कहानी की संवेदना अपनी आरंभिक काल से जनचेतना को कैसे प्रभावित करती रही है और उसका विकास मौखिक से लिखित होने की प्रक्रिया में कैसे हुआ। इसकी रूपरेखा इस शोधपत्र में दिया गया है। प्रेमचंदपूर्व, प्रेमचंदयुगीन और प्रेमचंदोत्तर हिन्दी कहानी की न केवल संवेदना बदली है बल्कि उसका सौन्दर्यबोध भी बदलता गया है। प्रस्तुत शोधपत्र में इसकी खोज का एक प्रयास किया गया है।
शिक्षा अमूल्य है, परन्तु जब राजनीति की जड़ें किसी भी संस्था से जुड़ जाती हैं तो सारा नियंत्रण उन जड़ों को पानी देने वालों के पास चला जाता है। किताबें, कपडे, खाना सब आता, परन्तु सरकारी दलालों के कारण वो बच्चों तक पहुँच नहीं पाता।