27.1 C
Delhi

कविता

भूख

#भुख जिनके पेट भरे होते हैं, अपनी धुन में वो जीते हैं जो बचपन बेचकर कमाते हैं, बच्चे वही भूखे होते हैं । जो किस्मत के मारे...

लॉकडाउन

लॉकडाउन

हमसफ़र

हमसफ़र ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ अपना हाथ तेरे हाथ में दें रही थाम तो लोगे न? मजबूती से पकड़ कर रखोगे साथ छोड़ोगे तो नहीं न? पूरी खुशियाँ तुझ पर लुटा...

वर्चस्व

वर्चस्व बरखा मुझे तुझसा वर्चस्व चाहिए बूंद-बूंद कर बना सर्वस्व चाहिए। सींच सकूं गगन-धरा लक्ष्य...

कटे छंटे मजदूर

कट गए बँट गए छँट गए नेह से जो कमाने गए रोटियां गेह से कुछ सियासत हुई छूटकर ठेह से छूटकर के बिखर वो गए देह से ठौर...

अनाम ख्वाहिशें

शीर्षक अनाम ख्वाहिशें अनगिनत, अनाम ख्वाहिशें क्यों हैं तुमसे मुझे नहीं पता! लेकिन हर...

बंदिशें

" बंदिशें" आधी आबादी की तरफ देखकर चौखट मे निभाते किरदार देखकर भ्रम से टूट जाती हैं फरमाइशें किसने बनायी ये बंदिशें? वेदना व जिम्मेदारी की धार मे। भार्या,वधू या...

छुट्टी

बाल काव्य छुट्टी देखो -देखो छुट्टी आई खुशियॊं की सौगातें लाई मुन्ने के मन बहुत है भाई घर आते ही धूम मचाई। ना मम्मी की खटपट न स्कूल का...

विषपान

विषपान सागर की उठती गिरती लहरें मस्तिष्क में जगाती हैं प्रश्न देकर अमृत का दान क्यों किया था शिव ने विषपान ? अंतर्मन ने यों कहा...

आज की समसामयिक स्थिति में पलायन करते मजदूरों की व्यथा को व्यक्त करती मेरी यह कविता ……… भूख

जिंदगी बड़ी या भूख, यह आज जाना हमनें, इन शहरों की चकाचौंध को, खूब पहचाना हमनें। आए थे कई सपने लेकर, हुए कुछ पूरे कुछ टूट गए, जा रहे हैं...

MOST POPULAR

LATEST POSTS