बहन पर दो कविताएं
_ लक्ष्मीकांत मुकुल

(1)

नदी के रेत पर घरौंदे बनाती
दिवाली में चौक लेपन करती
पके अमरूद की चाह में डालियों पर झूलती
सींक से सुपली – मौनी बिनती
गोटिया खेलती सखियों के साथ
नन्ही- नन्ही चीजों के लिए हमसे झगड़ती
कितनी सुध होती है बहन के बचपन की
जैसे यादों की घने जंगल में सन्नाटे को भेदती
हिरनी के दौड़ने की आहटें

मेहंदी के अरघान की तरह खिली
वन तुलसी की तरह गंधित
चुचुहिया- सी आंगन मुंडेर पर चहकती
कितनी याद आती हो बहन!
जीवन- चक्र ने तोड़ दिया है हमारा साथ
पर्वत उतरते उन दो जल स्रोतों की तरह
जो उद्गमित होते हैं एक ही मेख माला से
और दिशा मार्ग में भटक जाते हैं
कहीं और गंतव्यों की ओर!

(2)

ससुराल के माया जाल में खोई
कैसी होगी मेरी बहन?
इस साल भी नहीं आई उसकी राखी, ख़त, फोन शायद उसे बीहड़ में डाकिया न जाता होगा
न ही नजदीक में होगा कोई मोबाइल टावर
वह बहुत दूर है मेरे गांव से
जहां सुबह से चलकर शाम तक पैदल नहीं
लौट पाऊंगा अपने घर
घर खर्चा से तंग इस भाई के पास
साधनों के इस्तेमाल के नहीं हैं कोई विकल्प
कि हवा के पंखों पर सवार पहुंच सके सरलता से

एक नदी बहती जाती है उधर
भ्रमणशील पंछी गुजरते हैं वहां से
कोयल कूकने जाती है उस ओर
कौवा उचरता है उसके छज्जे पर

कल- कल करती नदी कहती है
वह नित प्रातः काल नहाने आती है घाट पर
गुनगुनाती हुई कजरी- पीडिया सरीखे मौसमी गीत

घुमंतू पंछी सुनते हैं उसके किस्से
कि उदास दिलों में भी थिरकती है
बोगनबेलिया के फूलों जैसी वह

बताती है कोइलर
कि मुझे भी मीठे हैं उसके बोल

सुनता है कौवा रहस्य भरी बातें
कि उसके आंगन रसोई घर से आती है
पक रहे
नवान्न व्यंजनों की भीनी गंध।

 

************

परिचय

लक्ष्मीकांत मुकुल
जन्म – 08 जनवरी 1973
शिक्षा – विधि स्नातक
संप्रति – स्वतंत्र लेखन / सामाजिक कार्य ।किसान कवि/मौन प्रतिरोध का कवि।
कवितायें एवं आलेख विभिन्न पत्र – पत्रिकाओं में प्रकाशित । दो कविता संकलन “लाल चोंच वाले पंछी’’ व “घिस रहा है धान का कटोरा” और ग्रामीण इतिहास पर केंद्रित पुस्तक “यात्रियों के नजरिए में शाहाबाद” प्रकाशित।

संपर्क :-
ईमेल – kvimukul12111@gmail.com
मोबाइल नंबर – 6202077236

************