पंचरतंत्र की कथाएँ

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    पंचरतंत्र की कथाएँ । Panchartantra Ki Kathayen
    इंद्रजीत कौर का नाम समकालीन महिला व्यंग्यकारों में प्रमुखता से लिया जाता है। वह एक साहसी व्यंग्य लेखिका हैं। इस वर्ष रुझान पब्लिकेशन से उनका दूसरा व्यंग्य संग्रह ‘पंचरतंत्र की कथाएं’ प्रकाशित होकर आया है | इस संग्रह में उनके 56 व्यंग्य संकलित हैं | अपनी बात उन्होंने ‘व्यंग्य में सामयिकता’ पर विचार प्रकट करते हुए की है | व्यंग्य तात्कालिक विसंगतियों पर संवेदनशील मनुष्य की शाब्दिक प्रतिक्रिया होती जरुर है लेकिन उसे रचनात्मक साहित्य…

    पुस्तक समीक्षा

     तंत्र को अनावृत करती ‘पंचरतंत्र की कथाएँ’

    समीक्षक: राहुल देव

    व्यंग्य के लगभग पुरुषोचित समझ लिए गए क्षेत्र में नई पीढ़ी की स्त्री व्यंग्यकार भी पूरी मजबूती के साथ बराबरी करते हुए सामने आई हैं। उनके विषय भी केवल सामाजिक नही रह गए हैं बल्कि समय-समाज के राजनीतिक, आर्थिक, साहित्यिक, धार्मिक हालातों में मौजूद विसंगतियों पर भी वे पैनी नज़र रखकर लिख रही हैं। आमतौर पर मैं व्यंग्य लेखिकाओं पर अपनी आलोचनात्मक राय देने से बचता हूँ क्योंकि अधिकांश लेखिकाएं आलोचना को सहजता से नही ले पातीं | अगर कभी-कभार आपकी आलोचना भी हो तो वह इन्हें सकारात्मक भाव से ग्रहण करना चाहिए। उसके लिए विचलित होने की जरूरत नही है। प्रशंसा की तरह आलोचना भी आपकी रचनाशीलता के विकास का एक जरुरी हिस्सा है। आप सभी व्यंग्य लेखिकाएं समकालीन परिदृश्य में हिंदी व्यंग्य का एक उम्मीदों भरा चेहरा उपस्थित करती हैं।

    इंद्रजीत कौर का नाम समकालीन महिला व्यंग्यकारों में प्रमुखता से लिया जाता है। वह एक साहसी व्यंग्य लेखिका हैं। इस वर्ष रुझान पब्लिकेशन से उनका दूसरा व्यंग्य संग्रह ‘पंचरतंत्र की कथाएं’ प्रकाशित होकर आया है | इस संग्रह में उनके 56 व्यंग्य संकलित हैं | अपनी बात उन्होंने ‘व्यंग्य में सामयिकता’ पर विचार प्रकट करते हुए की है | व्यंग्य तात्कालिक विसंगतियों पर संवेदनशील मनुष्य की शाब्दिक प्रतिक्रिया होती जरुर है लेकिन उसे रचनात्मक साहित्य में किस तरह ढालें यह सीखना-समझना होता है नही तो एक सामान्य टिप्पणी और एक व्यंग्य रचना में अंतर करना मुश्किल हो जायेगा | इसलिए लेखक को इसकी चिंता छोड़ करके केवल गुणवत्तापूर्ण लेखन पर अपना फोकस करना चाहिए | रचना सामयिक होकर भी भविष्य में प्रासंगिक हो सकती है और रचना शाश्वत का लबादा ओढ़कर भी कूड़ेदान लायक हो सकती है | जब समय अनुकूल होता है तो एक सच्चा लेखक लिखे बगैर रह ही नही सकता है उसकी कलम से रचना फूट ही पड़ेगी |

    संग्रह के पहले व्यंग्य को पढ़ते हुए ही अवध की प्रखर व्यंग्य तासीर महसूस होने लगती हैं | इस तासीर के साथ जब पंजाबी फ्लेवर मिलता है तो एक अलग ही आनंद की सृष्टि होती है | इन्द्रजीत के पास सरोकार संपन्न विचारदृष्टि तो है ही जिसके साथ उनका भाषाई शरारत भरा व्यंग्य कौतुक मिलकर रचना को अत्यंत पठनीय बना देता है | इनके व्यंग्यों से गुज़रते हुए लेखिका का अपने परिवेश में व्याप्त विसंगतियों के प्रति गहरी संलग्नता दिखाई देती है | फिर चाहे वह ‘पुरुष सशक्तिकरण वाया फिल इन द ब्लेंक्स’ शीर्षक व्यंग्य हो या ‘होलियानी कविता और तुकबंदी की सा रा रा’ | वह कितने ही मज़े लेकर अपने विषय को शुरू करें लेकिन व्यंग्य के अंतिम उद्देश्य का उन्हें हमेशा स्मरण रहता है | इस कारण उनके व्यंग्य मनोरंजन की सीमित परिधि से निकलकर सार्थक व्यंग्य की परम्परा से जुड़ते हैं | ‘हमारी व्यवस्था की गुरुत्वाकर्षण तरंगें’ शीर्षक व्यंग्य के प्रारंभ में वह लिखती हैं- ‘न्यूटन के पास गुरुत्वाकर्षण सिद्ध करने के लिए एक सेब ही रहा होगा | हमारे पास तो नैतिकता, रुपये का मूल्य, पुलों की कतारें, विद्यालयों की छतें, फैशन परेड के कपड़े आदि कितनी ही चीज़ें हैं इस सिद्धांत को मजबूत करने के लिए |’

    व्यंग्यकार को प्रतीक योजना बनाकर व्यंग्य लिखने में तो जैसे महारथ हासिल है | संग्रह का ‘घासतंत्र और रजुआ’ शीर्षक व्यंग्य | मुझे लेखिका के इस संग्रह में कुछ व्यंग्यों के शीर्षक लम्बे मालूम होते हैं | शीर्षक रखने में हमें जल्दबाजी नही करनी चाहिए | रचना का शीर्षक हमेशा संक्षिप्त होना चाहिए तथा उसे सम्पूर्ण व्यंग्य का प्रतिनिधित्व करने वाला होना चाहिए | जैसे ‘ज्यों-ज्यों तबियत बिगड़ने लगी’ शीर्षक व्यंग्य | अपने कंटेंट में यह एक प्रभावशाली व्यंग्य है | इस व्यंग्य से मैं कुछ वक्रोक्तिपूर्ण पंक्तियाँ उदृत करना चाहूँगा –

    • कार्यक्रम वक्त के अनुसार होने के बजाय वक्ताओं के अनुसार शुरू हुआ |
    • माइक पकड़कर वे ख़ुशी से वक्ताये
    • खरखराती हुई आवाज़ में वो वचनाये
    • लोगों ने जितना समझा उस पर तालियाँ बजाईं और जहाँ नही समझा वहां और ज़ोरों से तालियाँ बजायीं |
    • विवादों से सुसज्जित इतिहास के बावजूद महाशय समाचार-पत्रों की सुर्खियाँ नही बटोर पाये थे |

    इन्द्रजीत कौर का लेखन बहुआयामी है | व्यंग्य के माध्यम से कहानी बुनने में वह बड़ी ही कुशल हैं | ‘राजा की ऐनक’ उनकी कुछ ऐसी ही व्यंग्यकथा है | इसे पढ़कर पाठक को लेखिका अपनी कल्पनाशीलता से चकित कर जाती है | वर्तमान प्रजातंत्र का इससे अच्छा रचनात्मक ट्रीटमेंट और क्या होगा | ‘एक थे विरोधचंद’ शीर्षक व्यंग्य कथा में लेखिका ने हरदम विरोधी मानसिकता वाले व्यक्तियों की इस प्रवृत्ति पर शानदार व्यंग्य रचा है | इसमें उन्होंने हास्य का अच्छा प्रयोग किया है- ‘वो जब पैदा हुए तो रोकर विरोध कर दिया कि माँ की कोख से क्यूँ जन्म हुआ, पिता से क्यूँ नही ? जब उनके मुँह में दूध की बोतल डाली गयी तो भी रोये थे कि दूध स्वास्थ्य के लिए नुकसानदायक है, कोकाकोला पिलाओ |’

    इस संग्रह में कुछ व्यंग्य मुझे कुछ अपूर्ण से लगे जिन्हें समय देकर और विस्तार दिया जा सकता था जैसे कि ‘चालाक कौए की सत्यकथा’ और ‘खाली थाली और उनका आभामंडल’  शीर्षक व्यंग्य | बाकी ज्यादातर व्यंग्य संतुलित शब्दसीमा के अंतर रचे गये हैं | ‘कलियुग, कालाधन और कौआ’ शीर्षक व्यंग्य में वह बड़ी सटीक व्यंग्ययोजना बनाकर जनता से किये हुए वादे तोड़ने वाली सत्ता के प्रति सवाल खड़े करती हैं- ‘यह कहा जाता है कि तीन चीज़ें जाने के बाद कभी वापस नही आतीं- मुँह से निकली हुई वाणी, कमान से निकला हुआ तीर और गुजरा हुआ वक्त | इसमें चौथी चीज़ और जोड़ सकते हैं, वो है – देश से बाहर गया हुआ कालाधन |’

    आंकड़ों की बाजीगरी से विकास का भ्रम फ़ैलाने वाली सरकार पर लिखा गया अत्यंत सशक्त व्यंग्य है ‘अकड़ के साथ आकड़े दिखाओ’ शीर्षक व्यंग्य | इन्द्रजीत के पास आम बोलचाल की सरल भाषा है जिसमे विट और आयरनी के सटीक प्रयोग से भाषा का अलग ही रूप निकलकर सामने आता है | शैली भी उसी के अनुसार ढली हुई है | ‘आप सच के पुलिंदे हैं सर’ में लेखिका का आक्रोश व्यंग्य की तीव्रता को और तेज कर जाता है- ‘आप जैसे सत्यवादी पर इतना घनघोर इल्जाम ! आप तो हरिश्चंद्र के अग्रज ही नही बल्कि पूर्वज भी हैं | आप सत्य के पास भले ही न जाते हों, सत्य आपके पास दौड़ा चला आता है |’ ‘भरी गगरी छलकत जाय’ शीर्षक व्यंग्य से एक उदाहरण और दृष्टव्य है- ‘वे जागेंगें तो देखेंगें | देखेंगें तो सोचेंगें | सोचेंगें तो बोलेंगें | बोलेंगें तो शोर भी मचा सकते हैं | शोर ज्यादा डेसिबल में हो गया तो तरंगों से कुर्सी हिल सकती है अतः उनका सोना जरुरी है, समझी !’

    संग्रह में कुछ व्यंग्य बड़े हल्के फुल्के विषय लगते हुए भी कहीं न कहीं गहरे अर्थ समेटे हुए हैं जैसे कि ‘आंटी की अंटी’ शीर्षक व्यंग्य | इसे पढ़ने हुए ताज्जुब नही होगा कि कहीं बाज़ार के सौन्दर्यजाल में उलझकर लेखिका ने खुद के अनुभव को ही तो शब्द नही दे दिए हैं | इन्द्रजीत व्यंग्य करते हुए किसी को नही बख्शती ‘जीवन के कोटेदार’ शीर्षक व्यंग्य में उन्होंने ऐसे दोमुंहे लोगों पर भरपूर तंज कसा है जो आपके सामने कहते कुछ हैं और आपकी पीठ पीछे करते कुछ हैं | ऐसे फर्जी उपदेशकों की अपने देश में कमी नही है | लेखिका ने अपने इस व्यंग्य में ऐसी प्रजाति के लोगों की जमकर ख़बर ली है |

    इन्द्रजीत कौर अपनी कुछ और विशेषताओं के कारण मेरी प्रिय व्यंग्य लेखिकाओं में से एक हैं | उनका लेखन दिनोदिन विकसित हुआ है | संग्रह का ‘रुपये की नाव’ शीर्षक व्यंग्य पढ़कर आप चकित रह जाते हैं | क्या ही दृष्टि और समझबूझ के साथ वह कठिन लगते आर्थिक विषय का निर्वाह करती है ! फिर जो रचना बनकर तैयार होती है वह कठिन नही बल्कि पठनीय हो जाती है | मैं अपने वक्तव्यों में इसे ही व्यंग्य कला कहता हूँ | इन्द्रजीत निश्चय ही जन्मजात प्रतिभासम्पन्न व्यंग्यकार हैं और इस प्रतिभा को उन्होंने घर-परिवार-नौकरी की जिम्मेदारियों के बीच भी जाया नही होने दिया है यह बड़ी बात है | उनका यह व्यंग्य रुपये के अवमूल्यन पर एक तार्किक बहस आमंत्रित करता है | इनके यहाँ मध्यमवर्गीय परिवार की समाजार्थिक समस्याओं को बेहतर स्वर मिला है |

    इसके अतिरिक्त इस संग्रह के कुछ अन्य उल्लेखनीय व्यंग्यों में ‘उठो, जागो, लफंगई करो’, ‘देश का बोनसाई पेड़’, ‘गाय, गौरैया और गंगा’, ‘आखिर बसंत मिल गया’, ‘मेरी और उनकी वर्षगांठ’, ‘मन तड़पत बहस करन को आज’, ‘हे अतिथि ! तुम कब आओगे’ आदि का नाम लिया जा सकता है जिन्हें पढ़कर हिंदी व्यंग्य की सार्थकता का एहसास होता है | यह सभी व्यंग्य अपना एक मौलिक मुहावरा गढ़ते हैं | इन्द्रजीत कौर ने इस संग्रह के बाद अपना एक लेवल सेट कर दिया है | हिंदी व्यंग्य को उनसे बड़ी अपेक्षाएं रहेंगी | इस व्यंग्य कथा संग्रह को पढ़ा और सराहा जाना चाहिए |

    9/48 साहित्य सदन, कोतवाली मार्ग, महमूदाबाद (अवध) जिला-सीतापुर 261203 (उ.प्र.)
    मो 8318773947

    पंचरतंत्र की कथाएं/ व्यंग्य संग्रह/ इन्द्रजीत कौर/ रुझान पब्लिकेशन्स, जयपुर/ 2019/ पृष्ठ 148/ मूल्य 150/-

     

     

    पिछला लेखविषपायी होता आदमी
    अगला लेखज़िंदगी एक कण है : राकेश मिश्र
    राहुल देव
    युवा आलोचक, संपादक व कवि | प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित । विधाएँ : व्यंग्य, कविता, आलोचना, कहानी, संपादन। मुख्य कृतियाँ- कविता संग्रह : उधेड़बुन, हम रच रहे हैं आलोचना- हिंदी कविता का समकालीन परिदृश्य, समीक्षा और सृजन कहानी संग्रह : अनाहत एवं अन्य कहानियां संपादन : कविता प्रसंग, नए-नवेले व्यंग्य, चयन और चिंतन, आलोचना का आईना, सुशील से सिद्धार्थ तक आदि। अन्य : डॉ ज्ञान चतुर्वेदी के साथ साक्षात्कार पुस्तक 'साक्षी है संवाद', ब्लॉग पत्रिका 'अभिप्राय' का संचालन। सम्मान : प्रताप नारायण मिश्र युवा साहित्यकार सम्मान। आलोचना के लिए ‘अवध ज्योति’ सम्मान। हिंदी सभा का नवलेखन सम्मान आदि। सम्प्रति- अध्ययन-अध्यापन।