वर्तमान में, दुनिया कोरोना (कोविद -19) महामारी की समस्या से जूझ रही है। जिसके कारण दुनिया के कई देशों को तालाबंदी का आदेश जारी करना पड़ा है। इस ताले के प्रभाव को प्रकृति पर देखें तो वायु शुद्ध, जल शुद्ध, पृथ्वी शुद्ध, आकाश शुद्ध और अग्नि शुद्ध। कहने का आशय यह है कि पूरी दुनिया का पर्यावरण शुद्ध है। प्रकृति प्रदूशण की गुलाम थी। मनुष्य इस लॉक डाउन की स्थिति में स्वतंत्र प्रकृति का आनंद ले रहा है। इतिहास हमेशा हमें जितना हो सके उतना विकसित होने की चेतावनी देता रहा है की विकास से संस्कृति और प्रकृति पर आधात पहुंचाया जा रहा है जो की पतन की ओर मार्ग प्रश स्त करता है। गौतम बुद्ध ने कहा कि वीणा के तार को उतना ही कसो जितना कि मधुर ध्वनि निकलती है। वीणा के तार को इतना तंग न करें कि वह टूट जाए। यही है, विकास के तार को उतना ही कस लें जितना आवश्यक हो, अन्यथा विकास के दौरान, विकास के तार टूट जाएंगे।
भारतीय संस्कृति अनादि काल से ही मानवतापूर्ण रही है। जहाँ पर ‘‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’’ का आदर्शवाक्य जपा जाता था क्योंकि इस परम पवित्र भूमि पर सबको समाप रूप से जीने और रहने का अधिकार है। चाहे वह किसी धर्म-जाति वर्ग या स्तर का हो। मानवतापूर्ण संस्कृति में सभी समान है दिव्यांग हो या अनाथ यह सबको साथ लेकर चलने वाली संस्कृति है। क्योंकि अनेक दिव्यांगों और अनाथों ने देश तथा समाज को नई दिशा देकर भारत ही नही दुनिया को रास्ता दिखाया है इसलिए सभी को सम्मान दें चाहे वह अनाथ हो या दिव्यांग प्रतिभा और प्रखरता सबमें पाई जाती है चाहे वह जिस रूप में हो।
राज्य-हिंसा पर विचार करने से पहले हम मुख्यरूप से हिंसा की तीन स्थितियों की कल्पना कर राज्य की भूमिका का स्थापन करने का प्रयास करते हैं।
पहला,
कुछ व्यक्तियों का समूह उनके निवास-स्थल के
नजदीक
लग रहे परमाणु संयंत्र के खिलाफ शांतिपूर्ण प्रतिरोध कर रहा है
,
क्योंकि इस परमाणु संयंत्र से होने वाले
रेडियोएक्टिव खतरे उनके सुरक्षित जीवन-यापन के विरूद्ध गंभीर खतरा उत्पन्न कर सकते हैं। राज्य की पुलिस ने उस जनसमूह के खिलाफ लाठीचार्ज किया और लोग गंभीर रूप से घायल हो गए है।
दूसरा,
बहुसंख्यक वर्ग के लोग सांप्रदायिक उन्माद में अल्पसंख्यक वर्ग के खिलाफ हथियार लेकर सड़कों पर उतर गए हैं और बड़ी मात्रा में अल्पसंख्यक वर्ग के लोगों की हत्या कर रहे हैं और राज्य की मशीनरी अल्पसंख्यकों को सुरक्षा प्रदान करने में अनिच्छुक और उदासीन दिखाई पड़ रही है।
तीसरा,
राज्य में निवास करने वाले किसी खास वर्ग या जाति समूह को उनके मानवाधिकारों से योजनाबद्ध तरीके से वंचित किया जा रहा है तथा दैनिक जीवन की आधारभूत जरूरतों को उनकी पहुँच से दूर रखा जा रहा है
मुख्य विषय :- किन्नर विमर्श : इतिहास , समाज , साहित्य के संदर्भ में
आयोजक :-
हिन्दी विभाग टांटिया विश्वविद्यालय श्री गंगा नगर, राजस्थान
किन्नर अधिकार ट्रस्ट रजि. एवं विलक्षणा एक सार्थक पहल समिति रजि. के सहयोग से
दिनांक 31 मई 2020 को आयोजित किया जायेगा।