विश्वहिंदीजन कोश

सुजानहित घनानंद Sujanhit Ghananand 1. अंतर हौं किधौ अंत रहौ अंतर हौं किधौ अंत रहौ दृग फारि फिरौकि अभागनि भीरौं। आगि जरौं अकि पानी परौं अब कैसी करौं हिय का विधि धीरौं। जौ धन आनंद ऐसी रुची तौ कहा बस हैं अहो प्राननि पीरौं। पाऊं कहां हरि हाय तुम्हें, धरती में धसौं कि अकासहि चीरौं। Read More
Swarndhuli Sumitranandan Pant स्वर्णधूलि सुमित्रानंदन पंत 1. मुझे असत् से मुझे असत् से ले जाओ हे सत्य ओर मुझे तमस से उठा, दिखाओ ज्योति छोर, मुझे मृत्यु से बचा, बनाओ अमृत भोर! बार बार आकर अंतर में हे चिर परिचित, दक्षिण मुख से, रुद्र, करो मेरी रक्षा नित! 2. स्वर्णधूलि स्वर्ण बालुका किसने बरसा दी Read More
Hazar-Hazar Bahon Wali Nagarjun हज़ार-हज़ार बाहों वाली नागार्जुन भारतीय जनकवि का प्रणाम गोर्की मखीम! श्रमशील जागरूक जग के पक्षधर असीम! घुल चुकी है तुम्हारी आशीष एशियाई माहौल में दहक उठा है तभी तो इस तरह वियतनाम । अग्रज, तुम्हारी सौवीं वर्षगांठ पर करता है भारतीय जनकवि तुमको प्रणाम । गोर्की मखीम! विपक्षों के लेखे कुलिश-कठोर, Read More
हरिवंशराय बच्चन की कविता 1. अग्निपथ वृक्ष हों भले खड़े, हों घने हों बड़े, एक पत्र छाँह भी, माँग मत, माँग मत, माँग मत, अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ। तू न थकेगा कभी, तू न रुकेगा कभी, तू न मुड़ेगा कभी, कर शपथ, कर शपथ, कर शपथ, अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ। यह महान दृश्य है, चल रहा मनुष्य Read More
हरी घास पर क्षण भर: अज्ञेय Hari Ghaas Par Kshan Bhar Agyeya 1. देखती है दीठ हँस रही है वधू-जीवन तृप्तिमय है। प्रिय-वदन अनुरक्त-यह उस की विजय है। गेह है, गति, गीत है, लय है, प्रणय है: सभी कुछ है। देखती है दीठ- लता टूटी, कुरमुराता मूल में है सूक्ष्म भय का कीट! शिलङ्, 15 Read More
  Hindi Poem Kedarnath Agarwal हिंदी कविताएँ-केदारनाथ अग्रवाल यह धरती है उस किसान की यह धरती है उस किसान की जो बैलों के कंधों पर बरसात घाम में, जुआ भाग्य का रख देता है, खून चाटती हुई वायु में, पैनी कुसी खेत के भीतर, दूर कलेजे तक ले जा कर, जोत डालता है मिट्टी को, Read More
हिन्दी कविता हंसराज रहबर Poetry/Shayari Hansraj Rahbar 1. क्या चली क्या चली ये हवा क्या चली क्या चली क्या चली ये हवा क्या चली खौफ़ से कांप उठी बाग में हर कली लोग-बाग आज हैं इस कदर बदहवास ढूंढते हैं अपना घर इस गली उस गली ढेर की ढेर फुटपाथ पर रेंगती जिन्दगी दोस्तो ! Read More
Him Tarangini Makhanlal Chaturvedi हिम तरंगिणी माखनलाल चतुर्वेदी 1. जो न बन पाई तुम्हारे जो न बन पाई तुम्हारे गीत की कोमल कड़ी। तो मधुर मधुमास का वरदान क्या है? तो अमर अस्तित्व का अभिमान क्या है? तो प्रणय में प्रार्थना का मोह क्यों है? तो प्रलय में पतन से विद्रोह क्यों है? आये, या Read More
Healy Bon Ki Battkhein Agyeya हीली बोन् की बत्तखें अज्ञेय 1 हीली-बोन् ने बुहारी देने का ब्रुश पिछवाड़े के बरामदे के जँगले से टेककर रखा और पीठ सीधी करके खड़ी हो गयी। उसकी थकी-थकी-सी आँखें पिछवाड़े के गीली लाल मिट्टी के काई-ढके किन्तु साफ फर्श पर टिक गयी। काई जैसे लाल मिट्टी को दीखने देकर Read More
Hunkar Ramdhari Singh Dinkar हुंकार रामधारी सिंह 'दिनकर' 1. परिचय सलिल कण हूँ, या पारावार हूँ मैं स्वयं छाया, स्वयं आधार हूँ मैं बँधा हूँ, स्वपन हूँ, लघु वृत हूँ मैं नहीं तो व्योम का विस्तार हूँ मैं समाना चाहता है, जो बीन उर में विकल उस शुन्य की झनंकार हूँ मैं भटकता खोजता हूँ, Read More