नज़ीर अकबरावादी

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    नज़ीर अकबरावादी हिन्दी और उर्दू दोनों के महत्वपूर्ण कवि हैं । और ये हिन्दी साहित्य इतिहास के विभिन्न कालों की दृष्टि से रीतिकाल में आते हैं, परंतु बहु आयामी व्यक्तित्व काल विशेष की परिधि का अतिक्रमण करके सार्वकालिक बनता दिखाई पड़ता है । उनकी जन्म तिथि के विषय में आलोचकों में मतभेद है । कुछ विद्वान उनका जन्म सन् 1740 ई॰ तो कुछ सन् 1735 ई॰ मानते हैं । प्रो. शाहबाज ने अपनी रचना ‘ज़िंदगानी बेनज़ीर’ में इन सभी जन्मतिथियों की गंभीर जांच-पड़ताल करके उनका जन्म सन् 1740 ई॰ माना है, किन्तु अधिकांश विद्वानों द्वारा उनका जन्म समय सन् 1735 ई॰ ही मान्य है । इस संबंध में फरहतुल्लाह बेग का यह कथन द्रष्टव्य है- “नज़ीर दिल्ली में सन् 1735 ई॰ अर्थात् 1147 हिजरी में पैदा हुए । उनके वालिद मुहम्मद फारुख थे और वालिदा, नावाब सुल्तान खाँ॰ की बेटी थीं । मुहम्मद फारुख अजीमाबाद के किसी नवाब के यहाँ नौकर होकर चले गए और वहीं उनका देहावसान हो गया ।”1(पृष्ठ सं. 52) विभिन्न मतभेदों के बावजूद सन् 1735 ई॰ को नज़ीर अकबराबादी की जन्म तिथि के पक्ष में अधिक दिखाई पड़ते हैं । इसी तरह उनके जन्म स्थान के विषय में भी पर्याप्त मतभेद दिखाई पड़ता है । कुछ उन्हें दिल्ली में पैदा हुआ मानते हैं तो कुछ आगरा को उनकी जन्मस्थली स्वीकार करते हैं परंतु यहाँ भी बहुमत दिल्ली के पक्ष में है । इतना अवश्य है कि नज़ीर अकबराबादी बचपन से ही आगरा में रहे और आगरा के प्रति उनका लगाव भी बहुत अधिक था । उनका उपनाम अकबराबादी भी आगरा के नाम पर ही है । मुगल शासक शाहजहाँ ने बादशाह अकबर के नाम से आगरा का नाम अकबराबाद कर दिया था । इसी अकबराबाद के निवासी होने के कारण नज़ीर साहब अकबराबादी हो गए । आगरा के प्रति उनके अत्यधिक लगाव को उनकी इन पंक्तियों से भी देखा जा सकता है-

    ‘आशिक कहो, असीर कहो, आगरे का है,

    मुल्ला कहो, दबीर कहो, आगरे का है ।

    मुफलिस कहो, फ़कीर कहो आगरे का है,

    शायर कहो, नज़ीर कहो, आगरे का है ।’2 (पृष्ठ सं. 86)

    नादिरशाह और अहमदशाह आब्दाली के लगातार आक्रमणों से दिल्ली कि स्थिति अत्यंत दयनीय हो गयी थी । अहमदशाह अब्दाली के तीसरे आक्रमण (1756) के बाद दिल्ली की स्थिति इतनी बिगड़ गई कि वहाँ जीवन बीता पाना अत्यंत कष्टप्रद हो गया । इस समय नज़ीर की अवस्था बीस-बाईस वर्ष के लगभग थी । जीवन की दुश्वारीयों से बचने के लिए नज़ीर अपनी नानी के साथ आगरा चले आए और स्थायी रूप से वहीं रहने लगे । नज़ीर का बचपन अधिक सुविधापूर्ण परिवेश में व्यतीत हुआ । वे अपनी माता-पिता के अत्यंत प्रिय पुत्र थे, क्योंकि उनके पहले उनके माता-पिता की 12 सन्तानें जीवित नहीं रह पाई थी । अत उनका बचपन अत्यंत लाड़-प्यार और सुख-सुविधाओं में बिता । नज़ीर की बहुत सी रचनाओं में उनके बचपन की स्थिति का वर्णन मिलता है ।

    नज़ीर अकबराबादी के गज़लों में चित्रित विभिन्न सामाजिक सरोकार, उनकी दृष्टि, अत्यंत संवेदनशील और सूक्ष्म निरीक्षण करने वाली थी । अपने समय के समाज को उन्होंने बहुत करीब से देखा था । विभिन्न प्रकार की राजनैतिक और सामाजिक उथल फुथल वाली घटनाओं को उन्होंने अपनी आँखों से देखा और उनके प्रभाव को भोगा भी था । उनकी रचनाओं में उनके समय के समाज का यथार्थ चित्रण मिलता है । समाज से जुड़ी हुई मान्यताएँ, परंपरागत रीति-रिवाज, नैतिक क्रिया-कलाप आदि से वे न केवल भली-भांति परिचित थे बल्कि उन सब में बराबर शरिक भी हुआ करते थे । यहीं कारण है कि उन्होंने अपनी रचनाओं में जिन दृश्यों, घटानाओं, वस्तुओं आदि का वर्णन किया है, वे सब के सब पढ़ते समय आँखों के सामने उपस्थित से लगते हैं ।