इक्कीसवीं सदी की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर बनाई गई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 एक महत्वपूर्ण दस्तावेज़ है जो भारत की वर्तमान चनुौतियों, समस्याओं और भविष्य की ज़रूरतों की पूर्ति में सहायक होगा।



मुम्बई विश्वविद्यालय के हिन्दी विभागाध्यक्ष प्रो0 करुणाशंकर उपाध्याय ने एकतीस वर्षों तक निरन्तर प्रसाद साहित्य सागर का तपोनिष्ठ आलोडन विलोडन कर ‘‘जयशंकर प्रसाद: महानता के आयाम’’ नामक 463 पृष्ठों का ग्रन्थ रचा है, जिसकी सूक्तिसुधा में ज्ञान का उन्मेष, प्रज्ञा का प्रकाश तथा मेधा का माहात्म्य समाहित है। इन सूक्तियों के पारायण से चिन्तन के नवीन गवाक्ष और मनन के नूतन परिसर परिलक्षित होते हैं।

कुछ लेखक ऐसे होते हैं जो सबकुछ लिखकर भी किसी एक विधा में सिद्धहस्त नहीं हो पाते, तो कुछ लेखक बस एक ही विधा को साध पाते हैं या सिर्फ़ एक रचना से शोहरत हासिल कर लेते हैं. परन्तु, वैसे लेखक विरले होते हैं, जिनका सबकुछ अतिउत्तम हो, उत्कृष्ट हो, या हर रचना नई बुलंदियों को छूकर आए. कलमवीर धर्मवीर भारती का नाम ऐसे ही रचनाकरों की सूची में शामिल है, जहाँ से भी उनको देखिये, उनके साहित्यिक कद की ऊंचाई एक समान ही दिखाई पड़ती है. यही बात उनके पत्रकारीय लेखन में भी दिखाई पड़ेगी.

स्वाधीनता के लिए जब जब आन्दोलन तेज़ हुआ तब तब हिन्दी की प्रगति का रथ भी तेज़ गति से आगे बढ़ा। हिन्दी राष्ट्रीय चेतना की प्रतीक बन गई। स्वाधीनता आन्दोलन का नेतृत्व जिन नेताओं के हाथों में था, उन्होंने यह पहचान लिया था कि विगत 600 - 700 वर्षों से हिन्दी सम्पूर्ण भारत की एकता का कारक रही है; यह संतों, फकीरों, व्यापारियों, तीर्थ यात्रियों, सैनिकों आदि के द्वारा देश के एक भाग से दूसरे भाग तक प्रयुक्त होती रही है।