उत्तर-आधुनिकतावाद - आधुनिकतावाद और मार्क्सवाद के विरोध में पैदा हुई विचारधारा है। इस विचारधारा का जन्म बीसवीं शताब्दी के 50 और 60 के दशक में हुआ। यह आधुनिकतावाद के तर्क पद्धति का विखण्डन करती है। यह आधुनिकता एवं आधुनिकतावाद पर प्रश्नचिह्न लगाती है। यह मार्क्सवाद के व्यापक सर्वहारा वर्ग की एकता के विरुद्ध सर्वहारा के भीतर विद्यमान अलग-अलग अस्मिताओं की पहचान करती है। इसके अनुसार कुछ भी संपूर्ण नहीं है। यह संपूर्णता का खंडन करती है। इस कारण यह केंद्रीयता के स्थान पर विकेंद्रीयता, स्थानीयता या क्षेत्रीयता, विभिन्नता आदि पर जोर देती है। यह बहुलतावाद या बहु-संस्कृतिवाद पर आधारित है।
उत्तर-उपनिवेशवाद -
उत्तर-उपनिवेशवाद की अवधारणा यूरोपीय उपनिवेशों से आजाद होने वाले देशों में स्वत्व की तलाश से पैदा हुई है। अपनी अस्मिता और सांस्कृतिक पहचान को हासिल करने की छटपटाहट उत्तर उपनिवेशवाद के केंद्र में है। उत्तर-उपनिवेशवाद के बहस के केंद्र में संस्कृति और भाषा है। इस विचारधारा के चिंतकों का मानना है कि कोई भी साम्राज्यवादी देश अपने उपनिवेश न सिर्फ भौतिक रूप से क्षति पहुँचाता है, बल्कि सांस्कृतिक रूप से भी। उत्तर-उपनिवेशवाद मानता है कि उपनिवेशवाद से आजाद होने के बावजूद औपनिवेशिक अवशेष संस्कृति, भाषा, इतिहास दृष्टि आदि के रूप में बचे होते हैं। इन औपनिवेशिक अवशेषों को नष्ट करना ही उत्तर उपनिवेशवादी विचारधारा का उद्देश्य है। इसके लिए देसी बुद्धिजीवी स्थानीय साहित्य, संस्कृति, भाषा, इतिहास का पुर्ननिर्माण करने का प्रयास करते हैं, जो उस आजाद हुए देश और उसके लोगों को अलग पहचान देता है। इस प्रक्रिया में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का जन्म होता है। इस राष्ट्रवाद में नस्ल, जाति, धर्म और अतीत के कई सवाल उठते हैं, जिनका उद्देश्य ‘अस्मिता की तलाश’ होता है।
उत्तराधुनिकवाद - उत्तराधुनिकवाद: वर्तमान समय में कुछ पाश्चात्य समाज वैज्ञानिक अपने देश के संदर्भ में आधुनिकवाद के स्तर से एक कदम आगे बढ़ कर आधुनिकोत्तर स्तर की बात कर रहे हैं। उनका कहना है कि पाश्चात्य विकसित देशों में आधुनिकीकरण की प्रक्रिया अब लगभग समाप्त हो चुकी है। उनका समाज विकास के एक नई अवस्था में प्रवेश कर चुका है, जिसे वें उत्तराधुनिकतावाद की संज्ञा देते हैं। दूसरे शब्दों में, आज पाश्चात्य देश औद्यौगिक विकास एवं आधुनिकता की चरम सीमा को लाँघ चुका है। पाश्चात्य देशों की सभ्यता और संस्कृति विकास की उस ऊँचाई पर खड़ी है कि उसे आधुनिक की जगह उत्तराधुनिक काल कहना ज्यादा उपयुक्त होगा। उत्तर आधुनिकता की अवधारणा का प्रयोग आधुनिकता जैसी अवधारणा की विरोधी अवधारणा के रूप में किया जाता है।