तार्किक भाववाद - तार्किक भाववाद अपने मूल रूप में विश्लेषणात्मक दर्शन है। भाषा का तार्किक विश्लेषण इत्यादि सिद्धांतों से लगता है कि तार्किक भाववाद वस्तुवादी सिद्धांत है। किंतु ज्ञानमीमांसा की दृष्टि से यह वर्कले के आत्मगत प्रत्ययवाद के निकट पड़ता है। यद्यपि यह वैज्ञानिक संकेत, प्रतीक, वाक्यों इत्यादि की शब्दार्थ विज्ञान के अनुसार व्याख्या करता है, तथापि इसे बाह्य जगत् में विश्वास नहीं है। तार्किक भाववाद के अनुसार हमें बाह्य जगत् का ज्ञान नहीं हो सकता। हम सिर्फ अपने संवेदों को जान सकते हैं, बस। गुलाब स्वयं में क्या है, नहीं कहा जा सकता। लेकिन वह लाल है, सुगंधित और कोमल है, यही कहा जा सकता है। जिस गुलाब को हम जानते हैं, वह हमारे संवेदों से निर्मित होता है। यहीं इस दर्शन की सीमा समाप्त होती है।
तुलनात्मक साहित्य - तुलनात्मक साहित्य किसी भी देश या राष्ट्र के विभिन्न विचारधारा एवं उसके चिंतन के अध्ययन करने का महत्वपूर्ण अंग है.तुलनात्मक साहित्य अंग्रेजी के कम्पेरेटिव लिटरेचर (Comparative Literature)का हिंदी अनुवाद है|तुलनात्मक शब्द की बात करें तो अंग्रेजी में सबसे पहले इसका प्रयोग मैथ्यू अर्नाल्ड ने ऐम्पियर के शब्दों इस्तवार कोपरातीव का अनुवाद करते हुए सन 1848 ई. में किया था.तुलनात्मक शब्द में तुलना करने की प्रक्रिया जुडी हुयी है और तुलना में वस्तुओं को कुछ इस प्रकार प्रस्तुत किया जाता है जिससे उनमें साम्य या वैषम्य का पता लग सके|इसी दृष्टि से अंग्रेजी में तुलनात्मक शब्द का प्रयोग लगभग सन 1598 ई.से हो रहा है क्योंकि इसी समय फ्रांसिस मेयरस ने इसी अर्थ को ध्यान में रखकर एक पुस्तक लिखी थी ,'ए कंपरेटिव डिस्कोर्स ऑफ आवर इंग्लिश पोएट्स विद द ग्रीक लैटिन एंड इटालियन पोएट्स ' परंतु तुलनात्मक तथा साहित्य इन् दो शब्दों का युग्म प्रयोग पहले-पहल मैथ्यू अर्नाल्ड ने किया|सन 1886 ई में अपनी एक पुस्तक का शीर्षक कम्पेरेटिव लिटरेचररखकर सर्वप्रथम एच.एम.पासनेट ने इस विद्याशाखा को स्थायित्व प्रदान करने का प्रयत्न किया था.बाद में सन 1901 ई.में ‘द साइंस ऑफ कम्पेरेटिव लिटरेचर ‘ के नाम से उनका एक लेख भी प्रकाशित हुआ.वस्तुतः 20 वीं सदी की शुरुआत से कम्पेरेटिव लिटरेचर पद का प्रयोग शुरू हो गया था.