कल्चर वल्चर- ममता कालिया

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    Culture Valture । कल्चर वल्चर
    वरिष्ठ कथाकार ममता कालिया का नया उपन्यास ‘कल्चर वल्चर’ वर्तमान साहित्यिक-सांस्कृतिक परिवेश का रचनात्मक सत्यान्वेषण करता है। कोलकाता की एक संस्था ‘साहित्य संस्कृति भवन’ के माध्यम से समकालीन साहित्य और संस्कृति जगत की संस्थाएं इसके केंद्र में है। इन संस्थाओं के भीतर-बाहर चलने वाले घात-प्रतिघात तथा पतनशील मानवीय प्रवृत्तियों को उजागर करना इस उपन्यास की कथावस्तु का उद्देश्य है। उपन्यास के पूर्वकथन में उन्होंने लिखा भी है, ‘कला, साहित्य व संस्कृति आज सरोकार न रहकर…

    सांस्कृतिक यथार्थ का सत्यान्वेषण

    राहुल देव

    वरिष्ठ कथाकार ममता कालिया का नया उपन्यास ‘कल्चर वल्चर’ वर्तमान साहित्यिक-सांस्कृतिक परिवेश का रचनात्मक सत्यान्वेषण करता है। कोलकाता की एक संस्था ‘साहित्य संस्कृति भवन’ के माध्यम से समकालीन साहित्य और संस्कृति जगत की संस्थाएं इसके केंद्र में है। इन संस्थाओं के भीतर-बाहर चलने वाले घात-प्रतिघात तथा पतनशील मानवीय प्रवृत्तियों को उजागर करना इस उपन्यास की कथावस्तु का उद्देश्य है। उपन्यास के पूर्वकथन में उन्होंने लिखा भी है, ‘कला, साहित्य व संस्कृति आज सरोकार न रहकर कारोबार बनते जा रहे हैं और इसके प्रबंधक कारोबारी। इनके हाथों में संस्कृति, विकृति बन रही है और साहित्य, वाहित्य।’

    उपन्यास की कहानी के समस्त पात्र व घटनाएँ काल्पनिक होते हुए भी इसे पढ़ते हुए आप के समक्ष किसी संस्था के वास्तविक चरित्र व घटनाएँ सामने आने लगती हैं और इस तरह यह कहानी कोलकाता से निकलकर लगभग ऐसी हर एक जगह की सच्चाई का यथार्थपरक बयान बनने लग जाती है। उपन्यास की भाषा-शैली बड़ी ही स्वाभाविक, पठनीय तथा कसी हुई है। तमाम तरह के विमर्शों से आक्रांत हमारे समकालीन युवा लेखक इसे पढ़कर जान सकते हैं कि किसी भी वृतांत में किस्सागोई को अनावश्यक विवरणों से बचाते हुए कैसे आगे बढ़ाया जाता है। उत्तरआधुनिकता के इस दौर में किस तरह साहित्यिक-सांस्कृतिक मूल्यों का क्षरण हो रहा है ‘कल्चर-वल्चर’ को पढ़कर पाठक आसानी से समझ सकते हैं। उपन्यास में ऐसे तमाम कारणों को विभिन्न घटनाओं-प्रसंगों की सहायता से सामने लाने का सफल प्रयास लेखिका द्वारा किया गया है। इस उपन्यास में नवीन और सुषमा जैसे पात्रों के जरिये संस्कृति के दो विपरीत ध्रुवों के द्वंध और महत्त्वाकांक्षाओं के टकराव को जिस तरह इसमें प्रस्तुत किया गया है वह पाठक को समकालीन स्थितियों पर विचार करने पर विवश कर देता है। कथा को कहने की ममता जी की अपनी एक अलग ही प्रकार की शैली है। उसमें भाषा का खिलंद्नापन व महीन व्यंग्य हमें कचोटता है। उपन्यास के एक अंश में लेखिका लिखती है, ‘सुषमा कला, साहित्य और संस्कृति के संसार की छत्रपति रहना चाहती थी। वह आजकल राजस्थान से लोकसभा में गए सदस्यों की टोह में थी। उसका खयाल था कि देश की प्रमुख संस्कृतिकर्मी के रूप में उसे पद्मश्री या पद्मभूषण से अलंकृत तो हो ही जाना चाहिए। आज कथासम्राट प्रेमचंद जीवित होते तो सुषमा की प्रतिभा से प्रेरित होकर ‘संस्कृति की खिलाड़िन’ जैसी कोई कहानी अवश्य रचते। संस्कृति सुषमा के लिए साधन थी तो साध्य भी, अस्त्र भी शस्त्र भी, संस्कृति की सतत साधना में वह सिद्धहस्त थी।’

    ‘कल्चर-वल्चर’ निश्चित रूप से समकालीन साहित्यिक-सांस्कृतिक परिदृश्य की सही-सही पड़ताल प्रस्तुत करता है। ममता जी की यह कृति साहित्यिक-सांस्कृतिक संस्थाओं की गिरती साख पर उनकी चिंताओं का रचनात्मक प्रतिफलन है। यह उपन्यास ममता जी की रचनाशीलता के एकदम नए आयाम को उद्घाटित करता है।

    कल्चर-वल्चर/ उपन्यास/ ममता कालिया/ किताबघर प्रकाशन, नयी दिल्ली/ 2017/ पृष्ठ 208/ मूल्य 350/-

     

    पिछला लेखउत्कृष्ट व्यंग्य रचनाएँ, व्यंग्य संकलन, सं. प्रेम जन्मेजय
    राहुल देव
    युवा आलोचक, संपादक व कवि | प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित । विधाएँ : व्यंग्य, कविता, आलोचना, कहानी, संपादन। मुख्य कृतियाँ- कविता संग्रह : उधेड़बुन, हम रच रहे हैं आलोचना- हिंदी कविता का समकालीन परिदृश्य, समीक्षा और सृजन कहानी संग्रह : अनाहत एवं अन्य कहानियां संपादन : कविता प्रसंग, नए-नवेले व्यंग्य, चयन और चिंतन, आलोचना का आईना, सुशील से सिद्धार्थ तक आदि। अन्य : डॉ ज्ञान चतुर्वेदी के साथ साक्षात्कार पुस्तक 'साक्षी है संवाद', ब्लॉग पत्रिका 'अभिप्राय' का संचालन। सम्मान : प्रताप नारायण मिश्र युवा साहित्यकार सम्मान। आलोचना के लिए ‘अवध ज्योति’ सम्मान। हिंदी सभा का नवलेखन सम्मान आदि। सम्प्रति- अध्ययन-अध्यापन।

    1 टिप्पणी

      बहुत गंभीर विषय पर है ये उपन्यास और इसके बारे में इतनी सुन्दर जानकारी देने के लिए राहुल देव जी को धन्यवाद । पाठकों को ऐसे ही रिव्यू का इंतज़ार रहता है।