अजन्मा प्रतिकार

                                     —राजा सिंह

मेरे भीतर ,

जन्म ले रहा है एक भ्रूण.

इसका पालन पोषण

मेरा शरीर नहीं ,

वरन करता है

मेरा कुंठित मन ,

और

कुंठित मन का अधार है

बेकारी, भुखमरी,भ्रष्टाचार

और अन्याय तथा शोषण का

फैला हुआ साम्राज्य.

अगर हालत यही रहे तो

भ्रूण बनेगा  शिशु ,

और शिशु से जवान ,

जो फिर

शब्द न देकर

देगा रक्त या लेगा रक्त ,

इस असहनीय व्यवस्था का.

इससे व्यवस्था

टूटे या न टूटे, मगर

एक गूंज होंगी

जो इस देश की

गूंगी,बहरी,एवं अंधी

सत्ता सुनेगी ;

और महसूस करेगी

इस देश की

शोषित मानवता

अपने शोषण को .

——-राजा सिंह

ऍम-१२८५ सेक्टर –आई,एल.डी.ऐ.कोलोनी

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