चीन और भारत के रिश्तों का इतिहास बहुत पुराना
है। आज से हज़ारों साल पहले संस्कृत और भारतीय संस्कृति चीन आ चुकी थी। इसके बाद जब
महात्मा बुद्ध जब चीन आए तो उनका इस धरती ने गर्म जोशी से स्वागत किया।कुछ अपवादों
जिनमें युद्धकाल भी आ जाता है को छोड़कर चीन और भारत की समान सांस्कृतिक विरासत ने
दोनों देशों को बहुत मज़बूती से जोड़े रखा है। भाई-भाई की तरह दोनों देशों ने अपने-अपने दुख-दर्द बाँटे
हैं। अपनी-अपनी संस्कृतियों को साझा किया है। इसमें भाषा ने सदैव बड़ी भूमिका निभाई है। जैसे प्राचीनकाल
में दोनों को संस्कृत ने जोड़ा वही भूमिका आज हिन्दी निभा रही है।
है। आज से हज़ारों साल पहले संस्कृत और भारतीय संस्कृति चीन आ चुकी थी। इसके बाद जब
महात्मा बुद्ध जब चीन आए तो उनका इस धरती ने गर्म जोशी से स्वागत किया।कुछ अपवादों
जिनमें युद्धकाल भी आ जाता है को छोड़कर चीन और भारत की समान सांस्कृतिक विरासत ने
दोनों देशों को बहुत मज़बूती से जोड़े रखा है। भाई-भाई की तरह दोनों देशों ने अपने-अपने दुख-दर्द बाँटे
हैं। अपनी-अपनी संस्कृतियों को साझा किया है। इसमें भाषा ने सदैव बड़ी भूमिका निभाई है। जैसे प्राचीनकाल
में दोनों को संस्कृत ने जोड़ा वही भूमिका आज हिन्दी निभा रही है।
आधुनिक काल में पश्चिम बंगाल के रहस्य और
अध्यात्म ने चीन को बहुत अधिक प्रभावित किया।इसका सबसे बड़ा प्रमाण बंगला साहित्यकारों की यहाँ व्यापक
स्वीकार्यता का होना है। सर्वाधिक टैगोर पढे-पढ़ाए जाते हैं। अनेक विश्वविद्यालयों
में उनके नाम पर अध्ययन अनुभाग हैं। उनके काव्य के तो यहाँ अनेक दीवाने मिल
जाएँगे। टैगोर और अरविंद के जीवनदर्शन,काव्य,अध्यात्म और दार्शनिक सिद्धान्त यहाँ बड़ी गंभीरता के साथ अध्ययन -अध्यापन
में स्थान पाए हुए हैं। सेंजान विश्वविद्यालय की एक एक प्रोफेसर ने तो अरविंद
-दर्शन पर पी-एच.डी की है। यहाँ की माध्यमिक कक्षाओं के पाठ्यक्रमों तक में टैगोर
की उपस्थिति इनकी सर्व स्वीकार्यता की सहज पहचान काही जा सकती है।बांग्ला के बाद
हिंदी ने भी चीनियों को अपनी ओर आकृष्ट किया । इसमें सबसे पहले छायावादी काल में
हिंदी के रहस्य और रोमांटिसिज़्म ने स्वभाव से प्रकृति प्रेमी चीनियों का ध्यान अपनी
ओर खींचा । इसके बाद इनके लूशुन के समानधर्मा लेखक प्रेम चंद इन्हें गहरे प्रभावित
किया। साहित्य के बाद भाषा के रूप में पठन-पाठन के स्तर पर हिंदी के चरण सन् 1942 में, नेशनलिस्ट पार्टी की सरकार के समय में चीन
में पड़े। युन्नान प्रांत में पूर्वी भाषा का कॉलेज
स्थापित कियागया, जिसमें हिंदी , थाई, इंडोनेशियाई और वियतनामी सहित चार भाषाओं का शिक्षण शुरू हुआ। इस प्रकार इस धरती पर पहली
बार गैर यूनिवर्सल विदेशी भाषाओं के शिक्षण का श्रीगणेश हुआ। हिन्दी विभाग का
खुलना भी इसी समय के शिक्षा में हिन्दी के स्वर्णिम
इतिहास की शुरुआत मानी जा सकती है। इसके बाद भाषा का यह
प्रवाह पूर्वी भाषा कॉलेज युन्नान से चूंगचींग और चूंगचींग से नानजिंग तक पहुंचा। लेकिन हिंदी का यह प्रवाह
सन्1949 ई.में बीजिंग तक आते-आते थम और थक-सा गया।
अध्यात्म ने चीन को बहुत अधिक प्रभावित किया।इसका सबसे बड़ा प्रमाण बंगला साहित्यकारों की यहाँ व्यापक
स्वीकार्यता का होना है। सर्वाधिक टैगोर पढे-पढ़ाए जाते हैं। अनेक विश्वविद्यालयों
में उनके नाम पर अध्ययन अनुभाग हैं। उनके काव्य के तो यहाँ अनेक दीवाने मिल
जाएँगे। टैगोर और अरविंद के जीवनदर्शन,काव्य,अध्यात्म और दार्शनिक सिद्धान्त यहाँ बड़ी गंभीरता के साथ अध्ययन -अध्यापन
में स्थान पाए हुए हैं। सेंजान विश्वविद्यालय की एक एक प्रोफेसर ने तो अरविंद
-दर्शन पर पी-एच.डी की है। यहाँ की माध्यमिक कक्षाओं के पाठ्यक्रमों तक में टैगोर
की उपस्थिति इनकी सर्व स्वीकार्यता की सहज पहचान काही जा सकती है।बांग्ला के बाद
हिंदी ने भी चीनियों को अपनी ओर आकृष्ट किया । इसमें सबसे पहले छायावादी काल में
हिंदी के रहस्य और रोमांटिसिज़्म ने स्वभाव से प्रकृति प्रेमी चीनियों का ध्यान अपनी
ओर खींचा । इसके बाद इनके लूशुन के समानधर्मा लेखक प्रेम चंद इन्हें गहरे प्रभावित
किया। साहित्य के बाद भाषा के रूप में पठन-पाठन के स्तर पर हिंदी के चरण सन् 1942 में, नेशनलिस्ट पार्टी की सरकार के समय में चीन
में पड़े। युन्नान प्रांत में पूर्वी भाषा का कॉलेज
स्थापित कियागया, जिसमें हिंदी , थाई, इंडोनेशियाई और वियतनामी सहित चार भाषाओं का शिक्षण शुरू हुआ। इस प्रकार इस धरती पर पहली
बार गैर यूनिवर्सल विदेशी भाषाओं के शिक्षण का श्रीगणेश हुआ। हिन्दी विभाग का
खुलना भी इसी समय के शिक्षा में हिन्दी के स्वर्णिम
इतिहास की शुरुआत मानी जा सकती है। इसके बाद भाषा का यह
प्रवाह पूर्वी भाषा कॉलेज युन्नान से चूंगचींग और चूंगचींग से नानजिंग तक पहुंचा। लेकिन हिंदी का यह प्रवाह
सन्1949 ई.में बीजिंग तक आते-आते थम और थक-सा गया।
बहुत लंबे कालखंड तक चीन
में हिंदी का प्रवाह स्थिर-सा रहा। इक्कीसवीं सदी में आकर हिंदी ने फिर अंगड़ाई ली
और एक अन्य विश्वविद्यालय में हिन्दी विभाग खोला गया। इसके बाद तो झड़ी ही लग गई ।
बीजिंग विदेशी अध्ययन विश्वविद्यालय, शीआन
इंटरनेशनल स्टडीज विश्वविद्यालय, गुआंग्डोंग विदेश अध्ययन विश्वविद्यालय, शंघाई इंटरनेशनल
स्टडीज विश्वविद्यालय, युन्नान राष्ट्रीयता
विश्वविद्यालय, चीन के संचार विश्वविद्यालय आदि में हिंदी
विभाग खुलने शुरू हुए तो सिसिलेवार खुलते ही चले गए।
में हिंदी का प्रवाह स्थिर-सा रहा। इक्कीसवीं सदी में आकर हिंदी ने फिर अंगड़ाई ली
और एक अन्य विश्वविद्यालय में हिन्दी विभाग खोला गया। इसके बाद तो झड़ी ही लग गई ।
बीजिंग विदेशी अध्ययन विश्वविद्यालय, शीआन
इंटरनेशनल स्टडीज विश्वविद्यालय, गुआंग्डोंग विदेश अध्ययन विश्वविद्यालय, शंघाई इंटरनेशनल
स्टडीज विश्वविद्यालय, युन्नान राष्ट्रीयता
विश्वविद्यालय, चीन के संचार विश्वविद्यालय आदि में हिंदी
विभाग खुलने शुरू हुए तो सिसिलेवार खुलते ही चले गए।
बीजिंग विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग का इतिहास
सबसे पुराना है।इस विश्वविद्यालयको
पूर्वी भाषा कॉलेज विरासत में मिला है।भौगोलिक दृष्टि से बीजिंग, शंघाई, गुआंगज़ौ,शीआन, कुनमिंग आदि शहरों यानी उत्तरी चीन, पूर्वी चीन, दक्षिण चीन, उत्तर पश्चिमी और दक्षिण पश्चिम सब
क्षेत्रों में स्थित विश्वविद्यालयों
में हिंदी का पठन-पाठन होता है । यहाँ हिन्दी विभाग स्थापित हैं। यहाँ के विश्वविद्यालयों में हिंदी के
पठन-पाठन पर एक विहंगम दृष्टि डालने और चीन में हिंदी की आधारभूमि तैयार करने में
जिन विश्वविद्यालयों की अग्रणी भूमिका रही है, उनकी भौगोलिक
स्थिति और कालवार विवरण निम्नवत है-
सबसे पुराना है।इस विश्वविद्यालयको
पूर्वी भाषा कॉलेज विरासत में मिला है।भौगोलिक दृष्टि से बीजिंग, शंघाई, गुआंगज़ौ,शीआन, कुनमिंग आदि शहरों यानी उत्तरी चीन, पूर्वी चीन, दक्षिण चीन, उत्तर पश्चिमी और दक्षिण पश्चिम सब
क्षेत्रों में स्थित विश्वविद्यालयों
में हिंदी का पठन-पाठन होता है । यहाँ हिन्दी विभाग स्थापित हैं। यहाँ के विश्वविद्यालयों में हिंदी के
पठन-पाठन पर एक विहंगम दृष्टि डालने और चीन में हिंदी की आधारभूमि तैयार करने में
जिन विश्वविद्यालयों की अग्रणी भूमिका रही है, उनकी भौगोलिक
स्थिति और कालवार विवरण निम्नवत है-
विश्वविद्यालय
|
स्थान
|
स्थापित
होने का समय |
बीजिंग
विश्वविद्यालय |
बीजिंग
|
1942
|
शीआन
विदेशी अध्ययन विश्वविद्यालय |
शीआन
|
2005
|
बीजिंग
विदेशी अध्ययन विश्वविद्यालय |
बीजिंग
|
2007
|
चीन
के संचार विश्वविद्यालय |
बीजिंग
|
2008
|
युन्नान
राष्ट्रीयता विश्वविद्यालय |
कुनमिंग
|
2010
|
गुआंग्डोंग
विदेशी अध्ययन विश्वविद्यालय |
केंटन
|
2012
|
शंघाई
विदेशी अध्ययन विश्वविद्यालय |
शंघाई
|
2013
|
इसके अलावा, सिचुआन इंटरनेशनल स्टडीज विश्वविद्यालय में
हिन्दी विभाग खोलने की अनुमति दी गई है, पर अभी तक औपचारिक रूप से हिंदी का शिक्षण नहीं शुरू हुआ। दक्षिण पश्चिम
राष्ट्रीयता विश्वविद्यालय भी सक्रिय रूप से हिन्दी विभाग की तैयारी कर रहा है,
एक-दो वर्ष के भीतर यहाँ भी हिंदी की
शिक्षा शुरू होने की उम्मीद है।
हिन्दी विभाग खोलने की अनुमति दी गई है, पर अभी तक औपचारिक रूप से हिंदी का शिक्षण नहीं शुरू हुआ। दक्षिण पश्चिम
राष्ट्रीयता विश्वविद्यालय भी सक्रिय रूप से हिन्दी विभाग की तैयारी कर रहा है,
एक-दो वर्ष के भीतर यहाँ भी हिंदी की
शिक्षा शुरू होने की उम्मीद है।
अलग-अलग विश्वविद्यालयों
के हिन्दी विभागों में शिक्षकों की स्थिति भिन्न-भिन्न है। बीजिंग विश्वविद्यालय ने चीन में सबसे पहले
हिन्दी विभाग खोला है, जिसमें भारत कीप्रमुख प्रांतीय भाषाओं और उनके साहित्य के अध्ययन की सुविधा उपलब्ध है। यह चीन का एकमात्र
विश्वविद्यालय है जो हिंदी में डॉक्टरेट की उपाधि भी प्रदान करता है। इसलिए शिक्षकों के मामले में बीजिंग विश्वविद्यालय
काफ़ी समृद्ध है। इसमें हिंदी विभाग में दो प्रोफेसर, एक
एसोसिएट प्रोफेसर, एक सहायक प्रोफेसर हैं।अन्य
विश्वविद्यालयों में शिक्षकों की स्थिति इतनी
समृद्ध तो नहीं है पर वहाँ भी हिंदी के सुचारु रूप से शिक्षण के लिए औसतन तीन से
चार शिक्षक हैं। इनमें अधिकांश शिक्षक चीनी ही हैं। किसी -किसी विश्व विद्यालय में
ही विदेशी विशेषज्ञ के रूप में भारतीय प्रोफेसर हैं,नहीं तो
सारे विश्वविद्यालयों में चीनी नागरिक ही हिंदी पढ़ा रहे हैं । बीजिंग
विश्वविद्यालय में तो हिंदी के दो-दो चीनी प्रोफेसर
हैं। यहाँ के तीन प्राध्यापक हिंदी में पी-एच.डी हैं।यहाँ के प्रोफेसर जियांग जिंग
खुइ ने आधुनिक हिंदी नाटकों पर डाक्ट्रेट प्राप्त की है। नाटकों संबंधी उनके ज्ञान
पर मैं दंग था।उनके एक घंटे के साक्षात्कार में उनके मुँह से एक भी शब्द अङ्ग्रेज़ी
का मैंने नहीं सुना। उनके हिंदी पर अधिकार का इससे बड़ा सबूत और क्या चाहिए। मैंने
स्वयं को उनके सम्मुख बहुत सँभालकर रखा कि कहीं कोई अङ्ग्रेज़ी शब्द मुँह से न
निकाल जाए । उन्होंने मुझसे कहा कि,” आप भारतीय
अंग्रेज़ी बोलने में जो गौरव अनुभव करते हैं वह हिंदी बोलने में नहीं।”उस समय
मैं पानी-पानी हो गया। इनके पचासों शोध पत्र और कई पुस्तकें प्रकाशित हैं। इनमें
प्रमुख हैं- हिंदी नाटक का अनुसंधान,
के हिन्दी विभागों में शिक्षकों की स्थिति भिन्न-भिन्न है। बीजिंग विश्वविद्यालय ने चीन में सबसे पहले
हिन्दी विभाग खोला है, जिसमें भारत कीप्रमुख प्रांतीय भाषाओं और उनके साहित्य के अध्ययन की सुविधा उपलब्ध है। यह चीन का एकमात्र
विश्वविद्यालय है जो हिंदी में डॉक्टरेट की उपाधि भी प्रदान करता है। इसलिए शिक्षकों के मामले में बीजिंग विश्वविद्यालय
काफ़ी समृद्ध है। इसमें हिंदी विभाग में दो प्रोफेसर, एक
एसोसिएट प्रोफेसर, एक सहायक प्रोफेसर हैं।अन्य
विश्वविद्यालयों में शिक्षकों की स्थिति इतनी
समृद्ध तो नहीं है पर वहाँ भी हिंदी के सुचारु रूप से शिक्षण के लिए औसतन तीन से
चार शिक्षक हैं। इनमें अधिकांश शिक्षक चीनी ही हैं। किसी -किसी विश्व विद्यालय में
ही विदेशी विशेषज्ञ के रूप में भारतीय प्रोफेसर हैं,नहीं तो
सारे विश्वविद्यालयों में चीनी नागरिक ही हिंदी पढ़ा रहे हैं । बीजिंग
विश्वविद्यालय में तो हिंदी के दो-दो चीनी प्रोफेसर
हैं। यहाँ के तीन प्राध्यापक हिंदी में पी-एच.डी हैं।यहाँ के प्रोफेसर जियांग जिंग
खुइ ने आधुनिक हिंदी नाटकों पर डाक्ट्रेट प्राप्त की है। नाटकों संबंधी उनके ज्ञान
पर मैं दंग था।उनके एक घंटे के साक्षात्कार में उनके मुँह से एक भी शब्द अङ्ग्रेज़ी
का मैंने नहीं सुना। उनके हिंदी पर अधिकार का इससे बड़ा सबूत और क्या चाहिए। मैंने
स्वयं को उनके सम्मुख बहुत सँभालकर रखा कि कहीं कोई अङ्ग्रेज़ी शब्द मुँह से न
निकाल जाए । उन्होंने मुझसे कहा कि,” आप भारतीय
अंग्रेज़ी बोलने में जो गौरव अनुभव करते हैं वह हिंदी बोलने में नहीं।”उस समय
मैं पानी-पानी हो गया। इनके पचासों शोध पत्र और कई पुस्तकें प्रकाशित हैं। इनमें
प्रमुख हैं- हिंदी नाटक का अनुसंधान,
रवीन्द्रनाथ ठाकुर की रचनाओं का अध्ययन तथा भारत की संस्कृति और साहित्य का अध्ययन।
चीन के
हिंदी शिक्षकों की हिंदी सेवा की जितनी सराहना की जाए कम है। उनका
भाषा के साथ-साथ साहित्य के क्षेत्र में भी बड़ा अवदान है। उनके साहित्यिक अवदान को
विशेष रूप से रेखांकित किए जाने की आवश्यकता है।
हिंदी शिक्षकों की हिंदी सेवा की जितनी सराहना की जाए कम है। उनका
भाषा के साथ-साथ साहित्य के क्षेत्र में भी बड़ा अवदान है। उनके साहित्यिक अवदान को
विशेष रूप से रेखांकित किए जाने की आवश्यकता है।
नाम
|
विश्वविद्यालय
|
अनुसंधान
का विषय |
जिन
केमून |
बेइजिंग
विश्विद्यालय |
संस्कृत
साहित्य का इतिहास(1964)
भारतीय
संस्कृति का शोध-संग्रह (1983)
महाभारत(किसी
के साथ अनुवाद)
मेघदूत
(अनुवाद) आदि लगभग 30 किताबें |
लियू
अनऊ |
बेइजिंग
विश्विद्यालय |
हिंदी
साहित्य का इतिहास
प्रेमचन्द
की रचनाओं की आलोचना
रामायण
और महाभारत का अनुसंधान
अपेक्षित
दृष्टि से भारतीय और चीनी साहित्य का अध्ययन आदि लगभग 20 किताबें |
जियांग
जिंग खुइ |
बेइजिंग
विश्विद्यालय |
हिंदी
नाटक का अनुसंधान
रवीन्द्रनाथ
ठाकुर की रचनाओं का अध्ययन
भारत
की संस्कृति और साहित्य का अध्ययन |
गुओ
तोंग |
बेइजिंग
विश्विद्यालय |
आधुनिक
साहित्यकार अज्ञेय के उपन्यासों और कहानियों का अध्ययन
शंकर
की कलात्मक विशेषता आदि |
देंग
बिंग |
जनता
मुक्ति सेना का विदेशी भाषा कालेज |
भारत
का अनुसंधान
भारत
का भक्ति आंदोलन और कृष्ण साहित्य
भारतीय संस्कृति की विविधता आदि
|
लिओ
बो |
जनता
मुक्ति सेना का विदेशी भाषा कालेज |
भारत
के साहित्यकार कमरलेश्वर के उपन्यासों और कहानियों का अनुसंधान
मोहन
राकेश की कहानियों की आलोचना आदि |
रं
बिंग |
शंघाई
विदेशी अध्ययन विश्वविद्यालय |
प्रसाद
के आधुनिक कविता संग्रहों का अनुसंधान
प्रसाद
के चंद्रगुप्त नाटक का अधययन आदि |
चीन के विश्वविद्यालयों में हिंदी विभागों के अधिकांश पाठ्यक्रमों में
कुछ न कुछ समानताएं हैं। प्रत्येक विश्वविद्यालय हिन्दी
भाषा के व्यावहारिक रूप के प्रयोग पर बल देता है और
उसके कौशल को महत्व देता है। इन सभी का मुख्य उद्देश्य छात्रों को
उच्च स्तरीय हिन्दी की क्षमता से संपन्न करना है। सभी कोशिश करते हैं कि छात्र
हिंदी का पूर्ण व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त कर सकें। इस आधार पर भारतीय संस्कृति, नीतिशास्त्र
और अर्थशास्त्र आदि क्षेत्रों की पढ़ाई
पर भी ज़ोर जिया जाता है। इन समताओं के होते हुए भी विभिन्न विश्विविद्यालय अपने
-अपने ढंग से ही कुछ पाठ्यक्रम तैयार करते हैं, जो एक दूसरे
से थोड़ा-से भिन्न भी हैं ।इन भिन्न रूप वाले पाठ्यक्रमों मेन श्रव्य -दृश्य पाठ
और व्यावहारिक संप्रेषण के कौशल वाले पाठ हैं।
कुछ न कुछ समानताएं हैं। प्रत्येक विश्वविद्यालय हिन्दी
भाषा के व्यावहारिक रूप के प्रयोग पर बल देता है और
उसके कौशल को महत्व देता है। इन सभी का मुख्य उद्देश्य छात्रों को
उच्च स्तरीय हिन्दी की क्षमता से संपन्न करना है। सभी कोशिश करते हैं कि छात्र
हिंदी का पूर्ण व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त कर सकें। इस आधार पर भारतीय संस्कृति, नीतिशास्त्र
और अर्थशास्त्र आदि क्षेत्रों की पढ़ाई
पर भी ज़ोर जिया जाता है। इन समताओं के होते हुए भी विभिन्न विश्विविद्यालय अपने
-अपने ढंग से ही कुछ पाठ्यक्रम तैयार करते हैं, जो एक दूसरे
से थोड़ा-से भिन्न भी हैं ।इन भिन्न रूप वाले पाठ्यक्रमों मेन श्रव्य -दृश्य पाठ
और व्यावहारिक संप्रेषण के कौशल वाले पाठ हैं।
अन्य विश्वविद्यालयों की अपेक्षा पीकिंग
विश्वविद्यालय का पाठ्यक्रम
विविधता से भरा,अधिक गंभीर और व्यापक है।
विशेष रूप से वैकल्पिक पाठ्यक्रमों में यह विशेषता बहुत ज़ाहिर है। पीकिंग
विश्वविद्यालय में हिन्दी विभाग के छात्र अन्य सभी विभागों के समान, एक संपन्न वैकल्पिक पाठयक्रमों को चुन सकते
हैं, जैसे साहित्य, इतिहास, दर्शनशास्त्र, धर्म आदि।छात्र अपनी रुचि और
ज़रूरत के अनुसार स्वतंत्र रूप से इन व्यापक कोर्सों में से किसी को भी चुनने
के लिए स्वतंत्र हैं। इन पाठ्यक्रमों
में बहुत से ऐसे विषय शामिल हैं,जो
भारत मेन भी हिन्दी भाषी प्रान्तों मेन पढ़ाए जाते हैं।ये विभिन्न कालेजों में
लागू हैं औरइन पाठ्यक्रमों के माध्यम से छात्र अधिक अच्छी तरह से
उपनी प्रतिभा का विकास कर सकते हैं।इनसे वे अपनी उच्च
स्तरीय हिंदी की क्षमता का उदाहरण प्रस्तुत कर सकते हैं ।
विश्वविद्यालय का पाठ्यक्रम
विविधता से भरा,अधिक गंभीर और व्यापक है।
विशेष रूप से वैकल्पिक पाठ्यक्रमों में यह विशेषता बहुत ज़ाहिर है। पीकिंग
विश्वविद्यालय में हिन्दी विभाग के छात्र अन्य सभी विभागों के समान, एक संपन्न वैकल्पिक पाठयक्रमों को चुन सकते
हैं, जैसे साहित्य, इतिहास, दर्शनशास्त्र, धर्म आदि।छात्र अपनी रुचि और
ज़रूरत के अनुसार स्वतंत्र रूप से इन व्यापक कोर्सों में से किसी को भी चुनने
के लिए स्वतंत्र हैं। इन पाठ्यक्रमों
में बहुत से ऐसे विषय शामिल हैं,जो
भारत मेन भी हिन्दी भाषी प्रान्तों मेन पढ़ाए जाते हैं।ये विभिन्न कालेजों में
लागू हैं औरइन पाठ्यक्रमों के माध्यम से छात्र अधिक अच्छी तरह से
उपनी प्रतिभा का विकास कर सकते हैं।इनसे वे अपनी उच्च
स्तरीय हिंदी की क्षमता का उदाहरण प्रस्तुत कर सकते हैं ।
चीन के प्रायः सभी विश्वविद्यालयों में हिन्दी
के पाठ्यक्रम का रूप और तरीका
बेइजिंग विश्वविद्यालय से मिलता-जुलता है। इनके मुख्य पाठ्यक्रम हैं- आधारभूत हिन्दी, उच्च
स्तरीय हिंदी, हिंदी ऑडियो-विडियो का श्रवण, हिंदी पठन,हिंदी–चीनी अनुवाद
इत्यादि। बीजिंग विदेश अध्ययन विश्वविद्यालय में वैकल्पिक विषय ज़्यादा हैं,
जैसे चीन की संस्कृति, पुराने चीन के
साहित्य शास्त्र आदि। इससे देखा जा सकता है कि बीजिंग विदेश अध्ययन
विश्वविद्यालय चीन की पुरानी संस्कृति पर बहुत महत्व देता है। शीआन विदेश अध्ययन विश्वविद्यालय,
के पाठ्यक्रम का रूप और तरीका
बेइजिंग विश्वविद्यालय से मिलता-जुलता है। इनके मुख्य पाठ्यक्रम हैं- आधारभूत हिन्दी, उच्च
स्तरीय हिंदी, हिंदी ऑडियो-विडियो का श्रवण, हिंदी पठन,हिंदी–चीनी अनुवाद
इत्यादि। बीजिंग विदेश अध्ययन विश्वविद्यालय में वैकल्पिक विषय ज़्यादा हैं,
जैसे चीन की संस्कृति, पुराने चीन के
साहित्य शास्त्र आदि। इससे देखा जा सकता है कि बीजिंग विदेश अध्ययन
विश्वविद्यालय चीन की पुरानी संस्कृति पर बहुत महत्व देता है। शीआन विदेश अध्ययन विश्वविद्यालय,
युन्नान राष्ट्रीयता विश्वविद्यालय, गुआंग्डोंग विदेशी अध्ययन
विश्वविद्यालय में हिन्दी पाठ्यक्रम की विशेषता
उसका सैद्धान्तिक से अधिक व्यावहारिक होना है। इन विश्वविद्यालयों
में प्राचीन चीन के साहित्य शास्त्र का पाठ्यक्रम कम है। यहाँ सैद्धान्तिक की
अपेक्षा व्याहारिक कोर्स ही ज़्यादा है। गुआंग्डोंग
विदेशी अध्ययन विश्वविद्यालय में मुख्य रूप से
व्यापारिक हिंदी का कोर्स पढ़ाया जाता है। लेकिन इस
वर्ष मैंने बी.ए.तृतीय वर्ष के पहले सेमेस्टर मे ‘हिन्दी
साहित्य का इतिहास‘ पढ़ाया।विद्यार्थियों की रुचि को देखकर
मैं हतप्रभ था।कक्षा में तो उनकी सक्रियता थी ही कक्षा के बाहर भी वे कम सक्रिय
नहीं थे। जैसे ही आदिकाल समाप्त हुआ।उन्होने हीनयान ,महायान ,नाथ पंथ और स्वयंभू आदि कवियों पर प्रश्न पूछने शुरू कर दिए।चौरासी
सिद्धों को उन्होंने बौद्ध
धर्म से ऐसा जोड़ा कि मैं उनसे प्रभावित हुए बिना नहीं रहा। भक्तिकाल तक आते-आते
तथाकथित धर्म की दृष्टि से ये नास्तिक विद्यार्थी निर्गुण और सगुण को आधिकारिक तौर
पर अलगाने लगे थे। कबीर और अन्य निर्गुण कवियों तथा नाथ और सिद्ध कवियों की
सामाजिक कुरीतियों के खंडन की प्रवृत्तियों में साम्य दर्शा सकने में सक्षम हो गए थे।
विश्वविद्यालय में हिन्दी पाठ्यक्रम की विशेषता
उसका सैद्धान्तिक से अधिक व्यावहारिक होना है। इन विश्वविद्यालयों
में प्राचीन चीन के साहित्य शास्त्र का पाठ्यक्रम कम है। यहाँ सैद्धान्तिक की
अपेक्षा व्याहारिक कोर्स ही ज़्यादा है। गुआंग्डोंग
विदेशी अध्ययन विश्वविद्यालय में मुख्य रूप से
व्यापारिक हिंदी का कोर्स पढ़ाया जाता है। लेकिन इस
वर्ष मैंने बी.ए.तृतीय वर्ष के पहले सेमेस्टर मे ‘हिन्दी
साहित्य का इतिहास‘ पढ़ाया।विद्यार्थियों की रुचि को देखकर
मैं हतप्रभ था।कक्षा में तो उनकी सक्रियता थी ही कक्षा के बाहर भी वे कम सक्रिय
नहीं थे। जैसे ही आदिकाल समाप्त हुआ।उन्होने हीनयान ,महायान ,नाथ पंथ और स्वयंभू आदि कवियों पर प्रश्न पूछने शुरू कर दिए।चौरासी
सिद्धों को उन्होंने बौद्ध
धर्म से ऐसा जोड़ा कि मैं उनसे प्रभावित हुए बिना नहीं रहा। भक्तिकाल तक आते-आते
तथाकथित धर्म की दृष्टि से ये नास्तिक विद्यार्थी निर्गुण और सगुण को आधिकारिक तौर
पर अलगाने लगे थे। कबीर और अन्य निर्गुण कवियों तथा नाथ और सिद्ध कवियों की
सामाजिक कुरीतियों के खंडन की प्रवृत्तियों में साम्य दर्शा सकने में सक्षम हो गए थे।
आम तौर पर बेइजिंग विश्वविद्यालय में हिंदी के पाठ्यक्रम का प्रबंधन ऐसे किया जाता
है कि विद्यार्थियों को हिंदी इस तरह सिखाई जाए कि उनमें मौखिक और लिखित दोनों शक्तियों पर बल हो। उनकी दोनों शक्तियाँ प्रबल हों पर अन्य विश्वविद्यालय में हिंदी
के पाठ्यक्रम का प्रबंधन केवल
भाषिक शक्ति यानी बोलचाल पर अधिक बल देता है।इस दृष्टि
ग्वाङ्ग्डोंग वैदेशिक भाषा अध्ययन विश्वविद्यालय ने अन्य विश्वविद्यालयों
व्यावहारिक भाषा नीति के साथ साहित्य के गंभीर अध्ययन के लिए भी एक खिड़की खोल ही
दी है। यह पर्णपरा मैं चाहता हूँ कि मेरी भारत वापसी के बाद भी बरकरार रहे। इसके
यहाँ के हिन्दी विभाग के निदेशक श्री ह्यू रुई और व्याख्याता श्रीमती त्यान केपिंग
को बराबर प्रेरित करता रहता हूँ।
है कि विद्यार्थियों को हिंदी इस तरह सिखाई जाए कि उनमें मौखिक और लिखित दोनों शक्तियों पर बल हो। उनकी दोनों शक्तियाँ प्रबल हों पर अन्य विश्वविद्यालय में हिंदी
के पाठ्यक्रम का प्रबंधन केवल
भाषिक शक्ति यानी बोलचाल पर अधिक बल देता है।इस दृष्टि
ग्वाङ्ग्डोंग वैदेशिक भाषा अध्ययन विश्वविद्यालय ने अन्य विश्वविद्यालयों
व्यावहारिक भाषा नीति के साथ साहित्य के गंभीर अध्ययन के लिए भी एक खिड़की खोल ही
दी है। यह पर्णपरा मैं चाहता हूँ कि मेरी भारत वापसी के बाद भी बरकरार रहे। इसके
यहाँ के हिन्दी विभाग के निदेशक श्री ह्यू रुई और व्याख्याता श्रीमती त्यान केपिंग
को बराबर प्रेरित करता रहता हूँ।
विदेशी भाषा अच्छी तरह पढ़ाने के लिए
पाठ्य-पुस्तक चुनना बहुत महत्वपूर्ण है। वर्तमान समय में बेइजिंग विश्वविद्यालय के
द्वारा संकलित पाठ्यपुस्तक
सबसे लोकप्रिय है। अधिकतर विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग इसका उपयोग कर रहे हैं। इस
पाठ्यपुस्तक में अनुप्रयुक्त व्याकरण के स्पष्टीकरण की बहुत सटीक और सुंदर
व्यवस्था है।लेकिन यह पुस्तक मुद्रित न होकर टंकित है और छह दशक
पुरानी है। उसकी छाया प्रतियाँ होते-होते वर्ण तक विकृत रूप वाले हो गए हैं।उसमें
मंडारिन में जो भाषा-प्रयोग दिए गए हैं, वे बहुत स्पष्ट हैं।
उन्हीं से जहां अस्पष्ट हिन्दी पाठ हैं,उनको समझने में मदद
मिलती है। पीढ़ियों से चीन के हिन्दी छात्रों के
शिक्षण में इसका बड़ा योगदान है।इस पाठ्यपुस्तक की
अपनी सीमाएं हैं। उसका प्रयोग केवल आधारभूत हिंदी कोर्स मे ही हो सकता है, दूसरे हिंदी कोर्स,जैसे-हिंदी श्रवण, हिंदी-चीनी अनुवाद, हिंदी लेखन आदि में
इसका उपयोग नहीं किया जा सकता। यह पाठ्यपुस्तक
कोई औपचारिक रूप से प्रकाशित हुई पुस्तक भी नहीं है। यह
शिक्षकों के द्वारा समय-समय पर अपने कक्षा
-शिक्षण के लिए तैयार किए गए पाठों का संकलन भर है। अतः एक ऐसे सुव्यस्थित
पाठ्यक्रम की आवश्यकता है जो भाषाविदों की निगरानी में ‘विदेशी
भाषा के रूप में हिन्दी‘की दृष्टि से तैयार किया गया हो।
पाठ्य-पुस्तक चुनना बहुत महत्वपूर्ण है। वर्तमान समय में बेइजिंग विश्वविद्यालय के
द्वारा संकलित पाठ्यपुस्तक
सबसे लोकप्रिय है। अधिकतर विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग इसका उपयोग कर रहे हैं। इस
पाठ्यपुस्तक में अनुप्रयुक्त व्याकरण के स्पष्टीकरण की बहुत सटीक और सुंदर
व्यवस्था है।लेकिन यह पुस्तक मुद्रित न होकर टंकित है और छह दशक
पुरानी है। उसकी छाया प्रतियाँ होते-होते वर्ण तक विकृत रूप वाले हो गए हैं।उसमें
मंडारिन में जो भाषा-प्रयोग दिए गए हैं, वे बहुत स्पष्ट हैं।
उन्हीं से जहां अस्पष्ट हिन्दी पाठ हैं,उनको समझने में मदद
मिलती है। पीढ़ियों से चीन के हिन्दी छात्रों के
शिक्षण में इसका बड़ा योगदान है।इस पाठ्यपुस्तक की
अपनी सीमाएं हैं। उसका प्रयोग केवल आधारभूत हिंदी कोर्स मे ही हो सकता है, दूसरे हिंदी कोर्स,जैसे-हिंदी श्रवण, हिंदी-चीनी अनुवाद, हिंदी लेखन आदि में
इसका उपयोग नहीं किया जा सकता। यह पाठ्यपुस्तक
कोई औपचारिक रूप से प्रकाशित हुई पुस्तक भी नहीं है। यह
शिक्षकों के द्वारा समय-समय पर अपने कक्षा
-शिक्षण के लिए तैयार किए गए पाठों का संकलन भर है। अतः एक ऐसे सुव्यस्थित
पाठ्यक्रम की आवश्यकता है जो भाषाविदों की निगरानी में ‘विदेशी
भाषा के रूप में हिन्दी‘की दृष्टि से तैयार किया गया हो।
इस समय चीन में हिन्दी की लोकप्रियता और उसके
प्रसार को देखते हुए देश,काल और
उसकी बदलती जरूरतों के अनुसार नई पाठ्यपुस्तकों को
संकलित और संपादित करना एक बहुत ज़रूरी काम हो गया है। यहाँ के लिए हिंदी की किसी
भी स्तर की पाठ्यपुस्तक के निर्माण के दौरान कुछ
नियमों का पालन अवश्य करना है, जैसे सामग्री की विविधता और
छात्रों की समझ और उनके हिन्दी स्तर के अनुरूप होना ।अभी तात्कालिक रूप से
हमें हर श्रेणी के लिए कांसे कम एक-एक ऐसी
उपयोगी और सरल पाठ्यपुस्तक तैयार करने की आवश्यकता है, जो हर
दृष्टि से आधुनिक आर्थिक एवं सामाजिक विकास के अनुरूप
हो और अपने युग की मांग की पूर्ति करने में पूर्णतः
सक्षम भी हो।
प्रसार को देखते हुए देश,काल और
उसकी बदलती जरूरतों के अनुसार नई पाठ्यपुस्तकों को
संकलित और संपादित करना एक बहुत ज़रूरी काम हो गया है। यहाँ के लिए हिंदी की किसी
भी स्तर की पाठ्यपुस्तक के निर्माण के दौरान कुछ
नियमों का पालन अवश्य करना है, जैसे सामग्री की विविधता और
छात्रों की समझ और उनके हिन्दी स्तर के अनुरूप होना ।अभी तात्कालिक रूप से
हमें हर श्रेणी के लिए कांसे कम एक-एक ऐसी
उपयोगी और सरल पाठ्यपुस्तक तैयार करने की आवश्यकता है, जो हर
दृष्टि से आधुनिक आर्थिक एवं सामाजिक विकास के अनुरूप
हो और अपने युग की मांग की पूर्ति करने में पूर्णतः
सक्षम भी हो।
यहाँ के विश्वविद्यालयों के शिक्षक हिन्दी साहित्य,
भारतीय संस्कृति और अनुवाद के क्षेत्रों में शोध कर रहे
हैं, विशेष रूप से साहित्य के गंभीर अध्येता
के रूप में उभर रहे हैं। कुछ शिक्षक भारतीय अर्थव्यवस्था के बारे में अध्ययन कर
रहे हैं। इस क्षेत्र में पीकिंग विश्वविद्यालय के शिक्षक बहुत आगे हैं। वे भारतीय
साहित्य, संस्कृति, धर्म के
बारे में अध्ययन कर रहे हैं। वहाँ पिछले दिनों यहाँ के विश्वविद्यालयी प्रशासन के
द्वारा एक साक्षात्कार में मुझे विषय विशेज्ञ बनाया गया
तो मैंने पाया कि यहाँ जो शोध करते हैं वे अपने यहाँ की अपेक्षा गंभीरता के साथ
करते हैं। यहाँ की एक प्रतिभागी सूरदास पर पी-एच.डीकर रही थी।वह पुष्टिमार्ग,नवधा भक्ति और सूर के निर्गुण खंडन जैसे विषयों पर मेरे पूछने के साथ ही उत्तर देने लगी थी।मैं इसी बात पर मुग्ध था कि उसने
किसी भी प्रश्न का ‘नहीं आता‘में जवाब
नहीं दिया। चीन में हिंदी फैलती इस बेल से मैं तो बहुत आशान्वित हूँ। बीजिंग ही
नहीं शीआन विदेश अध्ययन विश्वविद्यालय के एक शिक्षक
अनुवाद पर और भारत की राष्ट्रीय स्थितियों पर
शोध कर रहे हैं। अन्य कई विश्वविद्यालयों के शिक्षक हिंदी माध्यम से
भी भारतीय साहित्य या अनुवाद पर अनुसंधान कर रहे
हैं।हमारे प्रधानमंत्री की ची यात्रा के बाद यहाँ के विद्यार्थियों में हिंदी पढ़ने
का उत्साह बढ़ा है। अकेले हमारे विषविद्यालय में हिंदी में सत्तावन विद्यार्थी
हिंदी पढ़ रहे हैं।किसी दूसरे देश के किसी भी विश्वविद्यालय में यह संख्या मिलना
बहुत मुश्किल है।सही अर्थों में चीन में हिंदी का यह पुनर्जागरण काल है।
भारतीय संस्कृति और अनुवाद के क्षेत्रों में शोध कर रहे
हैं, विशेष रूप से साहित्य के गंभीर अध्येता
के रूप में उभर रहे हैं। कुछ शिक्षक भारतीय अर्थव्यवस्था के बारे में अध्ययन कर
रहे हैं। इस क्षेत्र में पीकिंग विश्वविद्यालय के शिक्षक बहुत आगे हैं। वे भारतीय
साहित्य, संस्कृति, धर्म के
बारे में अध्ययन कर रहे हैं। वहाँ पिछले दिनों यहाँ के विश्वविद्यालयी प्रशासन के
द्वारा एक साक्षात्कार में मुझे विषय विशेज्ञ बनाया गया
तो मैंने पाया कि यहाँ जो शोध करते हैं वे अपने यहाँ की अपेक्षा गंभीरता के साथ
करते हैं। यहाँ की एक प्रतिभागी सूरदास पर पी-एच.डीकर रही थी।वह पुष्टिमार्ग,नवधा भक्ति और सूर के निर्गुण खंडन जैसे विषयों पर मेरे पूछने के साथ ही उत्तर देने लगी थी।मैं इसी बात पर मुग्ध था कि उसने
किसी भी प्रश्न का ‘नहीं आता‘में जवाब
नहीं दिया। चीन में हिंदी फैलती इस बेल से मैं तो बहुत आशान्वित हूँ। बीजिंग ही
नहीं शीआन विदेश अध्ययन विश्वविद्यालय के एक शिक्षक
अनुवाद पर और भारत की राष्ट्रीय स्थितियों पर
शोध कर रहे हैं। अन्य कई विश्वविद्यालयों के शिक्षक हिंदी माध्यम से
भी भारतीय साहित्य या अनुवाद पर अनुसंधान कर रहे
हैं।हमारे प्रधानमंत्री की ची यात्रा के बाद यहाँ के विद्यार्थियों में हिंदी पढ़ने
का उत्साह बढ़ा है। अकेले हमारे विषविद्यालय में हिंदी में सत्तावन विद्यार्थी
हिंदी पढ़ रहे हैं।किसी दूसरे देश के किसी भी विश्वविद्यालय में यह संख्या मिलना
बहुत मुश्किल है।सही अर्थों में चीन में हिंदी का यह पुनर्जागरण काल है।
हिंदी को यहाँ आजीविका भी
से जोड़ा गया है। चीन में हिन्दी के छात्र स्नातक होने के बाद तरह-तरह काम करने
लगते हैं। वे ऐसे विभागों में जाते हैं जहाँ से हिन्दी और हिंदुस्तान का रिश्ता
जुड़ता है। ये खोजी प्रवृत्ति के होते हैं। अधिकांश तो
बीए के बाद ही कुछ न कुछ व्यवसाय खोज ही लेते हैं। कुछ स्नातक विदेश में उच्च
शिक्षा के लिए चले जाते हैं। वहाँ वे दक्षिण एशिया के
बारे में विशेष अनुसंधान करते हैं। अमेरिका, ब्रिटेन, हांगकांग आदि जगहों में वे हिन्दी छोड़कर दूसरे विषय जैसे संचार विज्ञान, बौद्ध धर्म, अंतरराष्ट्रीय संबंध, शिक्षा और अन्य विषयों को पढ़ते हैं। कुछ चीन
में ही रहकर एम.ए. करते हैं, और कुछ सरकारी नौकरी में भी लग जाते हैं।सरकारी नौकरी
पाने वाले ज़्यादातर कस्टम और सुरक्षा विभाग में काम
करते हैं।
से जोड़ा गया है। चीन में हिन्दी के छात्र स्नातक होने के बाद तरह-तरह काम करने
लगते हैं। वे ऐसे विभागों में जाते हैं जहाँ से हिन्दी और हिंदुस्तान का रिश्ता
जुड़ता है। ये खोजी प्रवृत्ति के होते हैं। अधिकांश तो
बीए के बाद ही कुछ न कुछ व्यवसाय खोज ही लेते हैं। कुछ स्नातक विदेश में उच्च
शिक्षा के लिए चले जाते हैं। वहाँ वे दक्षिण एशिया के
बारे में विशेष अनुसंधान करते हैं। अमेरिका, ब्रिटेन, हांगकांग आदि जगहों में वे हिन्दी छोड़कर दूसरे विषय जैसे संचार विज्ञान, बौद्ध धर्म, अंतरराष्ट्रीय संबंध, शिक्षा और अन्य विषयों को पढ़ते हैं। कुछ चीन
में ही रहकर एम.ए. करते हैं, और कुछ सरकारी नौकरी में भी लग जाते हैं।सरकारी नौकरी
पाने वाले ज़्यादातर कस्टम और सुरक्षा विभाग में काम
करते हैं।
कुछ भारत स्थित चीनी मूल की कंपनियों में काम
करने चले जाते हैं। कुछ स्नातक तरह- तरह के अंतर्राष्ट्रीय बड़े संस्थानों और
कंपनियों में काम करते हैं। जैसे एचएसबीसी बैंक,
हैएर और हुऐवेइ आदि कंपनियां।
करने चले जाते हैं। कुछ स्नातक तरह- तरह के अंतर्राष्ट्रीय बड़े संस्थानों और
कंपनियों में काम करते हैं। जैसे एचएसबीसी बैंक,
हैएर और हुऐवेइ आदि कंपनियां।
इसके अलावा हिंदी पढे-लिखे विद्यार्थी कालेज, टीवी स्टेशन आदि में काम करते है।जैसे
सीसीटीवी,सीआर आई (चीन का अंतर्राष्ट्रिय रेटियो स्टेशन) में
काम करते हैं। और कुछ स्नातक उच्च स्तरीय शिक्षा संस्थान और विश्वविद्यालय में
हिन्दी पढ़ाने और अनुसंधान का काम भी करने लग जाते हैं।
सीसीटीवी,सीआर आई (चीन का अंतर्राष्ट्रिय रेटियो स्टेशन) में
काम करते हैं। और कुछ स्नातक उच्च स्तरीय शिक्षा संस्थान और विश्वविद्यालय में
हिन्दी पढ़ाने और अनुसंधान का काम भी करने लग जाते हैं।
–डॉ. गंगा प्रसाद शर्मा ‘गुणशेखर‘
प्रोफेसर
(हिंदी),
(हिंदी),
क्वांगतोंग
वैदेशिक अध्ययन विश्वविद्यालय ,
वैदेशिक अध्ययन विश्वविद्यालय ,
क्वाङ्ग्चौ,चीन। फोन-00862036204385
Well explained Dr. Ganga Prasad about Hindi existance in china from ages and the roles of universities are playing a crucial as these departments are contributing on literature and indian culture.