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द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद - इस भौतिकवाद को तीन तत्वों- अवस्थान (थीसिस), प्रत्यवस्थान (ऐन्टीथीसिस) और साम्यावस्था (सिनेथीसिस) के माध्यम से समझाने का प्रयास किया गया है। मार्क्स का मानना है कि इस जगत में प्रत्येक वस्तु में विरोधी तत्व विद्यमान रहते हैं और उनमें निरंतर द्वंद चलता रहता हैं। इस निरंतर द्वंद के चलते एक समय ऐसा आता है कि इन विरोधी तत्वों में संतुलन स्थापित हो जाता है- “अवस्थावान (थीसिस) अपने ही सन्नहित विरोधी तत्वों से द्वंद्व करता हुआ प्रत्यावस्थान (ऐन्टीथीसिस) में परिणत हो जाता है और आगे चलकर दोनों में संतुलन स्थापित हो जाता है, तो वह साम्यावस्था (सिन्थेसिस) की स्थिति में आ जाती है, किन्तु यह स्थिति अधिक समय तक नहीं रह पाती। विरोधी तत्त्व पुनः उद्भूत होते हैं, द्वंद्व चलने लगता है। मार्क्स इसी प्रक्रिया को आधार बनाकर वर्तमान समय को व्याख्यायित करते हुए बताता है कि- “पूंजीवादी वर्ग प्रस्तुत अवस्थावान (थीसिस) है। सर्वहारा वर्ग प्रत्यवस्थावान (ऐन्टीथीसिस) है। इन दोनों का द्वंद्व अनिवार्य है। द्वंद्व के पश्चात साम्यवाद के रूप में साम्यावस्थान (सिन्थिसिस) की स्थिति आना अवश्यम्भावी है।