विषपायी होता आदमी

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    विषपायी होता आदमी । VISHPAYI HOTA ADMI
    हिंदी पट्टी में मध्य प्रदेश न जाने किन विशिष्ट कारणों से व्यंग्य लेखकों के उत्पादन में अग्रणी है। इस क्रम में इंदौर के व्यंग्यकार सुधीर कुमार चौधरी का दूसरा व्यंग्य संग्रह ‘विषपायी होता आदमी’ प्रकाशित होकर आया है। उनके इस व्यंग्य संग्रह में 65 व्यंग्य शामिल किये गये हैं। संग्रह के प्रारंभ में अपनी बात के अंतर्गत लेखक के विचार पढ़कर व्यंग्य के प्रति उनकी प्रतिबद्धता झलकती है। वह व्यंग्य को उम्मीद की मशाल के…

    पुस्तक समीक्षा

    अन्याय के खिलाफ क्रांति के स्वर

    समीक्षक: राहुल देव

    एक संवेदनशील मनुष्य जब व्यवस्था में मौजूद विसंगतियों को देखकर चुप नही रह पाता तब उसकी कलम से जो शब्द रचना निकलती है वह ‘व्यंग्य’ का रूप धारण करती है। जो चीज़ें हम अपने आसपास सीधे सीधे नही बदल सकते उनके बदलाव के लिए हम छटपटाते रहते हैं। उसके पीछे उसके अपने अनुभव हो सकते हैं। मन के किसी कोने में पलता यही क्षोभ या आक्रोश व्यवस्था को सुधारने की नीयत लिए होता है और यह इसे पाठक तक संप्रेषित करने का काम व्यंग्य साहित्य के माध्यम से करता रहा है। जैसे जैसे हमारे समाज में विसंगतियां बढ़ रही हैं उसी गति से व्यंग्यकार भी बढ़ रहे हैं। यह अलग बात है कि उनमे से किसकी कलम को पाठक अपने सिर माथे रखते हैं और किसे समय भूलकर भी याद रखना नही चाहता। हिंदी पट्टी में मध्य प्रदेश न जाने किन विशिष्ट कारणों से व्यंग्य लेखकों के उत्पादन में अग्रणी है। इस क्रम में इंदौर के व्यंग्यकार सुधीर कुमार चौधरी का दूसरा व्यंग्य संग्रह ‘विषपायी होता आदमी’ प्रकाशित होकर आया है। उनके इस व्यंग्य संग्रह में 65 व्यंग्य शामिल किये गये हैं।

    संग्रह के प्रारंभ में अपनी बात के अंतर्गत लेखक के विचार पढ़कर व्यंग्य के प्रति उनकी प्रतिबद्धता झलकती है। वह व्यंग्य को उम्मीद की मशाल के रूप में देखते हैं। एक पंक्ति में कितनी सटीक परिभाषा उन्होंने दे दी है कि- ‘अपने भीतर के कबीर को मुखरित करना ही व्यंग्य है।’ ऐसे में उनके इस संग्रह से गुजरना मेरे लिए एक ज़िम्मेदार पाठकीय अनुभव से रूबरू होना रहा। सुधीर जी व्यंग्य क्षेत्र में पूरी तैयारी के साथ आए हैं। आपके व्यंग्य विषय सामान्य जनजीवन से लेकर सामाजिक, राजनीतिक, पर्यावरणीय विषयों पर केन्द्रित हैं। संग्रह के व्यंग्यों की भाषा-शैली सरल-सहज है। सुधीर जी यहाँ भाषा के खेल भले ही न हों लेकिन एक गंभीर वैचारिक पक्ष उनके पास हमेशा मौजूद रहा है। ऐसे व्यंग्यों पर अमूमन सपाटबयानी का खतरा मंडराता रहता है क्योंकि पूरे संग्रह की एकरसता पठनीयता को प्रभावित करती है। स्पष्ट है कि लेखक के लिए व्यंग्य मनोरंजन की विषयवस्तु नही है। उसका व्यंग्य विवेक सामाजिक सुधार की भावना लिए हुए है। संग्रह की रचनाओं से गुज़रते हुए यह भी लगता है कि यह व्यंग्य उनके विभिन्न अख़बारों में छपने वाली रचनाओं का संकलन है। मेरे विचार से इन पर किताब रूप में लाने से पहले थोड़ा और कार्य किया जा सकता है जिससे यह रचनाएँ साहित्यिक व्यंग्य के रूप में और ज्यादा उभर सकती थीं। यथार्थ के सीधे-सीधे प्रस्तुतीकरण में लेखकीय कल्पना का समावेश न होने से कहीं न कहीं यह रचनाएँ एक परिपक्व व्यंग्य रचना का रूप नही ले सकी हैं। संग्रह में कहीं-कहीं लेखक थोड़े में बड़ी बात कह जाते हैं लेकिन पूरे व्यंग्य में केवल एक या दो पंक्ति व्यंग्य की होने से पूरे व्यंग्य के साथ न्याय नही होने पाता। इन कमियों के बावजूद संग्रह की रचनाओं की उपयोगिता से इंकार नही किया जा सकता।

    राजनीति सुधीर जी का प्रिय विषय है। अपनी सम्पूर्णता में वह मुझे मौलिक लगे। सत्ता प्रतिष्ठान पर व्यंग्य करते हुए वे बेहद मुखर हो उठे हैं। कहीं कहीं तो उन्होंने नाम ले लेने से भी कोई गुरेज नही किया है। यह उनके साहसी होने का प्रमाण है। लेखन में किसी हस्तक्षेप को वे सहन नही करते। उनका अपना पक्ष आम जनता का पक्ष है।

    संग्रह से कुछ उल्लेखनीय व्यंग्य पंक्तियाँ आपके लिए प्रस्तुत हैं-

    • सरकार की चिंता पर्यावरण से ज्यादा गिनीज बुक में वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाने की थी। (तथाकथित विकास का विषारोपण बनाम वृक्षारोपण)
    • जिस तरह मानव की विकास यात्रा में पूंछ लुप्त हो गयी है, उसी तरह मोबाइल की विकास यात्रा में टेलीफोन का तार विलुप्त हो गया है। (सब जपें मोबाइल के गुण, बिन सेल्फी सब सून)
    • लोटा, कढ़ाई, करछुल रसोईघर में ही कैद रहे, जबकि चम्मच सत्ता के ड्राइंगरूम में बैठकर ऐश कर रहे हैं। (सर्वव्याप्त चम्मचों की चमत्कारी माया)
    • शहर इतना साफ़ है कि आवारा पशु भी इसकी सफाई को निहारने के लिए सड़कों पर खुलेआम विचरण करने लगे हैं। (स्वच्छता अभियान और व्यवस्था की सतह पर बिखरी गंदगी)
    • इस देश में कुछ भी चोरी हो सकता है। सरकारी सड़क चोरी हो जाती है। सरकारी नहर लापता हो जाती है। कागजों पर खोदे गये कुँए जमीन से चोरी चले जाते हैं। कभी बिजली गायब हो जाती है तो कभी नल से पानी। सरकारी अस्पताल से डॉक्टर और सरकारी स्कूल से मास्टर अदृश्य हो जाते हैं। चुनाव जीतने के बाद नेता नदारद हो जाते हैं। बढती महँगाई में गरीब की थाली से रोटी गायब हो जाती है। आम आदमी के सपने तक चोरी हो जाते हैं। (सरकार की कार का चोरी हो जाना)
    • समाचार यह है कि अच्छे दिन बुलेट ट्रेन पर सवार होकर आने वाले हैं। (बुलेट ट्रेन पर सवार अच्छे दिन)
    • जूते, चप्पल और सैंडिल प्रजातान्त्रिक गुस्से की अभिव्यक्ति का सर्वाधिक सशक्त माध्यम हैं। इनके बगैर प्रजातंत्र गूंगा है। (प्रजातंत्र की पैकिंग में लिपटे जूते-चप्पल)
    • भारत एक अमीर देश है जहाँ गरीब लोग बसते हैं। (अमीर देश के गरीब वासी)
    • घर में आटे से ज्यादा जरुरी मोबाइल का डाटा हो गया है। (सब जपें मोबाइल के गुण, बिन सेल्फी सब सून)

    जहाँ एक ओर ‘फेसबुक पर फाल्गुन’ शीर्षक व्यंग्य की प्रतीक योजना गज़ब की है। तो वहीँ दूसरी ओर ‘दुल्हन वही जो मोबाइल चलाये’ तथा ‘मोर्निग वाक बनाम कैट वाक’ जैसे व्यंग्यों में उन्होंने हास्य का भी बड़ा अच्छा पुट दिया है। संग्रह के अन्य कुछ महत्वपूर्ण व्यंग्यों में ‘क्रिकेट के कोलाहल में सिमटा राष्ट्रवाद’, ‘बाबा शरणम् गच्छामि’, ‘माइक, मंच, मीटिंग, मुर्गा और प्रजातंत्र’, ‘चाय, खिचड़ी, पकौड़े और प्रजातंत्र’, ‘राजनीति का खेल’ आदि हैं। पुस्तक का आवरण उपयुक्त तथा छपाई त्रुटिरहित तथा गुणवत्तापूर्ण है। पाठकों को अब लेखक से आगे और अच्छी व्यंग्य रचनाओं की उम्मीद रहेगी। मेरी शुभकामनाएं !

    मो. 9454112975

    विषपायी होता आदमी/ व्यंग्य संग्रह/ सुधीर कुमार चौधरी/ पुष्पांजलि प्रकाशन, दिल्ली/ 2019/ पृष्ठ 151/ मूल्य 395/-

     

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    राहुल देव
    युवा आलोचक, संपादक व कवि | प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित । विधाएँ : व्यंग्य, कविता, आलोचना, कहानी, संपादन। मुख्य कृतियाँ- कविता संग्रह : उधेड़बुन, हम रच रहे हैं आलोचना- हिंदी कविता का समकालीन परिदृश्य, समीक्षा और सृजन कहानी संग्रह : अनाहत एवं अन्य कहानियां संपादन : कविता प्रसंग, नए-नवेले व्यंग्य, चयन और चिंतन, आलोचना का आईना, सुशील से सिद्धार्थ तक आदि। अन्य : डॉ ज्ञान चतुर्वेदी के साथ साक्षात्कार पुस्तक 'साक्षी है संवाद', ब्लॉग पत्रिका 'अभिप्राय' का संचालन। सम्मान : प्रताप नारायण मिश्र युवा साहित्यकार सम्मान। आलोचना के लिए ‘अवध ज्योति’ सम्मान। हिंदी सभा का नवलेखन सम्मान आदि। सम्प्रति- अध्ययन-अध्यापन।