1.जो पास से गुजरा है कहीं वो तेरी परछाई तो नहीं
जो पास से गुजरा है कहीं वो तेरी परछाई तो नहीं,
देख ज़रा टटोलकर कहीं ली तूने अंगड़ाई तो नहीं ।
देख ज़रा टटोलकर कहीं ली तूने अंगड़ाई तो नहीं ।
माहौल गर्म है,
आग है कहीं तो तपस भी बहुत है,
देख ज़रा गौर से धूआँ कहीं ये तेरे घर से तो नहीं ।
आग है कहीं तो तपस भी बहुत है,
देख ज़रा गौर से धूआँ कहीं ये तेरे घर से तो नहीं ।
ठहर रहे हैं कुछ ज़ज़्बात इन दिनों तेरे भी भीतर,
देख ज़रा तेरी
बगल में कोई
मरा तो नहीं
।
देख ज़रा तेरी
बगल में कोई
मरा तो नहीं
।
ये जो
इतना शौर है
आज कल मेरे शहर में,
देख ज़रा कहीं कोई नया भगवान् बना तो
नहीं ।
इतना शौर है
आज कल मेरे शहर में,
देख ज़रा कहीं कोई नया भगवान् बना तो
नहीं ।
ये कैसा
है माहौल तेरे
शहर का तू
चुप है,
देख ज़रा कहीं ख़ंज़रों की खेती हुई तो
नहीं ।
है माहौल तेरे
शहर का तू
चुप है,
देख ज़रा कहीं ख़ंज़रों की खेती हुई तो
नहीं ।
कलम हूँ उठाता तो दूर भाग जाते हैं ज़ज़्बात,
सोचता हूँ रुक कर ज़रा, कहीं मैं शायर तो नहीं
।
सोचता हूँ रुक कर ज़रा, कहीं मैं शायर तो नहीं
।
2.
आपके शहर में कुछ ज़ज़्बात ले के आए हैं
आपके शहर में कुछ ज़ज़्बात ले के आए हैं ,
अपने नहीं हैं साहब, खैतार ले के आए हैं ।
आपके शहर में कुछ ज़ज़्बात ले के आए हैं
आपके शहर में कुछ ज़ज़्बात ले के आए हैं ,
अपने नहीं हैं साहब, खैतार ले के आए हैं ।
हम तो यूँ ही चले आये, इक आवाज़ जो सुनी,
सीधे हैं इसी
लिए, साथ ले
के आए हैं ।
सीधे हैं इसी
लिए, साथ ले
के आए हैं ।
सुना है आज कल पत्थरों का दौर है शहर में,
ख़फा मत होईये ज़नाब, दीवार ले के आए हैं ।
ख़फा मत होईये ज़नाब, दीवार ले के आए हैं ।
ख़ंजरों पर
ख़ंजर, ख़ंजरों पर खून है,
जो देख न पाये, अंधी निग़ाह ले के आए हैं ।
ख़ंजर, ख़ंजरों पर खून है,
जो देख न पाये, अंधी निग़ाह ले के आए हैं ।
कोई ख़तरा नहीं मुझसे सल्तनत को आपकी,
आप ही के शहर की ज़ुबान ले के आए हैं ।
आप ही के शहर की ज़ुबान ले के आए हैं ।
चाहिये था मुझे
कि कुछ अदब से तो आता,
फटे हाल था, वही फटे हाल ले के
आए हैं ।
कि कुछ अदब से तो आता,
फटे हाल था, वही फटे हाल ले के
आए हैं ।
3.
गुजरता हूँ सड़क से तो इश्तिहार पकड़ लेते हैं
गुजरता हूँ सड़क से तो इश्तिहार पकड़ लेते हैं
गुजरता हूँ सड़क से तो इश्तिहार पकड़ लेते हैं,
हमारे ही नाम
पर सल्तनत वो
चलाते हैं ।
हमारे ही नाम
पर सल्तनत वो
चलाते हैं ।
ये क्या बात
हुई कि हर बात पे लठियाते
हैं,
संसद की तरफ अँगुली जब भी हम उठाते हैं ।
हुई कि हर बात पे लठियाते
हैं,
संसद की तरफ अँगुली जब भी हम उठाते हैं ।
कोई गिरा है, किसी
की है चीख़ गूँजी,
लाख छुपा लो तुम उदास मौसम बतियाते हैं ।
की है चीख़ गूँजी,
लाख छुपा लो तुम उदास मौसम बतियाते हैं ।
चेहरे पर चेहरा है
चेहरों का दौर है,
चेहरों में हम अपना चेहरा छुपाते है ।
चेहरों का दौर है,
चेहरों में हम अपना चेहरा छुपाते है ।
हर तरफ
धूँआ आग है
फिर ये ख़ामोशी,
शायद इसी को दोस्त चैनो-अमन बतियाते हैं ।
धूँआ आग है
फिर ये ख़ामोशी,
शायद इसी को दोस्त चैनो-अमन बतियाते हैं ।
सरहदें ये बिछी हुई ज़मीन तक ही हैं मेरे दोस्त,
पड़ोसी मुल़्क से ये आए परिंदे बतियाते हैं ।
पड़ोसी मुल़्क से ये आए परिंदे बतियाते हैं ।
4.
है अँधेरा बहुत कुछ तो करो यारो
है अँधेरा बहुत कुछ तो करो यारो
है अँधेरा
बहुत कुछ तो करो यारो,
निगाह है रोशन तो निगाह संभालो यारो ।
ये दीवार है, दीवार का कोई धर्म नहीं होता,
इसे मेरे
घर से
निकालो यारो ।
दस्तक दे रहा हूँ कब से दरवाज़ा तो खोलो,
या इसे दहलीज़ से उठा लो यारो ।
बहुत कुछ तो करो यारो,
निगाह है रोशन तो निगाह संभालो यारो ।
ये दीवार है, दीवार का कोई धर्म नहीं होता,
इसे मेरे
घर से
निकालो यारो ।
दस्तक दे रहा हूँ कब से दरवाज़ा तो खोलो,
या इसे दहलीज़ से उठा लो यारो ।
ये जो
बैठा है आदमी
रक़्त से सना,
मैं हूँ मुझे
सड़क पर उठा
लो यारो ।
बैठा है आदमी
रक़्त से सना,
मैं हूँ मुझे
सड़क पर उठा
लो यारो ।
कोई नई बात नहीं कहता ‘शैली‘ गज़ल में,
ज़ेब में अपनी
हाथ ज़रा डालो यारो ।
ज़ेब में अपनी
हाथ ज़रा डालो यारो ।
5. ये जो धूँए का गुब्बार है छाया, कोई
घर जला है
ये जो धूँए का गुब्बार है छाया, कोई घर जला है,
अपने घर के
दीवारो दर सम्भालो यारो ।
अपने घर के
दीवारो दर सम्भालो यारो ।
घर से निकलते
ही लापता हो जाते हैं
लोग,
पहचान के लिए कोई चीज़ उठा लो
यारो ।
ही लापता हो जाते हैं
लोग,
पहचान के लिए कोई चीज़ उठा लो
यारो ।
येजो पगली घूमती है घर-घर चिल्लाती आजा़दी,
कह दो इसे कि ये वक़्त मुनासिब नहीं है यारो ।
कह दो इसे कि ये वक़्त मुनासिब नहीं है यारो ।
हाँ में हाँ मिलाना सीख लो, ये शाही फ़रमान है,
नहीं तो मुल्क से निकल जाओ यारो ।
बड़े सस्ते हैं तमगे देश-भक्ति के जहाँ, इन
दिनों,
‘भारत माता की जय बोल‘ तुम लगा लो यारो ।
नहीं तो मुल्क से निकल जाओ यारो ।
बड़े सस्ते हैं तमगे देश-भक्ति के जहाँ, इन
दिनों,
‘भारत माता की जय बोल‘ तुम लगा लो यारो ।
6.
हर तरफ भीड़ है, शोर है, दुविधा की ज़ुबान है
हर तरफ भीड़ है, शोर है, दुविधा की ज़ुबान है
हर तरफ भीड़ है,
शोर है, दुविधा की ज़ुबान है,
न आदमी है,
न आदमी का
नामो-निशां है ।
शोर है, दुविधा की ज़ुबान है,
न आदमी है,
न आदमी का
नामो-निशां है ।
ढ़ूँढता हूँ मुकम्मल आदमी, हर तरफ़ निग़ाह है,
लेकिन हर चेहरे पर एक उभरी हुई दरार है ।
लेकिन हर चेहरे पर एक उभरी हुई दरार है ।
हूँ मैं नास्तिक, ज़मीन मेरा आधार है,
हर व्यक्ति का अपना-अपना पर्वतदीगार है
।
हर व्यक्ति का अपना-अपना पर्वतदीगार है
।
मैं तुमसे
कहता हूँ सीख
अब तो लड़ना,
जहाँ हर आदमी
के हाथ में तलवार है ।
कहता हूँ सीख
अब तो लड़ना,
जहाँ हर आदमी
के हाथ में तलवार है ।
तो क्या गुनाह हुआ अगर हमने ये कह दिया,
मायूस इस बच्चे
का नाम ‘हिन्दूस्तान‘
है ।
मायूस इस बच्चे
का नाम ‘हिन्दूस्तान‘
है ।
7.
पत्थर न सही तो हाथ या फिर आँख ही उठालो
पत्थर न सही तो हाथ या फिर आँख ही उठालो
पत्थर न सही तो हाथ या फिर आँख ही उठालो,
है बहुत घना
अँधेरा इक मशाल
तो जला लो ।
है बहुत घना
अँधेरा इक मशाल
तो जला लो ।
सफ़र तो
तैय हो ही जाएगे, मुश्किल ही सही,
तबीयत से ज़रा इक कदम तो उठा
लो ।
तैय हो ही जाएगे, मुश्किल ही सही,
तबीयत से ज़रा इक कदम तो उठा
लो ।
तू न
चलेगा न सही, तेरी
नज़रे नज़र ही सही,
ज़रा इक बार रास्ते की
मट्टी तो उठा लो ।
चलेगा न सही, तेरी
नज़रे नज़र ही सही,
ज़रा इक बार रास्ते की
मट्टी तो उठा लो ।
देख मेरे
साथ इक काफ़िला है हम
सफ़र,
उदास सही, पहचान कर इक निशां तो उठा लो ।
साथ इक काफ़िला है हम
सफ़र,
उदास सही, पहचान कर इक निशां तो उठा लो ।
ये जो
गिरा पड़ा है
सड़क पर तेरा अश्क,
है या नहीं, इसे इक बार अपनी आँख से लगा लो ।
गिरा पड़ा है
सड़क पर तेरा अश्क,
है या नहीं, इसे इक बार अपनी आँख से लगा लो ।
ये दौर
कुछ ऐसा है कि तू
गिरा और गया,
तो रास्ते को ही अपना महबूब बना लो ।
कुछ ऐसा है कि तू
गिरा और गया,
तो रास्ते को ही अपना महबूब बना लो ।
8.
क्या हुआ जो खंड़हर हो गई आस्थाएँ
क्या हुआ जो खंड़हर हो गई आस्थाएँ
क्या हुआ जो खंड़हर हो गई आस्थाएँ,
दीवार पर धूप का इक टुकड़ा तो है ।
दीवार पर धूप का इक टुकड़ा तो है ।
साँझ होते
ही जग जाती हैं बत्तियाँ,
भोर की उनहें इक आश
तो है ।
ही जग जाती हैं बत्तियाँ,
भोर की उनहें इक आश
तो है ।
ये जो आ
रहा है तेरे मन में ख़्याल,
उस पर तुमहें
इक विश्वास तो
है ।
रहा है तेरे मन में ख़्याल,
उस पर तुमहें
इक विश्वास तो
है ।
ढूंढ कर
लाता हूँ मैं हाथ और हाथ,
मशाल के लिए पास तुम्हारे आग तो है ।
लाता हूँ मैं हाथ और हाथ,
मशाल के लिए पास तुम्हारे आग तो है ।
दे रहा
हूँ आवाज़ ठीक
सामने से,
मुझ पर तुम्हें
इक इतबार तो है ।
हूँ आवाज़ ठीक
सामने से,
मुझ पर तुम्हें
इक इतबार तो है ।
9. वो लिखते रहे, हम गाते रहे,
वो लिखते रहे, हम
गाते रहे,
यूँ ही गुमनाम ज़िंदगी बिताते रहे ।
गाते रहे,
यूँ ही गुमनाम ज़िंदगी बिताते रहे ।
न मलाल
रहा, न कोई
शिकवा,
बोझ था, बोझ उठाते रहे ।
रहा, न कोई
शिकवा,
बोझ था, बोझ उठाते रहे ।
न मंजिल थी, न
रास्ता था अपना,
जिधर इशारा किया,
जाते रहे ।
रास्ता था अपना,
जिधर इशारा किया,
जाते रहे ।
कहां जाए, किससे
करें फरियाद,
मजबूर थे, कि खुदा
बनाते रहे ।
करें फरियाद,
मजबूर थे, कि खुदा
बनाते रहे ।
वो लिखते रहे, हम
गाते रहे,
यूँ ही गुमनाम ज़िंदगी बिताते रहे ।
गाते रहे,
यूँ ही गुमनाम ज़िंदगी बिताते रहे ।
10.
ये शोर किस दौर का है हमें नहीं पता
ये शोर किस दौर का है हमें नहीं पता
ये शोर किस दौर का है हमें नहीं पता,
हम तो इस शोर
में जिए जा रहे
हैं ।
पुकारा हमने,
सुना या कर दिया अनसुना,
पुकारना काम है हमारा, किए जा रहे हैं ।
सुना या कर दिया अनसुना,
पुकारना काम है हमारा, किए जा रहे हैं ।
ईमारतों के साये में कुचले हुए हैं लोग,
मुश्किल है लेकिन संग लिए जा रहे हैं ।
माना कि फिजाओं
में घुटन है ऊब है,
मुश्किल है लेकिन जिये,जिए जा रहे हैं ।
में घुटन है ऊब है,
मुश्किल है लेकिन जिये,जिए जा रहे हैं ।
ये शोर किस
दौर का है हमें नहीं पता,
हम तो इस शोर
में जिए जा रहे
हैं ।
दौर का है हमें नहीं पता,
हम तो इस शोर
में जिए जा रहे
हैं ।
11.
हम मानके चले कि अलग कुछ आज होगा
हम मानके चले कि अलग कुछ आज होगा
हम मानके चले कि अलग कुछ आज होगा,
महफिल होगी, गीत होगा, साज
होगा ।
महफिल होगी, गीत होगा, साज
होगा ।
पकड़ी क्यों चूप्पी तेरी बगीया के फूलों ने,
मरा कोई गीत,
टूटा कोई साज
होगा ।
मरा कोई गीत,
टूटा कोई साज
होगा ।
ऊब है घुटन है तेरे आंगन की कलियों में,
दफ़न तेरे आंगन में कोई ख्वाब
होगा ।
दफ़न तेरे आंगन में कोई ख्वाब
होगा ।
अब कहाँ तक कहें कि सब ठीक है ठीक है,
सड़ रहा जख़्म सहलाना न आज होगा ।
सड़ रहा जख़्म सहलाना न आज होगा ।
इक ही
शब्द में कह
देते हैं हम तुम से,
ये नाटक हम
से और न
आज होगा ।
शब्द में कह
देते हैं हम तुम से,
ये नाटक हम
से और न
आज होगा ।
12.
तेरे पाँव में जन्नत है ये सोच के आया था
तेरे पाँव में जन्नत है ये सोच के आया था
(मेरे जीवन आए द्रोणाचार्य को समर्पित)
तेरे पाँव में जन्नत है ये सोच के आया था,
तू तो बिना
पाँव का इंसान
निकला ।
तू तो बिना
पाँव का इंसान
निकला ।
तेरे हर शब्द से इतिहास लिखूंगा ये सोचा,
तू तो हर
शब्द से मोहताज
निकला ।
तू तो हर
शब्द से मोहताज
निकला ।
इस थोथे साज से आवाज़ आए तो कैसे,
साज तेरा बेहया, बेहया हर राग निकला ।
साज तेरा बेहया, बेहया हर राग निकला ।
ये जो अकड़ के खड़ा है ठीक मेरे सामने ,
न रीढ़ है, न रीढ़ का कोई निशान निकला ।
न रीढ़ है, न रीढ़ का कोई निशान निकला ।
इक बार तो बता मेरा कसूर क्या था जो,
हर बार तेरे हाथ कत्ल का सामां निकला ।
हर बार तेरे हाथ कत्ल का सामां निकला ।
13.
देख मेरी आवाज़ में असर को देख
देख मेरी आवाज़ में असर को देख
देख मेरी आवाज़ में असर को देख,
उठ रही हैं नज़रें , नज़रों को देख ।
उठ रही हैं नज़रें , नज़रों को देख ।
इन ख़ामोश राहों में, अँधेरों के बीच,
सुलगती हैं नज़रें, नज़रों को देख ।
सुलगती हैं नज़रें, नज़रों को देख ।
हैं लाखों सर
तकिए पर तो क्या,
दिमाग में उबलते विचारों को देख ।
तकिए पर तो क्या,
दिमाग में उबलते विचारों को देख ।
ज़ालिम है
ये रात तो क्या हुआ,
उठ रहे हैं सर इन सरों को देख ।
ये रात तो क्या हुआ,
उठ रहे हैं सर इन सरों को देख ।
मैंने राह में मिलते हरिक को कहा,
आवाज तो दो फिर असर को देख ।
आवाज तो दो फिर असर को देख ।
14.
हर दर्द की दवा नहीं होती
हर दर्द की दवा नहीं होती
हर दर्द
की दवा नहीं
होती,
हमसे और वफ़ा
नहीं होती ।
की दवा नहीं
होती,
हमसे और वफ़ा
नहीं होती ।
हर रात
की सुबह है
होती,
सुबह की कभी रात नहीं होती ।
की सुबह है
होती,
सुबह की कभी रात नहीं होती ।
हमने अपना हक है मांगा,
इस खता की सजा नहीं होती ।
इस खता की सजा नहीं होती ।
इस हादसे
से मायूस न
हो,
जिंदगी यहीं ख़त्म नहीं होती ।
से मायूस न
हो,
जिंदगी यहीं ख़त्म नहीं होती ।
महफ़िल में आके बैठ तो सही,
ज्हाँ शराबे-हुस्न चर्चा नहीं होती ।
ज्हाँ शराबे-हुस्न चर्चा नहीं होती ।
15.
घर से चले इक आँख की तलाश में
घर से चले इक आँख की तलाश में
घर से चले इक आँख की तलाश में,
और रोशनी में ही उलझ
गए ।
और रोशनी में ही उलझ
गए ।
पास वाले
से जब वक्त
पूछा तो,
पता चला हम
कब के बीत
गए ।
से जब वक्त
पूछा तो,
पता चला हम
कब के बीत
गए ।
बस तेरा जाना ही सहा न गया इक,
नहीं तो कई
आए गए आए गए ।
नहीं तो कई
आए गए आए गए ।
वो शख़्स
जिसने सिखाया लड़ना,
आए कलम उठाई चले गए चले गए ।
जिसने सिखाया लड़ना,
आए कलम उठाई चले गए चले गए ।
संसद से जब भी सवाल किया हमने,
दुतकारे गए लठियाए गए दबाए गए ।
दुतकारे गए लठियाए गए दबाए गए ।
परिचय
सुशील कुमार शैली
जन्म तिथि – ०२/०२/१९८६
शोधार्थी- भाषा विज्ञान एवं पंजाबी कोशकारी विभाग
पंजाबी विश्वविद्यालय, पटियाला
रचनात्मक कार्य :- कविता संग्रह- तल्खियां (पंजाबी में ),
समय से संवाद ( हिन्दी में ), कविता
अनवरत-1, काव्यांकुर-3, सारांश समय का
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सुशील कुमार शैली
जन्म तिथि – ०२/०२/१९८६
शोधार्थी- भाषा विज्ञान एवं पंजाबी कोशकारी विभाग
पंजाबी विश्वविद्यालय, पटियाला
रचनात्मक कार्य :- कविता संग्रह- तल्खियां (पंजाबी में ),
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