मैं मरघट का बूढ़ा बरगद,
देख रहा हूँ……
देख रहा हूँ जाने कब से याद नहीं है…..
लेकिन खुशियाँ देख सका हूँ यदा-कदा ही…..
मैनें देखा
दूनिया भर की खुशियाँ भोगे….
चार पीढ़ियाँ आगे देखे, चार पीढ़ियाँ पीछे देखे….
कई-कई सालों से हर इंद्रिय को भोगे….
जीवन से उकताये लोगों का आना….
मैनें देखा…..
जो कितने सीधे-सादे थे,जो कितने भोले-भाले थे….
जीवन भर सीमित खुशियाँ चाहीं, जितनी चाहीं उतनी पाईं….
कभी किसी से की ना लड़ाई, समरसता सब ओर फैलाईं….
ऐसे भी लोगों का आना….
मैनें देखा…..
दूनिया भर का बोझ उठाए….
अम्मा-बाबू, दो-दो बिटिया, प्राण-प्रिया के सबसे प्यारे शख्स यानी कि
दोनों छोटी प्यारि परियों के पापा का असमय आना….
ऐसे भी लोगों का आना….
मैंने देखा….
प्यार की भूखी प्रिया को प्रियतम के प्रवंचना से दुधमुँहे को भूल जहर खाना….
मन्नतों के बाद पाये लाडले को छोटी-सी बात पर फंदे में लटक जाना…..
मैंने देखा
सबको जीवन देनेवाले को बेसहारा होकर लावारिस की तरह जलाया जाना….
हर कलुष से दूर सात्विक भाव में जीते मनुज का बुड़बक कहलाना…..
थाम कर ऊँगली चलें जिस ऊम्र में बच्चे, उनकी छत्र छाया का छिन जाना…..
घड़ी भर सुस्ताये बिन घर की सभी समस्याओं को केंद्र में रख जीना और मर जाना…..
कितने तो ऐसे भी जिनकी दूनिया केवल पीना-खाना….
कितने ही ऐसे जो जन्मे तब से सताए और दबाए अंतिम क्षण तक घुटते आना….
कितने ऐसे लोग जिन्होंने नोट कमाए, बेची ज़मीर और रक्खा खजाना….
कितने ऐसे लोग जिन्होंने लोग कमाए…. भलमनसी का संसार दीवाना…
कितने तो ऐसे भी जिनका हँसते आना किंतु नहीं था ठौर ठिकाना….
ऐसे-ऐसे कितने ही लोगों का आना….
कितने रिश्तों का मर जाना, कितनों का फिर से जी जाना……
ऐसे लोगों का भी आना…..
मैंने देखा…..
ऐसे भी लोगों का आना…..
करतूतें जितनी काली थीं, उतना ही था उजला बाना….
कुछ फकीर थे सब ही लुटाए, भूल चुके थे कुछ भी पाना…..
ऐसे भी लोगों का आना…..
दुनिया भर के सारे ही सच, सारे ही दुख देख रहा हूँ…..
देख रहा नित तरह-तरह के कितने ही लोगों का आना…
परिचय:
चन्दन, एम.ए. हिंदी, झारखंड केन्द्रीय विश्वविद्यालय