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यह पुस्तक प्रत्येक भारतीय को पढ़ी जानी
चाहिये और इस के विचारों को जीवन में उतारने का प्रयास करना चाहिए। जल जीवन के लिए
अमृत है। इसके मर्म को हमारे पूर्वजों ने समझा था
, परंतु
आधुनिक जीवन ने जल को प्रदूषित ही नहीं किया है बल्कि जल -स्रोतों को भी नष्ट कर
दिया है। आपकी पुस्तक पढ़ते समय कई बार विचार आया कि हम कितने मुर्ख हैं कि आत्म –
घात कर रहे हैं
, सृष्टि के मूलतत्त्व को भृष्ट एवं नष्ट कर
रहे हैं और इसकी चिंता नहीं कर रहे हैं कि भावी पीढ़ियों को हम किस भयानक संकट में
छोड़े जा रहे हैं।
          – वरिष्ठ साहित्यकार डॉ कमल
किशोर गोयनका के
जल मांगता जीवन के लेखक पंकज चतुर्वेदी को लिखे पत्र का एक अंश।

यह पुस्तक विष पुस्तक मेला के हाल 12 में आधार प्रकाशन के स्टाल पर उपलब्ध हें स्टाल संख्या हे 260-263
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