाले लोगों को भारत में व्यावहारिक प्रशिक्षण
दिए जाने जैसी सक्षम योजनाओं का भी अभाव है। स्थानीय विश्वविद्यालयों के साथ भी
सहयोग की आवश्यकता है। इस दिशा में भारतीय उच्चायोग एवं भारतीय विदेश मंत्रालय
विशेष भूमिका निभा सकते हैं। जिस प्रकार ब्रिटिश काउंसिल अंग्रेजी भाषा को बढ़ावा
देने के लिए काम करता है, उसी तरह हिंदी भाषा व भारतीय संस्कृति
को बढ़ावा देने के लिए क़दम उठाए जा सकते हैं।
विदेशों
में सक्रिय भारतीय मीडिया भी इस संदर्भ में बी.बी.सी व वॉयस ऑव
अमेरिका से सीख लेकर, उन्हीं की तरह हिंदी के पाठ विकसित करके
उन्हें अपनी वेब साइट व प्रसारण में जोड़ सकता है। बी बी सी और वॉयस ऑव अमेरिका
अंग्रेजी के पाठ अपनी वेब साइट पर उपलब्ध करवाने के अतिरिक्त इनका प्रसारण भी करते
हैं। इसके साथ ही
सभी हिंदी विद्वान/विदुषियों, शिक्षक-प्रशिक्षकों को चाहिए कि वे आगे
आयें और हिंदी के लिए काम करने वालों की केवल आलोचना करके या त्रुटियां निकालकर ही
अपनी भूमिका पूर्ण न समझें बल्कि हिंदी प्रचार में काम करनेवालों को अपना
सकारात्मक योगदान भी दें। हिंदी को केवल भाषणबाज और नारेबाज़ी की नहीं सिपाहियों की
आवश्यकता है।
पहली हिंदी साहित्यिक पत्रिका, ‘भारत-दर्शन‘ के
संपादक हैं।
संपादक, भारत-दर्शन
2/156, Universal Drive
Henderson, Waitakere
Auckland, New Zealand
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