सेवा  जैसा बलिदान नहीं   
शिक्षा सद्दश्य अभिदान नहीं
जन पर्व गाये प्रयाण राग
जनतंत्र जाग जनतंत्र जाग
  
शिक्षा सद्दश्य अभिदान नहीं
जन पर्व गाये प्रयाण राग
जनतंत्र जाग जनतंत्र जाग
क्यों हम अपनी गरिमा खोये    
अँखियों में शर्म हया ढोयें   
जो राष्ट्र पल्लवित कर पायें   
उन बीजों को सींचें बोयें   
आलसपन का कर परित्याग    
जनतंत्र जाग जनतंत्र जाग   
सम्मुख अब देश प्रथम होगा   
यह सोच सदा हृदयस्थ करें   
जो देश को हानि पहुँचाये   
हर ऐसी शह को ध्वस्त करें   
तम छँटे जले हर घर चिराग   
जनतंत्र जाग जनतंत्र जाग
-ओंम प्रकाश नौटियाल
(पूर्व प्रकाशित-सर्वाधिकार सुरक्षित)
        








