मैत्रेयी पुष्पा की कहानियों में व्यक्त नारी समस्याएँ
- प्रो. डॉ. हेमल बहन एम. व्यास
एक नहीं दो दो मात्राएं नर से बढ़कर नारी है ।
इस उक्ति के आधार पर नारी संस्कार,मर्यादा,पवित्रता,संवेदना ओढ़े हुए है। इसीलिए नारी को नर से बढ़कर कहाँ है । सीता-राम,राधे-श्याम,उमा-महेश्वर,लक्ष्मी-नारायण में भले ही दैवीय शक्ति को आगे रक्खा गया किन्तु वहीं भारतीय मानसिकता आधि आबादी का हिस्सा स्त्री को अपना अधिकार देने के लिए तत्पर नहीं है । पुरुष प्रधान समाज की इस मानसिकता को स्त्री ने हर क्षेत्र में चुनौती के रूप में रक्खा है । साहित्य भी इससे अछूता नहीं है । स्त्री मुक्त हो गई,थोड़ी बहुत स्वतंत्र भी हो गई अब स्त्री सभी दृष्टि से सशक्त हो रहीं है । इस दिशा में हिन्दी साहित्य की लेखिकाओं ने स्त्री विमर्श की नई बहस छेड़ दी है ।
पुरुषों द्वारा दिये प्रतीकों-पूजा, केवल श्रद्धा हो,नरक का कुंड,नहीं….अब वह अपनी पहचान,अपनी इच्छा, अपनी शोध बताने का कार्य कर रहीं है । ऐसी अनगिनत स्त्री लेखिकाओं ने नारी जीवन का चितार अपने साहित्य में किया है ।
बीसवीं सदी के अंतिम दशक से कहानियों के विषय में काफी परिवर्तन आया है । कहानी लेखन में भूमंडलीय करण,बाज़ार वाद,आधुनिकीकरण एवं पाश्चात्य प्रभाव जैसे विषय पर खुलकर सत्य लिखा गया । साथ ही स्त्री विमर्श,स्त्री संदर्भ अत्यंत विस्तृत विषय बन गये हैं । खास करके लेखिकाओं के साहित्य लेखन में स्त्री विमर्श पर काफी लिखा गया। ऐसी कहानियाँ लिखने वाली प्रमुख लेखिकाएँ है –शिवानी ,मन्नू भंडारी,क्रुष्ना सोबती ,प्रभा खैतान,मैत्रैय पुष्पा,नासीरा शर्मा,मृनाल पांडे,सुर्यबाला ममता कालिया ,मृदुला गर्ग,राजी शेठ,दीप्ति खंडेलवाल,मालती जोशी,मंजुल भगत,सुधा अरोडा,दिव्या माथुर,क्रुष्ना अग्निहोत्री,मधु काकरिया,आदि लेखिकाओं ने अपने अपने अंदाज में नारी की समस्याओं को,नारी के विविध स्वरूप को तथा नारी जीवन से संबंधित विविध पहलुओं को केन्द्र में रखकर ही कहानियों का लेखन किया है ।
मैत्रेयी पुष्पा की कहानियाँ 21वीं शताब्दी की दहलीज पर स्त्री शक्ति की दस्तक है । मैत्रेयी पुष्पा ने अत्यंत सफलता के साथ स्त्री विमर्श पर अपनी कलम चलाई है । मैत्रेयी पुष्पा अपनी कहानियों में स्त्री वादी दृष्टि रखती है । उन्होंने भोगे गये सत्य को ,जीवन की वास्तविकता के चितार को प्रस्तुत किया है । वह स्त्री की पीड़ा को,उनके संघर्ष को,समाज के सामने रखना चाहती है । मैत्रेयी पुष्पा ने पुरुषवादी परिवेश से स्त्री के लिए सशक्तिकरण की,स्त्री मुक्ति की मांग रखी है । उनकी कहानियों में स्त्रियों की समस्याओं को उनके जीवन के संघर्ष तथा उनेक प्रश्नों को बड़ी संवेदन शीलता के साथ रखा गया है । उनके स्त्री पात्र पुरुषों को चुनौती देती दिखाई देती है । मैत्रेयी पुष्पा पुरुषवादी मानसिकता की विरोधी है वे कहती है- —’’मैं स्त्री विमर्श की कट्टर हिमायती हूँ । उस पुरुष व्यवस्था से चीड़ है,मुझे जो स्त्री के चारों तरफ बंधन डालता है —।’’ (1) (मुद्दे की बात–पुष्पा, मैत्रेय 52)
माता पिता का घर छोड़कर स्त्री पराई बन जाती है,पराये को अपना बनाकर भी वहाँ वह अपनी नहीं बन पाती । अपनेपन की तलाश में वह भटकती रहती है । एक स्त्री विवाह के बाद अपना नाम कुल पहचान सब खो बैठती है । ऐसे समय पर शादी के अपनी पहचान खो बैठने वाली मैत्रैय पुष्पा ने साहित्य लेखन में अपने नाम की तलाश में अपने अतीत में झांक कर देखा,पिता को प्रिय मैत्रेयी तथा माता को प्रिय पुष्पा यानि मैत्रेयी पुष्पा नाम धारण करके माता पिता के स्वप्न को साकार किया । यही मैत्रेयी पुष्पा साहित्य जगत में स्त्री शक्ति की मिसाल बन गई। जो स्त्री विमर्श की कट्टर हिमायती है ।
लंबे संघर्ष एवं जीवन में कई उतार चढ़ाव के पश्चात उम्र के 40 वे पड़ाव के बाद लेखन प्रारंभ करने के बावजूद भी 10 साल में मैत्रेयी पुष्पा हिन्दी साहित्य की विशेष पहचान बन गई ।
इदन्नमम,चाक,झूला नट,आल्मा कबूतरी,जैसे सफल उपन्यास लिखने वाली मैत्रेयी पुष्पा ने कहानी लेखन में भी कलम चला कर अपनी विशेष पहचान बनाई है । उनके प्रमुख कहानी संग्रह है-
चिह्नार (1991)-12 कहानियाँ
ललमनियाँ (1996) -10 कहानियाँ
गोमा हंसती है (1998) -10 कहानियाँ
दस प्रतिनिधि कहानियाँ –(2006) छुटकारा नयी कहानी
इन कहानी संग्रहों में कुल 33 कहानियाँ हैं । जिनमें मैत्रेयी पुष्पा ने नारी जीवन की विभिन्न समस्याओं को चित्रित किया है । यदि हम उन समस्याओं पर चिंतन करें तो मैत्रेयी पुष्पा की प्रतिनिधि कहानियाँ में हमें निम्न समस्याएँ दृष्टि गोचर होती हैं । जैसे कि दहेज, बेमेल विवाह,स्त्री भ्रूण हत्या,बाँझपन एक अभिशाप,त्यक्ता नारी,विधवा नारी, बलात्कार-जातीय शोषण ,वेश्या वृत्ति-देह विक्रय जैसी समस्याओं को वर्णित किया है । साथ ही उन समस्याओं का प्रतिकार करती नारियों की शक्ति से भी अवगत करवाया है । मैत्रेयी पुष्पा की कहानियों में चित्रित नारी जीवन की विभिन्न समस्याओं को निम्न रूप से रक्खा जा सकता हैं-
दहेज की समस्या
दहेज भारतीय समाज का सबसे बड़ा कलंक है । जिसने पुरातन समय से लेकर आधुनिक समय तक अपनी झाल फैलाई है । भयानक राक्षस की तरह बढ़ती चली जाती है ।
मैत्रेयी पुष्पा की ”साँप-सीढ़ी” कहानी में सुरजन सिंह ने अपनी बेटी रज्जो को इसीलिए अच्छा पढ़ाया ताकि उसके विवाह में कोई तकलीफ न हो,अच्छा वर को तराशा किया किन्तु विवाह तय करते समय ही बेटी का ससुर अपना वास्तविक स्वरूप दिखाते हुए डेढ़ लाख की माँग करता है ।
”ताला खुला है पापा” कहानी की बिन्दो बड़ी बहन के विवाह में हुए दहेज के कर्ज को देखकर माँ से कहती है ।
”अम्मा तुम मेरे ब्याह की फिकर बिल्कुल न करना।जो रुपे खर्च कराएगा,मैं उससे ब्याह नहीं करूंगी।” (2) (पुष्पा, गोमा हस्ती है-’ताला खुला है पापा’ 75)मैत्रेयी पुष्पा” केवल समस्या उठाना नहीं जानती किन्तु उनका योग्य समाधान भी प्रस्तुत करना जानती है। दहेज जैसी जटिल समस्या का हल उन्होंने ”सफर के बीच” कहानी के द्वारा देना चाहा है । इस कहानी का गिरराज जिलाधिकारी बनता है साथ ही दहेज का विरोध करते हुए गरीब की बेटी से ब्याह करता है ।
बेमेल विवाह
21वीं शताब्दी के युग में विवाह अपनी इच्छा,चाहना ओर पसंदगी का विषय है ,ऐसे समय समय में बेमेल विवाह शब्द भी अचरज पैदा करता है लेकिन ऐसा नहीं है । आज भी कई ऐसी लड़कियां है जिन्हें गरीबी,दहेज या किसी न किसी कारण बेमेल विवाह का शिकार होना पड़ता है । अपनी इच्छाओं को मार कर कड़वे घुट पीना पड़ता है ।
” बहेलिये ” कहानी में गिरजा के पिता की मृत्यु हो जाने के कारण उनके चाचा उनका विवाह पिता के उम्र के पुरुष से तथा उनकी बहन का विवाह एक मरीज से करवा देता है । माँ के विरोध करने पर उनके चाचा कहते है,-”करम की खोटी थी तो भोगना पड़ रहा है । तू अकेली रांड विधवा कैसे ब्याह शादी करेगी ? मरद की उमर नहीं देखी जाती ”(3) (पुष्पा, चिहनार -बहेलिये 37) गिरजा के जीवन में कोई अरमान नहीं रहते , पति की मृत्यु हो जाने के बाद वह दूसरे विवाह के बारे में नहीं सोचती ,बल्कि वह समाज सुधारक बन जाती है ।
”रास” कहानी की जैमन्ती का विवाह मन सुखा नामक एक ऐसे पुरुष के साथ होता है जो आधा पुरुष और आधी स्त्री है । इस बेमेल विवाह के कारण किस हद तक जैमन्ती पर सामाजिक अत्याचार हुआ है,इसका वर्णन रास कहानी में मैत्रेयी पुष्पा ने बड़ी कुशलता के साथ किया है ।
स्त्री भ्रूण हत्या
21वीं सदी का प्रभाव मैत्रेयी पुष्पा के साहित्य में बखूबी रूप से दिखाई देता है । आज के युग में हम भले ही अपने को आधुनिक मानते हो किन्तु हमारी सोच आज भी सदियों से भी पुरानी है । पहले के युग में लड़की का जन्म होते ही उस को दूध भरे पात्र में डूबो कर मार दिया जाता था,आज के युग में तो लड़कियों को जन्म लेने का भी हमने अधिकार नहीं दिया । उसका गर्भ परीक्षण करके तुरंत ही उसे गर्भ में ही मार दिया जाता है उसे हम स्त्री का शरीर भी धारण करने नहीं देते । दुःख की बात तो यह है कि कभी कभी इसकी जिम्मेदार खुद स्त्री ही होती है।
मैत्रेयी पुष्पा ने ’तुम किसकी हो बिन्नी’ कहानी में सोनोग्राफी करके,बच्ची को जन्म से पहले ही मारने की बात कहीं है। ’’कै बेर तो इसकी माँ ने गरभ गिराये हैं,दूरबीन से दिखवाय लिये। छोरी निकली तो गिरवाय दई । कसाईन री है निरी……..’’(4) (पुष्पा, ललमनियाँ ,तुम किसकी हो बिन्नी 120) डॉं.अग्रवाल खुद गर्भपात के लिए उस जगह का नाम लिख देते है । इस प्रकार मैत्रेयी पुष्पा ने स्त्री भ्रूण हत्या की समस्या उठाई है ।
बाँझपन स्त्री जीवन का अभिशाप
संतान हीनता विवाहिता नारी के जीवन का सबसे बड़ा अभिशाप माना जाता है । नारी जीवन की अनेक समस्याओं में से एक है,जिसे एक नारी ही दूसरी नारी को इस समस्या के लिए जिम्मेदार मानकर दुःखी और परेशान करती है ।’’मन ना ही दस बीस ’’कहानी में चंदना का पति नपुंसक है,फिर भी उसकी साँस उनकी बहू पर ही दोष लगाती है । देवर से रिश्ता रखने को कहती है,जली कटी सुनाती है ,वह कहती है,’’कच्चे गोद पेट काट डाले होंगे,फिर कहाँ से जनेगी पूत।हमारे करम खोटे थे जो ब्याह लाये छिंनाल को’’(5) (पुष्पा, चिहनार,मन नाहिं दस बीस 64)
त्यक्ता नारी
नारी को हर रूप में पुरुष पर आश्रित रक्खा गया है । पिता,भाई,पति या पुत्र शायद यहीं पर नारी सुरक्षित रह सकती है । पिता विश्वास के साथ बेटी को पति के हाथ में सौपता है लेकिन यदि वही पति जब स्त्री को त्याग दे तब उनकी क्या गति । पति द्वारा पत्नी को त्याग देना नारी का सबसे बड़ा अपमान है । मैत्रेयी पुष्पा ने अपनी कहानियों में पराधीन नारी की विवशता का बड़ा दर्दनाक चित्र प्रस्तुत किया है ।
’ राय प्रवीण ’कहानी की सावित्री के पति को सावित्री पर हुए शारीरिक अत्याचार का पता चलने पर सहानुभूति देने बजाय उसे गाली देते हुए घर से निकाल देता है…..’’ क्यों आ गई…….आगे पाँव मत रखना रंडी ’’(6) (पुष्पा, गोमा हँस्ती हैं….राय प्रवीण 46)
शारीरिक रूप से शोषित सावित्री पति द्वारा तो परित्यक्ता होती है किन्तु अब सावित्री को उनके पिता भी अपने घर पर रखने के लिए तैयार नहीं होते । मैत्रेयी पुष्पा ने राय प्रवीण कहानी के द्वारा समाज में प्रताड़ित ऐसी नारी की समस्या का वर्णन किया है जो शारीरिक,मानसिक और सामाजिक दृष्टि से शोषित है ।
’’बिछड़े हुए’’कहानी एक ऐसे पलायन वादी पुरुष की कहानी है जो अपनी जिम्मेदारी से भाग जाता है । पति सुग्रीव के त्याग कर साधु बन कर चले जाने के बाद चँदा बेटी को पालने की जिम्मेदारी अकेली ही उठा लेती है।
विधवा नारी
नारी का यह रूप करुणा ,दर्द और अंधकार पूर्ण जीवन का समन्वय मैत्रेयी पुष्पा ने अपनी कहानियों में नारी के विधवा रूप को और उनके जीवन की कठिनता का अत्यंत ही दर्द पूर्ण वर्णन किया है ।
’’उज्रदारी’’कहानी की विधवा शांति को उनके पति के गुजर जाने के बाद उन्हीं के परिवार वाले उसे जायदाद से बेदखल करते है । ऐसे कठिन समय पर बड़े धैर्य और साहस के साथ शांति अपने हक के लिए लड़ती है ।
’’केतकी’’कहानी में पंडित श्री गोपाल का गाँव की एक बाल विधवा से अनैतिक संबंध रखने का चित्रण हुआ है,साथ ही रेशमिया जैसी पवित्र विधवा नारी पर बलात्कार करने के बाद पंच उसे व्याभिचार बताते है । तब घर की इज्जत बचाने के लिए देवर गिरधर सिंह उनका हाथ पकड़ता है । यह उनकी मजबूरी थी —’’क्या करता विधवा भाभी की कोख में न जाने किसका अंश था,लेकिन पिता का नाम उस शिशु को उसके सिवा देता भी कौन। (7) (पुष्पा, चिह्नार …केतकी.. 130)
मैत्रेयी पुष्पा की ’चिहनार’कहानी की सरजु एक विधवा स्त्री है ,उसके साथ उनके परिवार वाले अमानवीय अत्याचार करते है । उसे अपनी बेटी से भी मिलने नहीं देते ।सरजु को घर के पीछे एक कोठे में रक्खा जाता है । समाज में आये दिन शांति,रेशमिया,सरजु जैसी विधवा नारी पर अनेक प्रकार के शारीरिक , मानसिक अत्याचार होते ही रहते है । मैत्रेयी पुष्पा ने नारी के वैधव्य जीवन की समस्याओं का वास्तविक चितार प्रस्तुत किया है ।
बलात्कार-जातीय शोषण
दुनिया बहुत बड़ी है किन्तु सुरक्षा कहीं नहीं ,घर छोटा है किन्तु सुरक्षा सबसे बड़ी है । किन्तु घर परिवार के या आस पास के लोग ही जंगली बन जाए तो सुरक्षा कहीं पर नहीं है । यदि नारी घर में सुरक्षित नहीं है तो वह कहीं पर भी सुरक्षित नहीं है । पुरुष ने नारी को सदा भोग की वस्तु माना है , कोई भी स्त्री क्यों न हों उसे कहीं न कहीं कभी न कभी ,किसी न किसी पुरुष से शारीरिक या मानसिक रूप से जातीय शोषण का शिकार होना पड़ा होगा । संबंधों के नाम पर वह सबसे पहले कौटुंबिक जातीय शोषण का शिकार होती है । जहाँ उसे सदैव चुप रहने के लिए धमकाया जाता मैत्रेयी पुष्पा ने अपनी आत्मकथा गुड़ियां भीतर गुड़ियां में अपने भोगे हुए सत्य का वर्णन किया है । उन्होंने ने अपनी कहानियों में भी नारी पर होते बलात्कार एवं जातीय शोषण का खुलकर वर्णन किया है।
’’बहेलियें’’ कहानी की भोली पर बलात्कार होने के बाद उसे धमकाया जाता है,किसी को भी इस के बारे में न बताने को कहा जाता है। जब भोली के पेट में बच्चा रह जाता है तब उनकी माँ उसी को जली कटी सुनाती है । भोली उन पर हुए दुगुने अत्याचार न सह पाने के कारण वह जलकर मर जाती है । पुलिस घुस लेकर उसे साधारण आत्महत्या का केस बना लेता है ।
’’रास ’’कहानी की जैमन्ती का ब्याह एक ऐसे पुरुष से हुआ जो पूर्ण पुरुष भी नहीं है । परिवार के अन्य पुरुष उसे सदैव बुरी नज़र से देखा करते है। आखिर उनके ससुर द्वारा बलात्कार का प्रयास होने के कारण जैमन्ती मानो नागिन बन जाती है –’’ जैमन्ती की आंखों में भग भग लपटें उठने लगी । सास कांपने लगी ,सास का बेटा आंखें मींडता हुआ कभी बाप को देखे तो कभी उसे। (8) (पुष्या 127) उनका जीवन बरबाद हो जाता है।
’’अब फूल नहीं खिलते ’’ कहानी में शिक्षा के क्षेत्र में नारी का किस प्रकार से शोषण होता है उसे बताया गया है ।’’राय प्रवीण’’ कहानी की सावित्री गाँव में बाढ़ के विनाश के बाद ,अन्न प्राप्ति के लिए सहायता के बजाय सरकारी अधिकारी तथा ठेकेदारों से हवस का शिकार होती है।
’’केतकी’’कहानी का गंधवॅसिंह केतकी से अनैतिक संबंध बनाने की कोशिश करता है।विरोध देखकर अवसर पाकर एक दिन उस पर बलात्कार करता है।केतकी इस यौन शोषण के खिलाफ विद्रोह करती है तथा पुलिस में शिकायत करके गंधवॅसिंह को समाज के सामने लाती है।
प्रतिकार करती नारी
वर्तमान युग की नारी में विद्रोह करने की क्षमता बढ़ी है। अत्याचार करने वाले से अत्याचार सहने वाला ज्यादा गुनहगार होता मैत्रेयी पुष्पा ने एक जिम्मेदार लेखिका की भूमिका अदा की है । उन्होंने ने नारी की विविध समस्याओं का चित्रण किया हैं, साथ ही नारी में रहीं शक्ति का भी परिचय करवाया । मैत्रेयी पुष्पा की कई ऐसी कहानियाँ है जिसकी नायिका अत्याचार सहते-सहते बदला लेने के लिए विद्रोह करती है । वह केवल अत्याचार सहन करना ही नहीं जानती किंतु समय आने पर प्रतिकार भी करती है ,फिर अत्याचार करने वाला पुरुष उसका पति ही क्यों न हो ।-जैसे
’’राय प्रवीण ’’की सावित्री एक साहसी नारी है।उसका पति जब उसे घर से बाहर निकाल देता है,लात-घूसो से पीटता है,तब उनके मन में दबा क्रोध फूट पड़ता है।उस समय का वर्णन करते हुए लेखिका लिखती है- ’’पति ने हाथ लगाया कि चोट दर्द भूलकर दो लाते मारी मर्दानी कमर पर…..तीन चार धक्के दीये लगातार और घर में जा घुसी।’’(9) (पुष्पा, गीमो हँस्ती है-राय प्रवण- 46)
उज्रदारी कहानी की विधवा शांति अपने अधिकार के लिए घर से बाहर निकल जाती है। वह कहती है-’’मेरी जैसी अनाथ औरत क्या किसी भी औरत को जेठ-ससुर के सामने बोलने का हक नहीं,आदमियों की बिरादरी ऊँची है । ’’(10) (पुष्पा, गोमा हँस्ती है-’उज्रदारी’ 100) वहीं शांति जो जेठ-ससुर के सामने बोलने में असमर्थ थी पति की मृत्यु के बाद ज़मीन,घर,परिवार से निष्कासित करने के कारण उनके खिलाफ उज्रदारी करती है।तब वह सोचती है-’’आज मुझे डर नहीं । जेठ का लिहाज नहीं ताज्जुब है । आज क्या हो गया है ऐसा ? शर्मीली बहू कहा गई ? पति के रहते उँगली न दिखा ने वाली अंगूठा दिखाने की सोच रही है ?’’(11) (पुष्पा, गोमा हँस्ती है-’उज्रदारी’ 102)
नारी सदा ही अपने शील और सौन्दर्य से गर्वित रहती है, लेकिन जब उसके चरित्र पर कोई दाग लगाने की कोशिश करता है तब वह महाकाली का स्वरूप धारण कर लेती है ।’केतकी’ की केतकी भी कुछ ऐसा ही करती है । वह गंधर्वसिंह द्वारा किये गये अत्याचार का प्रतिकार करती है । माधुपुर गाँव में आज से पहले कभी पुलिस नहीं आयी, किंतु केतकी ने गंधर्वसिंह को पकड़ ने के लिए पुलिस बुलाई है। वह निर्भीक होकर कहती है।—’’तुम्हारे खिलाफ बोलने का साहस तो सब बेच चूके हैं……….मैं लाई हूँ पुलिस,क्योंकि मुझे तुम्हारा भय नहीं हैं ।’’(12) (म. पुष्पा, चिह्नार-’केतकी’ 132)
’फैसल’ कहानी की वसुमती सरपंच तो बन गई किंतु उसका पति उसे कोई फैसला नहीं लेने देता। अतः वसुमति ने विरोध के रूप में अपने पति को ही वोट नहीं दिया । नारी अपने अधिकार के लिए लड़ना सीख गई है।अब वह हद से ज्यादा अन्याय नहीं सहती बल्कि उनका प्रतिकार कर लेती है । जब अन्याय हद से ज्यादा बढ़ाता है,असहनीय हो जाता है तब वह रणचंडी का रूप लेकर विनाश का कार्य करने के लिए तैयार हो जाती है।जैसे कि’मन नाहीं दस बीस’ कहानी की चन्दा का पति नपुंसक है । उनकी सास संतान पाने के लिए उसे उनके देवर से संबंध बनाने के लिए दबाव डालती है । जब चन्दा के मना करने पर उन पर अत्याचार बढ़ जाता है तब चन्दा उनको मारने के लिए मंगवाए गये धतूरे को भोजन में डाला जिससे उनका देवर तो मर गया,किंतु उसी भोजन को गलती से उनका पति भी खा लेता है और वह भी मर जाता है । इस प्रकार देखा जा सकता है कि मैत्रेयी पुष्पा ने अपनी कहानियों में नारी जीवन की विभिन्न समस्याओं को चित्रित किया है । इतना ही नहीं इन प्रमुख नारी समस्याओं के अलावा नारी जीवन की अन्य समस्याओं को भी किसी न किसी कहानी में दिखाया गया है । जैसे-
’भँवर’कहानी में -बहु पत्नी प्रथा तथा-मार पीट करना ,’ताला खुला है पापा’ कहानी में-लड़का लड़की भेद,’शतरंज के खिलाड़ी’कहानी में-नारी को केवल राजनैतिक मोहरा समझना,’छुटकारा’ कहानी में – अस्पृश्य नारी के साथ का व्यवहार,’आक्षेप कहानी में – स्त्री पुरुष संबंध,’अपना अपना आकाश’कहानी में -वृद्ध नारी की समस्या,’सहचर’ कहानी में -अपाहिज नारी की पारिवारिक स्थिति ,’मन नाहीं दर बीस’ कहानी में -परिवार में नारी शोषण,’’राय प्रवीण’’कहानी में – कहानी में वेश्यावृत्ति-देह विक्रय की समस्या । इत्यादि ….
इस प्रकार कहा जा सकता है कि मैत्रेयी पुष्पा ने अपनी कहानियों में नारी जीवन की विभिन्न विषम समस्याओं को विस्तृत रूप से वर्णित किया है । मैत्रेयी पुष्पा ने नारी जीवन के विविध संघर्षों का चितार करते हुए नारी शोषण के हर पहलुओं को उजागर किया है । नववें शतक में कहानी के विकास में मैत्रेयी पुष्पा ने अपनी अलग ही पहचान बनाई है । उन्होंने बूंद से ही समुद्र का आस्वाद करवाया है। भारतीय नारी की दिशा-दशा बताते हुए उसकी अस्मिता का ,उसके अस्तित्व का चित्रण किया है । पुष्पा जी ने नारी को उनके अधिकार के जागृत किया है यहीं उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि है ।
अस्तु धन्यवाद
प्रो. डॉ. हेमल बहन एम. व्यास
अध्यक्षा हिन्दी विभाग,
एम.पी.शाह ऑट्स एन्ड सायन्स कोलेज,
एस.टी.रोड़ ,सुरेन्द्रनगर. (गुजरात) भारत -363001
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संदभॅ ग्रंथ-
1) मैत्रेयी पुष्पा. गोमा हँस्ती है-. दिल्ही , किताबघर , 1998. ISBN-81-7016-398-6.
2) मैत्रेयी पुष्पा.-चिहनार-दिल्ली, आर्य प्रकाशन मंडल, 1991. ISBN-81-88118-68-0.
3) मैत्रेयी पुष्पा. ललमनियाँ – दिल्ली , किताब घर, 1996. ISBN-81-706-312-9.
4) “मुद्दे की बात–पुष्पा, मैत्रेयी.” हंस (अक्तुबर -2004):
सहायक ग्रंथः-
1) साहित्य प्रवाह और स्त्री विमर्ष-डॉ.रुचा शर्मा -अन्नपुर्णा प्रकाशन -कानपुर
2) नारी विमर्ष की नई दिशाएँ-डॉ.रेनुका मोरे, – अल्का प्रकाशन, कानपुर
3) समकालीन हिन्दी कहानी और 21वीं सदी की चुनौतियाँ-सं डॉ.इन्दुमती सिंह-आशीष . . . प्रकाशन,कानपुर
4) हिन्दी कहानी और नारी –विमर्ष के अहम सवाल-डॉ.शोभा पवार- अन्नपूर्णा प्रकाशन,कानपुर
5) प्रतिनिधि महिला कहानीकारों मैं चित्रित नारी-डॉ.मीना जोशी-शैलजा प्रकाशन , कानपुर
अध्यक्षा हिन्दी विभाग,
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