हिंदी और राजस्थानी भाषा की ध्वनि व्यवस्था का तुलनात्मक अध्ययन

कैलाश चन्द्र
(शोधार्थी -हिंदी विभाग)
राजस्थान केन्द्रीय विश्वविद्यालय, अजमेर | Email : kailash85chandra@gmail.com
सम्पर्क सूत्र – 9468828668 /988709361

हिंदी एवं राजस्थानी भाषा: संक्षिप्त परिचय

हिंदी भारत की सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है जिसका क्षेत्र उत्तरप्रदेश , मध्यप्रदेश ,दिल्ली हरियाणा ,बिहार मध्यप्रदेश ,उत्तरांचल ,झारखंड के साथ –साथ अन्य कई प्रदेश हैं | हिंदी भाषा कई बोलियों का समन्वित रूप है जिनमे ब्रज , बांगरू , खड़ी बोली ,राजस्थानी ,बिहारी , भोजपुरी के साथ और भी शामिल है | इसमे सभी बोलियाँ के भाषा तत्त्व शामिल है | इसी में राजस्थानी भाषा भी इसकी एक बोली है | इसका भाषा क्षेत्र सम्पूर्ण राजस्थान प्रदेश के साथ – साथ मध्यप्रदेश एवं तथा भारत के अन्य भागों के साथ – साथ विश्व में भी कई भागों में फैला है | यह भाषा भी कई बोलियों का समन्वित रूप है जिसमे मारवाड़ी .मेवाड़ी , हाड़ोती , जयपुरी / ढूंढाड़ी , मालवी इत्यादि बोलियाँ शामिल है | इस भाषा को राजस्थान प्रदेश की मातृ भाषा माना जाता है जिसको इस प्रदेश के निवासी भारत के संविधान में शामिल करने के लिए काफी समय से प्रयास – रत्त है | यह हिंदी की उप – भाषा होने के कारण इसकी ध्वनि व्यवस्था में कुछ तात्त्विक समानता और असमानता होना स्वाभाविक है | इस भाषा में ध्वनि के वही दो रूप स्वर और व्यंजन में विभाजित है जो हिंदी भाषा में माने जातें हैं जिसका वर्णन एवं विश्लेषण विवेचित है |

हिंदी वणर्माला:

प्रायः सभी भाषा की तरह हिंदी में भी ध्वनियों के दो भेद है , स्वर एवं व्यंजन |

स्वर

वे ध्वनियाँ है जिनके उच्चारण में फेफड़े से निकलने वाली वायु बिना किसी अवरोध के बाहर निकलती है । हिंदी वणर्माला में ग्यारह (11) स्वर हैं |1

यथा- अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ ।

हिंदी में स्वर के दो भेद हैं – ह्रस्व स्वर और दीर्घ स्वर |

ह्रस्व स्वर

जिन वर्णों के उच्चारण में अल्प समय लगता है , उन्हें ह्रस्व स्वर कहते हैं |

जैसे– अ, इ, उ, ऋ इत्यादि |

– अवृत्ताकार ह्रस्व स्वर है । जिन स्वर के उच्चारण में ओष्ठ फैले हुए रहते हैं उन्हें ‘अवृत्ताकार’ स्वर कहते हैं |

इ – ओष्ठ की स्थिति की दृष्टी से ‘इ’ प्रसृत स्वर है।

उ– ‘उ’ ‘वृत्ताकार’ ह्रस्व स्वर है | जिन स्वर के उच्चारण में ओष्ठ गोल हो जाते हैं , उन्हें ‘वृत्ताकार’ स्वर कहते हैं |

– ‘ऋ’ को हिंदी स्वर वर्ण में रखा जाता है | क्योंकि ‘ऋ’ चिह्न को स्वर के रूप में प्रयोग करते हैं | हिंदी में ‘ऋ’ वस्तुत: स्वर नही है। यह आक्षिरक ध्वनि है। इसका उच्चारण र + इ = रि होता है। इस उच्चारण में व्यंजन + स्वर का संयोग है।

दीर्घ स्वर :

जिन स्वर वर्ण के उच्चारण में अत्यधिक समय और जोर लगाना पड़ता है , उन्हें दीर्घ स्वर कहते है | जैसे– आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ ।

– हिंदी में ‘ आ ’ वृत्ताकार दीर्घ स्वर है।

– ‘ई’ अवृत्ताकार दीर्घ स्वर है । स्थान और प्रयत्न की दृष्टि से ह्रस्व ‘इ’ और दीर्घ ‘ई’ में कोई अंतर नही है ।

– ‘ऊ’ अवृत्ताकार दीर्घ स्वर है ।

ए– अवृत्ताकार संयुक्त स्वर है। इसका ह्रस्व रूप हिंदी में प्रयुक्त नही होता ।

– ‘ऐ’ अवृत्ताकार संयुक्त स्वर है। इसका उच्चारण कंठ तालव्य है।

– ‘ओ’ कंठोष्ठ्य स्वर है ।

औ– ‘औ’ अवृत्ताकार संयुक्त स्वर है । इस ‘औ’ का स्वरूप ‘अ’ और ‘उ’ के संयोग से बनता है ।

व्यंजन वर्ण :

व्यंजन वर्णों का उच्चारण स्वर के सहायता किया जाता है। इन ध्वनियों के उच्चारण में उच्चारण अवयव के द्वारा मुख के ऊपरी जबड़े में विभिन्न स्थानों पर वायु अवरोध होता है। इस आधार पर व्यंजन वर्णों को अनेक भागों में बाँटा जा सकता है |

हिंदी में तैंतीस व्यंजन वर्ण हैं |2

  • ‘क’ वर्ग – (कं) क, ख, ग, घ, ङ
  • ‘च’ वर्ग – (ताल) च, छ, ज, झ, ञ
  • ‘ट’ वर्ग -(मूधर्न्य) ट, ठ, ड, ढ, ण
  • ‘त’ वर्ग -(दंत्य) त, थ, द, ध, न
  • ‘प’ वर्ग – (औष्) प, फ, ब, भ, म
  • अंतस्थ: वर्ण – य, र, ल, व
  • उष्म वर्ण – श, ष, स ,ह

विशेष –

  • हिंदी में चार संयुक्त ध्वनियाँ क्ष , त्र , ज्ञ , श्र है |
  • अनुस्वार (अं)और विसर्ग (:)ध्वनियाँ भी हैं |
  • ‘ ड़ ’ और ‘ ढ ’ भी दो विशेष ध्वनियाँ है |
  • हिंदी में ध्वनियों का विभाजन प्राणतत्व ,घोषत्त्व आदि आधार पर भी किया जाता है |

राजस्थानी वर्णमाला :

राजस्थानी भाषा ओकारांत भाषा है | राजस्थानी में 11 स्वर , 37 व्यंजन , 2 अर्द्ध स्वर और 5 अखंडीय (सुरलहर , मात्रा , बलाघात ,विवृत्ति और अनुतान) सहित कुल 55 ध्वनियाँ है|3 राजस्थानी भाषा में भी ध्वनियों के दो मुख्य भेद है , स्वर एवं व्यंजन |

स्वरों के उच्चारण में वायु बिना किसी विशेष बाधा के बाहर निकलती है। हिंदी वणर्माला की तरह राजस्थानी भाषा में भी ग्यारह (11) स्वर हैं |

यथा- अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ(री), ए, ऐ, ओ, औ।

राजस्थानी में स्वर के दो भेद हैं – ह्रस्व स्वर और दीर्घ स्वर |

ह्रस्व स्वर

जैसे– अ, इ, उ, ऋ(रि) इत्यादि |

– ह्रस्व अर्द्ध विवृत्त मध्य स्वर है |

– यह संवृत्त अग्र स्वर है |

उ– ‘उ’ संवृत्त ह्रस्व पश्च स्वर है |

ऋ(रि)– ‘ऋ’ का प्रयोग राजस्थानी में ‘ रि ’ के रूप में किया जाता है |4 यह आक्षरिक ध्वनि है। इसका उच्चारण र + इ = रि होता है। इस उच्चारण में व्यंजन + स्वर का संयोग है।

दीर्घ स्वर :

जिन स्वर वर्ण के उच्चारण में अत्यिधक समय और जोर लगाना पड़ता है , उन्हें दीर्घ स्वर कहते है , जैसे– आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ ।

– यह विवृत्त पश्च दीर्घ स्वर है।

ई– यह संवृत्त अग्र स्वर है | स्थान और प्रयत्न की दृष्टी से ह्रस्व ‘इ’ और दीर्घ ‘ई’ में कोई विशेष अंतर नही है ।

– ‘ऊ’ संवृत्त ,पश्च दीर्घ स्वर है ।

–यह अर्द्ध संवृत्त अग्र स्वर है। यह ह्रस्व रूप में प्रयुक्त नही होता।

– ‘ऐ’ अर्द्ध संवृत्त अग्र स्वर है |

ओ– ‘ओ’ अर्द्ध संवृत्त पश्च दीर्घ स्वर है।

औ– ‘औ’ अर्द्ध संवृत्त अग्र स्वर है स्वर है। इस ‘औ’ का स्वरूप ‘अ’ और ‘उ’ के संयोग से बनता है |

व्यंजन वर्ण :

व्यंजन वर्णों का उच्चारण स्वर के सहायता किया जाता है। इन ध्वनियों के उच्चारण में उच्चारण अवयव के द्वारा मुख के ऊपरी जबड़े में विभिन्न स्थानों पर वायु अवरोध होता है। अवरोध के प्रकार के आधार पर व्यंजन के अनेक भेद पाये जाते है।

राजस्थानी में सैंतीस व्यंजन वर्ण हैं |

  • ‘क’ वर्ग – क, ख, (ष), ग, घ, ङ
  • ‘च’ वर्ग – च, छ, ज, झ, ञ
  • ‘ट’ वर्ग – ट, ठ, ड, ढ, ण
  • ‘त’ वर्ग – त, थ, द, ध, न , ड़
  • ‘प’ वर्ग – प, फ, ब, भ, म
  • अंतस्थ: वर्ण – य, र, ल,ळ , व
  • उष्म वर्ण – श, ष, स ,(स) , ह

विशेष –

  • राजस्थानी भाषा में विसर्ग(:) का प्रयोग नही होता है | 4
  • राजस्थानी में ‘ ड ’ प्राचीन समय से प्रचलित था परन्तु आधुनिक राजस्थानी में यह ‘ ड़ ’ रूप में प्रयुक्त होने लगा है |5
  • राजस्थानी में दन्त्य ‘ स ’ ही व्यवहार में प्रचलित होता है शेष दोनों नगण्य है |6
  • राजस्थानी में ‘ ण ’ ध्वनि विशेष है क्योंकि कुछ शब्दों के प्रारंभ में आकर शब्द निर्माण करती है तथा णकारंत शब्द राजस्थानी की मुख्य विशेषता है |7
  • ‘ ळ ’ ध्वनि केवल राजस्थनी में ही मिलती है |8

हिंदी और राजस्थानी वणर्माला की तुलना :

1 . हिंदी में वर्णों की संख्या 44 है जबकि राजस्थनी में वर्णों की संख्या 48 है | हिंदी व राजस्थानी में स्वर 11 -11 है ,जबकि व्यंजन हिंदी में 33 और राजस्थानी में 37 व्यंजन ध्वनि है |

2 .हिंदी और राजस्थानी भाषाओं की लिपि एक ही देवनागरी है | एक लिपि के बावजूद दोनों के वर्णों में लहजे में थोडा अंतर है |

3 . हिंदी भाषा की तरह राजस्थानी भाषा में भी वर्गों के प्रथम तृतीय और पंचम अल्प प्राण तथा द्वितीय ,चतुर्थ महाप्राण ध्वनियाँ होती हैं |

4 . दोनों भाषाएँ आक्षरिक है जैसे लिखी जाती हैं वैसे ही पढ़ी जाती है |

5 . हिंदी में न , म , ल के अल्प प्राण रूप मिलते है जबकि राजस्थानी भाषा में इनके महा प्राण रूप न्ह ,ल्ह ,म्ह मिलते है |

6 . हिंदी में ‘ स ’ के तीनों रूप श , ष ,स लिखित और मौखिक मिलते है जबकि राजस्थानी भाषा में लिखित तीनों रूप है परन्तु मौखिक रूप में ‘ स ’ रूप ही मिलता है |

7 . हिंदी में विसर्ग (:) का प्रयोग किया जाता है जबकि राजस्थानी भाषा में विसर्ग (:) का प्रयोग नही किया जाता है |

8 . राजस्थानी भाषा में ‘ ळ ’ विशेष ध्वनि पाई जाती है जबकि हिंदी में यह ध्वनि नही मिलती है |

9 . हिंदी और राजस्थानी दोनों भाषाओं की जननी संस्कृत है |

सन्दर्भ

1 .मनोज कुमार मिश्रा , . हिंदी व्याकरण पे. न.3

2 .कामता प्रसाद गुरु , हिंदी व्याकरण पे .न . 41

3 . प्रो. रामलखन मीना , हिंदी और राजस्थानी के रूप विज्ञान का व्यतिरेकी अध्ययन , पे. न.- 32

4 पद्म श्री सीताराम लालस , राजस्थानी व्याकरण और साहित्य का इतिहास ,पे .न .21

5 . पद्म श्री सीताराम लालस , राजस्थानी व्याकरण और साहित्य का इतिहास ,पे .न .34

6 . पद्म श्री सीताराम लालस , राजस्थानी व्याकरण और साहित्य का इतिहास ,पे .न .67

7 . पद्म श्री सीताराम लालस , राजस्थानी व्याकरण और साहित्य का इतिहास ,पे .न .33

8 , 9 . प्रो. रामलखन मीना , हिंदी और राजस्थानी के रूप विज्ञान का व्यतिरेकी अध्ययन , पे. न.- 32