पदावली संत रविदास जी

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    Padawali Sant Ravidas 

    अनुक्रम

    पदावली संत रविदास जी

    1. अखि लखि लै नहीं का कहि पंडित, कोई न कहै समझाई

    अखि लखि लै नहीं का कहि पंडित, कोई न कहै समझाई।
    अबरन बरन रूप नहीं जाके, सु कहाँ ल्यौ लाइ समाई।। टेक।।
    चंद सूर नहीं राति दिवस नहीं, धरनि अकास न भाई।
    करम अकरम नहीं सुभ असुभ नहीं, का कहि देहु बड़ाई।।१।।
    सीत बाइ उश्न नहीं सरवत, कांम कुटिल नहीं होई।
    जोग न भोग रोग नहीं जाकै, कहौ नांव सति सोई।।२।।
    निरंजन निराकार निरलेपहि, निरबिकार निरासी।
    काम कुटिल ताही कहि गावत, हर हर आवै हासी।।३।।
    गगन धूर धूसर नहीं जाकै, पवन पूर नहीं पांनी।
    गुन बिगुन कहियत नहीं जाकै, कहौ तुम्ह बात सयांनीं।।४।।
    याही सूँ तुम्ह जोग कहते हौ, जब लग आस की पासी।
    छूटै तब हीं जब मिलै एक ही, भणै रैदास उदासी।।५।।

    2. अब कुछ मरम बिचारा हो हरि

    अब कुछ मरम बिचारा हो हरि।
    आदि अंति औसांण राम बिन, कोई न करै निरवारा हो हरि।। टेक।।
    जल मैं पंक पंक अमृत जल, जलहि सुधा कै जैसैं।
    ऐसैं करमि धरमि जीव बाँध्यौ, छूटै तुम्ह बिन कैसैं हो हरि।।१।।
    जप तप बिधि निषेद करुणांमैं, पाप पुनि दोऊ माया।
    अस मो हित मन गति विमुख धन, जनमि जनमि डहकाया हो हरि।।२।।
    ताड़ण, छेदण, त्रायण, खेदण, बहु बिधि करि ले उपाई।
    लूंण खड़ी संजोग बिनां, जैसैं कनक कलंक न जाई।।३।।
    भणैं रैदास कठिन कलि केवल, कहा उपाइ अब कीजै।
    भौ बूड़त भैभीत भगत जन, कर अवलंबन दीजै।।४।।

    3. अब कैसे छूटै राम नाम रट लागी

    अब कैसे छूटै राम नाम रट लागी ।
    प्रभु जी, तुम चंदन हम पानी, जाकी अँग-अँग बास समानी ।
    प्रभु जी, तुम घन बन हम मोरा, जैसे चितवत चंद चकोरा ।
    प्रभु जी, तुम दीपक हम बाती, जाकी जोति बरै दिन राती ।
    प्रभु जी, तुम मोती हम धागा, जैसे सोनहिं मिलत सुहागा ।
    प्रभु जी, तुम तुम स्वामी हम दासा, ऐसी भक्ति करै रैदासा ।

    4. अब मैं हार्यौ रे भाई

    अब मैं हार्यौ रे भाई।
    थकित भयौ सब हाल चाल थैं, लोग न बेद बड़ाई।। टेक।।
    थकित भयौ गाइण अरु नाचण, थाकी सेवा पूजा।
    काम क्रोध थैं देह थकित भई, कहूँ कहाँ लूँ दूजा।।१।।
    रांम जन होउ न भगत कहाँऊँ, चरन पखालूँ न देवा।
    जोई-जोई करौ उलटि मोहि बाधै, ताथैं निकटि न भेवा।।२।।
    पहली ग्यांन का कीया चांदिणां, पीछैं दीया बुझाई।
    सुनि सहज मैं दोऊ त्यागे, राम कहूँ न खुदाई।।३।।
    दूरि बसै षट क्रम सकल अरु, दूरिब कीन्हे सेऊ।
    ग्यान ध्यानं दोऊ दूरि कीन्हे, दूरिब छाड़े तेऊ।।४।।
    पंचू थकित भये जहाँ-तहाँ, जहाँ-तहाँ थिति पाई।
    जा करनि मैं दौर्यौ फिरतौ, सो अब घट मैं पाई।।५।।
    पंचू मेरी सखी सहेली, तिनि निधि दई दिखाई।
    अब मन फूलि भयौ जग महियां, उलटि आप मैं समाई।।६।।
    चलत चलत मेरौ निज मन थाक्यौ, अब मोपैं चल्यौ न जाई।
    सांई सहजि मिल्यौ सोई सनमुख, कहै रैदास बताई।।७।।

    5. अब मोरी बूड़ी रे भाई

    अब मोरी बूड़ी रे भाई।
    ता थैं चढ़ी लोग बड़ाई।। टेक।।
    अति अहंकार ऊर मां, सत रज तामैं रह्यौ उरझाई।
    करम बलि बसि पर्यौ कछू न सूझै, स्वांमी नांऊं भुलाई।।१।।
    हम मांनूं गुनी जोग सुनि जुगता, हम महा पुरिष रे भाई।
    हम मांनूं सूर सकल बिधि त्यागी, ममिता नहीं मिटाई।।२।।
    मांनूं अखिल सुनि मन सोध्यौ, सब चेतनि सुधि पाई।
    ग्यांन ध्यांन सब हीं हंम जांन्यूं, बूझै कौंन सूं जाई।।३।।
    हम मांनूं प्रेम प्रेम रस जांन्यूं, नौ बिधि भगति कराई।
    स्वांग देखि सब ही जग लटक्यौ, फिरि आपन पौर बधाई।।४।।
    स्वांग पहरि हम साच न जांन्यूं, लोकनि इहै भरमाई।
    स्यंघ रूप देखी पहराई, बोली तब सुधि पाई।।५।।
    ऐसी भगति हमारी संतौ, प्रभुता इहै बड़ाई।
    आपन अनिन और नहीं मांनत, ताथैं मूल गँवाई।।६।।
    भणैं रैदास उदास ताही थैं, इब कछू मोपैं करी न जाई।
    आपौ खोयां भगति होत है, तब रहै अंतरि उरझाई।।७।। (राग रामकली)

    6. अब हम खूब बतन घर पाया

    अब हम खूब बतन घर पाया।
    उहॉ खैर सदा मेरे भाया।। टेक।।
    बेगमपुर सहर का नांउं, फिकर अंदेस नहीं तिहि ठॉव।।१।।
    नही तहॉ सीस खलात न मार, है फन खता न तरस जवाल।।२।।
    आंवन जांन रहम महसूर, जहॉ गनियाव बसै माबूँद।।३।।
    जोई सैल करै सोई भावै, महरम महल मै को अटकावै।।४।।
    कहै रैदास खलास चमारा, सो उस सहरि सो मीत हमारा।।५।।
    (राग गौड़ी)

    7. अबिगत नाथ निरंजन देवा

    अबिगत नाथ निरंजन देवा।
    मैं का जांनूं तुम्हारी सेवा।। टेक।।
    बांधू न बंधन छांऊँ न छाया, तुमहीं सेऊँ निरंजन राया।।१।।
    चरन पताल सीस असमांना, सो ठाकुर कैसैं संपटि समांना।।२।।
    सिव सनिकादिक अंत न पाया, खोजत ब्रह्मा जनम गवाया।।३।।
    तोडूँ न पाती पूजौं न देवा, सहज समाधि करौं हरि सेवा।।४।।
    नख प्रसेद जाकै सुरसुरी धारा, रोमावली अठारह भारा।।५।।
    चारि बेद जाकै सुमृत सासा, भगति हेत गावै रैदासा।।६।।

    8. अहो देव तेरी अमित महिमां, महादैवी माया

    अहो देव तेरी अमित महिमां, महादैवी माया।
    मनुज दनुज बन दहन, कलि विष कलि किरत सबै समय समंन।।
    निरबांन पद भुवन, नांम बिघनोघ पवन पात।। टेक।।
    गरग उत्तम बांमदेव, विस्वामित्र ब्यास जमदंग्नि श्रिंगी ऋषि दुर्बासा।
    मारकंडेय बालमीक भ्रिगु अंगिरा, कपिल बगदालिम सुकमातंम न्यासा।।१।।
    अत्रिय अष्टाब्रक गुर गंजानन, अगस्ति पुलस्ति पारासुर सिव विधाता।
    रिष जड़ भरथ सऊ भरिष, चिवनि बसिष्टि जिह्वनि ज्यागबलिक तव ध्यांनि राता।।२।।
    ध्रू अंबरीक प्रहलाद नारद, बिदुर द्रोवणि अक्रूर पांडव सुदांमां।
    भीषम उधव बभीषन चंद्रहास, बलि कलि भक्ति जुक्ति जयदेव नांमां।।३।।
    गरुड़ हनूंमांनु मांन जनकात्मजा, जय बिजय द्रोपदी गिरि सुता श्री प्रचेता।
    रुकमांगद अंगद बसदेव देवकी, अवर अमिनत भक्त कहूँ केता।।४।।
    हे देव सेष सनकादि श्रुति भागवत, भारती स्तवत अनिवरत गुणर्दुबगेवं।
    अकल अबिछन ब्यापक ब्रह्ममेक रस सुध चैतंनि पूरन मनेवं।।५।।
    सरगुण निरगुण निरामय निरबिकार, हरि अज निरंजन बिमल अप्रमेवं।
    प्रमात्मां प्रक्रिति पर प्रमुचित, सचिदांनंद गुर ग्यांन मेवं।।६।।
    हे देव पवन पावक अवनि, जलधि जलधर तरंनि।
    काल जाम मिृति ग्रह ब्याध्य बाधा, गज भुजंग भुवपाल।
    ससि सक्र दिगपाल, आग्या अनुगत न मुचत मृजादा।।७।।
    अभय बर ब्रिद प्रतंग्या सति संकल्प, हरि दुष्ट तारंन चरंन सरंन तेरैं।
    दास रैदास यह काल ब्याकुल, त्राहि त्राहि अवर अवलंबन नहीं मेरैं।।८।।
    (राग धनाश्री)

    9. आज दिवस लेऊँ बलिहारा

    आज दिवस लेऊँ बलिहारा ।
    मेरे घर आया रामका प्यारा ॥टेक॥
    आँगन बँगला भवन भयो पावन ।
    हरिजन बैठे हरिजस गावन ॥१॥
    करूँ डंडवत चरन पखारूँ ।
    तन-मन-धन उन उपरि वारूँ ॥२॥
    कथा कहै अरु अरथ बिचारैं ।
    आप तरैं औरन को तारैं ॥३॥
    कह रैदास मिलैं निज दासा ।
    जनम जनमकै काटैं पासा ॥४॥

    10. आज नां द्यौस नां ल्यौ बलिहारा

    आज नां द्यौस नां ल्यौ बलिहारा।
    मेरे ग्रिह आया राजा रांम जी का प्यारा।। टेक।।
    आंगण बठाड़ भवन भयौ पांवन, हरिजन बैठे हरि जस गावन।।१।।
    करूँ डंडौत चरन पखालूँ, तन मन धंन उन ऊपरि वारौं।।२।।
    कथा कहै अरु अरथ बिचारै, आपन तिरैं और कूँ तारैं।।३।।
    कहै रैदास मिले निज दास, जनम जनम के कटे पास।।४।।
    (राग गुंड)

    11. आयौ हो आयौ देव तुम्ह सरनां

    आयौ हो आयौ देव तुम्ह सरनां।
    जांनि क्रिया कीजै अपनों जनां।। टेक।।
    त्रिबिधि जोनी बास, जम की अगम त्रास, तुम्हारे भजन बिन, भ्रमत फिर्यौ।
    ममिता अहं विषै मदि मातौ, इहि सुखि कबहूँ न दूभर तिर्यौं।।१।।
    तुम्हारे नांइ बेसास, छाड़ी है आंन की आस, संसारी धरम मेरौ मन न धीजै।
    रैदास दास की सेवा मांनि हो देवाधिदेवा, पतितपांवन, नांउ प्रकट कीजै।।२।।
    (राग रामकली)

    12. इहि तनु ऐसा जैसे घास की टाटी

    इहि तनु ऐसा जैसे घास की टाटी।
    जलि गइओ घासु रलि गइओ माटी।। टेक।।
    ऊँचे मंदर साल रसोई। एक घरी फुनी रहनु न होई।।१।।
    भाई बंध कुटंब सहेरा। ओइ भी लागे काढु सवेरा।।२।।
    घर की नारि उरहि तन लागी। उह तउ भूतु करि भागी।।३।।
    कहि रविदास सभै जग लूटिआ। हम तउ एक राम कहि छूटिआ।।४।।
    (राग सूही)

    13. इहै अंदेसा सोचि जिय मेरे

    इहै अंदेसा सोचि जिय मेरे।
    निस बासुरि गुन गाँऊँ रांम तेरे।। टेक।।
    तुम्ह च्यतंत मेरी च्यंता हो न जाई, तुम्ह च्यंतामनि होऊ कि नांहीं।।१।।
    भगति हेत का का नहीं कीन्हा, हमारी बेर भये बल हीनां।।२।।
    कहै रैदास दास अपराधी, जिहि तुम्ह ढरवौ सो मैं भगति न साधी।।३।।
    (राग सोरठी)

    14. ऐसा ध्यान धरूँ बनवारी

    ऐसा ध्यान धरूँ बनवारी।
    मन पवन दिढ सुषमन नारी।। टेक।।
    सो जप जपूँ जु बहुरि न जपनां, सो तप तपूं जु बहुरि न तपनां।
    सो गुर करौं जु बहुरि न करनां, ऐसे मरूँ जैसे बहुरि न मरनां।।१।।
    उलटी गंग जमुन मैं ल्याऊँ, बिन हीं जल संजम कै आंऊँ।
    लोचन भरि भरि ब्यंव निहारूँ, जोति बिचारि न और बिचारूँ।।२।।
    प्यंड परै जीव जिस घरि जाता, सबद अतीत अनाहद राता।
    जा परि कृपा सोई भल जांनै, गूंगो सा कर कहा बखांनैं।।३।।
    सुंनि मंडल मैं मेरा बासा, ताथैं जीव मैं रहूँ उदासा।
    कहै रैदास निरंजन ध्याऊँ, जिस धरि जांऊँ (जब) बहुरि न आंऊँ।।४।।
    (राग भैरूँ)

    15. ऐसी भगति न होइ रे भाई

    ऐसी भगति न होइ रे भाई।
    रांम नांम बिन जे कुछ करिये, सो सब भरम कहाई।। टेक।।
    भगति न रस दांन, भगति न कथै ग्यांन, भगत न बन मैं गुफा खुँदाई।
    भगति न ऐसी हासि, भगति न आसा पासि, भगति न यहु सब कुल कानि गँवाई।।१।।
    भगति न इंद्री बाधें, भगति न जोग साधें, भगति न अहार घटायें, ए सब क्रम कहाई।
    भगति न निद्रा साधें, भगति न बैराग साधें, भगति नहीं यहु सब बेद बड़ाई।।२।।
    भगति न मूंड़ मुड़ायें, भगति न माला दिखायें, भगत न चरन धुवांयें, ए सब गुनी जन कहाई।
    भगति न तौ लौं जांनीं, जौ लौं आप कूँ आप बखांनीं, जोई जोई करै सोई क्रम चढ़ाई।।३।।
    आपौ गयौ तब भगति पाई, ऐसी है भगति भाई, राम मिल्यौ आपौ गुण खोयौ, रिधि सिधि सबै जु गँवाई।
    कहै रैदास छूटी ले आसा पास, तब हरि ताही के पास, आतमां स्थिर तब सब निधि पाई।।४।।

    16. ऐसी मेरी जाति भिख्यात चमारं

    ऐसी मेरी जाति भिख्यात चमारं।
    हिरदै राम गौब्यंद गुन सारं।। टेक।।
    सुरसुरी जल लीया क्रित बारूणी रे, जैसे संत जन करता नहीं पांन।
    सुरा अपवित्र नित गंग जल मांनियै, सुरसुरी मिलत नहीं होत आंन।।१।।
    ततकरा अपवित्र करि मांनियैं, जैसें कागदगर करत बिचारं।
    भगत भगवंत जब ऊपरैं लेखियैं, तब पूजियै करि नमसकारं।।२।।
    अनेक अधम जीव नांम गुण उधरे, पतित पांवन भये परसि सारं।
    भणत रैदास ररंकार गुण गावतां, संत साधू भये सहजि पारं।।३।।
    (राग आसा)

    17. ऐसी लाल तुझ बिनु कउनु करै

    ऐसी लाल तुझ बिनु कउनु करै ।
    गरीब निवाजु गुसाईआ मेरा माथै छत्रु धरै ॥
    जाकी छोति जगत कउ लागै ता पर तुहीं ढरै ।
    नीचउ ऊच करै मेरा गोबिंदु काहू ते न डरै ॥
    नामदेव कबीरू तिलोचनु सधना सैनु तरै ।
    कहि रविदासु सुनहु रे संतहु हरिजीउ ते सभै सरै ॥

    18. ऐसे जानि जपो रे जीव

    ऐसे जानि जपो रे जीव।
    जपि ल्यो राम न भरमो जीव।। टेक।।
    गनिका थी किस करमा जोग, परपूरुष सो रमती भोग।।१।।
    निसि बासर दुस्करम कमाई, राम कहत बैकुंठ जाई।।२।।
    नामदेव कहिए जाति कै ओछ, जाको जस गावै लोक।।३।।
    भगति हेत भगता के चले, अंकमाल ले बीठल मिले।।४।।
    कोटि जग्य जो कोई करै, राम नाम सम तउ न निस्तरै।।५।।
    निरगुन का गुन देखो आई, देही सहित कबीर सिधाई।।६।।
    मोर कुचिल जाति कुचिल में बास, भगति हेतु हरिचरन निवास।।७।।
    चारिउ बेद किया खंडौति, जन रैदास करै डंडौति।।८।।
    (राग गौड़)

    19. ऐसौ कछु अनभै कहत न आवै

    ऐसौ कछु अनभै कहत न आवै।
    साहिब मेरौ मिलै तौ को बिगरावै।। टेक।।
    सब मैं हरि हैं हरि मैं सब हैं, हरि आपनपौ जिनि जांनां।
    अपनी आप साखि नहीं दूसर, जांननहार समांनां।।१।।
    बाजीगर सूँ रहनि रही जै, बाजी का भरम इब जांनं।
    बाजी झूठ साच बाजीगर, जानां मन पतियानां।।२।।
    मन थिर होइ तौ कांइ न सूझै, जांनैं जांनन हारा।
    कहै रैदास बिमल बसेक सुख, सहज सरूप संभारा।।३।।
    (राग रामकली)

    20. कवन भगितते रहै प्यारो पाहुनो रे

    कवन भगितते रहै प्यारो पाहुनो रे ।
    घर घर देखों मैं अजब अभावनो रे ॥टेक॥
    मैला मैला कपड़ा केता एक धोऊँ ।
    आवै आवै नींदहि कहाँलों सोऊँ ॥१॥
    ज्यों ज्यों जोड़ै त्यों त्यों फाटै ।
    झूठै सबनि जरै उड़ि गये हाटै ॥२॥
    कह रैदास परौ जब लेख्यौ ।
    जोई जोई, कियो रे सोई सोई देख्यौ ॥३॥

    21. कहा सूते मुगध नर काल के मंझि मुख

    कहा सूते मुगध नर काल के मंझि मुख।
    तजि अब सति राम च्यंतत अनेक सुख।। टेक।।
    असहज धीरज लोप, कृश्न उधरन कोप, मदन भवंग नहीं मंत्र जंत्रा।
    विषम पावक झाल, ताहि वार न पार, लोभ की श्रपनी ग्यानं हंता।।१।।
    विषम संसार भौ लहरि ब्याकुल तवै, मोह गुण विषै सन बंध भूता।
    टेरि गुर गारड़ी मंत्र श्रवणं दीयौ, जागि रे रांम कहि कांइ सूता।।२।।
    सकल सुमृति जिती, संत मिति कहैं तिती, पाइ नहीं पनंग मति परंम बेता।
    ब्रह्म रिषि नारदा स्यंभ सनिकादिका, राम रमि रमत गये परितेता।।३।।
    जजनि जाप निजाप रटणि तीर्थ दांन, वोखदी रसिक गदमूल देता।
    नाग दवणि जरजरी, रांम सुमिरन बरी, भणत रैदास चेतनि चेता।।४।।

    22. कहि मन रांम नांम संभारि

    कहि मन रांम नांम संभारि।
    माया कै भ्रमि कहा भूलौ, जांहिगौ कर झारि।। टेक।।
    देख धूँ इहाँ कौन तेरौ, सगा सुत नहीं नारि।
    तोरि तंग सब दूरि करि हैं, दैहिंगे तन जारि।।१।।
    प्रान गयैं कहु कौंन तेरौ, देख सोचि बिचारि।
    बहुरि इहि कल काल मांही, जीति भावै हारि।।२।।
    यहु माया सब थोथरी, भगति दिसि प्रतिपारि।
    कहि रैदास सत बचन गुर के, सो जीय थैं न बिसारि।।३।।
    (राग केदारौ)

    23. कांन्हां हो जगजीवन मोरा

    कांन्हां हो जगजीवन मोरा।
    तू न बिसारीं रांम मैं जन तोरा।। टेक।।
    संकुट सोच पोच दिन राती, करम कठिन मेरी जाति कुभाती।।१।।
    हरहु बिपति भावै करहु कुभाव, चरन न छाड़ूँ जाइ सु जाव।
    कहै रैदास कछु देऊ अवलंबन, बेगि मिलौ जनि करहु बिलंबन।।२।।
    (राग रामकली)

    24. किहि बिधि अणसरूं रे, अति दुलभ दीनदयाल

    किहि बिधि अणसरूं रे, अति दुलभ दीनदयाल।
    मैं महाबिषई अधिक आतुर, कांमना की झाल।। टेक।।
    कह द्यंभ बाहरि कीयैं, हरि कनक कसौटी हार।
    बाहरि भीतरि साखि तू, मैं कीयौ सुसा अंधियार।।१।।
    कहा भयौ बहु पाखंड कीयैं, हरि हिरदै सुपिनैं न जांन।
    ज्यू दारा बिभचारनीं, मुख पतिब्रता जीय आंन।।२।।
    मैं हिरदै हारि बैठो हरी, मो पैं सर्यौं न एको काज।
    भाव भगति रैदास दे, प्रतिपाल करौ मोहि आज।।३।।
    (राग सोरठी)

    25. केसवे बिकट माया तोर

    केसवे बिकट माया तोर।
    ताथैं बिकल गति मति मोर।। टेक।।
    सु विष डसन कराल अहि मुख, ग्रसित सुठल सु भेख।
    निरखि माखी बकै व्याकुल, लोभ काल न देख।।१।।
    इन्द्रीयादिक दुख दारुन, असंख्यादिक पाप।
    तोहि भजत रघुनाथ अंतरि, ताहि त्रास न ताप।।२।।
    प्रतंग्या प्रतिपाल चहुँ जुगि, भगति पुरवन कांम।
    आस तोर भरोस है, रैदास जै जै राम।।३।।

    26. कौंन भगति थैं रहै प्यारे पांहुनौं रे

    कौंन भगति थैं रहै प्यारे पांहुनौं रे।
    धरि धरि देखैं मैं अजब अभावनौं रे।। टेक।।
    मैला मैला कपड़ा केताकि धोउँ, आवै आवै नींदड़ी कहाँ लौं सोऊँ।।१।।
    ज्यूँ ज्यूँ जोड़ौं त्यूँ त्यूँ फाटे, झूठे से बनजि रे उठि गयौ हाटे।।२।।
    कहैं रैदास पर्यौ जब लेखौ, जोई जोई कीयौ रे, सोई सोई देखौ।।३।।
    (राग धनाश्री)

    27. कोई सुमार न देखौं, ए सब ऊपिली चोभा

    कोई सुमार न देखौं, ए सब ऊपिली चोभा।
    जाकौं जेता प्रकासै, ताकौं तेती ही सोभा।। टेक।।
    हम ही पै सीखि सीखि, हम हीं सूँ मांडै।
    थोरै ही इतराइ चालै, पातिसाही छाडै।।१।।
    अति हीं आतुर बहै, काचा हीं तोरै।
    कुंडै जलि एैसै, न हींयां डरै खोरै।।२।।
    थोरैं थोरैं मुसियत, परायौ धंनां।
    कहै रैदास सुनौं, संत जनां।।३।।
    (राग गौड़ी)

    28. क्या तू सोवै जणिं दिवांनां

    क्या तू सोवै जणिं दिवांनां।
    झूठा जीवनां सच करि जांनां।। टेक।।
    जिनि जीव दिया सो रिजकअ बड़ावै, घट घट भीतरि रहट चलावै।
    करि बंदिगी छाड़ि मैं मेरा, हिरदै का रांम संभालि सवेरा।।१।।
    जो दिन आवै सौ दुख मैं जाई, कीजै कूच रह्यां सच नांहीं।
    संग चल्या है हम भी चलनां, दूरि गवन सिर ऊपरि मरनां।।२।।
    जो कुछ बोया लुनियें सोई, ता मैं फेर फार कछू न होई।
    छाडेअं कूर भजै हरि चरनां, ताका मिटै जनम अरु मरनां।।३।।
    आगैं पंथ खरा है झीनां, खाडै धार जिसा है पैंनां।
    तिस ऊपरि मारग है तेरा, पंथी पंथ संवारि सवेरा।।४।।
    क्या तैं खरच्या क्या तैं खाया, चल दरहाल दीवांनि बुलाया।
    साहिब तोपैं लेखा लेसी, भीड़ पड़े तू भरि भरिदेसी।।५।।
    जनम सिरांनां कीया पसारा, सांझ पड़ी चहु दिसि अंधियारा।
    कहै रैदासा अग्यांन दिवांनां, अजहूँ न चेतै दुनी फंध खांनां।।६।।
    (राग विलावल)

    29. खांलिक सकिसता मैं तेरा

    खांलिक सकिसता मैं तेरा।
    दे दीदार उमेदगार बेकरार जीव मेरा।। टेक।।
    अवलि आख्यर इलल आदंम, मौज फरेस्ता बंदा।
    जिसकी पनह पीर पैकंबर, मैं गरीब क्या गंदा।।१।।
    तू हानिरां हजूर जोग एक, अवर नहीं दूजा।
    जिसकै इसक आसिरा नांहीं, क्या निवाज क्या पूजा।।२।।
    नाली दोज हनोज बेबखत, कमि खिजमतिगार तुम्हारा।
    दरमादा दरि ज्वाब न पावै, कहै रैदास बिचारा।।३।।
    (राग विलावल)

    30. गाइ गाइ अब का कहि गाऊँ

    गाइ गाइ अब का कहि गाऊँ।
    गांवणहारा कौ निकटि बतांऊँ।।टेक।।
    जब लग है या तन की आसा, तब लग करै पुकारा।
    जब मन मिट्यौ आसा नहीं की, तब को गाँवणहारा।।१।।
    जब लग नदी न संमदि समावै, तब लग बढ़ै अहंकारा।
    जब मन मिल्यौ रांम सागर सूँ, तब यहु मिटी पुकारा।।२।।
    जब लग भगति मुकति की आसा, परम तत सुणि गावै।
    जहाँ जहाँ आस धरत है यहु मन, तहाँ तहाँ कछू न पावै।।३।।
    छाड़ै आस निरास परंमपद, तब सुख सति करि होई।
    कहै रैदास जासूँ और कहत हैं, परम तत अब सोई।।४।।
    (राग रामकली)

    31. गोबिंदे तुम्हारे से समाधि लागी

    गोबिंदे तुम्हारे से समाधि लागी।
    उर भुअंग भस्म अंग संतत बैरागी।। टेक।।
    जाके तीन नैन अमृत बैन, सीसा जटाधारी, कोटि कलप ध्यान अलप, मदन अंतकारी।।१।।
    जाके लील बरन अकल ब्रह्म, गले रुण्डमाला, प्रेम मगन फिरता नगन, संग सखा बाला।।२।।
    अस महेश बिकट भेस, अजहूँ दरस आसा, कैसे राम मिलौं तोहि, गावै रैदासा।।३।।
    (राग विलावल)

    32. गौब्यंदे भौ जल ब्याधि अपारा

    गौब्यंदे भौ जल ब्याधि अपारा।
    तामैं कछू सूझत वार न पारा।। टेक।।
    अगम ग्रेह दूर दूरंतर, बोलि भरोस न देहू।
    तेरी भगति परोहन, संत अरोहन, मोहि चढ़ाइ न लेहू।।१।।
    लोह की नाव पखांनि बोझा, सुकृत भाव बिहूंनां।
    लोभ तरंग मोह भयौ पाला, मीन भयौ मन लीना।।२।।
    दीनानाथ सुनहु बीनती, कौंनै हेतु बिलंबे।
    रैदास दास संत चरंन, मोहि अब अवलंबन दीजै।।३।।

    33. चमरटा गाँठि न जनई

    चमरटा गाँठि न जनई।
    लोग गठावै पनही।।टेक।।
    आर नहीं जिह तोपउ।
    नहीं रांबी ठाउ रोपउ।।१।।
    लोग गंठि गंठि खरा बिगूचा।
    हउ बिनु गांठे जाइ पहूचा।।२।।
    रविदासु जपै राम नामा,
    मोहि जम सिउ नाही कामा।।३।।
    (राग सोरठी)

    34. चलि मन हरि चटसाल पढ़ाऊँ

    चलि मन हरि चटसाल पढ़ाऊँ।। टेक।।
    गुरु की साटि ग्यांन का अखिर, बिसरै तौ सहज समाधि लगाऊँ।।१।।
    प्रेम की पाटी सुरति की लेखनी करिहूं, ररौ ममौ लिखि आंक दिखांऊँ।।२।।
    इहिं बिधि मुक्ति भये सनकादिक, रिदौ बिदारि प्रकास दिखाऊँ।।३।।
    कागद कैवल मति मसि करि नृमल, बिन रसना निसदिन गुण गाऊँ।।४।।
    कहै रैदास राम जपि भाई, संत साखि दे बहुरि न आऊँ।।५।।
    (राग कानड़ा)

    35. जग मैं बेद बैद मांनी जें

    जग मैं बेद बैद मांनी जें।
    इनमैं और अंगद कछु औरे, कहौ कवन परिकीजै।। टेक।।
    भौ जल ब्याधि असाधिअ प्रबल अति, परम पंथ न गही जै।
    पढ़ैं गुनैं कछू समझि न परई, अनभै पद न लही जै।।१।।
    चखि बिहूंन कतार चलत हैं, तिनहूँ अंस भुज दीजै।
    कहै रैदास बमेक तत बिन, सब मिलि नरक परी जै।।२।।
    (राग सारंग)

    36. जन कूँ तारि तारि तारि तारि बाप रमइया

    जन कूँ तारि तारि तारि तारि बाप रमइया।
    कठन फंध पर्यौ पंच जमइया।। टेक।।
    तुम बिन देव सकल मुनि ढूँढ़े, कहूँ न पायौ जम पासि छुड़इया।।१।।
    हमसे दीन, दयाल न तुमसे, चरन सरन रैदास चमइया।।२।।
    (राग धनाश्री)

    37. जब रामनाम कहि गावैगा

    जब रामनाम कहि गावैगा,
    तब भेद अभेद समावैगा ॥टेक॥
    जे सुख ह्वैं या रसके परसे,
    सो सुखका कहि गावैगा ॥१॥
    गुरु परसाद भई अनुभौ मति,
    बिस अमरित सम धावैगा ॥२॥
    कह रैदास मेटि आपा-पर,
    तब वा ठौरहि पावैगा ॥३॥

    38. जयौ रांम गोब्यंद बीठल बासदेव

    जयौ रांम गोब्यंद बीठल बासदेव।
    हरि बिश्न बैकुंठ मधुकीटभारी।।
    कृश्न केसों रिषीकेस कमलाकंत।
    अहो भगवंत त्रिबधि संतापहारी।। टेक।।
    अहो देव संसार तौ गहर गंभीर।
    भीतरि भ्रमत दिसि ब दिसि, दिसि कछू न सूझै।।
    बिकल ब्याकुल खेंद, प्रणतंत परमहेत।
    ग्रसित मति मोहि मारग न सूझै।।
    देव इहि औसरि आंन, कौंन संक्या समांन।
    देव दीन उधंरन, चरंन सरन तेरी।।
    नहीं आंन गति बिपति कौं हरन और।
    श्रीपति सुनसि सीख संभाल प्रभु करहु मेरी।।१।।
    अहो देव कांम केसरि काल, भुजंग भांमिनी भाल।
    लोभ सूकर क्रोध बर बारनूँ।।२।।
    ग्रब गैंडा महा मोह टटनीं, बिकट निकट अहंकार आरनूँ।
    जल मनोरथ ऊरमीं, तरल तृसना मकर इन्द्री जीव जंत्रक मांही।
    समक ब्याकुल नाथ, सत्य बिष्यादिक पंथ, देव देव विश्राम नांही।।३।।
    अहो देव सबै असंगति मेर, मधि फूटा भेर।
    नांव नवका बड़ैं भागि पायौ।
    बिन गुर करणधार डोलै न लागै तीर।
    विषै प्रवाह औ गाह जाई।
    देव किहि करौं पुकार, कहाँ जाँऊँ।
    कासूँ कहूँ, का करूँ अनुग्रह दास की त्रासहारी।
    इति ब्रत मांन और अवलंबन नहीं।
    तो बिन त्रिबधि नाइक मुरारी।।३।।
    अहो देव जेते कयैं अचेत, तू सरबगि मैं न जांनूं।
    ग्यांन ध्यांन तेरौ, सत्य सतिम्रिद परपन मन सा मल।
    मन क्रम बचन जंमनिका, ग्यान बैराग दिढ़ भगति नाहीं।
    मलिन मति रैदास, निखल सेवा अभ्यास।
    प्रेम बिन प्रीति सकल संसै न जांहीं।।४।।
    (राग धनाश्री)

    39. जिनि थोथरा पिछोरे कोई

    जिनि थोथरा पिछोरे कोई।
    जो र पिछौरे जिहिं कण होई।। टेक।।
    झूठ रे यहु तन झूठी माया, झूठा हरि बिन जन्म गंवाया।।१।।
    झूठा रे मंदिर भोग बिलासा, कहि समझावै जन रैदासा।।२।। (राग सोरठी)

    40. जिह कुल साधु बैसनो होइ

    जिह कुल साधु बैसनो होइ।
    बरन अबरन रंकु नहीं ईसरू बिमल बासु जानी ऐ जगि सोइ।। टेक।।
    ब्रहमन बैस सूद अरु ख्यत्री डोम चंडार मलेछ मन सोइ।
    होइ पुनीत भगवंत भजन ते आपु तारि तारे कुल दोइ।।१।।
    धंनि सु गाउ धंनि सो ठाउ धंनि पुनीत कुटंब सभ लोइ।
    जिनि पीआ सार रसु तजे आन रस होइ रस मगन डारे बिखु खोइ।।२।।
    पंडित सूर छत्रपति राजा भगत बराबरि अउरु न कोइ।
    जैसे पुरैन पात रहै जल समीप भनि रविदास जनमें जगि ओइ।।३।।
    (राग विलावल)

    41. जीवत मुकंदे मरत मुकंदे

    जीवत मुकंदे मरत मुकंदे।
    ताके सेवक कउ सदा अनंदे।। टेक।।
    मुकंद-मुकंद जपहु संसार। बिन मुकंद तनु होइ अउहार।
    सोई मुकंदे मुकति का दाता। सोई मुकंदु हमरा पित माता।।१।।
    मुकंद-मुकंदे हमारे प्रानं। जपि मुकंद मसतकि नीसानं।
    सेव मुकंदे करै बैरागी। सोई मुकंद दुरबल धनु लाधी।।२।।
    एक मुकंदु करै उपकारू। हमरा कहा करै संसारू।
    मेटी जाति हूए दरबारि। तुही मुकंद जोग जुगतारि।।३।।
    उपजिओ गिआनु हूआ परगास। करि किरपा लीने करि दास।
    कहु रविदास अब त्रिसना चूकी। जपि मुकंद सेवा ताहू की।।४।।
    (राग गौड़ी)

    42. जो तुम तोरौ रांम मैं नहीं तोरौं

    जो तुम तोरौ रांम मैं नहीं तोरौं।
    तुम सौं तोरि कवन सूँ जोरौं।। टेक।।
    तीरथ ब्रत का न करौं अंदेसा, तुम्हारे चरन कवल का भरोसा।।१।।
    जहाँ जहाँ जांऊँ तहाँ तुम्हारी पूजा, तुम्ह सा देव अवर नहीं दूजा।।२।।
    मैं हरि प्रीति सबनि सूँ तोरी, सब स्यौं तोरि तुम्हैं स्यूँ जोरी।।३।।
    सब परहरि मैं तुम्हारी आसा, मन क्रम वचन कहै रैदासा।।४।। (राग सोरठी)

    43. जो मोहि बेदन का सजि आखूँ

    जो मोहि बेदन का सजि आखूँ।
    हरि बिन जीव न रहै कैसैं करि राखूँ।। टेक।।
    जीव तरसै इक दंग बसेरा, करहु संभाल न सुरि जन मोरा।
    बिरह तपै तनि अधिक जरावै, नींदड़ी न आवै भोजन नहीं भावै।।१।।
    सखी सहेली ग्रब गहेली, पीव की बात न सुनहु सहेली।
    मैं रे दुहागनि अधिक रंजानी, गया सजोबन साध न मांनीं।।२।।
    तू दांनां सांइंर् साहिब मेरा, खिजमतिगार बंदा मैं तेरा।
    कहै रैदास अंदेसा एही, बिन दरसन क्यूँ जीवैं हो सनेही।।३।।
    (राग विलावल)

    44. तब रांम रांम कहि गावैगा

    तब रांम रांम कहि गावैगा।
    ररंकार रहित सबहिन थैं, अंतरि मेल मिलावैगा।। टेक।।
    लोहा सम करि कंचन समि करि, भेद अभेद समावैगा।
    जो सुख कै पारस के परसें, तो सुख का कहि गावैगा।।१।।
    गुर प्रसादि भई अनभै मति, विष अमृत समि धावैगा।
    कहै रैदास मेटि आपा पर, तब वा ठौरहि पावैगा।।२।।

    45. ताथैं पतित नहीं को अपांवन

    ताथैं पतित नहीं को अपांवन। हरि तजि आंनहि ध्यावै रे।
    हम अपूजि पूजि भये हरि थैं, नांउं अनूपम गावै रे।। टेक।।
    अष्टादस ब्याकरन बखांनै, तीनि काल षट जीता रे।
    प्रेम भगति अंतरगति नांहीं, ताथैं धानुक नीका रे।।१।।
    ताथैं भलौ स्वांन कौ सत्रु, हरि चरनां चित लावै रे।
    मूंवां मुकति बैकुंठा बासा, जीवत इहाँ जस पावै रे।।२।।
    हम अपराधी नीच घरि जनमे, कुटंब लोग करैं हासी रे।
    कहै रैदास नाम जपि रसनीं, काटै जंम की पासी रे।।३।।
    (राग विलावल)

    46. तुझहि चरन अरबिंद भँवर मनु

    तुझहि चरन अरबिंद भँवर मनु।
    पान करत पाइओ, पाइओ रामईआ धनु।। टेक।।
    कहा भइओ जउ तनु भइओ छिनु छिनु।
    प्रेम जाइ तउ डरपै तेरो जनु।।१।।
    संपति बिपति पटल माइआ धनु।
    ता महि भगत होत न तेरो जनु।।२।।
    प्रेम की जेवरी बाधिओ तेरो जन।
    कहि रविदास छूटिबो कवन गुनै।।३।।
    (राग आसा)

    47. तुझा देव कवलापती सरणि आयौ

    तुझा देव कवलापती सरणि आयौ।
    मंझा जनम संदेह भ्रम छेदि माया।। टेक।।
    अति संसार अपार भौ सागरा, ता मैं जांमण मरण संदेह भारी।
    कांम भ्रम क्रोध भ्रम लोभ भ्रम, मोह भ्रम, अनत भ्रम छेदि मम करसि यारी।।१।।
    पंच संगी मिलि पीड़ियौ प्रांणि यौं, जाइ न न सकू बैराग भागा।
    पुत्र बरग कुल बंधु ते भारज्या, भखैं दसौ दिसि रिस काल लागा।।२।।
    भगति च्यंतौं तो मोहि दुख ब्यापै, मोह च्यंतौ तौ तेरी भगति जाई।
    उभै संदेह मोहि रैंणि दिन ब्यापै, दीन दाता करौं कौंण उपाई।।३।।
    चपल चेत्यौ नहीं बहुत दुख देखियौ, कांम बसि मोहियौ क्रम फंधा।
    सकति सनबंध कीयौ, ग्यान पद हरि लीयौ, हिरदै बिस रूप तजि भयौ अंधा।।४।।
    परम प्रकास अबिनास अघ मोचनां, निरखि निज रूप बिश्रांम पाया।
    बंदत रैदास बैराग पद च्यंतता, जपौ जगदीस गोब्यंद राया।।५।।
    (राग धनाश्री)

    48. तू कांइ गरबहि बावली

    तू कांइ गरबहि बावली।
    जैसे भादउ खूंब राजु तू तिस ते खरी उतावली।। टेक।।
    तुझहि सुझंता कछू नाहि। पहिरावा देखे ऊभि जाहि।
    गरबवती का नाही ठाउ। तेरी गरदनि ऊपरि लवै काउ।।१।।
    जैसे कुरंक नहीं पाइओ भेदु। तनि सुगंध ढूढ़ै प्रदेसु।
    अप तन का जो करे बीचारू। तिसु नहीं जम कंकरू करे खुआरू।।२।।
    पुत्र कलत्र का करहि अहंकारू। ठाकुर लेखा मगनहारू।
    फेड़े का दुखु सहै जीउ। पाछे किसहि पुकारहि पीउ-पीउ।।३।।
    साधू की जउ लेहि ओट। तेरे मिटहि पाप सभ कोटि-कोटि।
    कहि रविदास जो जपै नामु। तिस जातु न जनमु न जोनि कामु।।४।।
    (राग बसंत)

    49. तू जानत मैं किछु नहीं भव खंडन राम

    तू जानत मैं किछु नहीं भव खंडन राम।
    सगल जीअ सरनागति प्रभ पूरन काम।। टेक।।
    दारिदु देखि सभ को हसै ऐसी दसा हमारी।
    असटदसा सिधि कर तलै सभ क्रिया तुमारी।।१।।
    जो तेरी सरनागता तिन नाही भारू।
    ऊँच नीच तुमते तरे आलजु संसारू।।२।।
    कहि रविदास अकथ कथा बहु काइ करी जै।
    जैसा तू तैसा तुही किआ उपमा दीजै।।३।।
    (राग विलावल)

    50. तेरा जन काहे कौं बोलै

    तेरा जन काहे कौं बोलै।
    बोलि बोलि अपनीं भगति क्यों खोलै।। टेक।।
    बोल बोलतां बढ़ै बियाधि, बोल अबोलैं जाई।
    बोलै बोल अबोल कौं पकरैं, बोल बोलै कूँ खाई।।१।।
    बोलै बोल मांनि परि बोलैं, बोलै बेद बड़ाई।
    उर में धरि धरि जब ही बोलै, तब हीं मूल गँवाई।।२।।
    बोलि बोलि औरहि समझावै, तब लग समझि नहीं रे भाई।
    बोलि बोलि समझि जब बूझी, तब काल सहित सब खाई।।३।।
    बोलै गुर अरु बोलै चेला, बोल्या बोल की परमिति जाई।
    कहै रैदास थकित भयौ जब, तब हीं परंमनिधि पाई।।४।।

    51. त्यू तुम्ह कारन केसवे, लालचि जीव लागा

    त्यू तुम्ह कारन केसवे, लालचि जीव लागा।
    निकटि नाथ प्रापति नहीं, मन मंद अभागा।। टेक।।
    साइर सलिल सरोदिका, जल थल अधिकाई।
    स्वांति बूँद की आस है, पीव प्यास न जाई।।१।।
    जो रस नेही चाहिए, चितवत हूँ दूरी।
    पंगल फल न पहूँचई, कछू साध न पूरी।।२।।
    कहै रैदास अकथ कथा, उपनषद सुनी जै।
    जस तूँ तस तूँ तस तूँ हीं, कस ओपम दीजै।।३।।

    52. त्यूँ तुम्ह कारनि केसवे, अंतरि ल्यौ लागी

    त्यूँ तुम्ह कारनि केसवे, अंतरि ल्यौ लागी।
    एक अनूपम अनभई, किम होइ बिभागी।। टेक।।
    इक अभिमानी चातृगा, विचरत जग मांहीं।
    जदपि जल पूरण मही, कहूं वाँ रुचि नांहीं।।१।।
    जैसे कांमीं देखे कांमिनीं, हिरदै सूल उपाई।
    कोटि बैद बिधि उचरैं, वाकी बिथा न जाई।।२।।
    जो जिहि चाहे सो मिलै, आरत्य गत होई।
    कहै रैदास यहु गोपि नहीं, जानैं सब कोई।।३।।
    (राग रामकली)

    53. देवा हम न पाप करंता

    देवा हम न पाप करंता।
    अहो अंनंता पतित पांवन तेरा बिड़द क्यू होता।। टेक।।
    तोही मोही मोही तोही अंतर ऐसा।
    कनक कुटक जल तरंग जैसा।।१।।
    तुम हीं मैं कोई नर अंतरजांमी।
    ठाकुर थैं जन जांणिये, जन थैं स्वांमीं।।२।।
    तुम सबन मैं, सब तुम्ह मांहीं।
    रैदास दास असझसि, कहै कहाँ ही।।३।।

    54. देहु कलाली एक पियाला

    देहु कलाली एक पियाला।
    ऐसा अवधू है मतिवाला।। टेक।।
    ए रे कलाली तैं क्या कीया,
    सिरकै सा तैं प्याला दीया।।१।।
    कहै कलाली प्याला देऊँ,
    पीवनहारे का सिर लेऊँ।।२।।
    चंद सूर दोऊ सनमुख होई,
    पीवै पियाला मरै न कोई।।३।।
    सहज सुनि मैं भाठी सरवै,
    पीवै रैदास गुर मुखि दरवै।।४।।
    (राग आसा)

    55. न बीचारिओ राजा राम को रसु

    न बीचारिओ राजा राम को रसु।
    जिह रस अनरस बीसरि जाही।। टेक।।
    दूलभ जनमु पुंन फल पाइओ बिरथा जात अबिबेके।
    राजे इन्द्र समसरि ग्रिह आसन बिनु हरि भगति कहहु किह लेखै।।१।।
    जानि अजान भए हम बावर सोच असोच दिवस जाही।
    इन्द्री सबल निबल बिबेक बुधि परमारथ परवेस नहीं।।२।।
    कहीअत आन अचरीअत आन कछु समझ न परै अपर माइआ।
    कहि रविदास उदास दास मति परहरि कोपु करहु जीअ दइआ।।३।।
    (राग सोरठी)

    56. नरहरि चंचल मति मोरी

    नरहरि चंचल मति मोरी।
    कैसैं भगति करौ रांम तोरी।। टेक।।
    तू कोहि देखै हूँ तोहि देखैं, प्रीती परस्पर होई।
    तू मोहि देखै हौं तोहि न देखौं, इहि मति सब बुधि खोई।।१।।
    सब घट अंतरि रमसि निरंतरि, मैं देखत ही नहीं जांनां।
    गुन सब तोर मोर सब औगुन, क्रित उपगार न मांनां।।२।।
    मैं तैं तोरि मोरी असमझ सों, कैसे करि निसतारा।
    कहै रैदास कृश्न करुणांमैं, जै जै जगत अधारा।।३।।

    57. नरहरि प्रगटसि नां हो प्रगटसि नां

    नरहरि प्रगटसि नां हो प्रगटसि नां।
    दीनानाथ दयाल नरहरि।। टेक।।
    जन मैं तोही थैं बिगरां न अहो, कछू बूझत हूँ रसयांन।
    परिवार बिमुख मोहि लाग, कछू समझि परत नहीं जाग।।१।।
    इक भंमदेस कलिकाल, अहो मैं आइ पर्यौ जंम जाल।
    कबहूँक तोर भरोस, जो मैं न कहूँ तो मोर दोस।।२।।
    अस कहियत तेऊ न जांन, अहो प्रभू तुम्ह श्रबंगि सयांन।
    सुत सेवक सदा असोच, ठाकुर पितहि सब सोच।।३।।
    रैदास बिनवैं कर जोरि, अहो स्वांमीं तोहि नांहि न खोरि।
    सु तौ अपूरबला अक्रम मोर, बलि बलि जांऊं करौ जिनि और।।४।।

    58. नहीं बिश्रांम लहूँ धरनींधर

    नहीं बिश्रांम लहूँ धरनींधर।
    जाकै सुर नर संत सरन अभिअंतर।। टेक।।
    जहाँ जहाँ गयौ, तहाँ जनम काछै, तृबिधि ताप तृ भुवनपति पाछै।।१।।
    भये अति छीन खेद माया बस, जस तिन ताप पर नगरि हतै तस।।२।।
    द्वारैं न दसा बिकट बिष कारंन, भूलि पर्यौ मन या बिष्या बन।।३।।
    कहै रैदास सुमिरौ बड़ राजा, काटि दिये जन साहिब लाजा।।४।।
    (राग विलावल)

    59. नामु तेरो आरती मजनु मुरारे

    नामु तेरो आरती मजनु मुरारे।
    हरि के नाम बिनु झूठे सगल पसारे।।टेक।।
    नामु तेरो आसनो नामु तेरो उरसा नामु तेरा केसरो ले छिड़का रे।
    नामु तेरा अंमुला नामु तेरो चंदनों, घसि जपे नामु ले तुझहि का उचारे।।१।।
    नामु तेरा दीवा नामु तेरो बाती नामु तेरो तेलु ले माहि पसारे।
    नाम तेरे की जोति लगाई भइओ उजिआरो भवन सगला रे।।२।।
    नामु तेरो तागा नामु फूल माला, भार अठारह सगल जूठा रे।
    तेरो कीआ तुझहि किआ अरपउ नामु तेरा तुही चवर ढोला रे।।३।।
    दसअठा अठसठे चारे खाणी इहै वरतणि है सगल संसारे।
    कहै रविदासु नाम तेरो आरती सतिनामु है हरि भोग तुहारे।।४।।
    (राग धनाश्री)

    60. परचै राम रमै जै कोइ

    परचै राम रमै जै कोइ।
    पारस परसें दुबिध न होइ।। टेक।।
    जो दीसै सो सकल बिनास, अण दीठै नांही बिसवास।
    बरन रहित कहै जे रांम, सो भगता केवल निहकांम।।१।।
    फल कारनि फलै बनराइं, उपजै फल तब पुहप बिलाइ।
    ग्यांनहि कारनि क्रम कराई, उपज्यौ ग्यानं तब क्रम नसाइ।।२।।
    बटक बीज जैसा आकार, पसर्यौ तीनि लोक बिस्तार।
    जहाँ का उपज्या तहाँ समाइ, सहज सुन्य में रह्यौ लुकाइ।।३।।
    जो मन ब्यदै सोई ब्यंद, अमावस मैं ज्यू दीसै चंद।
    जल मैं जैसैं तूबां तिरै, परचे प्यंड जीवै नहीं मरै।।४।।
    जो मन कौंण ज मन कूँ खाइ, बिन द्वारै त्रीलोक समाइ।
    मन की महिमां सब कोइ कहै, पंडित सो जे अनभै रहे।।५।।
    कहै रैदास यहु परम बैराग, रांम नांम किन जपऊ सभाग।
    घ्रित कारनि दधि मथै सयांन, जीवन मुकति सदा निब्रांन।।६।।
    (राग रामकली)

    61. पहलै पहरै रैंणि दै बणजारिया

    पहलै पहरै रैंणि दै बणजारिया, तै जनम लीया संसार वै।।
    सेवा चुका रांम की बणजारिया, तेरी बालक बुधि गँवार वे।।
    बालक बुधि गँवार न चेत्या, भुला माया जालु वे।।
    कहा होइ पीछैं पछतायैं, जल पहली न बँधीं पाल वे।।
    बीस बरस का भया अयांनां, थंभि न सक्या भार वे।।
    जन रैदास कहै बनिजारा, तैं जनम लया संसार वै।।१।।

    दूजै पहरै रैंणि दै बनजारिया, तूँ निरखत चल्या छांवं वे।।
    हरि न दामोदर ध्याइया बनजारिया, तैं लेइ न सक्या नांव वे।।
    नांउं न लीया औगुन कीया, इस जोबन दै तांण वे।।
    अपणीं पराई गिणीं न काई, मंदे कंम कमांण वे।।
    साहिब लेखा लेसी तूँ भरि देसी, भीड़ पड़ै तुझ तांव वे।।
    जन रैदास कहै बनजारा, तू निरखत चल्या छांव वे।।२।।

    तीजै पहरै रैणिं दै बनजारिया, तेरे ढिलढ़े पड़े परांण वे।।
    काया रवंनीं क्या करै बनजारिया, घट भीतरि बसै कुजांण वे।।
    इक बसै कुजांण काया गढ़ भीतरि, अहलां जनम गवाया वे।।
    अब की बेर न सुकृत कीता, बहुरि न न यहु गढ़ पाया वे।।
    कंपी देह काया गढ़ खीनां, फिरि लगा पछितांणवे।।
    जन रैदास कहै बनिजारा, तेरे ढिलड़े पड़े परांण वे।।३।।

    चौथे पहरै रैंणि दै बनजारिया, तेरी कंपण लगी देह वे।।
    साहिब लेखा मंगिया बनजारिया, तू छडि पुरांणां थेह वे।।
    छड़ि पुरांणं ज्यंद अयांणां, बालदि हाकि सबेरिया।।
    जम के आये बंधि चलाये, बारी पुगी तेरिया।।
    पंथि चलै अकेला होइ दुहेला, किस कूँ देइ सनेहं वे।।
    जन रैदास कहै बनिजारा, तेरी कंपण लगी देह वे।।४।।
    (राग जंगली गौड़ी)

    62. प्रभु जी तुम चंदन हम पानी

    प्रभु जी तुम चंदन हम पानी।
    जाकी अंग-अंग बास समानी॥
    प्रभु जी तुम घन बन हम मोरा।
    जैसे चितवत चंद चकोरा॥
    प्रभु जी तुम दीपक हम बाती।
    जाकी जोति बरै दिन राती॥
    प्रभु जी तुम मोती हम धागा।
    जैसे सोनहिं मिलत सोहागा।
    प्रभु जी तुम स्वामी हम दासा।
    ऐसी भक्ति करै ‘रैदासा॥

    63. प्रभु जी तुम संगति सरन तिहारी

    प्रभु जी तुम संगति सरन तिहारी।जग-जीवन राम मुरारी॥
    गली-गली को जल बहि आयो, सुरसरि जाय समायो।
    संगति के परताप महातम, नाम गंगोदक पायो॥
    स्वाति बूँद बरसे फनि ऊपर, सोई विष होइ जाई।
    ओही बूँद कै मोती निपजै, संगति की अधिकाई॥
    तुम चंदन हम रेंड बापुरे, निकट तुम्हारे आसा।
    संगति के परताप महातम, आवै बास सुबासा॥
    जाति भी ओछी, करम भी ओछा, ओछा कसब हमारा।
    नीचे से प्रभु ऊँच कियो है, कहि ‘रैदास’ चमारा॥

    64. प्रानी किआ मेरा किआ तेरा

    प्रानी किआ मेरा किआ तेरा।
    तैसे तरवर पंखि बसेरा।।टेक।।
    जल की भीति पवन का थंभा।
    रकत बुंद का गारा।
    हाड़ मास नाड़ी को पिंजरू।
    पंखी बसै बिचारा।।१।।
    राखहु कंध उसारहु नीवां।
    साढ़े तीनि हाथ तेरी सीवां।।२।।
    बंके बाल पाग सिर डेरी।
    इहु तनु होइगो भसम की ढेरी।।३।।
    ऊचे मंदर सुंदर नारी।
    राम नाम बिनु बाजी हारी।।४।।
    मेरी जाति कमीनी पांति कमीनी।
    ओछा जनमु हमारा।
    तुम सरनागति राजा रामचंद।
    कहि रविदास चमारा।।५।।
    (राग सोरठी)

    65. प्रीति सधारन आव

    प्रीति सधारन आव।
    तेज सरूपी सकल सिरोमनि, अकल निरंजन राव।। टेक।।
    पीव संगि प्रेम कबहूं नहीं पायौ, कारनि कौण बिसारी।
    चक को ध्यान दधिसुत कौं होत है, त्यूँ तुम्ह थैं मैं न्यारी।।१।।
    भोर भयौ मोहिं इकटग जोवत, तलपत रजनी जाइ।
    पिय बिन सेज क्यूँ सुख सोऊँ, बिरह बिथा तनि माइ।।२।।
    दुहागनि सुहागनि कीजै, अपनैं अंग लगाई।
    कहै रैदास प्रभु तुम्हरै बिछोहै, येक पल जुग भरि जाइ।।३।।
    (राग केदारा)

    66. पार गया चाहै सब कोई

    पार गया चाहै सब कोई।
    रहि उर वार पार नहीं होई।। टेक।।
    पार कहैं उर वार सूँ पारा,
    बिन पद परचै भ्रमहि गवारा।।१।।
    पार परंम पद मंझि मुरारी,
    तामैं आप रमैं बनवारी।।२।।
    पूरन ब्रह्म बसै सब ठाइंर्,
    कहै रैदास मिले सुख सांइंर्।।३।।
    (राग सोरठी)

    67. पांडे कैसी पूज रची रे

    पांडे कैसी पूज रची रे।
    सति बोलै सोई सतिबादी, झूठी बात बची रे।। टेक।।
    जो अबिनासी सबका करता, ब्यापि रह्यौ सब ठौर रे।
    पंच तत जिनि कीया पसारा, सो यौ ही किधौं और रे।।१।।
    तू ज कहत है यौ ही करता, या कौं मनिख करै रे।
    तारण सकति सहीजे यामैं, तौ आपण क्यूँ न तिरै रे।।२।।
    अहीं भरोसै सब जग बूझा, सुंणि पंडित की बात रे।।
    याकै दरसि कौंण गुण छूटा, सब जग आया जात रे।।३।।
    याकी सेव सूल नहीं भाजै, कटै न संसै पास रे।
    सौचि बिचारि देखिया मूरति, यौं छाड़ौ रैदास रे।।४।।
    (राग सोरठी)

    68. पांवन जस माधो तोरा

    पांवन जस माधो तोरा।
    तुम्ह दारन अध मोचन मोरा।। टेक।।
    कीरति तेरी पाप बिनासै, लोक बेद यूँ गावै।
    जो हम पाप करत नहीं भूधर, तौ तू कहा नसावै।।१।।
    जब लग अंग पंक नहीं परसै, तौ जल कहा पखालै।
    मन मलन बिषिया रंस लंपट, तौ हरि नांउ संभालै।।२।।
    जौ हम बिमल हिरदै चित अंतरि, दोस कवन परि धरि हौ।
    कहै रैदास प्रभु तुम्ह दयाल हौ, अबंध मुकति कब करि हौ।।३।।
    (राग टोड़ी)

    69. बपुरौ सति रैदास कहै

    बपुरौ सति रैदास कहै।
    ग्यान बिचारि नांइ चित राखै, हरि कै सरनि रहै रे।। टेक।।
    पाती तोड़ै पूज रचावै, तारण तिरण कहै रे।
    मूरति मांहि बसै परमेसुर, तौ पांणी मांहि तिरै रे।।१।।
    त्रिबिधि संसार कवन बिधि तिरिबौ, जे दिढ नांव न गहै रे।
    नाव छाड़ि जे डूंगै बैठे, तौ दूणां दूख सहै रे।।२।।
    गुरु कौं सबद अरु सुरति कुदाली, खोदत कोई लहै रे।
    रांम काहू कै बाटै न आयौ, सोनैं कूल बहै रे।।३।।
    झूठी माया जग डहकाया, तो तनि ताप दहै रे।
    कहै रैदास रांम जपि रसनां, माया काहू कै संगि न न रहै रे।।४।।
    (राग सोरठी)

    70. बरजि हो बरजि बीठल, माया जग खाया

    बरजि हो बरजि बीठल, माया जग खाया।
    महा प्रबल सब हीं बसि कीये, सुर नर मुनि भरमाया।। टेक।।
    बालक बिरधि तरुन अति सुंदरि, नांनां भेष बनावै।
    जोगी जती तपी संन्यासी, पंडित रहण न पावै।।१।।
    बाजीगर की बाजी कारनि, सबकौ कौतिग आवै।
    जो देखै सो भूलि रहै, वाका चेला मरम जु पावै।।२।।
    खंड ब्रह्मड लोक सब जीते, ये ही बिधि तेज जनावै।
    स्वंभू कौ चित चोरि लीयौ है, वा कै पीछैं लागा धावै।।३।।
    इन बातनि सुकचनि मरियत है, सबको कहै तुम्हारी।
    नैन अटकि किनि राखौ केसौ, मेटहु बिपति हमारी।।४।।
    कहै रैदास उदास भयौ मन, भाजि कहाँ अब जइये।
    इत उत तुम्ह गौब्यंद गुसांई, तुम्ह ही मांहि समइयै।।५।।
    (राग आसावरी)

    71. बंदे जानि साहिब गनीं

    बंदे जानि साहिब गनीं।
    संमझि बेद कतेब बोलै, ख्वाब मैं क्या मनीं।। टेक।।
    ज्वांनीं दुनी जमाल सूरति, देखिये थिर नांहि बे।
    दम छसै सहंस्र इकवीस हरि दिन, खजांनें थैं जांहि बे।।१।।
    मतीं मारे ग्रब गाफिल, बेमिहर बेपीर बे।
    दरी खानैं पड़ै चोभा, होत नहीं तकसीर बे।।२।।
    कुछ गाँठि खरची मिहर तोसा, खैर खूबी हाथि बे।
    धणीं का फुरमांन आया, तब कीया चालै साथ बे।।३।।
    तजि बद जबां बेनजरि कम दिल, करि खसकी कांणि बे।
    रैदास की अरदास सुणि, कछू हक हलाल पिछांणि बे।।४।।
    (राग आसा)

    72. भगति ऐसी सुनहु रे भाई

    भगति ऐसी सुनहु रे भाई।
    आई भगति तब गई बड़ाई।। टेक।।
    कहा भयौ नाचैं अरु गायैं, कहौं भयौ तप कीन्हैं।
    कहा भयौ जे चरन पखालै, जो परम तत नहीं चीन्हैं।।१।।
    कहा भयौ जू मूँड मुंड़ायौ, बहु तीरथ ब्रत कीन्हैं।
    स्वांमी दास भगत अरु सेवग, जो परंम तत नहीं चीन्हैं।।२।।
    कहै रैदास तेरी भगति दूरि है, भाग बड़े सो पावै।
    तजि अभिमांन मेटि आपा पर, पिपलक होइ चुणि खावै।।३।।

    73. भाई रे भ्रम भगति सुजांनि

    भाई रे भ्रम भगति सुजांनि।
    जौ लूँ नहीं साच सूँ पहिचानि।। टेक।।
    भ्रम नाचण भ्रम गाइण, भ्रम जप तप दांन।
    भ्रम सेवा भ्रम पूजा, भ्रम सूँ पहिचांनि।।१।।
    भ्रम षट क्रम सकल सहिता, भ्रम गृह बन जांनि।
    भ्रम करि करम कीये, भरम की यहु बांनि।।२।।
    भ्रम इंद्री निग्रह कीयां, भ्रंम गुफा में बास।
    भ्रम तौ लौं जांणियै, सुनि की करै आस।।३।।
    भ्रम सुध सरीर जौ लौं, भ्रम नांउ बिनांउं।
    भ्रम भणि रैदास तौ लौं, जो लौं चाहे ठांउं।।४।।
    (राग रामकली)

    74. भाई रे रांम कहाँ हैं मोहि बतावो

    भाई रे रांम कहाँ हैं मोहि बतावो।
    सति रांम ताकै निकटि न आवो।। टेक।।
    राम कहत जगत भुलाना, सो यहु रांम न होई।
    करंम अकरंम करुणांमै केसौ, करता नांउं सु कोई।।१।।
    जा रामहि सब जग जानैं, भ्रमि भूले रे भाई।
    आप आप थैं कोई न जांणै, कहै कौंन सू जाई।।२।।
    सति तन लोभ परसि जीय तन मन, गुण परस नहीं जाई।
    अखिल नांउं जाकौ ठौर न कतहूँ, क्यूं न कहै समझाई।।३।।
    भयौ रैदास उदास ताही थैं, करता को है भाई।
    केवल करता एक सही करि, सति रांम तिहि ठांई।।४।।
    (राग रामकली)

    75. भाई रे सहज बन्दी लोई

    भाई रे सहज बन्दी लोई, बिन सहज सिद्धि न होई।
    लौ लीन मन जो जानिये, तब कीट भृंगी होई।। टेक।
    आपा पर चीन्हे नहीं रे, और को उपदेस।
    कहाँ ते तुम आयो रे भाई, जाहुगे किस देस।।१।।
    कहिये तो कहिये काहि कहिये, कहाँ कौन पतियाइ।
    रैदास दास अजान है करि, रह्यो सहज समाइ।।२।।
    (राग आसा)

    76. भेष लियो पै भेद न जान्यो

    भेष लियो पै भेद न जान्यो।
    अमृत लेई विषै सो मान्यो।। टेक।।
    काम क्रोध में जनम गँवायो, साधु सँगति मिलि राम न गायो।।१।।
    तिलक दियो पै तपनि न जाई, माला पहिरे घनेरी लाई।।२।।
    कह रैदास परम जो पाऊँ, देव निरंजन सत कर ध्याऊँ।।३।।
    (राग भैरूँ-भैरव)

    77. मन मेरे सोई सरूप बिचार

    मन मेरे सोई सरूप बिचार।
    आदि अंत अनंत परंम पद, संसै सकल निवारं।। टेक।।
    जस हरि कहियत तस तौ नहीं, है अस जस कछू तैसा।
    जानत जानत जानि रह्यौ मन, ताकौ मरम कहौ निज कैसा।।१।।
    कहियत आन अनुभवत आन, रस मिल्या न बेगर होई।
    बाहरि भीतरि गुप्त प्रगट, घट घट प्रति और न कोई।।२।।
    आदि ही येक अंति सो एकै, मधि उपाधि सु कैसे।
    है सो येक पै भ्रम तैं दूजा, कनक अल्यंकृत जैसैं।।३।।
    कहै रैदास प्रकास परम पद, का जप तप ब्रत पूजा।
    एक अनेक येक हरि, करौं कवण बिधि दूजा।।४।।
    (राग सोरठी)

    78. मरम कैसैं पाइबौ रे

    मरम कैसैं पाइबौ रे।
    पंडित कोई न कहै समझाइ, जाथैं मरौ आवागवन बिलाइ।। टेक।।
    बहु बिधि धरम निरूपिये, करता दीसै सब लोई।
    जाहि धरम भ्रम छूटिये, ताहि न चीन्हैं कोई।।१।।
    अक्रम क्रम बिचारिये, सुण संक्या बेद पुरांन।
    बाकै हृदै भै भ्रम, हरि बिन कौंन हरै अभिमांन।।२।।
    सतजुग सत त्रेता तप, द्वापरि पूजा आचार।
    तीन्यूं जुग तीन्यूं दिढी, कलि केवल नांव अधार।।३।।
    बाहरि अंग पखालिये, घट भीतरि बिबधि बिकार।
    सुचि कवन परिहोइये, कुंजर गति ब्यौहार।।४।।
    रवि प्रकास रजनी जथा, गत दीसै संसार पारस मनि तांबौ छिवै।
    कनक होत नहीं बार, धन जोबन प्रभु नां मिलै।।५।।
    ना मिलै कुल करनी आचार।
    एकै अनेक बिगाइया, ताकौं जाणैं सब संसार।।६।।
    अनेक जतन करि टारिये, टारी टरै न भ्रम पास।
    प्रेम भगति नहीं उपजै, ताथैं रैदास उदास।।७।।
    (राग गौड़ी)

    79. माटी को पुतरा कैसे नचतु है

    माटी को पुतरा कैसे नचतु है।
    देखै देखै सुनै बोलै दउरिओ फिरतु है।। टेक।।
    जब कुछ पावै तब गरबु करतु है।
    माइआ गई तब रोवनु लगतु है।।१।।
    मन बच क्रम रस कसहि लुभाना।
    बिनसि गइआ जाइ कहूँ समाना।।२।।
    कहि रविदास बाजी जगु भाई।
    बाजीगर सउ मोहि प्रीति बनि आई।।३।।
    (राग आसा)

    80. माधवे का कहिये भ्रम ऐसा

    माधवे का कहिये भ्रम ऐसा।
    तुम कहियत होह न जैसा।। टेक।।
    न्रिपति एक सेज सुख सूता, सुपिनैं भया भिखारी।
    अछित राज बहुत दुख पायौ, सा गति भई हमारी।।१।।
    जब हम हुते तबैं तुम्ह नांहीं, अब तुम्ह हौ मैं नांहीं।
    सलिता गवन कीयौ लहरि महोदधि, जल केवल जल मांही।।२।।
    रजु भुजंग रजनी प्रकासा, अस कछु मरम जनावा।
    संमझि परी मोहि कनक अल्यंक्रत ज्यूं, अब कछू कहत न आवा।।३।।
    करता एक भाव जगि भुगता, सब घट सब बिधि सोई।
    कहै रैदास भगति एक उपजी, सहजैं होइ स होई।।४।।
    (राग सोरठी)

    81. माधवे तुम न तोरहु तउ हम नहीं तोरहि

    माधवे तुम न तोरहु तउ हम नहीं तोरहि।
    तुम सिउ तोरि कवन सिउ जोरहि।।टेक।।
    जउ तुम गिरिवर तउ हम मोरा।
    जउ तुम चंद तउ हम भए है चकोरा।।१।।
    जउ तुम दीवरा तउ हम बाती।
    जउ तुम तीरथ तउ हम जाती।।२।।
    साची प्रीति हम तुम सिउ जोरी।
    तुम सिउ जोरि अवर संगि तोरी।।३।।
    जह जह जाउ तहा तेरी सेवा।
    तुम सो ठाकुरु अउरु न देवा।।४।।
    तुमरे भजन कटहि जम फाँसा।
    भगति हेत गावै रविदासा।।५।।
    (राग सोरठी)

    82. माधौ अविद्या हित कीन्ह

    माधौ अविद्या हित कीन्ह।
    ताथैं मैं तोर नांव न लीन्ह।। टेक।।
    मिग्र मीन भ्रिग पतंग कुंजर, एक दोस बिनास।
    पंच ब्याधि असाधि इहि तन, कौंन ताकी आस।।१।।
    जल थल जीव जंत जहाँ-जहाँ लौं करम पासा जाइ।
    मोह पासि अबध बाधौ, करियै कौंण उपाइ।।२।।
    त्रिजुग जोनि अचेत संम भूमि, पाप पुन्य न सोच।
    मानिषा अवतार दुरलभ, तिहू संकुट पोच।।३।।
    रैदास दास उदास बन भव, जप न तप गुरु ग्यांन।
    भगत जन भौ हरन कहियत, ऐसै परंम निधांन।।४।।
    (राग आसा)

    83. माधौ भ्रम कैसैं न बिलाइ

    माधौ भ्रम कैसैं न बिलाइ।
    ताथैं द्वती भाव दरसाइ।। टेक।।
    कनक कुंडल सूत्र पट जुदा, रजु भुजंग भ्रम जैसा।
    जल तरंग पांहन प्रितमां ज्यूँ, ब्रह्म जीव द्वती ऐसा।।१।।
    बिमल ऐक रस, उपजै न बिनसै, उदै अस्त दोई नांहीं।
    बिगता बिगति गता गति नांहीं, बसत बसै सब मांहीं।।२।।
    निहचल निराकार अजीत अनूपम, निरभै गति गोब्यंदा।
    अगम अगोचर अखिर अतरक, न्रिगुण नित आनंदा।।३।।
    सदा अतीत ग्यांन ध्यानं बिरिजित, नीरबिकांर अबिनासी।
    कहै रैदास सहज सूंनि सति, जीवन मुकति निधि कासी।।४।।
    (राग सोरठी)

    84. माधौ संगति सरनि तुम्हारी

    माधौ संगति सरनि तुम्हारी।
    जगजीवन कृश्न मुरारी।। टेक।।
    तुम्ह मखतूल गुलाल चत्रभुज, मैं बपुरौ जस कीरा।
    पीवत डाल फूल रस अंमृत, सहजि भई मति हीरा।।१।।
    तुम्ह चंदन मैं अरंड बापुरौ, निकटि तुम्हारी बासा।
    नीच बिरख थैं ऊँच भये, तेरी बास सुबास निवासा।।२।।
    जाति भी वोंछी जनम भी वोछा, वोछा करम हमारा।
    हम सरनागति रांम राइ की, कहै रैदास बिचारा।।३।।
    (राग आसा)

    85. माया मोहिला कान्ह

    माया मोहिला कान्ह।
    मैं जन सेवग तोरा।। टेक।।
    संसार परपंच मैं ब्याकुल परंमांनंदा।
    त्राहि त्राहि अनाथ नाथ गोब्यंदा।।१।।
    रैदास बिनवैं कर जोरी।
    अबिगत नाथ कवन गति मोरी।।२।।
    (राग कानड़ा)

    86. मिलत पिआरों प्रान नाथु कवन भगति ते

    मिलत पिआरों प्रान नाथु कवन भगति ते।
    साध संगति पाइ परम गते।। टेक।।
    मैले कपरे कहा लउ धोवउ, आवैगी नीद कहा लगु सोवउ।।१।।
    जोई जोई जोरिओ सोई-सोई फाटिओ।
    झूठै बनजि उठि ही गई हाटिओ।।२।।
    कहु रविदास भइयो जब लेखो।
    जोई जोई कीनो सोई-सोई देखिओ।।३।।
    (राग मल्हार)

    87. मेरी प्रीति गोपाल सूँ जिनि घटै हो

    मेरी प्रीति गोपाल सूँ जिनि घटै हो।
    मैं मोलि महँगी लई तन सटै हो।। टेक।।
    हिरदै सुमिरंन करौं नैन आलोकनां, श्रवनां हरि कथा पूरि राखूँ।
    मन मधुकर करौ, चरणां चित धरौं, रांम रसांइन रसना चाखूँ।।१।।
    साध संगति बिनां भाव नहीं उपजै, भाव बिन भगति क्यूँ होइ तेरी।
    बंदत रैदास रघुनाथ सुणि बीनती, गुर प्रसादि क्रिया करौ मेरी।।२।।
    (राग धनाश्री)

    88. मैं का जांनूं देव मैं का जांनू

    मैं का जांनूं देव मैं का जांनू।
    मन माया के हाथि बिकांनूं।। टेक।।
    चंचल मनवां चहु दिसि धावै; जिभ्या इंद्री हाथि न आवै।
    तुम तौ आहि जगत गुर स्वांमीं, हम कहियत कलिजुग के कांमी।।१।।
    लोक बेद मेरे सुकृत बढ़ाई, लोक लीक मोपैं तजी न जाई।
    इन मिलि मेरौ मन जु बिगार्यौ, दिन दिन हरि जी सूँ अंतर पार्यौ।।२।।
    सनक सनंदन महा मुनि ग्यांनी, सुख नारद ब्यास इहै बखांनीं।
    गावत निगम उमांपति स्वांमीं, सेस सहंस मुख कीरति गांमी।।३।।
    जहाँ जहाँ जांऊँ तहाँ दुख की रासी, जौ न पतियाइ साध है साखी।
    जमदूतनि बहु बिधि करि मार्यौ, तऊ निलज अजहूँ नहीं हार्यौ।।४।।
    हरि पद बिमुख आस नहीं छूटै, ताथैं त्रिसनां दिन दिन लूटै।
    बहु बिधि करम लीयैं भटकावै, तुमहि दोस हरि कौं न लगावै।।५।।
    केवल रांम नांम नहीं लीया। संतुति विषै स्वादि चित दीया।
    कहै रैदास कहाँ लग कहिये, बिन जग नाथ सदा सुख सहियै।।६।।
    (राग धनाश्री)

    89. मो सउ कोऊ न कहै समझाइ

    मो सउ कोऊ न कहै समझाइ।
    जाते आवागवनु बिलाइ।। टेक।।
    सतजुगि सतु तेता जगी दुआपरि पूजाचार।
    तीनौ जुग तीनौ दिड़े कलि केवल नाम अधार।।१।।
    पार कैसे पाइबो रे।।
    बहु बिधि धरम निरूपीऐ करता दीसै सभ लोइ।
    कवन करम ते छूटी ऐ जिह साधे सभ सिधि होई।।२।।
    करम अकरम बीचारी ए संका सुनि बेद पुरान।
    संसा सद हिरदै बसै कउनु हिरै अभिमानु।।३।।
    बाहरु उदकि पखारीऐ घट भीतरि बिबिध बिकार।
    सुध कवन पर होइबो सुव कुंजर बिधि बिउहार।।४।।
    रवि प्रगास रजनी जथा गति जानत सभ संसार।
    पारस मानो ताबो छुए कनक होत नहीं बार।।५।।
    परम परस गुरु भेटीऐ पूरब लिखत लिलाट।
    उनमन मन मन ही मिले छुटकत बजर कपाट।।६।।
    भगत जुगति मति सति करी भ्रम बंधन काटि बिकार।
    सोई बसि रसि मन मिले गुन निरगुन एक बिचार।।७।।
    अनिक जतन निग्रह कीए टारी न टरै भ्रम फास।
    प्रेम भगति नहीं उपजै ता ते रविदास उदास।।८।।
    (राग गौड़ी बैरागणि)

    90. यह अंदेस सोच जिय मेरे

    यह अंदेस सोच जिय मेरे ।
    निसिबासर गुन गाऊ~म तेरे ॥टेक॥
    तुम चिंतित मेरी चिंतहु जाई ।
    तुम चिंतामनि हौ एक नाई ॥१॥
    भगत-हेत का का नहिं कीन्हा ।
    हमरी बेर भए बलहीना ॥२॥
    कह रैदास दास अपराधी ।
    जेहि तुम द्रवौ सो भगति न साधी ॥३॥

    91. या रमां एक तूं दांनां, तेरा आदू बैश्नौं

    या रमां एक तूं दांनां, तेरा आदू बैश्नौं।
    तू सुलितांन सुलितांनां बंदा सकिसंता रजांनां।। टेक।।
    मैं बेदियांनत बदनजर दे, गोस गैर गुफतार।
    बेअदब बदबखत बीरां, बेअकलि बदकार।।१।।
    मैं गुनहगार गुमराह गाफिल, कंम दिला करतार।
    तूँ दयाल ददि हद दांवन, मैं हिरसिया हुसियार।।२।।
    यहु तन हस्त खस्त खराब, खातिर अंदेसा बिसियार।
    रैदास दास असांन, साहिब देहु अब दीदार।।३।।
    (राग जंगली गौड़ी)

    92. रथ कौ चतुर चलावन हारौ

    रथ कौ चतुर चलावन हारौ।
    खिण हाकै खिण ऊभौ राखै, नहीं आन कौ सारौ।। टेक।।
    जब रथ रहै सारहीं थाके, तब को रथहि चलावै।
    नाद बिनोद सबै ही थाकै, मन मंगल नहीं गावैं।।१।।
    पाँच तत कौ यहु रथ साज्यौ, अरधैं उरध निवासा।
    चरन कवल ल्यौ लाइ रह्यौ है, गुण गावै रैदासा।।२।।
    (राग सोरठी)

    93. राम गुसईआ जीअ के जीवना

    राम गुसईआ जीअ के जीवना।
    मोहि न बिसारहु मै जनु तेरा।। टेक।।
    मेरी संगति पोच सोच दिनु राती। मेरा करमु कटिलता जनमु कुभांति।।१।।
    मेरी हरहु बिपति जन करहु सुभाई। चरण न छाडउ सरीर कल जाई।।२।।
    कहु रविदास परउ तेरी साभा। बेगि मिलहु जन करि न बिलंबा।।३।।
    (राग गौड़ी)

    94. राम जन हूँ उंन भगत कहाऊँ

    राम जन हूँ उंन भगत कहाऊँ, सेवा करौं न दासा।
    गुनी जोग जग्य कछू न जांनूं, ताथैं रहूँ उदासा।। टेक।।
    भगत हूँ वाँ तौ चढ़ै बड़ाई। जोग करौं जग मांनैं।
    गुणी हूँ वांथैं गुणीं जन कहैं, गुणी आप कूँ जांनैं।।१।।
    ना मैं ममिता मोह न महियाँ, ए सब जांहि बिलाई।
    दोजग भिस्त दोऊ समि करि जांनूँ, दहु वां थैं तरक है भाई।।२।।
    मै तैं ममिता देखि सकल जग, मैं तैं मूल गँवाई।
    जब मन ममिता एक एक मन, तब हीं एक है भाई।।३।।
    कृश्न करीम रांम हरि राधौ, जब लग एक एक नहीं पेख्या।
    बेद कतेब कुरांन पुरांननि, सहजि एक नहीं देख्या।।४।।
    जोई जोई करि पूजिये, सोई सोई काची, सहजि भाव सति होई।
    कहै रैदास मैं ताही कूँ पूजौं, जाकै गाँव न ठाँव न नांम नहीं कोई।।५।।
    (राग रामकली)

    95. राम बिन संसै गाँठि न छूटै

    राम बिन संसै गाँठि न छूटै।
    कांम क्रोध मोह मद माया, इन पंचन मिलि लूटै।। टेक।।
    हम बड़ कवि कुलीन हम पंडित, हम जोगी संन्यासी।
    ग्यांनी गुनीं सूर हम दाता, यहु मति कदे न नासी।।१।।
    पढ़ें गुनें कछू संमझि न परई, जौ लौ अनभै भाव न दरसै।
    लोहा हरन होइ धँू कैसें, जो पारस नहीं परसै।।२।।
    कहै रैदास और असमझसि, भूलि परै भ्रम भोरे।
    एक अधार नांम नरहरि कौ, जीवनि प्रांन धन मोरै।।३।।

    96. राम मैं पूजा कहा चढ़ाऊँ

    राम मैं पूजा कहा चढ़ाऊँ ।
    फल अरु फूल अनूप न पाऊँ ॥टेक॥
    थन तर दूध जो बछरू जुठारी ।
    पुहुप भँवर जल मीन बिगारी ॥१॥
    मलयागिर बेधियो भुअंगा ।
    विष अमृत दोउ एक संगा ॥२॥
    मन ही पूजा मन ही धूप ।
    मन ही सेऊँ सहज सरूप ॥३॥
    पूजा अरचा न जानूँ तेरी ।
    कह रैदास कवन गति मोरी ॥४॥

    97. रामा हो जगजीवन मोरा

    रामा हो जगजीवन मोरा।
    तूँ न बिसारि राम मैं जन तोरा॥टेक॥
    संकट सोच पोच दिनराती।
    करम कठिन मोरि जाति कुजाती॥१॥
    हरहु बिपति भावै करहु सो भाव।
    चरण न छाड़ौं जाव सो जाव॥२॥
    कह रैदास कछु देहु अलंबन।
    बेगि मिलौ जनि करो बिलंबन॥३॥

    98. रांम राइ का कहिये यहु ऐसी

    रांम राइ का कहिये यहु ऐसी।
    जन की जांनत हौ जैसी तैसी।। टेक।।
    मीन पकरि काट्यौ अरु फाट्यौ, बांटि कीयौ बहु बांनीं।
    खंड खंड करि भोजन कीन्हौं, तऊ न बिसार्यौ पांनी।।१।।
    तै हम बाँधे मोह पासि मैं, हम तूं प्रेम जेवरिया बांध्यौ।
    अपने छूटन के जतन करत हौ, हम छूटे तूँ आराध्यौ।।२।।
    कहै रैदास भगति इक बाढ़ी, अब काकौ डर डरिये।
    जा डर कौं हम तुम्ह कौं सेवैं, सु दुख अजहूँ सहिये।।३।।
    (राग सोरठी)

    99. रांमहि पूजा कहाँ चढ़ाऊँ

    रांमहि पूजा कहाँ चढ़ाऊँ।
    फल अरु फूल अनूप न पांऊँ।। टेक।।
    थनहर दूध जु बछ जुठार्यौ, पहुप भवर जल मीन बिटार्यौ।
    मलियागिर बेधियौ भवंगा, विष अंम्रित दोऊँ एकै संगा।।१।।
    मन हीं पूजा मन हीं धूप, मन ही सेऊँ सहज सरूप।।२।।
    पूजा अरचा न जांनूं रांम तेरी, कहै रैदास कवन गति मेरी।।३।।
    (राग आसा)

    100. रे चित चेति चेति अचेत काहे

    रे चित चेति चेति अचेत काहे, बालमीकौं देख रे।
    जाति थैं कोई पदि न पहुच्या, राम भगति बिसेष रे।। टेक।।
    षट क्रम सहित जु विप्र होते, हरि भगति चित द्रिढ नांहि रे।
    हरि कथा सूँ हेत नांहीं, सुपच तुलै तांहि रे।।१।।
    स्वान सत्रु अजाति सब थैं, अंतरि लावै हेत रे।
    लोग वाकी कहा जानैं, तीनि लोक पवित रे।।२।।
    अजामिल गज गनिका तारी, काटी कुंजर की पासि रे।
    ऐसे द्रुमती मुकती कीये, क्यूँ न तिरै रैदास रे।।३।।
    (राग सोरठी)

    101. रे मन माछला संसार समंदे

    रे मन माछला संसार समंदे, तू चित्र बिचित्र बिचारि रे।
    जिहि गालै गिलियाँ ही मरियें, सो संग दूरि निवारि रे।। टेक।।
    जम छैड़ि गणि डोरि छै कंकन, प्र त्रिया गालौ जांणि रे।
    होइ रस लुबधि रमैं यू मूरिख, मन पछितावै न्यांणि रे।।१।।
    पाप गिल्यौ छै धरम निबौली, तू देखि देखि फल चाखि रे।
    पर त्रिया संग भलौ जे होवै, तौ राणां रांवण देखि रे।।२।।
    कहै रैदास रतन फल कारणि, गोब्यंद का गुण गाइ रे।
    काचौ कुंभ भर्यौ जल जैसैं, दिन दिन घटतौ जाइ रे।।३।।
    (राग सोरठी)

    102. सगल भव के नाइका

    सगल भव के नाइका।
    इकु छिनु दरसु दिखाइ जी।। टेक।।
    कूप भरिओ जैसे दादिरा, कछु देसु बिदेसु न बूझ।
    ऐसे मेरा मन बिखिआ बिमोहिआ, कछु आरा पारु न सूझ।।१।।
    मलिन भई मति माधव, तेरी गति लखी न जाइ।
    करहु क्रिपा भ्रमु चूकई, मैं सुमति देहु समझाइ।।२।।
    जोगीसर पावहि नहीं, तुअ गुण कथन अपार।
    प्रेम भगति कै कारणै, कहु रविदास चमार।।३।।
    (राग गौड़ी पूर्वी)

    103. सब कछु करत न कहु कछु कैसैं

    सब कछु करत न कहु कछु कैसैं।
    गुन बिधि बहुत रहत ससि जैसें।। टेक।।
    द्रपन गगन अनींल अलेप जस, गंध जलध प्रतिब्यंबं देखि तस।।१।।
    सब आरंभ अकांम अनेहा, विधि नषेध कीयौ अनकेहा।।२।।
    इहि पद कहत सुनत नहीं आवै, कहै रैदास सुकृत को पावै।।३।।
    (राग जैतश्री)

    104. संत ची संगति संत कथा रसु

    संत ची संगति संत कथा रसु।
    संत प्रेम माझै दीजै देवा देव।। टेक।।
    संत तुझी तनु संगति प्रान।
    सतिगुर गिआन जानै संत देवा देव।।१।।
    संत आचरण संत चो मारगु।
    संत च ओल्हग ओल्हगणी।।२।।
    अउर इक मागउ भगति चिंतामणि।
    जणी लखावहु असंत पापी सणि।।३।।
    रविदास भणै जो जाणै सो जाणु।
    संत अनंतहि अंतरु नाही।।४।।
    (राग आसा)

    105. संतौ अनिन भगति यहु नांहीं

    संतौ अनिन भगति यहु नांहीं।
    जब लग सत रज तम पांचूँ गुण ब्यापत हैं या मांही।। टेक।।
    सोइ आंन अंतर करै हरि सूँ, अपमारग कूँ आंनैं।
    कांम क्रोध मद लोभ मोह की, पल पल पूजा ठांनैं।।१।।
    सति सनेह इष्ट अंगि लावै, अस्थलि अस्थलि खेलै।
    जो कुछ मिलै आंनि अखित ज्यूं, सुत दारा सिरि मेलै।।२।।
    हरिजन हरि बिन और न जांनैं, तजै आंन तन त्यागी।
    कहै रैदास सोई जन न्रिमल, निसदिन जो अनुरागी।।३।।

    106. साध का निंदकु कैसे तरै

    साध का निंदकु कैसे तरै।
    सर पर जानहु नरक ही परै।। टेक।।
    जो ओहु अठिसठि तीरथ न्हावै। जे ओहु दुआदस सिला पूजावै।
    जे ओहु कूप तटा देवावै। करै निंद सभ बिरथा जावै।।१।।
    जे ओहु ग्रहन करै कुलखेति। अरपै नारि सीगार समेति।
    सगली सिंम्रिति स्रवनी सुनै। करै निंद कवनै नही गुनै।।२।।
    जो ओहु अनिक प्रसाद करावै। भूमि दान सोभा मंडपि पावै।
    अपना बिगारि बिरांना साढै। करै निंद बहु जोनी हाढै।।३।।
    निंदा कहा करहु संसारा। निंदक का प्ररगटि पाहारा।
    निंदकु सोधि साधि बीचारिआ। कहु रविदास पापी नरकि सिधारिआ।।४।।
    (राग गौड़ी)

    107. सु कछु बिचार्यौ ताथैं

    सु कछु बिचार्यौ ताथैं मेरौ मन थिर के रह्यौ।
    हरि रंग लागौ ताथैं बरन पलट भयौ।। टेक।।
    जिनि यहु पंथी पंथ चलावा, अगम गवन मैं गमि दिखलावा।।१।।
    अबरन बरन कथैं जिनि कोई, घटि घटि ब्यापि रह्यौ हरि सोई।।२।।
    जिहि पद सुर नर प्रेम पियासा, सो पद्म रमि रह्यौ जन रैदासा।।३।।
    (राग आसा)

    108. सेई मन संमझि समरंथ सरनांगता

    सेई मन संमझि समरंथ सरनांगता।
    जाकी आदि अंति मधि कोई न पावै।।
    कोटि कारिज सरै, देह गुंन सब जरैं, नैंक जौ नाम पतिव्रत आवै।। टेक।।
    आकार की वोट आकार नहीं उबरै, स्यो बिरंच अरु बिसन तांई।
    जास का सेवग तास कौं पाई है, ईस कौं छांड़ि आगै न जाही।।१।।
    गुणंमई मूंरति सोई सब भेख मिलि, निग्रुण निज ठौर विश्रांम नांही।
    अनेक जूग बंदिगी बिबिध प्रकार करि, अंति गुंण सेई गुंण मैं समांही।।२।।
    पाँच तत तीनि गुण जूगति करि करि सांईया, आस बिन होत नहीं करम काया।
    पाप पूंनि बीज अंकूर जांमै मरै, उपजि बिनसै तिती श्रब माया।।३।।
    क्रितम करता कहैं, परम पद क्यूँ लहैं, भूलि भ्रम मैं पर्यौ लोक सारा।
    कहै रैदास जे रांम रमिता भजै, कोई ऐक जन गये उतरि पारा।।४।।
    (राग रामगरी)

    109. सो कत जानै पीर पराई

    सो कत जानै पीर पराई।
    जाकै अंतरि दरदु न पाई।। टेक।।
    सह की सार सुहागनी जानै। तजि अभिमानु सुख रलीआ मानै।
    तनु मनु देइ न अंतरु राखै। अवरा देखि न सुनै अभाखै।।१।।
    दुखी दुहागनि दुइ पख हीनी। जिनि नाह निरंतहि भगति न कीनी।
    पुरसलात का पंथु दुहेला। संग न साथी गवनु इकेला।।२।।
    दुखीआ दरदवंदु दरि आइआ। बहुतु पिआस जबाबु न पाइआ।
    कहि रविदास सरनि प्रभु तेरी। जिय जानहु तिउ करु गति मेरी।।३।।
    (राग सूही)

    110. हउ बलि बलि जाउ रमईया कारने

    हउ बलि बलि जाउ रमईया कारने।
    कारन कवन अबोल।। टेक।।
    हम सरि दीनु दइआलु न तुमसरि। अब पतीआरु किआ कीजै।
    बचनी तोर मोर मनु मानैं। जन कउ पूरनु दीजै।।१।।
    बहुत जनम बिछुरे थे माधउ, इहु जनमु तुम्हरे लेखे।
    कहि रविदास अस लगि जीवउ। चिर भइओ दरसनु देखे।।२।।
    (राग धनाश्री)

    111. हरि को टाँडौ लादे जाइ रे

    हरि को टाँडौ लादे जाइ रे।
    मैं बनिजारौ रांम कौ।।
    रांम नांम धंन पायौ, ताथैं सहजि करौं ब्यौपार रे।। टेक।।
    औघट घाट घनो घनां रे, न्रिगुण बैल हमार।
    रांम नांम हम लादियौ, ताथैं विष लाद्यौ संसार रे।।१।।
    अनतहि धरती धन धर्यौ रे, अनतहि ढूँढ़न जाइ।
    अनत कौ धर्यौ न पाइयैं, ताथैं चाल्यौ मूल गँवाइ रे।।२।।
    रैनि गँवाई सोइ करि, द्यौस गँवायो खाइ।
    हीरा यहु तन पाइ करि, कौड़ी बदलै जाइ रे।।३।।
    साध संगति पूँजी भई रे, बस्त लई न्रिमोल।
    सहजि बलदवा लादि करि, चहुँ दिसि टाँडो मेल रे।।४।।
    जैसा रंग कसूंभं का रे, तैसा यहु संसार।
    रमइया रंग मजीठ का, ताथैं भणैं रैदास बिचार रे।।५।।
    (राग केदारौ)

    112. हरि जपत तेऊ जना पदम कवलास पति

    हरि जपत तेऊ जना पदम कवलास पति तास समतुलि नहीं आन कोऊ।
    एक ही एक अनेक होइ बिसथरिओ आन रे आन भरपूरि सोऊ।। टेक।।
    जा कै भागवतु लेखी ऐ अवरु नहीं पेखीऐ तास की जाति आछोप छीपा।
    बिआस महि लेखी ऐ सनक महि पेखी ऐ नाम की नामना सपत दीपा।।१।।
    जा कै ईदि बकरीदि कुल गऊ रे वधु करहि मानी अहि सेख सहीद पीरा।
    जा कै बाप वैसी करी पूत ऐसी सरी तिहू रे लोक परसिध कबीरा।।२।।
    जा के कुटंब के ढेढ सभ ढोर ढोवंत फिरहि अजहु बंनारसी आस पासा।
    आचार सहित विप्र करहि डंडउति तिन तनै रविदास दासानुदासा।।३।।
    (राग मल्हार)

    113. हरि हरि हरि न जपसि रसना

    हरि हरि हरि न जपसि रसना।
    अवर सभ छाड़ि बचन रचना।। टेक।।
    सुध सागर सुरितरु चिंतामनि कामधैन बसि जाके रे।
    चारि पदारथ असट महा सिधि नव निधि करतल ताकै।।१।।
    नाना खिआन पुरान बेद बिधि चउतीस अछर माही।
    बिआस बीचारि कहिओ परमारथु राम नाम सरि नाही।।२।।
    सहज समाधि उपाधि रहत होइ उड़े भागि लिव लागी।
    कहि रविदास उदास दास मतित जनम मरन भै भागी।।३।।
    (राग मारू)

    114. हरि हरि हरि न जपहि रसना

    हरि हरि हरि न जपहि रसना।
    अवर सम तिआगि बचन रचना।। टेक।।
    सुख सागरु सुरतर चिंतामनि कामधेनु बसि जाके।
    चारि पदारथ असट दसा सिधि नवनिधि करतल ताके।।१।।
    नाना खिआन पुरान बेद बिधि चउतीस अखर माँही।
    बिआस बिचारि कहिओ परमारथु राम नाम सरि नाही।।२।।
    सहज समाधि उपाधि रहत फुनि बड़ै भागि लिव लागी।
    कहि रविदास प्रगासु रिदै धरि जनम मरन भै भागी।।३।।
    (राग सोरठी)

    115. हरि हरि हरि हरि हरि हरि हरे

    हरि हरि हरि हरि हरि हरि हरे।
    हरि सिमरत जन गए निसतरि तरे।। टेक।।
    हरि के नाम कबीर उजागर। जनम जनम के काटे कागर।।१।।
    निमत नामदेउ दूधु पीआइया। तउ जग जनम संकट नहीं आइआ।।२।।
    जनम रविदास राम रंगि राता। इउ गुर परसादि नरक नहीं जाता।।३।।
    (राग आसा)

    116. है सब आतम सोयं प्रकास साँचो

    है सब आतम सोयं प्रकास साँचो।
    निरंतरि निराहार कलपित ये पाँचौं।। टेक।।
    आदि मध्य औसान, येक रस तारतंब नहीं भाई।
    थावर जंगम कीट पतंगा, पूरि रहे हरिराई।।१।।
    सरवेसुर श्रबपति सब गति, करता हरता सोई।
    सिव न असिव न साध अरु सेवक, उभै नहीं होई।।२।।
    ध्रम अध्रम मोच्छ नहीं बंधन, जुरा मरण भव नासा।
    दृष्टि अदृष्टि गेय अरु -ज्ञाता, येकमेक रैदासा।।३।।
    (राग रामकली)

    117. त्राहि त्राहि त्रिभवन पति पावन

    त्राहि त्राहि त्रिभवन पति पावन।
    अतिसै सूल सकल बलि जांवन।।टेक।।
    कांम क्रोध लंपट मन मोर,
    कैसैं भजन करौं रांम तोर।।१।।
    विषम विष्याधि बिहंडनकारी,
    असरन सरन सरन भौ हारी।।२।।
    देव देव दरबार दुवारै,
    रांम रांम रैदास पुकारै।।३।।
    (राग धनाश्री)