कठौतिया के शैलचित्र – पाषाण कालीन मानव सभ्यता और संस्कृति के प्रतीक

योगेन्द्र सिंह चंदेल

शोधार्थी इतिहास

बरकतउल्ला विश्वविद्यालय, भोपाल

yschandel24@gmail.com

डा.बी.सी. जोशी

शोध निर्देशक प्राध्यापक

शा. नर्मदा महाविद्यालय, नर्मदापुरम

सारांश

मध्य प्रदेश का सीहोर जिला पाषाण कालीन मानव सभ्यता और संस्कृति का प्रमुख केन्द्र रहा हैं। इस क्षेत्र में पाषाण काल के मानव ने अपने जीवन का बहुत लम्बा समय व्यतीत किया है। मानव सभ्यता की अनमोल घरोहर शैलचित्र यहाँ पर आज भी सुरक्षित है, जिनको हम देख सकते है। सीहोर जिले की इच्छावर तहसील के कठौतिया क्षेत्र में प्राकृतिक चट्टानों, गुफाओं एवं कंदराओं में पाषाण कालीन शैलचित्र उकेरे गये है। पाषाण काल के मानव ने अपनी सभ्यता, संस्कृति, भाव तथा विचारों को शैलचित्रों के माध्यम से व्यक्त किया है। यहाँ से प्राप्त शैलचित्र पाषाण कालीन मानव के रहन-सहन तथा उनकी दैनिक जीवन शैली को प्रदर्शित करते हैं। शैलचित्रों में आकृतियों का निर्माण ज्यामितिय रेखाओं तथा आकारों की सहायता से किया गया हैं। यह शैलचित्र प्राकृतिक खनिज रंगो की सहायता से पाषाण की चट्टानों पर बनाये गये है। यहाँ से प्राप्त शैलचित्रों का विषय आखेट, पशु, पक्षी, मानव आकृति, सर्प आकृति आदि हैं। भारत में सबसे ज्यादा शैलचित्र मध्य प्रदेश से प्राप्त हुए हैं और मध्य प्रदेश में सबसे अधिक पाषाण कालीन शैलचित्र सीहोर जिला और उसके आस-पास के क्षेत्रों से ही मिले हैं।

बीज शब्द:- कठौतिया, पाषाण मानव, पाषाण कालीन, शैलचित्र, आखेट, पशुचित्रण, मानव, आकृति।

शोध आलेख:-

मध्य प्रदेश का सीहोर जिला प्राचीन मानव सभ्यता और संस्कृति का प्रमुख केन्द्र रहा हैं। यहाँ पर पुरापाषाण काल, मध्य पाषाण काल और नवपाषाण काल के मानव ने अपने जीवन का बहुत लम्बा समय व्यतीत किया है। मानव सभ्यता की अनमोल धरोहर यहाँ पर आज भी सुरक्षित है, जिसको हम देख सकते हैं। सीहोर जिले की इच्छावर तहसील के कठौतिया गाँव में पाषाण शिलाओं पर शैलचित्र उकेरे हैं। प्राचीन युग के मानव ने शैलचित्रों के निर्माण में सफेद खड़िया मिट्टी, गेरू और मुरम पावडर का उपयोग इन शैलचित्रों को बनाने में किया होगा, ऐसा अनुमान इनको देखने पर लगता हैं। समय के साथ ही यह रंग इतने गहरे हो गये हैं कि हजारों साल गुजरने के पश्चात भी यह रंग खत्म नहीं हुए हैं।

सीहोर जिले के कठौतिया गाँव के शैलचित्रों का अध्ययन कर पुरातत्ववेताओं द्वारा यह प्रमाणित किया गया कि शैलचित्रों पाषाणकालीन मानव के निवास स्थल थे। अवकाश के समय मानव द्वारा अपनी कल्पना को साकार करने का कार्य किया गया है। सीहोर जिले के कठोतिया में सुन्दर कलात्मक और सृजनात्मक शैलचित्रों की पुरा सम्पदा आज भी पर्यटकों को अपनी और आकृषित करती हैं।

कठौतिया में पाषण की गुफाओं औंर पहाड़ी चट्टानों पर विभिन्न विषयों का चित्राकंन देखने को मिलता है। इन चित्रों को देखकर पाषाणकाल के मानव की कल्पनाशक्ति, विचारशीलता तथा रचनात्मकता का पता चलता है। कठौतिया में प्राप्त शैलचित्रों को उनकी विषयवस्तु के आधार पर निम्न प्रकार से विभाजित करके गहन अध्ययन किया गया है:-

  1. पशुचित्रण शैलचित्र।
  2. आखेट शैलचित्र।
  3. पक्षी शैलचित्र।
  4. सर्पाकन शैलचित्र।
  5. मानव आकृति शैलचित्र।

1 पशुचित्रण शैलचित्र: –

पाषाणकालीन मानव ने कठौतिया क्षेत्र में स्थित चट्टानों, शिलाओं पर पशुओं के शैलचित्र बनाये हैं। इन चित्रों में पशुओं का आखेट चित्रण कुशलता के साथ किया गया है। इन आकृतियों के साथ ही यहाँ के शैलचित्रों में अनेक रूपों में पशुचित्रण देखने को मिलता हैं। इन पशुओं में गाय, वृषभ, हिरण, बारहसिंगा आदि पशु यहाँ पर अकेले तथा समूह के रूप में भी चित्रित किये गये हैं। इस क्षेत्र में अश्व का चित्रण अकेले तथा आरोहियों के साथ में देखा जा सकता है। पाषाण कालीन मानव ने पशु शैलचित्र में उनके यथार्थ रूप को चित्रित करने के साथ ही मानव ने पशुओं की विशेषताओं व गुणों की व्यजंना भी कुशलतापूर्वक कर अपने कला कौशल का सुन्दर परिचय दिया हैं। यहाँ से प्राप्त पशुओं के शैलचित्रों को देखकर प्रतीत होता हैं कि इनमें पशुओं की गति, शक्ति तथा फूर्ति को अत्यन्त कलात्मक रूप में प्रस्तुत किया हैं।

यहाँ का अवलोकन करने से पता चलता हैं कि इस क्षेत्र में पशु चित्रण से सम्बन्धित शैलचित्र अधिक संख्या में हैं। नवपाषाण काल के सन्दर्भ में ज्ञात होता हैं कि मानव पशुपालन तथा खेती बाडी करने लगा था। इस प्रकार यह अनुमान लगाया जा सकता हैं कि मानव इस काल में पशुओं के निरन्तर सम्पर्क में रहा और दैनिक जीवन में पशुओं से प्राप्त होने वाले सहयोग के कारण पशुओं के प्रति मानव का स्नेहभाव पशुचित्रण शैलचित्र के लिए प्रेरणादायक बना।

कठौतिया क्षेत्र से प्राप्त एक शैलचित्र में पशु का समूह के रूप में चित्रण किया गया है। यह शैलचित्र देखने में अत्यंत आर्कषण प्रतीत होता है। लाल तथा सफेद रंग से इसका सुन्दर निर्माण किया गया है। इसको देखकर ऐसा लगता हैं कि पशु साथ-साथ पक्तिबद्ध होकर विचरण कर रहे है। शैलचित्र में सबसे ऊपर गाय के समान एक बड़ा पशु चित्रित किया गया हैं। इसमें नीचे पक्ति के रूप में संयोजित अन्य पशु हिरण तथा बारहसिंगा जैसे दिख रहे हैं, जिनमें से कुछ पूरक शैली तथा अन्य अंलकृत शैली में बनाये गये हैं। यह शैलचित्र अपने रूप संयोजन तथा शैलीभेद से अत्यन्त कलात्मक दिखाई देता है। पाषाण काल के मानव की कलात्मक अभिव्यक्ति का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत करता हैं ।

कठौतिया के शिलाखण्ड पर उत्कीर्ण एक अन्य विचित्र प्रकार के पशु का चित्रांकन देखने को मिलता है, जो वृषभ के समान तथा सींग बारहसिंगा के जैसे बनाए गये हैं। यह चित्र पूरक शैली में गेरूए रंग से बना हुआ हैं। इसकी पूछ में केश दिखाने के लिए प्रयुक्त छोटी रेखाएँ तथा श्रृंग में विस्तार प्रदर्शित करने हेतु प्रयोग की गई रेखाओं से संगति का प्रभाव दृष्टिगत हो रहा है। इस शैलचित्र में मानव द्वारा विचित्र पशु की कल्पना करके उसको कलात्मक रूप में प्रदर्शित किया गया हैं।

पुरासम्पदा की दृष्टि से प्रसिद्ध सीहोर जिले के कठौतिया क्षेत्र में एक गर्भस्थ पशु का चित्रण भी यहाँ के शैलचित्रों में मिला है। गेरूए रंग से बना यह पशु गाय जैसा लगता है। इस चित्रांकन में पशु के शरीर के मध्य भाग में लम्बवत् रेखा में गर्भ स्थान को अलग किया गया हैं। इस शैलचित्र में गर्भ में बच्चे का चित्रांकन विपरीत स्थिति में किया गया दिखाई दे रहा हैं। बच्चे का मुख गाय के सदृश्य एक ही दिशा में बनाया गया हैं। गेरूए रंग से बने इस रेखीय चित्र में सींग पूरक शैली में बने है। मुख गर्दन तथा पैरों में बारीक रेखाओं का प्रयोग किया गया हैं। शैलचित्र का अवलोकन करने से ज्ञात होता हैं कि पशु के गर्भस्थ स्वरूप का चित्रांकन पाषाण युग के मानव की बौद्धिकता और उसकी कल्पनाशक्ति का प्रतीक हैं। गर्भ में बच्चे का चित्रांकन कर पाषाणकालीन मानव ने जीवन के सृजन को प्रस्तुत किया है। इस शैलचित्र में मातृत्व भाव की अभिव्यंजना इस चित्र की विशेषता तथा कलात्मकता प्रदर्शित करती हैं ।

2-आखेट शैलचित्र:-

पाषाणकाल का मानव जानवरों का शिकार करके अपने जीवन के लिए भोजन की आवश्यकता की पूर्ति करता था। अवकाश के क्षणों में पुरा मानव द्वारा अपने आश्रय स्थलों पर इस विषय से सम्बन्धित चित्रांकन किया जाता था। कठौतिया से आखेट सम्बन्धी शैलचित्र भी प्राप्त हुए हैं। पुरातत्ववेताओं के अनुसार आखेट सम्बन्धी शैलचित्र सर्वाधिक प्राचीन माने गये हैं। इन चित्रों को देखकर लगता है कि प्राचीन मानव ने जंगली पशुओं से अपनी रक्षा करने तथा उस समय की विषय परिस्थितियों पर विजय प्राप्त करने की भावना को चित्रांकन के माध्यम से व्यक्त किया हैं। सीहोर जिले के पाषाणकालीन स्थल कठौतिया में आखेट सम्बन्धी अनेक शैलचित्रों को देखा जा सकता हैं।

कठौतिया क्षेत्र से आखेट सम्बन्धी जो शैलचित्र मिले हैं उनमें हिरन, शेर, सुअर, बैल आदि पशुओं का आखेट दिखाई देता है। यहाँ पर शेर के शिकार का शैलचित्र प्राप्त हुआ है, जिसमें शेर के आगे तथा पीछे दो-दो मानव आकृतियां धनुष लिए चित्रित की गई हैं। इस शैलचित्र में एक मानव आकृति नीचे की तरफ चित्रित है जिसका अंकन आखेट दृश्य से अलग दिखाई पड़ रहा है। इसमें शेर का चित्रण रेखा शैली किया गया हैं मुख तथा कान पूरक शैली में बने हैं। शरीर का जो भाग है वह भी रेखाओं के माध्यम से बनाया गया है। शेर का सम्पूर्ण चित्रांकन रेखांकन शैली में कलात्मक दिखाई देता है। शेर के मुख के पास रक्त की बून्दे भी चित्रित हैं। मानव की मुद्रा इस क्षेत्र से प्राप्त एक अन्य शैलचित्र में जंगली सुअर के आखेट का चित्रांकन देखने को मिलता है, जिसमें मानव आकृतियाँ भाले से सुअर पर वार कर रही हैं। इस शैलचित्र में सुअर का चित्रण अर्द्धपूरक शैली में किया गया है। उदर भाग में कोणिय रेखाओं का प्रयोग किया गया है। शेष शरीर में रंग भरा गया हैं। इस चित्रांकन में पशु का खुला मुख उसकी पीडा व करूणा के भाव को दिखा रहा है। इस शैलचित्र में सुअर के समीप एक अन्य पशु भी अंकित है। इस शैलचित्र में पशु तथा आखेटक दोनों के पैर की रचना से गति का आभास होता हैं। इन शैलचित्रों को देखने से प्रतीत होता हैं कि पाषाण काल के मानव की रचनात्मक कुशलता तथा रूप ज्ञान की समझ से आखेट की स्थिति का यथार्थ तथा सजीव चित्रांकन कितनी कुशलता से किया गया है। दोनो शैलचित्र लाल रंग से निर्मित है। पुरातत्ववेताओं के अनुसार यह शैलचित्र संभवतः मध्य पाषाण कालीन हैं।

पक्षी शैलचित्र:-

यहाँ पर एक शैलचित्र में सारस पक्षी का विशाल तथा आर्कषक अंकन प्राप्त हुआ है। इस चित्रण में एक बडा सारस पक्षी अपने छोटे बच्चों को दाना (आहार) देता प्रतीत हो रहा है। सारस की लम्बी गर्दन सामने नीचे की और झुकी हुई दिखाई दे रही है। पुरातत्ववेताओं के द्वारा सारस पक्षी की माप चोंच से पंजे तक सात फीट ज्ञात की गई है। सारस पक्षी का यह विशाल शैलचित्र माना जा सकता है। यह गेरूए रंग से बना हुआ है। इसका चित्रण अर्द्धपूरक तथा अंलकृत शैली में किया गया है। सारस पक्षी के शैलचित्र को देखकर लगता हैं कि इसके अंकन में अत्यन्त कुशलता और परिश्रम से इसका निर्माण किया गया है। इस शैलचित्र में रूप-संयोजन तथा भाव-भगिंमा इसको विशिष्ट बनाती हैं। पाषाणकालीन मानव ने इसमें वात्सल्य भावना का कलात्मक चित्रण प्रस्तुत किया है। पुरातत्ववेताओं के अनुसार यह शैलचित्र मध्यपाषाण काल का हो सकता हैं।

सर्पाकन शैलचित्र:-

सीहोर जिले की इच्छावर तहसील के कठौतिया गाँव में शैलाश्रय क्षेत्र में अंलकृत शैली में लाल तथा सफेद रंग से बना सर्प का विशिष्ट चित्रांकन मिला है। यह शैलचित्र लगभग 06 फीट लम्बा है। यह शैलचित्र द्विवर्णीय सुन्दर रंग-संयोजन में चित्रित किया गया है। सर्प चित्रांकन की आकृति को आयताकार खानों में विभाजित करके कुछ खानों को रंग से भरा गया है तथा कुछ आयात में तंरग के समान रेखा से सुन्दर अंलकरण दिखाई देता है। सर्प के मुख भाग में लाल रंग का प्रयोग किया गया हैं। इस शैलचित्र का रूपाकंन बहुत ही अद्भूत तथा कलात्मक प्रतीत होता हैं। यह सुन्दर रंग-संयोजन के साथ ही आर्कषक अंलकरण से परिपूर्ण प्रतीत होता हैं। यह शैलचित्र पाषाणकालीन मानव की कला के प्रति अभिरूचि तथा सृजनात्मकता का प्रतीक हैं।

पुरातत्ववेताओं के अनुसार सर्पाकृति का स्पष्ट शैलचित्र अभी तक सभवतः कहीं से भी प्राप्त नहीं हुआ है। शैलचित्रों के सम्बन्ध में अभी तक की गई खोजों के आधार पर इतिहासकारों का कहना हैं कि इतने दीर्धस्वरूप तथा अंलकृत सर्प शैलचित्र का चित्रण संभवता विश्व में किसी भी क्षेत्र में प्राप्त नहीं हुआ है। इस प्रकार कह सकते हैं कि कठौतिया का सर्प शैलचित्र पाषाण कालीन मानव की चित्रकला का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत करता हैं।

मानव आकृति शैलचित्र:-

पाषाण कालीन पुरातात्विक स्थल कठौतिया में शैलचित्रों का अध्ययन करने से पता चलता हैं कि यहॉ से अनेक ऐसे शैलचित्र प्राप्त हुए है जिनमें मानव को अनेक प्रकार के क्रियाकलापों में प्रदर्शित किया गया है। शिकार करते हुए मानव का चित्रण तो अधिकांश किया ही गया है, इसके साथ ही मानव नृत्य करते हुए, धार्मिक क्रियाकलाप करते हुए, बजन उठाते हुए तथा युद्ध के दृश्यों में मानव का चित्रण यहाँ के शैलचित्रों में देखने को मिलता है। कठौतिया के शैलचित्रों में पुरूष आकृतियों के साथ ही स्त्री की आकृतियाँ भी चित्रित की गई हैं। स्त्री आकृति का चित्रण अनाज संग्रहण करते हुए, कूटते तथा पीसते हुए, बच्चे को स्तनपान कराते हुए किया गया हैं।

एक शैलचित्र में नृत्य करते हुए मानव समूह का अत्यन्त मनमोहक चित्रण किया गया है। यह चित्र लाल तथा सफेद रंगों से बना है। नृत्यरत् मानव की आकृतियाँ ज्यामितिक आकारों तथा अलंकृत शैली में चित्रित की गई है। शैलचित्र में नीचे दिखाई दे रहे मानव समूहों का हाथों का रेखांकन सयुंक्त रूप से इस प्रकार से किया गया हैं कि समस्त एक-दूसरे का हाथ पकड़कर नृत्य करते हुए दिखाई दे रहे हैं। इस चित्रण में कुछ मानव आकृतियों के एक पैर का रेखांकन नहीं किया गया है, शायद एक पैर को मोड़कर नृत्य करने की मुद्रा को दिखाने के लिए ऐसा चित्रण किया गया होगा। नृत्य मुद्राओं में मानव आकृति का इतनी कलात्मकता के साथ चित्रांकन करना पाषाणकालीन मानव की चित्रण-निपुणता को दिखाता है। इतिहासकारों के अनुसार यह शैलचित्र मध्य पाषाण काल का प्रतीत होता हैं।

कठौतिया की पाषाण निर्मित शिलाओं पर गायन तथा नृत्य करते हुए मानव आकृतियों का चित्रण प्राप्त होता है। यह चित्रण गेरूए रग से किया गया है, इस चित्रण में मध्य भाग में अंकित एक बड़ी मानव आकृति संभवता कोई वाद्य यन्त्र बजा रही है, जिसकी धुन पर अन्य मानव आकृतियाँ नृत्य करती हुई दिखाई दे रही हैं। चित्रण के दाहिनी तरफ विभिन्न क्रियाओं में रत सूक्ष्म मानव रूप दिखाई देते हैं। इसमें कुछ मानव स्वरूप एक-दूसरे के कन्धे पर बैठकर नृत्य करते दिखाये गये हैं। इस चित्रण में मानव आकृतियों का चित्रण पूरक तथा रेखीय विधि से किया गया है। यह शैलचित्र प्राचीन मानव की खुशी तथा उत्साह को प्रकट करता है। यह चित्र उनकी सांस्कृतिक गतिविधियों को प्रकट करता है। इस चित्रण में रूपसंयोजन आकर्षक तथा भावना प्रद्यान है। शैलचित्र में गति के साथ लयात्मकता भी पता चलती है। मानव की मुद्राओं का अत्यन्त कलात्मकता के साथ चित्रण किया गया है। पुरातत्ववेताओं के अनुसार यह शैलचित्र प्राचीन ताम्रकालीन समय का प्रतीत होता हैं।

एक शैलचित्र स्त्री मानव आकृति का है। यह स्त्री खाद्य प्रदार्थ को कूटते हुए दिखाई दे रही है। यह सम्पूर्ण चित्रण रेखीय विधि से बना हुआ है। इसको देखकर लगता हैं कि अल्प रेखाओं से समस्त आकृति में मुद्रा तथा भाव का सुन्दर चित्रण किया है। अन्य मानव आकृतियों के शैलचित्र भी यहाँ से प्राप्त हुए हैं।

निष्कर्ष:-

सीहोर जिले के कठौतिया में जो पाषाणकालीन शैलचित्र प्राप्त हुए है उनका विश्लेषण करने से ज्ञात होता हैं कि पाषाण कालीन मानव द्वारा अत्यन्त निपुणता से शैलचित्रों में रेखांकन किया गया है। उकेरे गये चित्रों में विषय वस्तु की विविधता दिखाई देती हैं। शैलचित्रों में उत्तम रूप रचना तथा संयोजन तथा कलात्मकता स्पष्ट दिखाई देती हैं। चित्रांकन में भावों की अभिव्यक्ति इनकी विशेषता है, जिसमें हर्ष, उत्साह, शौर्य और वात्सल्य आदि भाव दृष्टिगत होते हैं।

शैलचित्रों में विभिन्न भावों के साथ ही चित्रांकन में लय, गति, संतुलन, कल्पनाशीलता का सुन्दर समावेश दिखाई देता हैं।

पाषाण कालीन मानव की सभ्यता और संस्कृति के सम्बन्ध में यह शैलचित्र महत्वपूर्ण हैं।

सन्दर्भ सूची :-

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