शोध- विमर्श

अंतरविषयी, बहुविषयी और परा विषयी अध्ययन का विश्लेषण

डॉ. अमित राय 
सहायक प्रोफेसर
दूर शिक्षा निदेशालय
म.गां.अं.हिं.वि.वि.वर्धा

उच्च शिक्षा शोध के सम्बन्ध में जहाँ नए नए नवाचारों पर जोर दिया जा रहा है ऐसे में शोध के विभिन्न क्षेत्रों को अपने विषय में शोध के दौरान आनेवाली परेशानियों को दूर करने और नवाचार की दृष्टि से अंतरविषयी, बहुविषयी और परा विषयी शोधों का प्रचलन बढ़ा है, यह प्रचलन केवल शोध की वैज्ञानिकता को नई दृष्टि ही नहीं प्रदान कर रहा बल्कि शोध प्रविधि की नयी दृष्टि का निर्माण भी कर रहा है, उदाहरण के लिए उत्तर आधुनिक पाठ्यक्रमों में जहाँ स्टडीज (studies) जैसे नए अनुशासनों का दायरा बढ़ा है वैसे ही पारंपरिक अनुशासनों की सैद्धान्तिकता, परिकल्पनाओं, संकल्पनाओं के दायरे में भी वृद्धि हुई है।

ऐसे में शोधार्थी के लिए अपने अनुशासनों से के दायरे से मुक्त होकर शोध करने की स्वतंत्रता भी मिली है और समाज विज्ञान के शोध में नए परिणाम भी आये हैं, यहाँ अनुशासन का पाम्परिक अर्थ है एक सीमित दायरा, जिसके भीतर ही उस विषय की संकल्पनाएँ, फिनोमिना, उसके विशेषज्ञ शामिल होते हैं और इसमें ज्ञान के क्षेत्र विशेष का दावा मौजूद है, वहीँ एक अनुशासन दूसरे अनुशासन के साथ मिलकर एक नए दायरे ‘स्टडीज’ या अंतरानुशासन का निर्माण भी करता है, तो ऐसे में दोनों अनुशासन के तत्व उस नए अंतरानुशासन या अंतर्विषय में शामिल होते हैं, ऐसे में शोधार्थी को एक ओर जहाँ दोनों ही अनुशासनों के दायरों के पूरे इतिहास से मुक्ति मिलती है तो वहीँ दूसरी ओर उन पूर्व के अनुशासनों से उसका जुड़ाव भी लगातार बना रहता है। विचार यह किया जाना चाहिए कि क्या कारण है कि इतिहास, समाजशास्त्र, हिंदी, समाज विज्ञान आदि पारंपरिक विषयों को स्टडीज शब्द से संबोधित क्यों नहीं किया जाता जबकि नए उत्तर आधुनिक पाठ्यक्रमों जैसे दलित अध्ययन, स्त्री अध्ययन, शान्ति अध्ययन आदि को ‘स्टडीज’ शब्द से संबोधित किया जाता है, दरअसल ये विषय उन पारंपरिक अनुशासनों की जटिलता को समाप्त कर अंतर्विषयकता को जन्म देते है जिसे हम अन्तरानुशासनिकता या अंतर्विषयकता कहते हैं। इसे बहुवचन स्टडीज (Studies) के रूप में ही स्वीकार किया जाता है क्योंकि पारंपरिक अनुशासनों से इतर अन्तरानुशासनिक विषयों में कई अनुशासनों को आंशिक रूप से स्वीकार किया जाता है जैसे शान्ति अध्ययन में जहाँ अर्थशास्त्र, राजनीति शास्त्र, मनोविज्ञान, समाजशास्त्र, दर्शन शास्त्र आदि का समावेश होता है वहीँ इसके अपने पारंपरिक अनुशासन ‘इतिहास’ में इनका एक साथ समावेशन संभव नहीं है। इसलिए अन्तरानुशासनिकता शोध की संभावनाओं के नए क्षेत्रों को उपलब्ध कराता है।

अंतरानुशासनिकता अध्ययन का सीधा सम्बन्ध इंटीग्रेशन से है जिसका मतलब है सम्पूर्ण दृष्टि या सम्पूर्णता का निर्माण। अंतरानुशासनिकता के परिप्रेक्ष्य में संघटन (इंटीग्रेशन) एक प्रक्रिया है जिसके द्वारा दो या दो से अधिक विचारों, डाटा, सूचना, प्रविधियां, औजारों, उपकरणों, संकल्पनाओं को संश्लिष्ट, जोड़ा या मिलाया जाता है। सामान्य तौर पर हम कह सकते हैं कि अंतरानुशासनिकता दो या दो से अधिक विषयों के बीच का परस्पर संवाद है। अंतरानुशासनिकता के विशेषज्ञों का मानना है कि इंटीग्रेशन अंतरानुशासनिकता का लक्ष्य होना चाहिए क्योंकि यह जटिलताओं को चुनौती देता है। यह साहित्य को शिक्षा और शोध से जोड़ता है और सिद्धांत आधारित शोध प्रक्रिया को विकसित करता है और बताता है कि वह कैसे संचालित होता है, (नेवेल)[1] वे अंतरानुशासनिक विषय के चारों ओर निर्मित अर्थों की अनिश्चितता को घटाने की वकालत करते हैं। अनुशासन अंतरानुशासनिक अध्ययन का एक हिस्सा है – अकादमिक जगत में अनुशासन सीखने की एक विशेष शाखा है या ज्ञान का एक निकाय है, जैसे भौतिकी, बायो, केमिस्ट्री, साहित्य आदि। अनुशासन में वास्तविक अर्थ और वाक्य विन्यास में एक विरोधाभास होता है – यह स्वयं को संगठित करने और तर्क करने के नियमों को परिभाषित करने का तरीका है जिसे अन्य लोग चुनौती देते हैं। उनके पास उनके बारे में उनकी समस्याओं के बारे में, विषय के बारे में, मुद्दों के बारे में कहने के लिए विभिन्न तरीके होते हैं जो उनके विषय क्षेत्र के होते हैं ।

प्रत्येक विषय का अपना विषय क्षेत्र और विधियों के सम्बन्ध में अपना बौद्धिक इतिहास, सहमतियाँ और विवाद होते हैं और हर विषय के अपने विद्वानों का एक समुदाय होता है जो उस क्षेत्र के अध्यापन और उसे सीखने में रूचि लेता है। विषय कई कारकों के माध्यम से एक दूसरे से विशिष्ट होते हैं, इसमें उनके विश्व के बारे में, उनके परिप्रेक्ष्य के सम्बन्ध में कुछ मान्यताएं होतीं हैं दृष्टिकोण होते हैं जिसमें लोग प्रशिक्षित होते हैं और इसी से ज्ञान का निकाय बनता है (नेवेल)

अकादमिक विषय

विद्वानों का समुदाय है जो यह तय करता है कि कौन सी फिनोमिना का अध्ययन किया जाए, कुछ केन्द्रीय संकल्पनाओं को आगे बढ़ाता है और सिद्धांतों को तैयार करता है, जांच की कुछ विधियों को सम्मिलित भी करता है। एक ऐसा मंच उपलब्ध कराता है जहाँ शोध और सूक्ष्म दृष्टियों को साझा किया जा सके और विद्वानों के लिए भविष्य का रास्ता भी देता है। प्रत्येक विषय के अपने पारिभाषिक तत्व होते हैं – फिनोमिना, मान्यताएं, ज्ञान मीमांसा, संकल्पनाएँ, सिद्धांत और विधियाँ – जो अन्य अन्य विषयों से उसे अलग और विशिष्ट बनाती हैं।

‘इतिहास’ एक ऐसा विषय है जो ऊपर के इन सभी मानदंडों को जोड़ता है, इसमें सब कुछ तथ्यों पर आधारित है, सब कुछ जो भी है वह मानव इतिहास में दर्ज हैं। इसमें कई संख्या में संकल्पनाएँ या विचार हैं। जैसे (उपनिवेशवाद, नस्लवाद, स्वतंत्रता और लोकतंत्र) – वह ऐसे सिद्धांतों को तैयार करता है जो सिद्धांत असाधारण रूप से मुख्य लीक से हटकर हुए हैं। ‘द ग्रेट मेन थियरी’ का मानना है कि अमरीकन सिविल वार बहुत लंबा चला और बहुत ही रक्तपात हुआ क्योंकि राष्ट्रपति लिंकन ने 1962 में मुक्ति घोषणापत्र को करना तय कर लिया था।

इसमें प्राथमिक स्रोतों का आलोचनात्मक विश्लेषण का उपयोग किया जाता है जैसे पत्र, डायरियां, कार्यालयी दस्तावेज और द्वितीयक स्रोतों जैसे किताबें, लेख या विषय, भूतकाल की घटनाओं और व्यक्तियों के उस विशिष्ट समय और स्थान में व्यक्त करने के लिए एक सुसंगत तस्वीर को व्यक्त करने के लिए कई शोध विधियों के गहन अध्ययन के माध्यम से उपयोग करता है ।

अंतरानुशासनिकता (अंतर विषयकता) का उदय:

ये अध्ययन के वे क्षेत्र हैं जो पारंपरिक अनुशासनों की सीमाओं को तोड़ता है और विविध प्रकार के वार्तालापों को शामिल करता है। इस वार्तालाप में विद्वानों के अनौपचारिक समूहों से लेकर स्थापित शोध और शिक्षक समुदाय तक के सभी लोग शामिल होते हैं। एक बेहतर उदाहरण न्यूरोसाइंस और बायो केमिस्ट्री का है जिसमें पर्यावरण विज्ञान, मनोभाषा विज्ञान (साइको लिंग्विस्टिक्स, नैनो तकनीकी, जियो बायलोजी, सस्टेनेबिलिटी, स्त्री अध्ययन, शहरी विज्ञान, अमरीकन स्टडीज सभी शामिल हैं ।

अंतरानुशासन, अनुशासन से अपनी उत्पत्ति, विशेषता, स्थिति और विकास के स्तर की शब्दावली में अलग है उदा. आणविक बायलोजी, इस विषय की उत्पत्ति डी.एन ए. की संरचना की खोज और नई तकनीक के विकास के कारण हुई। इससे केमिस्ट, जेनेटीसिटी, फिजिसिस्ट, बैक्टीरियोलाजिस्ट, जूलोजिस्ट आदि बने जो मेडिकल की समस्याओं का समाधान करते हैं। इसमें रिजिडिटी नही होती, आज के अनुशासन पिछले कल के सब अनुशासन हो सकते हैं, ऐसा नहीं है कि उनमें परिवर्तन नहीं होते, वे पिछले अनुशासन की एक शाखा हो जाते हैं। उदाहरण: इतिहास का विकास, जो 19 वीं सदी के मध्य के पूर्व का है, उसकी कॉलेज में बहुत छोटी भूमिका होती है वह वहां साहित्य की एक शाखा की तरह है परन्तु एक स्वतंत्र अनुशासन की तरह बढ़ती है जिसमें राजनीतिक और आर्थिक परिप्रेक्ष्यों को समाहित करती है। इतिहास में मानविकी भी है और समाज विज्ञान भी।

अन्तरानुशासनिकता के माध्यम से

  1. शोधार्थी किसी विषय से या लक्ष्य से या वर्तमान अनुशासन के सांचों से विमुख होते हैं।
  2. वे अनुशासन में दिए गए ध्यान की कमी को ज्ञान से भरते हैं
  3. नए ज्ञान का निर्माण करते हैं।

अंतरानुशासनिक अध्ययन में ‘इंटर’ शब्द एक हिस्सा है इंटर का अर्थ है बीच में या दो या दो से अधिक को खोलने वाला और अंतरानुशासन का अर्थ है विशेष क्षेत्र का अध्ययन या विशेषज्ञता। अर्थात अंतरानुशासनिक अध्ययन का मतलब है दो या दो से अधिक क्षेत्रों के मध्य का अध्ययन। यह ‘विवादास्पद’ जगह को बताता है-कई अंतरानुशासन अध्ययन दो अनुशासनों के बीच विवादास्पद जगहों का परीक्षण करता है उनके बीच की समस्याओं का, मुद्दों का उनके प्रश्नों का जो कई अनुशासनों का ध्यान केन्द्रित करता है। उदाहरण के लिए 9/11 के बाद अपराध-यह एक अंतरानुशासनिक समस्या है क्योंकि यह एक आर्थिक समस्या है, एक नस्लीय समस्या है और एक सांस्कृतिक समस्या भी। विलियम नेवेल के अनुसार, किसी समस्या की अंतरानुशासनिकता की परीक्षा प्रत्येक योगदान करने वाले अनुशासन से दूरी नहीं है बल्कि यह बताना है कि वह समस्या मुख्य रूप से कई तरह की है या जटिल तरह की है। अंतरानुशासनिकों के ध्यान का केंद्र अनुशासन नहीं है: उनका मुख्य केंद्र समस्या, मुद्दा या बौद्धिक प्रश्न है जिसे प्रत्येक अनुशासन बताता है। सामान्य रूप से कहें तो अनुशासन सरल तौर पर साध्य के लिए साधन है। इंटर सूक्ष्मदृष्टि को बताता है – यह सूक्ष्मदृष्टि की पूरी जानकारी पर किये गए कार्य को बताता है यदि कुछ दो या दो से अधिक क्षेत्रों के अध्ययन से निकलकर आता है कोई सूक्ष्मदृष्टि या पूरी जानकारी आती है जो कि शोध पर आधारित है तो अंतरानुशासनिको के द्वारा उसके आधार पर उन्हें जोड़ने के लिए किया गया कार्य इंटर है। यह इंटीग्रेशन के परिणाम को बताता है परिणाम के फलस्वरूप इस समझ को कई उद्देश्यों जिनमें नयी योजनाओं का निर्माण, नए शोध प्रश्नों को बनाना और नयी कृति का निर्माण और तकनीक उत्पादों को उपयोग में लाने की समझ बन सके यह इंटर बताता है।

संक्षेप में इंटर शब्द के परिप्रेक्ष्य हैं, ये दो अनुशासनों के बीच विवादास्पद जगह को बताता है, अनुशासनिक सूक्ष्मदृष्टि पर किये गए कार्य को बताता है, ज्ञान के विकास को बताता है जिससे अधिक व्यापक समझ का निर्माण हो।

‘स्टडीज’ (Studies)

द्वितीय विश्व युद्ध के अंत से शब्द ‘स्टडीज’ के इतिहास शुरू होता है, इसकी शुरुआत भौगोलिक क्षेत्र के अध्ययन से होने को बताता है (जैसे सोवियत स्टडीज) और ऐतिहासिक समय को भी बताता है (नवजागरण काल को) हाल के दशकों में हालांकि यह शब्द सांस्कृतिक समूह में शिफ्ट हो गया है (इसमें वीमेन, हिज पंक और अफ्रीकन अमरीकन) यह माडर्न अकादमी का शब्द है। कुछ मामलों में पुराने विषयों में भी इसका प्रयोग होता है, खासकर मानविकी में, जैसे इंग्लिश स्टडीज और लिटरेरी स्टडीज।

पारंपरिक अनुशासनों को स्टडीज नही कहा जाता क्योंकि प्रत्येक स्थापित अनुशासन का सार्वजनिक रूप से माना गया एक ज्ञान का केंद्र होता है और यह विशिष्ट पाठ्यक्रम में विभक्त होता है जिसे कुरीकुलम कहते है। सभी संस्थानों के अपने अपने कुरिकुलम होते हैं। प्रत्येक स्थापित अनुशासन का अपना एक कुरीकुलम होता है, पाठ्यक्रम होता है, पाठ्यक्रम का शीर्षक होता है। इतनी भिन्नताओं के बावजूद उनका एक क्षेत्र निश्चित होता है, उनकी टेरिटरी निश्चित होती है। क्या कारण है कि बायलोजी या इतिहास को स्टडीज नही कहते। क्योंकि उनके अध्ययन का केंद्र उनका कुरिकुलम जैसे उनके शोध और शैक्षणिक डोमेन में बेहतर तरीके से स्थापित और मान्य होता है।

स्टडीज अन्तरानुशासनिक अध्ययन का इन्टीग्रेट हिस्सा है, अनुशासन और अन्तरानुशासनिक अध्ययन में अंतर है अन्तरानुशासनिक अध्ययन ज्ञान के केंद्र के सार्वभौमिक मान्यता का दावा नहीं करता जैसा कि अनुशासन करता है, बल्कि वह विद्यमान अनुशासनिक ज्ञान पर अपने को खडा करता है जबकि हमेशा ही सम्मिलन के माध्यम से उसे आगे बढ़ाता है। अन्तरानुशासनिक अध्ययन अपने स्वयं के द्वारा उत्पादित ज्ञान की अपनी एक शोध प्रक्रिया को रखता है लेकिन वह अनुशासन से विधियों को उधार भी ले सकता है यदि वह उपयुक्त विधि हो। अन्तरानुशासनिक अध्ययन, अनुशासन की तरह नए ज्ञान को लाने को खोजता है परन्तु उसको इंटीग्रेशन की प्रक्रिया से पूरा करने की कोशिश करता है जबकि अनुशासन ऐसा नहीं करता।

स्टडीज शब्द बहुवचन क्यों है?

यह अनुशासनों के बीच विचारों की पारस्परिकता के कारण बहुवचन है। इस आरेख में यह बॉक्स अनुशासन को बताता है और इसके भीतर उपस्थित बिंदु स्टडीज को

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स्टडीज कार्यक्रम उन शोध समस्याओं को मान्यता देता है जिन्हें किसी भी एक पक्ष से आसानी से नहीं समझा जा सकता, क्योंकि इसमें कई विशेषज्ञों की भागीदारी की जरुरत होती है सभी अपनी अपनी विशिष्ट अनुशासन दृष्टि से उस समस्या को देखते हैं। स्टडीज पर यह आलोचना होती है कि इसमें अनुशासन की गहराई नहीं होती इसमें विषयवस्तु और विद्वता की कमी होती है। स्कोलरशिप एक ज्ञान में योगदान है जो पब्लिक आलोचना और विकास के लिए अतिसंवेदनशील होती है।

बहुविषयी अध्ययन (मल्टी अनुशासनिक अध्ययन)

यह दो या दो से अधिक अनुशासनों से सूक्ष्मदृष्टियों को एक एक करके रखती है। उदा. के लिए इस तरह का व्यवहार एक पाठ्यक्रम में उपयोग आता है जो विभिन्न अनुशासनों के निर्देशन (instructors) को कोर्स शीर्षक के परिप्रेक्ष्यों को श्रंखलाबद्ध तरीके से व्यक्त करने को आमंत्रित करता है परन्तु इन परिप्रेक्ष्यों से जो पूरी जानकारी मिलती है उन्हें इन्टीग्रेट करने का कोई प्रयास नहीं करता। यहाँ पर अनुशासनों के बीच सम्बन्ध है वह one of proximity का है। यहाँ पर उनके बीच किसी भी तरह का वास्तविक इंटीग्रेशन नहीं है। विभिन्न अनुशासनों से ली गयी सूक्ष्म जानकारियों को किसी तरह से एक साथ रखना परन्तु इंटीग्रेशन के कठिन कार्य से अलग रखना मल्टी अनुशासनिक अध्ययन है। मल्टी अनुशासनिक अध्ययन में एक से अधिक प्रत्येक अनुशासन शामिल होता है जिसमें प्रत्येक अनुशासन का पृथक योगदान होता है। (नेशनल अकादमी 2005)

एक तरह से ये ‘सलाद प्लेट’ की तरह है जिसमें प्रत्येक का अपना पृथक अस्तित्व होता है, इसमें प्रत्येक अवयव की विजुअल अपील के अलावा और कुछ आधार नहीं होता। जबकि ‘स्मूथी’ में प्रत्येक तत्व का अपना अलग अलग फ्लेवर नहीं होता बल्कि वह नए तरह का फ्लेवर का निर्माण होता है। स्मूथी में फलों का चयन (अनुशासन और उनकी इन्साईट) रेंडम नहीं है लेकिन उद्देश्यपूर्ण है और अंतिम उत्पाद साफ़ तौर पर दिखाई देता है जो कि मल्टी अनुशासनिक अध्ययन में नही दिखाई देता है , यह फलों का मिश्रण है जिसमें इंटीग्रेशन की पक्रिया प्रत्येक फल के योगदान को बदल देती है (अनुशासन की इन्साईट), स्मूथी (इंटीग्रेशन का परिणाम) अवयवों की तुलना में नया होता है, कुछ अलग होता है। स्मूथी बनाने में शामिल क्रियाविधि (अन्तरानुशासनिक अध्ययन शोध प्रक्रिया) शोध समस्या के लिए सीमित समय और स्थान की है।

कोई भी अनुशासन पारस्परिक हितों की समस्या पर अपनी पृथक आवाज रखता है, हालांकि अनुशासन पर कोई प्रश्न चिन्ह नहीं है और प्रत्येक विशिष्ट तत्व अपनी मूल पहचान रखता है, इसके विपरीत अन्तरानुशासनिक अध्ययन सचेतन रूप से पृथक अनुशासन के डाटा, संकल्पना, सिद्धांतों और प्रविधियों को किसी भी जटिल समस्या या बौद्धिक प्रश्न की अन्तरानुशासनिक समझ बनाने के लिए इन्टीग्रेट करता है ।

मल्टी अनुशासनिक अध्ययन व अन्तरानुशासनिक अध्ययन में यह समान है कि ये दोनों ही अनुशासन के एकसत्तावाद पर विजय पाता है, हालांकि उनका तरीका अलग अलग है। मल्टी अनुशासनिक अध्ययन विभिन्न अनुशासनिक परिप्रेक्ष्यों को बढ़ावा करने की सीमित क्रियाविधि है। परन्तु अन्तरानुशासनिक अध्ययन समस्या के लिए उपयुक्त अनुशासनात्मक सिद्धांतों, संकल्पनाओं, विचारों और विधियों को शामिल करना है।

इसका मतलब यह भी है कि जांच की वैकल्पिक विधियों को विभिन्न अनुशासनात्मक औजारों का उपयोग करके खोलना और सावधानीपूर्वक एक औजार की तुलना में दूसरे की उपयोगिता की माप को जांचना, यह सब समस्याओं के परिप्रेक्ष्य में ही होगा (निकितिना 2005)[2]

Multi D Inter D

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परा विषयी अध्ययन (ट्रांस अनुशासनिक अध्ययन)

परा विषयी अध्ययन अन्तरानुशासनिक अध्ययन से इस मायने में भिन्न है कि दोनों का ही अनुशासन के सन्दर्भ में नजरिया अलग अलग है । अन्तरानुशासनिक अध्ययन प्राथमिक रूप से अनुशासन पर उनके परिप्रेक्ष्यों, सूक्ष्मदृष्टियों, संकल्पनाओं, सिद्धांतों, डाटा और विधियों पर आश्रित है और विशिष्ट समस्या की एक बेहतर समझ को बनाने का कार्य करता है न कि समस्या की एक जैसी श्रेणी के निर्माण का। हालांकि अन्तरानुशासनिक अध्ययन एक पुरातन शोध प्रक्रिया का उपयोग करती है जो अनुशासन की विधियों को शामिल करती है। अन्तरानुशासनिक अध्ययन अनुशासन से बाहर जाकर इंटीग्रेशन पर केन्द्रित करता है। इसका क्षेत्र सभी आवाजों के लिए खुला है। (उदा. स्टेकहोल्डर.अंशधारक दृष्टिकोण अकादमी से परे भी)

परा विषयी अध्ययन (ट्रांस अनुशासनिक अध्ययन) अनुशासनों को लेकर एक अलग तरह का रवैया लेता है। ज्ञान की एक सम्पूर्ण व्यवस्था की निर्मिति के लिए जो पूरी तरह अनुशासनों से परे है (निकोलेस्क्यु)। क्वांटम भौतिकी के विद्वान वैज्ञानिक और धार्मिक एकता के एकीकरण को बढ़ावा दे रहे हैं इसलिए कि ज्ञान की एकता हमारी एकता के साथ हो। उदाहरण के लिए वह देखते हैं कि ट्रांस अनुशासनिक सम्पूर्ण स्वास्थ्य प्रेक्टीशनर को मदद कर रही है उनको जो बीमारियों की समझ को बढ़ावा देने की दिशा में काम कर रहे हैं जैसे कुछ बीमारियाँ जो फेब्रिक से अंतर्संबंधित हैं – शरीर, प्लस माइंड, प्लस स्पिरिट – जो सम्पूर्ण मानव को बनाता है।

एक अन्य मत परा विषयी अध्ययन (ट्रांस अनुशासनिक अध्ययन) के बारे में कहता है वह ट्रांस सेक्टर समस्याओं को समाधान करने वाला है जहाँ अध्ययन का केंद्र बड़ी समस्याओं (मेगा प्रोब्लम) या व्यापक सोच (ग्रेंड थीम) को लेकर है जैसे ‘द सिटी’ या पारिस्थितिकीय टिकाउपन (Ecological Sustainability)। इस तरह की व्यापक और जटिल समस्याओं के लिए समाज के विभिन्न अनुशासनों से, विभिन्न व्यावसायों के लोगों को एक साथ मिश्रित कर उनके बीच सहयोग की जरुरत होती है।

U.S. में Klein (2010)[4] – परा विषयी अध्ययन एक संकल्पनाबद्ध है एक तरह के सीमा से परे अंतराअनुशासनिक शोध के रूप। परा विषयी अध्ययन (ट्रांस अनुशासनिक अध्ययन) के विशेषज्ञों कि टीम साइंस आन्दोलन स्वास्थ्य और बेहतरी के लिए सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, पर्यावरणिक और सांस्थानिक कारकों को समझने के लिए नए सैद्धांतिक सांचों को बढ़ावा दे रहा है।

मल्टी अनुशासनिक, अंतरा अनुशासनिक और ट्रांस अनुशासनिक के बीच अंतर

  1. मल्टी अनुशासनिक अध्ययन कई अनुशासनों के परिप्रेक्ष्य से एक समय में एक टॉपिक लेता है परन्तु यह उनकी इन्साईट से इन्टीग्रेट करने का कोई प्रयास नहीं करता। मल्टी अनुशासनिक की एप्रोच घरेलू अनुशासन द्वारा प्रस्तावित विधियों और सिद्धांतों से प्रभाविता की झुकाव वाली है।
  2. अंतर अनुशासनिक जटिल समस्या (जिसमें मेगा प्रोब्लम्स भी शामिल है) का अध्ययन अनुशासनात्मक इन्साईट को एक साथ रखकर करता है (कभी कभी अंशधारक दृष्टिकोण को भी शामिल करता है) और इन्टीग्रेट भी करता है। शोध प्रक्रिया में दक्ष होकर जो सम्बंधित अनुशासनों की प्रक्रियाओं को शामिल करता है। अंतर अनुशासनिक का कार्य किसी विशिष्ट अनुशासन की विधि या सिद्धांत को महत्त्व नही देता।
  3. ट्रांस अनुशासनिक (परा विषयी अध्ययन) की सम्बद्धता उससे है जो अनुशासनों के बीच की है और विभिन्न अनुशासनों को तोड़ता है और सभी अनुशासनों के परे है। इसके लक्ष्य विद्यमान विश्व को समझना है। कुछ पुरातन सिद्धांत के आधार पर अंतरा अनुशासनिक और अंशधारक के दृष्टिकोणों को जोड़कर बड़ी, व्यापक और जटिल समस्याओं के समाधानों को खोजना है।

पारंपरिक विषयों की शोध पद्धतियों की अपनी कुछ तय प्रक्रियाओं से इतर अंतरविषयी, बहु विषयी और परा विषयी अनुशासनों की सैद्धांतिकी ने नई नई प्रविधियों को इजाद किया है जो कि उसकी अपनी जरूरतों से सामने आयीं हैं, जहाँ पहले शोध प्रविधि के अंतर्गत शोधार्थी शोध विषय से सम्बंधित प्राथमिक और द्वितीयक आंकड़ों को प्राप्त करने के लिए निर्धारित क्षेत्र में जाकर व्यक्तिगत प्रयास किया करता था, वहीं अब बहुविषयी अनुशासनों में इसके स्वरूप में बदलाव आया है, उदाहरण के लिए यदि किसी गंभीर बीमारी को लेकर कोई रोगी अस्पताल में भर्ती है और इस गंभीर बीमारी के व्यापक स्तर पर इसके सामाजिक आर्थिक सांस्कृतिक या एनी विभिन्न आयामों पर शोध किया जाना है तो अन्तरानुशासनिक शोध पद्धति के अंतर्गत जहाँ व्यक्तिगत रूप से मिलकर रोग के एक पक्ष की जानकारी अर्जित करता था परन्तु बहु विषयी अध्ययन में अब बीमारी से सम्बंधित विभिन्न पक्षों की जानकारी के लिए विभिन्न अनुशानों के विशेषज्ञों का एक समूह बनाकर एक साथ अलग अलग क्षेत्रों के प्रश्नों के माध्यम से जानकारी अर्जित की जाती है, ऐसे में स्रोत से प्राप्त जानकारी का बहु विषयी प्रणाली में समावेशन तो नहीं होता लेकिन विषय से सम्बंधित समस्त पक्षों की जानकारी उसे एक साथ प्राप्त हो जाती है और उसे सम्पूर्णता में अध्ययन का अवसर मिल जाता है, वैसे ही परा विषयी अध्ययन में एक साथ दोनों ही प्रविधियों के माध्यम से विषय के विश्लेषण हेतु समस्त जानकारी प्रप्प्त की जाती है। ऐसे में व्यापक स्तर पर प्राप्त जानकारी के अनुसार एक व्यापक क्षेत्र से सम्बंधित समस्त आयामों पर नए विश्लेषण को सामने लाया जाता है जो एक दूसरे विषयों से सम्बंधित होते है जिन पर भविष्य में भी शोध की नई संभावनाओं को एक नई दिशा प्राप्त होती है।

इस तरह के शोध अध्ययनों की जरूरतें आज वैश्विक स्तर पर लगातार बढ़ रहीं हैं और शोध एवं शोध प्रविधियों के स्वरूपों में भी बदलाव आया है, शोध प्रक्रिया अब एकात्मक या व्यक्तिगत विषय न होकर सामूहिक हो गई है और इसके स्वरूप में बदलाव से जहाँ पहले विश्वविद्यालयों से अलग अलग क्षेत्रों में विभिन्न प्रकार के शोध किये जाते थे और वे वहीं तक सीमित रह जाते थे अब इन अध्ययनों ने एक संभावना को जन्म दिया है कि अब विश्व के स्तर पर एक चिंतन धारा का जन्म भारतीय स्कूलों से किया जा सकता है। अंततः इसकी परिणति जर्मनी के फ्रेंकफर्ट स्कूल की तर्ज पर अन्य भारतीय स्कूलों की निर्मिति में हो सकती है और इनके माध्यम से भारतीय विश्वविद्यालय विश्व को नई विचारधारा देने में सक्षम हो पायेंगे, जहाँ भारतीय मिथकों, इतिहास, धर्म राजनीति, अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र के अध्ययन के लिए हमें केवल पश्चिम पर निर्भर नहीं होना पड़ेगा, इसके लिए हम भारतीय ज्ञान परम्परा की अपनी नई शोध पद्धतियों का निर्माण कर सकते हैं, इसके लिए आवश्यक है कि हम वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाएँ और अपनी दृष्टि को वैज्ञानिक बनाएं और शोध के क्षेत्र में नवाचारों को अपनाने के लिए सकारात्मक प्रयास करें।

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