सेवा में,
श्री नरेन्द्र मोदी जी
माननीय प्रधान मंत्री,
भारत सरकार
विषय : भोजपुरी या हिन्दी की किसी भी अन्य बोली को संविधान की #आठवीं_अनुसूची में
शामिल न किया जाय.
महोदय,
हमारी हिन्दी आज टूटने के कगार पर है. निजी स्वार्थ के लिए कुछ लोगों ने भोजपुरी को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने की माँग तेज कर दी है. भोजपुरी के कलाकार और दिल्ली से भाजपा के सांसद श्री मनोज तिवारी ने संसद और उसके बाहर भी यह माँग दुहराई है. जन भोजपुरी मंच नामक संगठन ने अपनी माँग के पक्ष में जिन 9 आधारों का उल्लेख किया है उनमें से सभी आधार तथ्यात्मक दृष्टि से अपुष्ट, अतार्किक और भ्रामक हैं. हिन्दी बचाओ मंच ने उनकी व्यापक छानबीन की है और उन सभी आधारों पर क्रमश: अपना पक्ष प्रस्तुत करता है.
1. भाषा विज्ञान की दृष्टि से भोजपुरी भी उतनी ही पुरानी है जितनी ब्रजी, अवधी, बुन्देली, छत्तीसगढ़ी, हरियाणवी, कुमायूंनी- गढ़वाली, मगही, अंगिका आदि हिन्दी की अन्य बोलियाँ. क्या उन सबको आठवीं अनुसूची में शामिल किया जाना संभव है?
2. भोजपुरी भाषियों की संख्या 20 करोड़ बताई गई है. यह कथन मिथ्या है. हिन्दी समाज की प्रकृति द्विभाषिकता की है. हम लोग एक साथ अपनी जनपदीय भाषा भोजपुरी, अवधी, ब्रजी आदि भी बोलते हैं और हिन्दी भी. लिखने- पढ़ने का सारा काम हम लोग हिन्दी में करते है? इसीलिए राजभाषा अधिनियम 1976 के अनुसार हमें ‘क’ श्रेणी में रखा गया है और दस राज्यों में बँटने के बावजूद हमें ‘हिन्दी भाषी’ कहा गया है. वैसे 2001 की जनगणना रिपोर्ट के अनुसार भोजपुरी बोलने वालों की संख्या लगभग 3,30,99497 ही है.
3. स्वाधीनता संग्राम में भाग लेने वाले सिर्फ हम भोजपुरी भाषी ही नहीं थे. देश भर के लोगों ने स्वाधीनता के लिए संघर्ष किया था. वैसे स्वाधीनता संग्राम में भाग लेने वाले अब संयोग से बचे नहीं हैं. वर्ना, वे अपने उत्तराधिकारियों की माँग से कत्तई सहमत नहीं होते. उन्होंने तो अंग्रेजों की गुलामी से पूरे देश की मुक्ति के लिए लड़ाई लड़ी जबकि ज.भो.मं. के लोग अपना घर बाँटने के लिए लड़ रहे हैं.
4. ज.भो.मं. के अनुसार भोजपुरी देशी भाषा है तो क्या हिन्दी देशी #भाषा नहीं है? क्या वह किसी अन्य देश से आई है?
5. ज.भो.मं. ने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय सहित देश के कुछ विश्वविद्यालयों में भोजपुरी के पठन पाठन का जिक्र किया है. यह सूचना भ्रामक है. भोजपुरी हिन्दी का अभिन्न अंग है, वैसे ही जैसे राजस्थानी, अवधी, ब्रज आदि और हम सभी विश्वविद्यालयों के हिन्दी- पाठ्यक्रमों में इन सबको पढ़ते-पढ़ाते हैं. हिन्दी इन सभी के समुच्चय का ही नाम है. हम कबीर, तुलसी, सूर, चंदबरदाई, मीरा आदि को भोजपुरी, अवधी, ब्रज, राजस्थानी आदि में ही पढ़ सकते हैं. हिन्दी साहित्य के इतिहास में ये सभी शामिल हैं. इनकी समृद्धि और विकास के लिए और भी प्रयास किए जाने चाहिए.
6. ज.भो.मं. ने मारीशस में भोजपुरी को सम्मान मिलने का तर्क दिया है. मारीशस में भोजपुरी को सम्मान मिलने से हिन्दी भी गौरवान्वित हो रही है. इससे अपने देश में भोजपुरी को मान नहीं मिल रहा- यह कैसे प्रमाणित हो सकता है? क्या घर बाँट लेना ही मान मिलना होता है? वैसे 2011 की जनगणना की रिपोर्ट अनुसार मारीशस की कुल आबादी बारह लाख छत्तीस हजार है जिसमें से सिर्फ 5.3 प्रतिशत लोग भोजपुरी भाषी है. यानी, किसी भी तरह यह संख्या एक लाख नहीं होगी.
7. क्या ज.भो.मं., मेडिकल और इंजीनियरी की पढ़ाई भोजपुरी में करा पाएगा? तमाम प्रयासों के बावजूद आज तक हम इन विषयों की पढ़ाई हिन्दी में करा पाने में सफल नहीं हो सके. ऐसी मांग करने वाले लोग अपने बच्चों को अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में पढ़ाते हैं, खुद हिन्दी की रोटी खाते हैं और #मातृभाषा के नाम पर भोजपुरी को पढ़ाई का माध्यम बनाने की माँग कर रहे हैं, ताकि उनके आस पास की जनता गँवार ही बनी रहे और उनकी पुरोहिती चलती रहे.
8. भोजपुरी के आठवीं अनुसूची में शामिल होने से करोड़ों भोजपुरी भाषियों में आत्मगौरव नहीं, आत्महीनताबोध पैदा होगा. घर बँटने से हिन्दी भी कमजोर होगी और भोजपुरी भी
9. ज.भो.मं. का कहना है कि भोजपुरी के आठवीं अनुसूची में शामिल होने से हिन्दी को कोई क्षति नहीं होगी. हिन्दी को होने वाली क्षति का बिन्दुवार विवरण हम यहाँ दे रहे हैं.:–
संविधान की आठवीं अनुसूची में भोजपुरी के शामिल होने से हिन्दी को होने वाली क्षति –
1. भोजपुरी के आठवीं अनुसूची में शामिल होने से हिन्दी भाषियों की जनसंख्या में से भोजपुरी भाषियों की जनसंख्या (ज.भो.मं. के अनुसार 20 करोड़) घट जाएगी. मैथिली की संख्या हिन्दी में से घट चुकी है. स्मरणीय है कि सिर्फ संख्या-बल के कारण ही हिन्दी इस देश की राजभाषा के पद पर प्रतिष्ठित है. यदि यह संख्या घटी तो #राजभाषा का दर्जा हिन्दी से छिनते देर नहीं लगेगी. भोजपुरी के अलग होते ही ब्रज, अवधी, छत्तीसगढ़ी, राजस्थानी, बुंदेली, मगही, अंगिका आदि सब अलग होंगी. उनका दावा भोजपुरी से कम मजबूत नहीं है. ‘रामचरितमानस’, ‘पद्मावत’, या ‘सूरसागर’ जैसे एक भी ग्रंथ भोजपुरी में नहीं है.
2. ज्ञान के सबसे बड़े स्रोत विकीपीडिया ने बोलने वालों की संख्या के आधार पर दुनिया के सौ भाषाओं की जो सूची जारी की है उसमें हिन्दी को चौथे स्थान पर रखा है. इसके पहले हिन्दी का स्थान दूसरा रहता था. हिन्दी को चौथे स्थान पर रखने का कारण यह है कि सौ भाषाओं की इस सूची में भोजपुरी, अवधी, मारवाड़ी, छत्तीसगढ़ी, ढूँढाढी, हरियाणवी और मगही को शामिल किया गया है. साम्राज्यवादियों द्वारा हिन्दी की एकता को खंडित करने के षड़्यंत्र का यह ताजा उदाहरण है और इसमें विदेशियों के साथ कुछ स्वार्थांध देशी जन भी शामिल हैं.
3. हमारी मुख्य लड़ाई अंग्रेजी के वर्चस्व से है. अंग्रेजी हमारे देश की सभी भाषाओं को धीरे धीरे लीलती जा रही है. उससे लड़ने के लिए हमारी एकजुटता बहुत जरूरी है. उसके सामने हिन्दी ही तनकर खड़ी हो सकती है क्योंकि बोलने वालों की संख्या की दृष्टि से वह आज भी देश की सबसे बड़ी भाषा है और यह संख्या-बल बोलियों के जुड़े रहने के नाते है. ऐसी दशा में यदि हम बिखर गए और आपस में ही लड़ने लगे तो अंग्रेजी की गुलामी से हम कैसे लड़ सकेंगे?
4. भोजपुरी की समृद्धि से हिन्दी को और हिन्दी की समृद्धि से भोजपुरी को तभी फायदा होगा जब दोनो साथ रहेंगी. आठवीं अनुसूची में शामिल होना अपना अलग घर बाँट लेना है. भोजपुरी तब हिन्दी से स्वतंत्र वैसी ही भाषा बन जाएगी जैसी बंगला, ओड़िया, तमिल, तेलुगू आदि. आठवीं अनुसूची में शामिल होने के बाद भोजपुरी के कबीर को हिन्दी के कोर्स में हम कैसे शामिल कर पाएंगे? क्योंकि तब कबीर #हिंदी के नहीं, सिर्फ भोजपुरी के कवि होंगे. क्या कोई कवि चाहेगा कि उसके पाठकों की दुनिया सिमटती जाय?
5. भोजपुरी घर में बोली जाने वाली एक बोली है. उसके पास न तो अपनी कोई #लिपि है और न मानक व्याकरण. उसके पास मानक गद्य तक नहीं है. किस भोजपुरी के लिए मांग हो रही है? गोरखपुर की, बनारस की या छपरा की ?
6. कमजोर की सर्वत्र उपेक्षा होती है. घर बँटने से लोग कमजोर होते हैं, दुश्मन भी बन जाते हैं. भोजपुरी के अलग होने से भोजपुरी भी कमजोर होगी और हिन्दी भी. इतना ही नहीं, पड़ोसी बोलियों से भी रिश्तों में कटुता आएगी और हिन्दी का इससे बहुत अहित होगा. मैथिली का अपने पड़ोसी अंगिका से विरोध सर्वविदित है.
7. संयुक्त राष्ट्र संघ में हिन्दी को स्थान दिलाने की माँग आज भी लंबित है. यदि हिन्दी की संख्या ही नहीं रहेगी तो उस मांग का क्या होगा?
8. स्वतंत्रता के बाद हिन्दी की व्याप्ति हिन्दीतर भाषी प्रदेशों में भी हुई है. हिन्दी की संख्या और गुणवत्ता का आधार केवल हिन्दी भाषी राज्य ही नहीं, अपितु हिन्दीतर भाषी राज्य भी हैं. अगर इन बोलियों को अलग कर दिया गया और हिन्दी का संख्या-बल घटा तो वहाँ की राज्य सरकारों को इस विषय पर पुनर्विचार करना पड़ सकता है कि वहाँ हिन्दी के पाठ्यक्रम जारी रखे जायँ या नहीं. इतना ही नहीं, राजभाषा विभाग सहित केन्द्रीय हिन्दी संस्थान, केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय अथवा विश्व हिन्दी सम्मेलन जैसी संस्थाओं के औचित्य पर भी सवाल उठ सकता है.
मान्यवर, भोजपुरी को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने की माँग भयंकर आत्मघाती है. डॉ. राजेन्द्र प्रसाद और स्व. चंद्रशेखर जैसे महान राजनेता तथा महापंडित राहुल सांकृत्यायन और आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी जैसे महान साहित्यकार ठेठ भोजपुरी क्षेत्र के ही थे किन्तु उन्होंने भोजपुरी को मान्यता देने की मांग का कभी समर्थन नहीं किया. आज थोड़े से लोग, अपने निहित स्वार्थ के लिए बीस करोड़ के प्रतिनिधित्व का दावा करके देश को धोखा दे रहे है.
अत: ‘#हिन्दी_बचाओ मंच’ के हम सभी सदस्य आपसे से विनम्र अनुरोध करते हैं कि-
कृपया हिन्दी की किसी भी बोली को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल न करें और इस विषय में यथास्थिति बनाए रखें.
सधन्यवाद,
निवेदक : भारत के हम हिन्दी -लेखक :-
1. डॉ. अमरनाथ, प्रोफेसर, क. वि. वि. तथा संयोजक, हिन्दी बचाओ मंच, कोलकाता, मो: 9433009898
2. प्रो. अच्युतानंद मिश्र, पूर्व कुलपति, मा. च. पत्रकारिता विश्वविद्यालय, भोपाल.
3. डॉ. अभिजीत सिंह, आलोचक एवं संस्थापक सदस्य, हिन्दी बचाओ मंच, सिलीगुड़ी.
4. प्रो. अनंतराम त्रिपाठी, प्रधानमंत्री, राष्ट्रभाषा हिन्दी प्रचार समिति, वर्धा.
5. प्रो. अरुण होता, अध्यक्ष, हिन्दी विभाग, प.बं.रा.विश्वविद्यालय, बारासात.
6. प्रो. अच्युतन, पूर्व प्रोफेसर, हिन्दी विभाग, कालीकट विश्वविद्यालय, कालीकट.
7. प्रो. आलोक पाण्डेय, प्रोफेसर, हिन्दी विभाग, केन्द्रीय विश्वविद्यालय, हैदराबाद.
8. प्रो. आलोक गुप्ता, प्रोफेसर, हिन्दी विभाग, केन्द्रीय विश्वविद्यालय, गाँधीनगर.
9. डॉ. आशुतोष, लेखक व संस्थापक सदस्य, हिन्दी बचाओ मंच, कोलकाता.
10. ओमप्रकाश पाण्डेय, प्रतिष्ठित लेखक व संपादक, ‘नया परिदृश्य’, सिलीगुड़ी.
11. कविता वाचक्नवी, प्रख्यात लेखिका व महासचिव, ‘विश्वंभरा’, हॉस्टन,टैक्सास.
12. प्रो.कमलकिशोर गोयनका, प्रख्यात लेखक व उपाध्यक्ष, के.हि.सं., आगरा.
13. कनक तिवारी, प्रख्यात लेखक, सामाजसेवी व वरिष्ठ अधिवक्ता, हाई कोर्ट, बिलासपुर.
14. प्रो. करुणाशंकर उपाध्याय, अध्यक्ष, हिन्दी विभाग, मुंबई विश्वविद्यालय.
15. डॉ. करुणा पाण्डेय, प्रतिष्ठित लेखिका, कोलकाता.
16. प्रो. काशीनाथ सिंह, साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित प्रख्यात लेखक, वाराणसी.
17. प्रो. कृष्णकुमार गोस्वामी, प्रख्यात भाषावैज्ञानिक व लेखक, दिल्ली.
18. डॉ.कैलाशचंद्र पंत, प्रतिष्ठित लेखक व मंत्री, म.प्र.राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, भोपाल.
19. प्रो.गंगाप्रसाद विमल, प्रख्यात साहित्यकार व पूर्व प्रोफेसर, जे.एन.यू. नई दिल्ली.
20. चित्रा मुद्गल, व्यास सम्मान से सम्मानित कथाकार, दिल्ली.
21. प्रो. चौथीराम यादव, प्रख्यात लेखक व पूर्व प्रोफेसर, बी.एच..यू., वाराणसी.
22. ज्योतिष जोशी, प्रख्यात लेखक व संपादक, ललित कला अकादमी, दिल्ली.
23. प्रो. जवरीमल्ल पारख, प्रख्यात मीडिया समीक्षक व प्रोफेसर, इग्नू, नई दिल्ली.
24. डॉ. जवाहर कर्णावट, प्रतिष्ठित लेखक व सहायक महाप्रबंधक (राजभाषा), मुंबई.
25. प्रो. जयप्रकाश, प्रख्यात आलोचक एवं पूर्व प्रोफेसर, चंडीगढ़ विश्वविद्यालय.
26. जय प्रकाश धूमकेतु, प्रतिष्ठित लेखक व संपादक ‘अभिनव कदम’, मऊनाथ भंजन.
27. जाबिर हुसेन, बिहार विधान सभा के पूर्व अध्यक्ष व प्रख्यात लेखक, पटना.
28. प्रो.जी. गोपीनाथन, पूर्व कुलपति, म.गाँ.अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा.
29. जीवन सिंह, सह सचिव ‘अपनी भाषा’ एवं संस्थापक सदस्य ‘हिन्दी बचाओ मंच’, कोलकाता.
30. प्रो.तंकमणि अम्मा, पूर्व हिन्दी विभागाध्यक्ष, केरल विश्वविद्यालय, तिरुवनंतपुरम.
31. डॉ. दामोदर खड़से, साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित लेखक, मुंबई.
32. प्रो. देवराज, प्रख्यात लेखक तथा डीन, म.गां.अं.हि.वि.विश्वविद्यालय, वर्धा.
33. डॉ. देवेन्द्र गुप्त, प्रसिद्ध लेखक व संपादक, ‘सेतु’ एवं ‘विपाशा’, शिमला.
34. डॉ. देवसिंह पोखरिया, प्रख्यात आलोचक एवं प्रोफेसर, कुमायूं विश्वविद्यालय, नैनीताल.
35. प्रो. नंदकिशोर पाण्डेय, निदेशक, केन्द्रीय हिन्दी संस्थान, आगरा.
36. डॉ. नरेश मिश्र, प्रोफेसर, हरियाणा केन्द्रीय विश्वविद्यालय, महेन्द्र गढ़.
37. डॉ. निर्मल कुमार पाटोदी, लेखक व पूर्व निदेशक राजभाषा, मुंबई.
38. नीरज कुमार चौधरी, शोधछात्र, क.वि.वि. एवं संस्थापक सदस्य, हिन्दी बचाओ मंच, कोलकाता.
39. पंकज बिष्ट, प्रख्यात लेखक व संपादक ‘समयांतर’, दिल्ली.
40. डॉ. परमानंद पांचाल, प्रसिद्ध लेखक व मंत्री, नागरी लिपि परिषद, दिल्ली.
41. पुष्पा भारती, प्रख्यात लेखिका, फ्लैट नं.-5, शाकुन्तल साहित्य सहवास, मुंबई.
42. डॉ. प्रकाशचंद्र गिरि, प्रतिष्ठि कवि व एसो. प्रोफेसर, एम.एल.के.कॉलेज, बलरामपुर, उ. प्र.
43. प्रो. प्रमोद कुमार शर्मा, अधिष्ठाता, कला संकाय, नागपुर विश्वविद्यालय.
44. प्रेमपाल शर्मा, प्रख्यात भाषाविद्, लेखक तथा पूर्व संयुक्त सचिव, रेलवे बोर्ड, दिल्ली.
45. प्रभु जोशी, प्रख्यात लेखक व चित्रकार, इंदौर.
46. प्रो.पुष्पिता अवस्थी, सुप्रसिद्ध लेखिका व कवयित्री, नीदरलैंड.
47. बलदेव बंशी, प्रख्यात कवि – आलोचक व हिन्दी के योद्धा, फरीदाबाद.
48. बीना बुदकी, मंत्री, हिन्दी कश्मीरी संगम, दिल्ली.
49. डॉ. बीरेन्द्र सिंह, असिस्टेंट प्रोफेसर, स्काटिश चर्च कालेज व सदस्य, हिन्दी बचाओ मंच, कोलकाता.
50. बिजय कुमार जैन, प्रख्यात पत्रकार व संयोजक, हिन्दी वेलफेयर ट्रस्ट, मुंबई.
51. प्रो.बी.वै.ललिताम्बा, प्रख्यात लेखिका, हिन्दी सेवी व पूर्व प्रोफेसर, बंगलौर.
52. भारतेन्दु मिश्र, प्रतिष्ठित लेखक व शिक्षाविद्, दिल्ली.
53. प्रो.महावीर सरन जैन, भाषाविद् व पूर्व निदेशक, के. हि. सं. आगरा.
54. डॉ. महेश दिवाकर, अध्यक्ष, अंतरराष्ट्रीय साहित्य कला मंच, मुरादाबाद.
55. महेश जायसवाल, प्रख्यात नाटककार व संस्कृतिकर्मी, कोलकाता.
56. महेश चंद्र गुप्त, प्रख्यात हिन्दी सेवी व पूर्व निदेशक (राजभाषा), दिल्ली.
57. डॉ. एम. एल. गुप्ता आदित्य, संयोजक, वैश्विक हिन्दी सम्मेलन, मुंबई.
58. प्रो.एम.बेंकटेश्वर, समीक्षक व पूर्व प्रोफेसर, उस्मानिया विश्वविद्यालय, हैदराबाद.
59. प्रो. योगेन्द्र प्रताप सिंह, प्रोफेसर, हिन्दी विभाग, लखनऊ विश्वविद्यालय, लखनऊ.
60. प्रो. रंजना अरगड़े, अध्यक्ष, हिन्दी विभाग, गुजरात विश्वविद्यालय, अहमदाबाद.
61. रंजीत संकल्प, सचिव, बंगीय हिन्दी परिषद एव संस्थापक सदस्य ‘हिन्दी बचाओ मंच’, कोलकाता.
62. प्रो. रमेश दवे, प्रख्यात आलोचक एवं पूर्व प्रोफेसर, भोपाल.
63. रमेश जोशी, प्रतिष्ठित लेखक व प्रधान संपादक ‘विश्वा’, ओहायो.
64. पद्मश्री रमेशचंद्र शाह, व्यास सम्मान से सम्मानित प्रख्यात साहित्यकार, भोपाल.
65. प्रो.रविभूषण, प्रख्यात लेखक व पूर्व हिन्दी विभागाध्यक्ष, राँची विश्वविद्यालय, रांची.
66. प्रो. रवि श्रीवास्तव, प्रख्यात आलोचक व पूर्व प्रोफेसर, हिन्दी, राजस्थान वि.वि. जयपुर.
67. रविप्रताप सिंह, प्रतिष्ठित कवि व अध्यक्ष, ‘शब्दाक्षर’, कोलकाता.
68. डॉ. राजेन्द्रनाथ त्रिपाठी, मंत्री, बंगीय हिन्दी परिषद्, कोलाकाता.
69. राजेन्द्र प्रसाद पाण्डेय, प्रतिष्ठित लेखक, वाराणसी.
70. डॉ. राजेन्द्र कुमार, प्रख्यात लेखक व पूर्व प्रोफेसर, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, इलाहाबाद.
71. प्रो. राजश्री शुक्ला, अध्यक्ष, हिन्दी विभाग, कलकत्ता विश्वविद्यालय, कोलकाता.
72. राजकिशोर, प्रख्यात लेखक- पत्रकार एवं संपादक, ‘रविवार’, इंदौर.
73. डॉ. राजेन्द्र, आलोचक व संस्थापक सदस्य, हिन्दी बचाओ मंच, कोलकाता.
74. राकेश पाण्डेय, संपादक, ‘प्रवासी संसार’, नई दिल्ली.
75. राहुल देव, प्रख्यात पत्रकार, दिल्ली.
76. डॉ. राधेश्याम शुक्ल, संपादक, ‘भास्वर भारत’, हैदराबाद.
77. प्रो. रूपा गुप्ता, प्रसिद्ध लेखिका व अध्यक्ष, हिन्दी विभाग, बर्दवान विश्वविद्यालय.
78. प्रो. रोहिणी अग्रवाल, लेखिका व अध्यक्ष, हिन्दी विभाग, म.द.विश्वविद्यालय, रोहतक.
79. डॉ.ऋषिकेश राय, प्रतिष्ठित कवि- आलोचक व उपनिदेशक(राजभाषा),टी.बोर्ड, कोलकाता.
80. प्रो.ऋषभदेव शर्मा, प्रतिष्ठित लेखक व संयुक्त संपादक, ‘भास्वर भारत’, हैदराबाद.
81. विश्वनाथ सचदेव, प्रख्यात पत्रकार, संपादक ‘नवनीत’ मुंबई.
82. विभूतिनारायण राय, प्रख्यात लेखक व पूर्व कुलपति,म.गाँ.अं.हि.विश्वविद्यालय, वर्धा.
83. प्रो.विजयकुमार मल्होत्रा, प्रख्यात लेखक व भाषाविद्, दिल्ली.
84. डॉ. विजयबहादुर सिंह, प्रख्यात आलोचक एवं पूर्व संपादक ‘वागर्थ’, भोपाल.
85. विजय गुप्त, प्रसिद्ध लेखक व संपादक ‘साम्य’, अम्बिकापुर, जिला- सरगुजा, छ.ग.
86. डॉ. विमलेश कान्ति वर्मा, प्रख्यात भाषाविद व प्रोफेसर, दिल्ली विश्वविद्यालय.
87. डॉ. विद्या विन्दु सिंह, प्रतिष्ठित लेखिका व पू.सं.नि. उ. प्र. हिं. सं. लखनऊ.
88. डॉ. वेदप्रताप वैदिक, प्रख्यात पत्रकार, दिल्ली.
89. डॉ. वेद प्रकाश पाण्डेय, प्रतिष्ठित लेखक व अवकाशप्राप्त प्राचार्य, गोरखपुर.
90. डॉ.शंकरलाल पुरोहित, प्रख्यात लेखक व अनुवादक, भुवनेश्वर.
91. शकुंतला बहादुर, प्रतिष्ठित लेखिका, कैलीफोर्निया.
92. शकुन त्रिवेदी, संपादक, ‘द वेक’, कोलकाता.
93. शची मिश्रा, भोजपुरी की प्रतिष्ठित लेखिका, पुणे.
94. प्रो. शैलेन्द्र कुमार शर्मा, अध्यक्ष, हिन्दी विभाग, विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन.
95. श्रीमती शान्ता बाई, सचिव, कर्णाटक महिला हिन्दी सेवा समिति, बंगलौर.
96. श्रीधर बर्वे, प्रतिष्ठित लेखक व पूर्व प्राचार्य, इंदौर.
97. प्रो. श्रीभगवान सिंह, प्रख्यात लेखक व प्रोफेसर, भागलपुर विश्वविद्यालय.
98. डॉ. श्रीनिवास शर्मा, प्रख्यात आलोचक संस्थापक सदस्य, हिन्दी बचाओ मंच, कोलकाता.
99. प्रो. एस.एम. इकबाल, राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित हिन्दी लेखक, विशाखापत्तनम्
100. प्रो. सोमा बंद्योपाध्याय, प्रतिष्ठित लेखिका एवं कुलसचिव, कलकत्ता विश्वविद्यालय.
101. प्रो. संजीव कुमार दुबे, अध्यक्ष, हिन्दी विभाग, केन्द्रीय विश्वविद्यालय गाँधीनगर.
102. प्रो. एस. शेषारत्नम् पूर्व प्रोफेसर, आंध्रा विश्वविद्यालय, विशाखापत्तनम्.
103. प्रो.सुधीश पचौरी, प्रख्यात लेखक व पूर्व प्रतिकुलपति, दिल्ली विश्वविद्यालय.
104. प्रो. सदानंद गुप्त, प्रतिष्ठित लेखक व पूर्व प्रोफेसर, गोरखपुर विश्वविद्यालय.
105. डॉ.सत्यप्रकाश तिवारी, संस्थापक सदस्य, हिन्दी बचाओ मंच, कोलकाता.
106. प्रो. सूर्यप्रसाद दीक्षित, संयोजक हिन्दी, साहित्य अकादमी, दिल्ली.
107. प्रो. सुरेन्द्र दुबे, प्रतिष्ठित लेखक व कुलपति, बुन्देलखंड विश्वविद्यालय, झांसी.
108. स्नेह ठाकुर, प्रतिष्ठित लेखिका व संपादक ‘वसुधा’, टोरंटो, कनाडा.
109. सुरेशचंद्र शुक्ल, प्रतिष्ठित लेखक व संपादक ‘Speil दर्पण’, नार्वे.
110. सुशील कुमार शर्मा, प्रोफेसर, हिन्दी विभाग, मिजोरम विश्वविद्यालय.
111. प्रो. हरिमोहन, कुलपति, जे. एस. विश्वविद्यालय, शिकोहाबाद, फिरोजाबाद.
112. प्रो. हरिमोहन बुधौलिया, पूर्व हिन्दी विभागाध्यक्ष, विक्रम वि.वि., उज्जैन.
113. क्षमा शर्मा, प्रतिष्ठित लेखिका, दिल्ली.
संपर्क : डॉ. अमरनाथ
प्रोफेसर, हिन्दी विभाग, कलकत्ता विश्वविद्यालय एवं संयोजक, हिन्दी बचाओ मंच
ईई-164/402, सेक्टर-2, साल्टलेक, कोलकाता-700091
ई-मेल : amarnath.cu@gmail.com, Mobile: 09433009898
साभार: हिंदी बचाओ मंच