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लम्बी कहानी - यह कहानी की ही सजातीय विधा है, जिसे अधिक विस्तार के कारण लम्बी कहानी नाम दिया गया है। कहानी विधा होने के बावजूद यह अपनी विशिष्ट रचनाशिल्प के कारण अलग परंपरा विकसित करती है। लम्बी कहानी लेखन का काम समाज में बढ़ती हुई समस्याओं तथा जनता की चित्तवृत्तियों में हो रहे परिवर्तन का सूक्ष्म तरीके से विश्लेषण करना है। आधुनिक समाज में प्रत्येक व्यक्ति की यह प्रवृत्ति है कि वह समाज में सबसे अलग और श्रेष्ठ दिखे। इसी प्रवृत्ति को पूरा करने के लिए उसे विभिन्न परिस्थितियों से गुजरना पड़ता है जैसे- तकनीकी प्रयोग से जीवन को सरल बनानाअधिक उपभोग करने की प्रवृत्ति, वैश्वीकरण के कारण व्यक्ति और समाज की बदलती स्थितियाँ आदि। ये सब जटिलतायें  ही व्यक्ति के जीवन को चारों तरफ से घेरे रहती हैं। इन सारी जटिलताओं को व्यक्त करना ही लम्बी कहानी का काम है।

लोक - ‘लोक’ शब्द की व्युत्पति संस्कृत के लोक (दर्शन) धातु में ‘घन’ प्रत्यय के योग से हुई है | प्राचीन काल से ही ‘लोक’ शब्द का प्रयोग होता आ रहा है | प्राचीन ग्रंथों – जैसे वेद , शतसाहस्री संहिता, उपनिषद आदि में ‘लोक’ शब्द का प्रयोग ‘स्थान’ के  लिए किया गया है तो ऋग्वेद में इसका प्रयोग ‘जनसाधारण’ के लिए हुआ है |  वहीं भरतमुनि के नाट्यशास्त्र, पतंजलि के महाभाष्य, पाणिनि के अष्टध्यायी में यह शब्द वेदेतर, सामान्य जन तथा शास्त्रेतर के लिए प्रयुक्त हुआ है | महर्षि वेदव्यास ने महाभारत में ‘लोक’ शब्द का प्रयोग साधारण जनता के अर्थ में किया है | इस प्रकार ‘लोक’ शब्द का अर्थ जहाँ स्थान के लिए प्रयुक्त होता है, वहां जनसाधारण का भी द्योतक है | अत: कहा जा सकता है की ‘लोक’ शब्द मुख्यतः सामान्य जन समूह का द्योतक है |

लोकप्रिय साहित्‍य - साधारणत: माना जाता है कि जो साहित्‍य व्‍यापक जनसमुदाय के बीच सहज रूप में स्‍वीकृत और ग्राह्य हो, वह लोकप्रिय साहित्‍य है। सहजता, सरलता और सुबोधता ऐसे साहित्‍य के अनिवार्य गुण माने जाते हैं। लेकिन कोई साहित्‍य व्‍यापक जनसमुदाय के बीच सिर्फ सहजता, सरलता और सुबोधता के कारण लोकप्रिय नहीं होता। वह साहित्‍य व्‍यापक जनसमुदाय के बीच लोकप्रिय तभी होगा, जब उसका जुड़ाव आम जन से होगा। जब आम जन-जीवन की वास्‍तविकताएँ और आकांक्षाएँ उस साहित्‍य में सहज, सरल रूप में अभिव्‍यक्‍त हो, तभी वह साहित्‍य लोकप्रिय साहित्‍य होगा। वहीं कलात्‍मक साहित्‍य को गंभीर लेखन बताकर आमजन से दूर किया जाता रहा है। कलात्‍मक साहित्‍य भी व्यापक जनसमुदाय से जुड़ा हो सकता है तथा वह भी लोकप्रिय साहित्‍य हो सकता है।