भीष्म साहनी का जन्म ८ अगस्त,१९१५ रावलपिंडी में हुआ था | भीष्म साहनी बहुभाषी लेखक माने गए | भीष्म जी ने एक घटना को देखकर ‘नीली आंखे’ नामक पहली कहानी लिखी,जिसे अमृतराय के ‘हंस’ पत्रिका में छापी गई | भीष्म जी का साहित्य में पदार्पण यही से हुआ माना जाता है| एक सच्चा साहित्यकार कोई भी घटित सामान्य धटनाको अपनी कलम चलाकर कहानी,नाटक,उपन्यास आदि में लिख सकता है | कम बोलना भीष्मजी की प्रकृति रही है,परंतु जीतना बोलते है, मानों फुल की पंखुड़ियाँ झर रही हो | आंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त लेखक है ऐसा कभी किसीको महसूस होने नहीं दिया| उनकी शादि शीला से हुई| विष्णु प्रभाकर भीष्म जी के व्यक्तित्व को इन शब्दों में उजागर करते हैं, “भीष्म साहनी बहुत ही संवेदनशील व्यक्ति है | इसका असर भी उनके साहित्य में देखने को मिलता है| उनके इस सरल और सौम्य व्यक्तित्व के कारन ही उन पर मार्क्सवाद उस रूप में हावी नहीं है,जैसा अन्य वामपंथी लेखकों में देखने को मिलता है |”१ भीष्म साहनी को सादगी पसंद है उनमें बनावटीपन कहीं नहीं दिखाई देता | इसी कारन भीष्म युवा और बुजुर्ग दोनों में लोकप्रिय बने रहे है |
स्वातंत्र्योत्तर हिंदी कहानी साहित्य में भीष्म साहनी का स्थान महत्वपूर्ण मन गया है| ‘चीफ की दावत’, ‘अमृतसर आ गया है’, ‘ओ हरामजादे’, ‘वाड़चू ’, ‘ त्रास ’, ‘लीला नंदलाल की’ आदि कहानियों के रचनाकार भीष्म साहनी ने विभाजन की त्रासदी के साथ ही टूटते मानवीय मूल्यों ,कला और संस्कृति के क्षेत्र में बढ़ते राजनितिक हस्तक्षेप निम्न और मद्यवर्गीय चरित्र को पुरी जीवंतता के साथ अपनी कहानियों में लिखा गया है | भीष्म साहनी की यह विशेषता रही है कि कथा-परिवेश और यहाँ तक की विषयवस्तु भी परिवेश और यहाँ तक की विषयवस्तु भी मद्यवर्गीय होने के बावजूद उनकी अन्तर्वस्तु किसी भी तरह से मद्यवर्गीय या सुधारवादी नही होने पाती| डॉ. नामवरसिंह के शब्दों में ,”सादगी और सहजता भीष्म जी की कहानी कला की एसी खूबियां है ,जो प्रेमचंद के आलावा और कही नहीं दिखाई देती है | जीवन की विडंबनापूर्ण स्तिथियों की पहचान भी भीष्म साहनी में अप्रतिम है | यह विडंबना उनकी अनेक अच्छी कहानियो की जान है |”२ भीष्म जी हिंदी भाषा में अच्छी कहानी देने में सफल इसलिए माने गए है क्योकि उनकी कहानियों में आम जीवन को दर्शाया गया है |