मधुर भंडारकर का सिनेमा और स्त्री विमर्श
दुगमवार साईनाथ गंगाधर
शोधार्थी, हिंदी विभाग,
राजस्थान केन्द्रीय विश्वविद्यालय, अजमेर
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यह सर्वविदित है कि सिनेमा आधुनिक समय का एक सशक्त कला माध्यम समाज का दर्पण बनकर समकालीन यथार्थ को यथावत पेश करने वाला अत्यंत महत्वपूर्ण सशक्त संचार माध्यम है । फ़िल्मकार अपने सिनेमा में घटनाओं, संवादों, प्रसंगों, पात्रों के माध्यम से जीवन की किसी न किसी समस्याओं, उलझनों-सुलझनो को रेखांकित करता है और पात्रों को किसी विशेष वर्ग के प्रतिनिधि के रूप में प्रस्तुत करता है । हिंदी सिनेमा अपने आरंभिक दौर से निरंतर अब तक उन्नति के अनेक शिखर पार कर इक्कीसवी सदी में आ धमका । इक्कीसवी सदी के फिल्मकारों ने सिनेमा को दलित विमर्श, आदिवासी विमर्श, अल्पसंख्यक विमर्श, समलैंगिक विमर्श, स्त्री विमर्श आदि विविध विमर्शों से जोड़ दिया है । विमर्श से तात्पर्य है- गहन-सोच, विचार, समीक्षा, परीक्षण, चिंतन-मनन करना ‘मानक हिंदी कोश’ में विमर्श से तात्पर्य है-“(1) सोच विचार कर तथ्य या वास्तविकता का पता लगाना । (2) किसी बात या विषय पर कुछ सोचना-समझना विचार करना ।” विमर्श किसी भी विषय पर हो सकता है या यूँ कह सकते हैं कि समाज, जाति, धर्म, व्यक्ति, लिंग आदि कोई भी विषय विमर्श का हो सकता है । अनादिकाल से स्त्री पर होने वाले अन्याय, शोषण, अत्याचार, दमन-दलन के प्रति स्त्री चेतना ने ही स्त्री विमर्श को जन्म दिया है । शिक्षा, विज्ञान प्रगति के कारण स्त्री को अधिकार, अस्मिता और अस्तित्व बोध ने ही विमर्श को प्रेरणा दी है । स्त्री –विमर्श एक ऐसी जीवन दृष्टि है –जिसमे सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और बौद्धिक आदि क्षेत्रो में समानाधिकार, मनुष्य के रूप में सभी को सम्मान, न्याय, अधिकार, प्रतिष्ठा बहाल करने वाली व्यवस्था है । पुरुष प्रधान समाज व्यवस्था में स्त्री की स्थिति (दशा और दिशा ) को दर्शाने का प्रयास फिल्मकार मधुर भंडारकर ने किया है ।
इक्कीसवी सदी के प्रथम दशक के सर्वश्रेष्ठ तीन राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता निर्माता, निर्देशक, पटकथाकार, नायिका प्रधान सिने फ़िल्मकार मधुर भंडारकर ये नाम भारतीय सिनेमा जगत (दर्शक सहित) के लिए कोई नया नहीं हैं ।‘चाँदनी बार’(2001), ‘सत्ता’(2003), ‘आन मैन एट वर्क’(2004), ‘पेज-3’(2005), ‘कोर्पोरेट’(2006), ‘ट्रैफिक सिग्नल’(2007), ‘फैशन’(2008), ‘जेल’(2009), ‘दिल तो बच्चा है जी’(2011), ‘हिरोइन’(2012), ‘कैलेण्डर गर्ल्स’(2015) आदि में कुछ एक दो सिनेमा को छोड़ दिया जाए तो बाकि सभी सिनेमा नायिका प्रधान हैं । मधुर भंडारकर की स्त्री पात्रों में अन्याय, अत्याचार, हिंसा, शोषण,दमन-दलन के प्रति विद्रोही तेवर दिखाई देते हैं । चाहे ‘चांदनी बार’ की मुमताज (तब्बू) हो, ‘सत्ता’ की अनुराधा सहगल (रवीना टंडन) हो या ‘फैशन’ की मेघना माथुर (प्रियंका चोपड़ा) या फिर पेज-3 की माधवी शर्मा (कोंकण सेन शर्मा) या फिर कैलेण्डर गर्ल्स की शारण पिंटो, मयूरी चोहान, नाजनीन खालिद, नंदिता मेनन,परोमा घोष । सवर्ण हो या दलित स्त्री अपमानित, शोषित ही रही है परंतु आज की स्त्री मूक-मौन न हो कर मुखर दिखाई देती है ।
आर्थिक आत्मनिर्भरता और स्त्री – पुरुष समानता स्त्री विमर्श का मूल स्वर है, जो इन के सिनेमा में अभिव्यक्त हुआ है । ‘सत्ता’ की अनुराधा, ‘कोर्पोरेट’ की निशि, ‘हिरोइन’ की माही अरोड़ा, ‘चांदनी बार’ की मुमताज, ‘फैशन’ की मेघना माथुर, ‘पेज-3’ की माधवी शर्मा और पर्ल, ‘कैलेण्डर गर्ल्स’ की शारण पिंटो, मयूरी चोहान, नाजनीन खालिद और परोमा घोष आदि अपना निर्वाहन खुद करती हैं, ये सभी कामकाजी स्त्रियाँ हैं । कोई मॉडलिंग का काम करती है तो कोई प्रबंधक का, कोई अभिनय, संवाददाता-पत्रकारिता का कार्य करती है तो कोई समाज सेवा और राजनीति-सेवा कर रही हैं, मतलब प्रत्येक तबके की और लगभग हर पेशे की स्त्री यहाँ मौजूद है । आज की स्त्री महत्वाकांक्षी स्त्री है और इसे पाने के लिए संघर्ष करती हुई, अपनी अस्मिता, अस्तित्व की लड़ाई लड़ती हुई और हर उस रोड़े को उखाड़ कर फेकती हुई दिखाई देती है, जो उस के इस पथ में बाधा उत्पन करता हो । किसी भी प्रकार से सफलता हासिल करना चाहती हैं । ‘फैशन’ सिनेमा में मध्य वर्गिय चंड़ीगढ़ शहर की मेघना माथुर सफलता के लिए हर प्रकार की संघर्ष करती है साथ ही अपने बोस के साथ हमबिस्तर भी होती है, इस को लेकर उस के मन में कोई मलाल नहीं है । हिरोइन की अभिनेत्री माही अरोड़ा सिनेमा में स्थान बनाए रखने के लिए अभिनेता और क्रिकेट ख़िलाड़ी से भी हमबिस्तर होती है साथ ही अपने फिल्म की प्रसिद्धि के लिए वो स्वयं का सेक्स टेप भी लिक करवाती है ।
वर्तमान स्त्री उन रुढियों,परम्पराओं और वर्जनाओं का प्रतिरोध करती हैं, जो पुरुष प्रधान समाज द्वारा उस पर जबरन लादे गये हैं । हमारे समाज में लड़के चाहे रात में घर कभी भी आये-जाये समय की कोई पाबन्दी नहीं हैं पर स्त्री ऐसा नहीं कर सकती । ‘सत्ता’ में विवेक शादी के बाद लड़कियों के साथ ऐय्याशी कर देर रात घर आता है तो माता-पिता उसे कुछ नहीं कहते और जब अनुराधा अपने सहेली के यहाँ से रात में घर आती है तब सास कहती है “यह कोई वक्त है, शरीफ घर के बहु के घर लौटने का ?” अर्थात नहीं, पर अनुराधा के पूछने पर कि “विवेक आ गया ?” सास कहती है “वो लड़का है ।” विवेक अनुराधा को थप्पड़ मारता है तब अनुराधा भी पति विवेक को जांघो पर लात मारती हैं और कहती है “मैं उन लड़कियों में से नहीं हूँ विवेक जो पति का थप्पड़ खाकर किचन में जा कर रोती हैं ।” हमारे यहाँ यह परंपरा रही है कि लड़की का कन्यादान पिता(पुरुष) ही करेगा । शादी के वक्त विवेक की माँ पूछती है, कि “कन्यादान कौन करेगा ?”, “मेरी माँ करेगी”अनुराधा का यह जवाब परंपरा के प्रति प्रतिरोधी स्वर है । भारतीय सामंती सोच हमेशा कला, संस्कृति,राजनीति, आर्थिक, विज्ञान, साहित्य और अन्य क्षेत्र में स्त्री शिरकत के खिलाफ रहा है फिर भी स्त्री इन क्षेत्रों में निरंतर प्रतिरोधी – संघर्ष कर, शिरकत करने में सफल रही है । ‘कैलेण्डर गर्ल्स’ में कलकत्ता की परोमा घोष और लाहौर की नाजनीन खालिद, कैलेण्डर गर्ल्स बनने की चाह के खिलाफ है उनके ही घरवाले फिर नाजनीन अपने प्रेमी इंजमाम को लन्दन में छोड़ के मुंबई आ जाती है और कैलेण्डर गर्ल्स बनती है । तमाम तरह के धोके खा कर भी परोमा घोष निरंतर संघर्ष करते हुए अपने आपको अंततः सफल साबित करती है । ‘पेज 3’ की माधवी शर्मा व्यवस्था में व्याप्त बुराइयों के खिलाफ अपने कलम की ताकत से जंग छेड़ देती है । मानव तस्करी के खिलाफ, गुन्हेगारी के खिलाफ लड़ाई लड़ती है और उच्च वर्ग, फ़िल्मी चकाचौंध दुनिया के पीछे का नंगा सत्य को उघाड़ती है और बदले में उसे मिलती है, बेरोजगारी, ऐसे में वह हार मानने को तैयार नहीं हैं, उसका संघर्ष जारी हैं । फिर भी बाद में वह पेज-3 (पत्रकारिता की नौकरी) पा ही लेती हैं । पुरुष प्रधान समाज भारतीय समाज में समलैंगिक संबंध, विवाह पूर्व शारीरिक संबंध और विवाहेत्तर शारीरिक संबंध स्त्री के लिए वर्जित माने गये हैं । इस के प्रति प्रस्तुत सिनेमा में प्रतिरोधी स्वर दिखाई देते हैं । विवाह पूर्व संबध,विवाहेत्तर संबंध रखना तो दूर इस पर स्त्रियों का इस पर बोलना भी वर्जित माना जाता है, पर वर्तमान समाज में यह ठीक नहीं लगता स्त्रियों के संदर्भ में । क्योंकि ‘सत्ता’ की अनुराधा अपने ही राजनीतिक गुरु यशवंत वरधे के साथ हमबिस्तर होती है और इसके लिए उसके मन में कोई ग्लानी नहीं हैं, वह इसे आत्म सुख मानती है । ‘कैलेण्डर गर्ल्स’ में नंदिता मेनन, नाजनीन खालिद, परोमा घोष, शारण पिंटो और मयूरी चोहान अपने कैलेण्डर शूटिंग के एक रात पहले कैमरा मैन से अपने अपने विवाह पूर्व संबंधों का अनुभव साझा करती है और परोमा घोष अपने प्रेमी के अलावा अन्य क्रिकेट ख़िलाड़ी के साथ भी शरीर सबंध स्थापित करती है । फैशन की मेघना माथुर विवाह पूर्व गर्भधारण करती है और फिर अपने कैरियर में रोड़ा बन रहा गर्भ का गर्भपात भी करती है । ऐसे में उस मुद्दे की बात आती है जो आज कल देश विदेश में, संसद में संगोष्ठियों में, हो रही हैं,कहीं इस के विरोध में तो कहीं इस के समर्थन में आंदोलन हो रहे है वह मुद्दा है – समलैंगिकता संबंध का । इसे आज कल मानवाधिकार के रूप में भी पेश किया जा रहा हैं । तब एक सृजनात्मक कलाकार कैसे नजर अंदाज कर सकता है । मधुर भंडारकर सिनेमा में भी इस प्रकार के समलैंगिक संबंधी स्त्री और पुरुष दोनों प्रकार दिखाई देती हैं पर यहाँ स्त्री संबंधी समलैंगिक संबंध पर ही चर्चा करेंगे | ‘कैलेण्डर गर्ल्स’ में नंदिता मेनन के अपने सहेली के साथ शारीरिक संबंध है । ‘हिरोइन’ में अभिनेत्री माही अरोड़ा के अपने सह स्त्री कलाकार के साथ समलैंगिक संबंध हैं ।
इस प्रकार स्पष्ट है कि आज स्त्री शिक्षा, साहस, धैर्य, सजगता, शक्ति-संपन्न, समर्थ, स्वतंत्र, आकर्षक व्यक्तित्व को लेकर जीवन के विविध क्षेत्रो में प्रगति कर अपनी विजय पताका फहराती हुई दिखाई दे रही है । पुरुष प्रधान समाज द्वारा थोपी हुई जीवन शैली का, सत्ता का बंधनों का, वर्जनाओं और तमाम उन विचारों-आचारों को नकारती है । मधुर भंडारकर की स्त्री, अन्यायी, अत्याचारी, अयोग्य ‘सत्ता’ परिवर्तन की हिमाकत भी रखती है । स्त्री पुरुष को साथी के रूप में देखना चाहती है, पुरुषी स्वामी रूप वह अस्वीकार करती है । उसके पास अपनी जीवन दृष्टि है और उसे अमल में लाने की माद्दा भी है । अत: हम आत्मविश्वास के साथ कह सकते है, कि मधुर भंडारकर की सिनेमा वर्तमान स्त्री की छवि से रु-ब-रु कराने में सफल रहा है ।
संदर्भ ग्रंथ / सिनेमा :
1. चाँदनी बार(2001)
2. सत्ता(2003)
3. पेज-3 (2005)
4. कोर्पोरेट (2006)
5. ट्राफिक सिग्नल(2007)
6. फैशन(2008)
7.हिरोइन(2012)
8. कैलेण्डर गर्ल्स(2015)
9. हिंदी शब्दकोश- हरदेव बाहरी, राजपाल प्रकाशन, (2012)
चित्र साभार: koimoi