The Tomorrow War । द टूमोरो वॉर

एक बढ़िया अमेरिकन मिलिट्री साइंस फिक्सन फिल्म। Chris McKay की बतौर डायरेक्टर पहली फिल्म। कहानी दिलचस्प है। होता यह है कि साल 2022 का वक्त है, और स्थान है अमेरिका। अचानक भविष्य से यानि 2051 से कुछ लोग धरती पर उतरते हैं और बताते हैं कि धरती का अस्तित्व संकट में है। अगले तीस सालों में, यानि जिस वर्तमान से वे आए हैं, वहाँ धरती पर एलियन्स का हमला हुआ है और धरती तबाह होने को है। मानो धरती अभी तबाह नहीं हुई है। तो ऐसे में पूरी दुनिया से प्रशिक्षित और अप्रशिक्षित, लेकिन शारीरिक दृष्टि से स्वस्थ लोगों को चुना जा रहा है, जो भविष्य में जाकर उन एलियन्स से लड़ाई लड़ेंगे। बचने की कोई गारंटी नहीं है। चूंकि ज़िंदा रहने की गारंटी तो वैसे भी नहीं है, इसलिए जिन्हें चुना गया है, उनके जाने के अतिरिक्त कोई अन्य विकल्प नहीं है। हाईस्कूल में जीव विज्ञान का एक कर्मठ, ईमानदार शिक्षक और भूतपूर्व सैनिक डैन फ़ोरेस्टर (Chris Pratt) अपनी किसी परियोजना के विफल हो जाने की वजह से हताश है। यह फिल्म का हीरो है और उसके एक बीबी और एक बच्ची का हंसता खेलता परिवार है। एक बूढ़ा, जिद्दी और खूसट बाप (J.K. Simmons) भी है, जो किन्हीं वजहों से इस परिवार से अलग रहता है। नायक की बीबी बहुत कोशिश करती है कि नायक को इस युद्ध यात्रा से छुटकारा मिल जाये, लेकिन ऐसा संभव नहीं होता है। नायक को जाना होता है। कुछ मजबूरी और कुछ मानवता के लिए अपना योगदान देने की लालसा।
भविष्य कथा पर आधारित इस फिल्म की आगे की कहानी मामूली लेकिन दिलचस्प है। भविष्य में जाकर पता चलता है कि सेना का नेतृत्व करने वाली लड़की नायक की अपनी बेटी कमांडर फोर्स्टर (Yvonne Strahovski) है, जिसे चार या पाँच साल की अवस्था में वह धरती पर छोड़कर आया है। पूरा मियामी शहर युद्ध की आग में धू-धू कर जल रहा है। एलियन्स बड़े खतरनाक हैं। बिलकुल जोंबीज की तरह, जिनपर कितनी भी गोली चलाओ, जल्दी मरते ही नहीं हैं। फिल्म के आगे के लगभग सारे दृश्य रोमांच से भरपूर है। जिस शहर में एलियन्स बेकाबू हो जाते हैं, उसे अंततः बम से उड़ा देने का आदेश जारी कर दिया जाता है। इस तरह नायक और उसके साथ की टीम हमेशा खतरे से जूझती हुई आगे बढ़ती है। लगता है अब मरे कि तब। बाप और बेटी मानवता को बचाने के लिए दृढ़ संकल्प हैं। अमेरिका के सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के इस सबसे नायाब नमूने पर हॉलीवुड ने लगभग पंद्रह सौ करोड़ रुपये खर्चे हैं। अस्सी के दशक से लेकर वर्तमान साल तक हजारों फिल्मों की एक लंबी शृंखला है, जिसमें पूरी दुनिया पर ज़बरदस्ती यह विचार थोपा गया है कि जब भी यह धरती, मनुष्य का एकमात्र ज्ञात प्यारा ग्रह नष्ट होने की कगार पर होगा, अमेरिकी सेना और राजनीतिक नेतृत्व इसे बचाने में अपने प्राण झोंक देगा। गुटखे की फैक्ट्री वालों के कैंसर अस्पताल जैसी कहावतें आपने खूब सुनी होंगी। यह कुछ वैसा ही है। खैर एलियन्स की लाखों की भीड़ में एक मादा ऐसी है, जिसकी एक चीख़ पर लाखों नर अपनी जान देने को उतारू हो जाते हैं। वे पल भर में चींटियों के झुंड की तरह किसी विशाल पहाड़ को ढँक सकते हैं। इन खतरनाक एलियन्स को समाप्त करने की कोई नस या कुंजी उस बेहद शक्तिशाली, हिंसक और बुद्धिमान मादा की शारीरिक संरचना में ही छिपी है। नायक और नायक की कमांडर बेटी बहुत मुश्किल से इस मादा को अपने कब्जे में लेकर प्रयोगशाला में उसकी कोई काट ढूंढते हैं। शक्तिशाली सैनिक और वैज्ञानिक बुद्धि का असंभव मेल आपको फिल्मों में खूब मिलेगा। वन मैन आर्मी का सिद्धान्त ने दुनिया की फिल्मों का एक चौथाई हिस्सा सहज रूप से घेर रखा है। अंततः मादा एलियन को नष्ट करने का कोई सूत्र हाथ तो लग जाता है लेकिन उसे नष्ट करने के पहले ही एलियन्स के द्वारा वह द्वीप ही नेस्तनाबूद कर दिया जाता है, जिसपर वे लोग प्रयोग कर रहे हैं। इस भीषण युद्ध में नायक की बेटी वह रासायनिक फार्मूला अपने पिता को इस वादे के साथ, कि वे वर्तमान में जाकर इन एलियन्स की उत्तपत्ति को ही नष्ट कर देंगे, सौंपते हुये अपने प्राणों का बलिदान करती है। नायक इस अफसोस से भरा हुआ वर्तमान में लौटता है और रूस की एक बर्फ से ढँकी प्राचीन ज्वालामुखी में जाकर अपने पिता और एक टीम के साथ इस खतरनाक काम को अंजाम देता है।
हाल फिलहाल इसी तरह के बड़े बजट की फिल्म Army of थे Dead आई थी। इन दोनों फिल्मों में कहानी में तो नहीं लेकिन अवधारणा के स्तर पर एक समानता दिखाई पड़ती है। सिनेमैटोग्राफी के स्तर पर फिल्म बेहद कामयाब है। साइंस फिक्सन फिल्मों के दृश्यों की बारीकी, स्पष्टता, फ्रेम, दृश्यों का ठहराव, इन सब मामलों में तो अमेरिकी फिल्म उद्योग का कोई सानी नहीं है। ढेर सारे पैसों का निवेश दर्शकों की संतुष्टि में स्पष्टतः दिखाई देता है। सबसे महत्वपूर्ण बात है कहानी का अनोखापन। ओटीटी क्रांति के बावजूद भारतीय सिनेमा सास बहू के झगड़ों से निकल कर अधिक से अधिक राजनीतिक गलियारों तक की ही यात्रा कर सका है। ऐसे में धरती के पार देख सकने, घर बैठे अन्तरिक्ष और सुदूर भविष्य की यात्रा करवाने और कई बार नई अवधारणाओं से दर्शकों को बिलकुल चकित कर देने की क्षमता से लैस हॉलीवुड का यह एकदम ताज़ा माल है। फिल्म प्राइम वीडियो पर उपलब्ध है और मानसून के मौसम में चाय पकौड़ों के साथ निःसंकोच इसका आनंद लिया जा सकता है।
-समीक्षक: डॉ. जगदीश सौरभ (सहायक प्रोफ़ेसर, हिंदी विभाग, झारखंड केंद्रीय विश्वविद्यालय)