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कहानी

सात फेरों की चुभन- डॉ.वर्षा कुमारी

डॉ. वर्षा कुमारी संप्रति: स्वतंत्र लेखन तथा ब्लॉगर

हिन्दी कहानी का सौन्दर्य : चिंतन और विश्लेषण – डॉ. प्रवीण कुमार

कहानी की संवेदना अपनी आरंभिक काल से जनचेतना को कैसे प्रभावित करती रही है और उसका विकास मौखिक से लिखित होने की प्रक्रिया में कैसे हुआ। इसकी रूपरेखा इस शोधपत्र में दिया गया है। प्रेमचंदपूर्व, प्रेमचंदयुगीन और प्रेमचंदोत्तर हिन्दी कहानी की न केवल संवेदना बदली है बल्कि उसका सौन्दर्यबोध भी बदलता गया है। प्रस्तुत शोधपत्र में इसकी खोज का एक प्रयास किया गया है।

संस्कार और परिवार फिर तकरार

संस्कार और परिवार फिर तकरार ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था क्या करूं क्या नहीं ,एक तरफ मेरी प्यारी बीवी और दूसरी तरफ वो...

संस्कार और परिवार फिर तकरार* *(एक कथा) लेखक:- अरशद मिर्ज़ा*

संस्कार और परिवार फिर तकरार (एक कथा) लेखक:- अरशद मिर्ज़ा संस्कार और परिवार फिर तकरार मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था क्या करूं क्या नहीं...

थैंक यू शांता अनामिका अनूप तिवारी

थैंक यू शांता "शांता..मेमसाहब की तबियत ठीक नही है, चाय के साथ दो बिस्किट दे कर ये दवाई दे देना,मैं ऑफिस जा रहा हूं" गौरव...

उम्मीद

उम्मीद दिन भर का थका हारा सुखिया...

“हाशिए की क्रांति”: शिवानी कोहली

शिक्षा अमूल्य है, परन्तु जब राजनीति की जड़ें किसी भी संस्था से जुड़ जाती हैं तो सारा नियंत्रण उन जड़ों को पानी देने वालों के पास चला जाता है। किताबें, कपडे, खाना सब आता, परन्तु सरकारी दलालों के कारण वो बच्चों तक पहुँच नहीं पाता।
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