शब्दखोज

मायावाद - उपनिषद् के ज्ञानकांड में ब्रम्ह का जो स्वरूप बताया गया है, वह कई प्रकार का है –अशब्द, अस्पर्श, अगंध, अदृष्य, अग्राह्य इत्यादि जहां निर्गुण के स्वरूप हैं वहीं सर्वकर्मा, सर्वरस,सर्वज्ञ, सर्वशक्तिमान इत्यादि सगुण स्वरूप  इसके आतिरिक्त कई जगह ब्रम्ह का स्वरूप उभयात्मक भी मिलता है । शंकराचार्य ने उपनिषदों के ज्ञान कांड में प्रस्तुत ब्रम्ह के निर्गुण स्वरूप को लेकर अपने अद्वैतवादी दर्शन में जगत की सत्ता को माया घोषित कर दिया और ब्रम्ह को निर्गुण या निराकार। ‘ब्रम्ह सत्यं जगन्मिथ्या’ अर्थात ब्रम्हा ही सत्य है बाकी सारा जगत मिथ्या है । आत्मा और परमात्मा दोनों एक दूसरें से भिन्न नहीं हैं। संसारिक माया के कारण मनुष्य आत्मा-परमात्मा की एकता को पहचानने की भूल करता है ।

मार्क्सवाद - मार्क्स ने समाज को दो वर्गों में विभाजित माना- पूँजीपति और सर्वहारा। मार्क्सवाद ने अपने   श्रम से उत्पादन करने वालों को सर्वहारा कहकर एक सामूहिक पहचान देने का कार्य किया। मार्क्स ने मजदूरों को एक वर्गीय अस्मिता के रूप में चिह्नित किया। मार्क्सवाद के अनुसार मजदूरों के शोषण का अंत वर्ग-संघर्ष द्वारा ही संभव है। नारीवाद के विकास में भी मार्क्सवादी सिद्धांतों की अहम भूमिका रही है। स्त्रियों हेतु समान काम के लिए समान वेतन, मातृत्व अवकाश, काम के घंटों को कम करना इत्यादि माँगों के पीछे मार्क्सवाद के मुक्तिकामी सिद्धांत ही थे। इस संदर्भ विशेष चर्चा स्त्री-विमर्श संबंधी पाठ में किया जाएगा।

मार्क्सवादी दर्शन - मार्क्सवादी दर्शन के दो प्रमुख आधार हैं,एक द्वंद्वात्मक भौतिकवाद और दूसरा ऐतिहासिक भौतिकवाद । द्वंद्वात्मक भौतिकवाद एक विकास का सिद्धांत है जो वाद, प्रतिवाद और संवाद के द्वारा आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है। तो वहीं ऐतिहासिक भौतिकवाद में मानव समुदाय का मूल प्रयत्न आर्थिक या उत्पादन-परक है।