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21वीं सदी की बड़ी और विकराल समस्या

अनीता देवी 
जल के बिना जीवन की कल्पना भी नही की जा सकती| जल प्रकृति का दिया एक अनुपम उपहार है जो न सिर्फ जीवन बल्कि पर्यावरण के लिए भी अमूल्य है| जैसे पानी के बिना जीवन संभव नहीं है वैसे साफ पानी के बिना स्वस्थ जीवन संभव नहीं| आज विश्व भर में स्वच्छ पेयजल के संकट की स्थिति बनी हुयी है|भारत जैसे विकासशील देश इस समस्या से सर्वाधिक प्रभावित हैं| “ विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार 21वीं सदी की सबसे बड़ी और विकराल समस्या होगी पेयजल की| इसका विस्तार सम्पूर्ण विश्व में होगा तथा विश्व के सभी बड़े शहरों में पानी के लिए युद्ध जैसी स्थिति हो जाएगी|”¹ जल का अंधाधुंध व विवेकहीन प्रयोग वर्तमान जल संकट का सबसे प्रमुख कारण है , जो आज विश्व के सम्मुख एक गंभीर समस्या के रूप में खड़ा है| एक मूलभूत आवश्यकता होने के कारण मानवीय प्रजाति सहित जीव ,वनस्पति व सम्पूर्ण पारिस्थितिक तंत्र के लिए जल जरूरी है| जल संकट ने मानव जाति के समक्ष असितत्व का संकट पैदा कर दिया है| उसके लिए जल की उपलब्धता सुनिश्चित करना एक बड़ी चुनौती बन गयी है|संयुक्त राष्ट्र के आकलन के अनुसार पृथ्वी पर जल की कुल मात्रा लगभग 1700 मिलियन घन कि.मी. है जिससे पृथ्वी पर जल की 3000 मीटर मोटी परत बिछ सकती है ,लेकिन इस बड़ी मात्रा में मीठे जल का अनुपात अत्यंत अल्प है| पृथ्वी पर उपलब्ध कुल जल में मीठा जल 2.7% है|इसमें से लगभग 75.2% ध्रुवीय प्रदेशों में हिम के रूप में विद्यमान है और 22.6% जल ,भूमिगत जल के रूप में है ,शेष जल झीलों ,नदियों ,वायुमंडल में आर्द्रता व जलवाष्प के रूप में तथा मृदा और वनस्पति में उपस्थित है|घरेलू तथा औधोगिक उपयोग के लिए प्रभावी जल की उपलब्धता मुश्किल से 0.8% है|अधिकांश जल इस्तेमाल के लिए उपलब्ध न होने और इसकी उपलब्धता में विषमता होने के कारण जल संकट एक विकराल समस्या के रूप में हमारे सम्मुख आ खड़ा हुआ है|
“यद्दपि जल एक चक्रीय संसाधन है तथापि यह एक निशचित सीमा तक ही उपलब्ध होता है| मानव को उपलब्ध होने वाले जल की मात्रा उतनी है जितनी कि पहले थी| परन्तु जनसंख्या में निरंतर वृद्धि तथा कुछ जलाशयों के ह्रास से प्रति व्यक्ति जल में भारी कमी आ रही है|1947 में स्वतंत्रता के समय भारत में 6008 घन मीटर जल प्रति व्यक्ति प्रतिवर्ष उपलब्ध था ,1951 में यह मात्रा घट कर 5177 घन मीटर प्रति व्यक्ति रह गई तथा 2001 में 1820 घन मीटर प्रति व्यक्ति प्रतिवर्ष रह गई| दसवीं योजना के मध्यवर्ती आकलन के अनुसार यह मात्रा 2025 में 1340 घन मीटर तथा 2050 में 1140 घन मीटर रह जाएगी|”²
देश का पानी सूख रहा है|धरती पर भी और धरती के नीचे भी| जलसंकट के कारण मराठवाड़ा और महाराष्ट्र के अन्य हिस्सों तथा आंध्र प्रदेश एवं तेलांगना के ग्रामीण क्षेत्रों से बड़ी संख्या में लोग नगरों की तरफ पलायन कर रहें है|
“ मराठवाड़ा के परभणी कस्बे में पानी के लिए झगड़ा न हो इसलिए अप्रैल के पहले हफ्ते में धारा 144 लगा दी गई| लातूर में ट्रेन से पानी पहुंचाया जा रहा है|”³
जल संसाधन पानी के वह स्रोत हैं जो मानव के लिए उपयोगी हों या जिनके उपयोग की संभावना हो। पानी के उपयोगों में शामिल हैं कृषि, औद्योगिक, घरेलू, मनोरंजन हेतु और पर्यावरणीय गतिविधियों में । वस्तुतः इन सभी मानवीय उपयोगों में से ज्यादातर में ताजे जल की आवश्यकता होती है । आज जल संसाधन की कमी, इसके अवनयन और इससे संबंधित तनाव और संघर्ष विश्वराजनीति और राष्ट्रीय राजनीति में महत्वपूर्ण मुद्दे हैं। जल विवाद राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय दोनों स्तरों पर महत्वपूर्ण विषय बन चुके हैं। यदि हम भारत के संदर्भ में बात करें तो भी हालात चिंताजनक है कि हमारे देश में जल संकट की भयावह स्थिति है और इसके बावजूद हम लोगों में जल के प्रति चेतना जागृत नहीं हुई है। अगर समय रहते देश में जल के प्रति अपनत्व व चेतना की भावना पैदा नहीं हुई तो आने वाली पीढ़ियां जल के अभाव में नष्ट हो जाएगी। हम छोटी छोटी बातों पर गौर करें और विचार करें तो हम जल संकट की इस स्थिति से निपट सकते हैं। विकसित देशों में जल रिसाव मतलब पानी की छिजत सात से पंद्रह प्रतिशत तक होती है जबकि भारत में जल रिसाव 20 से 25 प्रतिशत तक होता है। इसका सीधा मतलब यह है कि अगर मोनिटरिंग उचित तरीके से हो और जनता की शिकायतों पर तुरंत कार्यवाही हो साथ ही उपलब्ध संसाधनों का समुचित प्रकार से प्रबंधन व उपयोग किया जाए तो हम बड़ी मात्रा में होने वाले जल रिसाव को रोक सकते हैं।
विकसित देशों में जल राजस्व का रिसाव दो से आठ प्रतिशत तक है, जबकि भारत में जल राजस्व का रिसाव दस से बीस प्रतिशत तक है यानी कि इस देश में पानी का बिल भरने की मनोवृत्ति आमजन में नहीं है और साथ ही सरकारी स्तर पर भी प्रतिबंधात्मक या कठोर कानून के अभाव के कारण या यूं कहें कि प्रशासनिक शिथिलता के कारण बहुत बड़ी राशि का रिसाव पानी के मामले में हो रहा है। अगर देश का नागरिक अपने राष्ट्र के प्रति भक्ति व कर्तव्य की भावना रखते हुए समय पर बिल का भुगतान कर दे तो इस स्थिति से निपटा जा सकता है साथ ही संस्थागत स्तर पर प्रखर व प्रबल प्रयास हो तो भी इस स्थिति पर नियंत्रण प्राप्त किया जा सकता है। 
प्रत्येक घर में चाहे गांव हो या शहर पानी के लिए टोंटी जरूर होती है और प्रायः यह देखा गया है कि इस टोंटी या नल या टेप के प्रति लोगों में अनदेखा भाव होता है। यह टोंटी अधिकांशत: टपकती रहती है और किसी भी व्यक्ति का ध्यान इस ओर नहीं जाता है। प्रति सेकंड नल से टपकती जल बूंद से एक दिन में 17 लीटर जल का अपव्यय होता है और इस तरह एक क्षेत्र विशेष में 200 से 500 लीटर प्रतिदिन जल का रिसाव होता है और यह आंकड़ा देश के संदर्भ में देखा जाए तो हजारों लीटर जल सिर्फ टपकते नल से बर्बाद हो जाता है। अब अगर इस टपकते नल के प्रति संवेदना उत्पन्न हो जाए और जल के प्रति अपनत्व का भाव आ जाए तो हम हजारों लीटर जल की बर्बादी को रोक सकते हैं।
  • अब और कुछ सूक्ष्म दैनिक उपयोग की बातें है जिन पर ध्यान देकर जल की बर्बादी को रोका जा सकता है।
  • फव्वारे से या नल से सीधा स्नान करने के स्थान पर बाल्टी से स्नान करने से पानी की कर सकते हैं।
  • शौचालय में फ्लश टेंक का उपयोग करने की जगह यही काम छोटी बाल्टी से किया जाए तो पानी की बचत कर सकते हैं।
अब राष्ट्र के प्रति और मानव सभ्यता के प्रति जिम्मेदारी के साथ सोचना आम आदमी को है कि वो कैसे जल बचत में अपनी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी निभा सकता है। याद रखें पानी पैदा नहीं किया जा सकता है यह प्राकृतिक संसाधन है जिसकी उत्पत्ति मानव के हाथ में नहीं है। पानी की बूंद-बूंद बचाना समय की मांग है और हमारी वर्तमान सभ्यता की जरूरत भी। 
इस समस्या से उबरने के लिए मात्र सरकारी प्रयास ही पर्याप्त नहीं है क्योंकि जल का उपयोग सभी लोगों द्वारा किया जाता है और सभी का जीवन जल पर आश्रित है| देश के नागरिकों अपनी क्षमता के अनुसार जल संरक्षण के प्रयासों में अपना योगदान देना चाहिए तभी देश में नये लातूर को बनने से रोका जा सकता है| “वर्ल्ड वाच इंस्टीट्यूट के अनुसार पानी को पानी की तरह बहाना बंद करना होगा| यदि समाज पानी को एक दुर्लभ वस्तु नहीं मानेगा , तो आने वाले समय में पानी हम सबके के लिए दुर्लभ हो जायेगा|”4 
ग्लोबल वार्मिंग में वृद्धि भी वर्तमान जल संकट का एक महत्वपूर्ण कारण है| वैश्विक तापमान में होने वाली वृद्धि से विश्व के मौसम , जलवायु , कृषि व जल स्रोतों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है| ग्लोबल वार्मिंग के कारण तापमान में होने वाली वृद्धि से ग्लेशियर तीव्रता से पिघल रहें है| इससे भविष्य में जल संकट का खतरा उत्पन्न हो सकता है|
जल संकट से निपटने के लिए : 
  • तालाबों और गड्डों का निर्माण करना चाहिए जिससे वर्षा का जल एकत्रित हो सके और प्रयोग में लाया जा सके| इससे जलस्तर में वृद्धि होगी और भूमिगत जल बना रहेगा|
  • पेड़ों को काटने से रोकना और वृक्षारोपण को बढावा देना जिससे वैश्विक तापन की समस्या कम हो| वैश्विक तापन से हिम पिघलते हैं और हिम का जल नदियों के माध्यम से समुद्र में चला जाता है|
  • नदी किनारे बसने वाले नगरों द्वारा नदियों को प्रदूषित किया जाता है जिससे नदियों का जल पीने लायक नही रहता और नदियाँ सूखने की कगार पर आ खड़ी है उदाहरण के लिए दिल्ली में यमुना नदी| 
  • ·उत्तर भारत की नदियों में सदा जल बहता रहता है और दक्षिण भारत की नदियाँ सदा वाहनी नहीं रहती ऐसे में नदी जोड़ो परियोजना का सहारा लिया जा सकता है| 
  • अंत में कह सकते है कि सृष्टि के हर जीव का असितत्व पानी पर ही टिका है| जल संकट जैसी विकराल समस्या का सामना करने के लिए वयक्तिगत , सामुदायिक , सामाजिक ,राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सार्थक पहल की जरूरत है|
सन्दर्भ :
1. कुरुक्षेत्र पत्रिका , मई 2015
2. खंड – ‘घ’ 14.35 , भूगोल , डी. आर. खुल्लर 
3. पृष्ठ 26 , क्रानिकल , जून 2016
4. पृष्ठ 2 , क्रानिकल , जून 2016
5. दृष्टि The Vision ,करेंट अफेयर्स टुडे , नवम्बर 2015
शोधार्थी 
कमरा न.115/2
यमुना छात्रावास 
जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय
नई दिल्ली (110067)
मोबाइल न. 9013927321