हिंदी शिक्षण में रचनात्मकता : नवीन अनुप्रयोग
अनुक्रम
लेखक –मनीष खारी
ईमेल manishkharibnps@gmail.com
सार – पहली भाषा के रूप में हिंदी शिक्षण से जुडी स्थितियों पर दृष्टि डालते हुए यहाँ हिंदी भाषा शिक्षण से जुड़ी समस्यायों को देखने का प्रयास किया गया है | यह लेख भाषा सीखने की जरुरत स्थापित करने की बात से आरम्भ कर पढने – पढ़ाने के रचनात्मक तरीकों को रखता है | रचनात्मक और गतिविधि शब्दों को समझने से लेकर रचनात्मक भाषा कक्षा के आयाम और गतिविधियों के उदहारण सामने रखता है |
भाषा शिक्षण अधिगम : सामान्य स्थिति –
तर्क आधारित समझ के बूते ये बात जानी जा सकती है कि कुछ भी सीखने के लिए भीतर से सीखने की जरुरत होना आवश्यक है | बिन प्यास तो अमृत भी बेकार है फिर पीया भी क्यूँ जाये जब प्यास न हो | सीखने के सिद्धांत भी सीखने के लिए तत्पर (law of readiness by thorndike )[1] होने की बात कहते आये है | पियाजे प्रदत संज्ञानात्मक विकास का सिद्धांत भी किसी विचार या क्रिया के सीखने से पहले उससे सम्बंधित मानसिक असंतुलन होने को आवश्यक कहता है तभी सीखने वाला संतुलन प्राप्त करने के लिए अग्रसर होगा और सीखने की क्रिया होगी | ये समझ भाषा शिक्षण पर भी लागू होती है | हिंदी प्रथम भाषा के रूप में पढाई जाती है | बच्चे विद्यालय आने से पूर्व ही काफी कुछ इसपर महारत ले चुके होते है | वेन्द्रिय के शब्दों में कहें तो “भाषा एक तरह का संकेत है | संकेत से आशय उन प्रतीकों से है जिनके द्वारा मानव अपने विचार दूसरों पर प्रकट करता है | ” संकेतों की यह व्यवस्था पूर्णतः यादृच्छिक है / मानवनिर्मित है यही से भाषा का सामाजिक स्वरुप प्रकट होता है | प्रत्येक बालक में जन्मजात किसी भी भाषा को सीखने और प्रयोग करने की शारीरिक और संज्ञानात्मक क्षमता मौजूद रहती है |” अपनी बात मनवाना , घटनाओं में अतिरिक्त विवरण जोडकर कहना , कहानियां गढ़ना , स्पष्टीकरण देना इत्यादि मौखिक क्रियाएँ साफ़ तौर पर बच्चे की मानसिक रूप से भाषा पर पकड़ को सिद्ध करती है | गौरतलब है कि ऐसी क्रियाओं को कर पाने वाले हजारों बच्चे पढने और लिखने की बेसिक क्षमताओं से जूझते रहते है और नही भी सीख पाते (ASAR REPORT 2106[2] ) | तो ऐसी स्थिति और और आंकड़े इस कारन से भी है कि संभव है कि हम बच्चे की जरुरत और स्तर के अनुरूप नही पढ़ा पा रहे | अगर जो हम पढ़ा रहे है और जो बच्चों की जररत भी है तो फिर परिणाम सफल होते | किन्तु हिंदी के समबन्ध में आंकड़े तो क्या रुझान की भारी कमी भी कुछ और ही कहती है | यह परचा पहली भाषा शिक्षण के रूप में हिंदी कक्षाओं की दयनीय और उबाऊ स्थिति (आंकड़ों से प्रदर्शित व् अपने शिक्षण कार्यकाल के दौरान स्वं अनुभव की गई ) को रचनात्मकता के दृष्टिकोण से देखने का प्रयास है | परिणाम ठीक न होना प्रमाण है कि कक्षाओं में जो हो रहा है उसपर नवीन दृष्टि डालने की जरुरत है | आवश्यकता की बेसिक थ्योरी से देखें तो अमूमन बच्चे हिंदी कक्षाओं में ऊब जाते है | कदाचित वे ठीक भी है कि उन्हें उतनी हिंदी आती है जितनी उन्हें जरुरत है फिर वे क्यों हिंदी पढ़ें ? और सिर्फ लिखकर ही क्यों सबकुछ करे ? हिंदी कक्षा का क्या प्रयोजन है ? सोचने का विषय है कि यदि सीखने वाले की रूचि और जरुरत के अनुसार उन्हें कक्षा में कुछ न मिले तो वे ऊब ही जायेंगे | हमारी शिक्षा का ये चिंतन योग्य पक्ष और भी शोचनीय हो जाता है जब बी एड कार्यक्रम में इंटर्नशिप के दौरान शिक्षक – छात्र भी कक्षा में इसी समस्या से जूझते है जहाँकि उनसे अपेक्षित है कि वे बच्चों को रचनात्मक रूप से संलग्न करें | बच्चों की जरुरत को समझते हुए रचनात्मक शिक्षण युक्तियों की बात उठती आवश्य है किन्तु ऐसी पुस्तके भी नाममात्र के लिए है जो हिंदी शिक्षण के रचनात्मक और नए तरीकों पर बात करती हो | देखा जाये तो एक कक्षा में देखकर ,सुनकर ,करके सीखने वाले यानि हर तरह के विद्यार्थी होते है तो फिर हम जब हर बात केवल बोलकर बताने और लिखकर सीख लेने की उम्मीद करते है तो निश्चित रूप से यह नाकाफी है | इन्ही सवालों पर अनुचिंतन करते हुए हिंदी शिक्षण में गतिविधियों को जानने ,समझने की जरुरत पड़ती है | भाषा में रचनात्मकता को समझते हुए ये तय कर पाना भी आवश्यक है कि क्या कुछ गतिविधियाँ करा लेना ,बच्चों से बुलवा देना ही रचनात्मकता है ? क्या रचनात्मकता याद करके कुछ करवा पाना है ? गतिविधियों से होने वाले कक्षा chaos के बीच कौनसे उद्देश्य पूरे हो रहे है और हमारी कितनी आस्था है इनपर ? बच्चों से भरे भारतीय कक्षाओं में रचनात्मक गतिविधियों की बात पर अध्यापक क्यों विवशता व् तनाव अनुभव करते है ? ऐसे प्रश्नों के लिए यह परचा एक दृष्टिकोण देने का प्रयास है | रचनात्मकता अर्थात सृजन कर पाने की क्षमता | भाषा एक कौशलों से युक्त कला है | भाषा शिक्षण का उद्देशय भी है कि सृजन शीलता बढे | भाषा मात्र कौशलों और उनके द्वारा भाषा – उत्पादन का विषय नही है अपितु यह अर्जन और उससे नवीन सृजन का की कला है | अतः भाषा शिक्षण को यांत्रिकता ( औपचारिकता से याद करना ,लिखकर दिखाना ) से बचाना चाहिए | बच्चों में रचनात्मकता या उनके साथ रचनात्मक शिक्षण के लिए शिक्षक के भीतर यह समझ आवश्यक है कि वह बच्चों के सीखने के जरुरत और तरीकों की पहचान कर पाए और गतिविधियाँ सृजन की समझ रखता हो | शिक्षक शिक्षा में क्या होता है और क्या स्कोप है के क्षेत्र में न जाकर यहाँ हम हिंदी शिक्षण के सन्दर्भ में ही कुछ गतिविधियाँ देखेंगे |
रचनात्मकता की संकल्पना और भाषा –
रचनात्मक सोच पाना अर्थात आवश्यकता अनुसार हम गतिविधियां स्वम गढ़ सकें क्योकि सीख ली गई गतिविधियां भी पर्याप्त नही हो ; यही कक्षा परिदृश्य की चुनौती भी है | जिसके लिए गतिविधि को भी समझने की जरुरत है | बच्चों के सीखने के तरीकों की पहचान ,गतिविधि को समझना , खुद गतिविधि करना ,गतिविधियों का निर्माण करना और फिर एक गतिविधि भंडार विकसित करने की तरफ बढ़ाने के उद्देश्यों के साथ यह परचा अपना विस्तार देखता है |बहुत साधारण और निजी समझ के अनुसार गतिविधि यानि जहाँ मानसिक ,शारीरिक ,भावनात्मक गति ,संलग्नता हो | ऐसी संलग्नता होगी तभी जब सीखने वालों की जरूरतों के अनुसार सिखाने की विधि में स्कोप हो | जब ऐसे सोच के साथ तरीके निकले जायेंगे तो यही रचात्मक गतिविधि है | भाषा शिक्षण की पूर्णता के लिए सीखने वाले छात्र / बच्चे को शिक्षण प्रक्रिया में उसका सहभागी बनाना चाहिए | उसकी भाषा सीखने की जिम्मेदारी उसकी होनी चाहिए | परिवार व् अध्यापक इस प्रक्रिया में आवश्यक व् अन्य भगीदार के रूप में होने चाहिए | ( ब्रायन कैम्बोर्न) अधिगमकर्ता अनुमानात्मक कौशल के आधार पर भाषा सीखने की प्रक्रिया में जुड़े ,ये सुनिश्चित करना आवश्यक है |इसलिए रचनात्मक गतिविधियाँ स्पष्ट रूप से सिखाने की विधियों में बच्चों की भूमिका को बढ़ाते जाने का गुण तो रखेंगी है साथ ही अध्यापक द्वारा सहयोग और स्पष्ट निर्देशों वाली योजना की मांग करती है | गतिविधियाँ सृजन व् उपयोग के लिए विषयवस्तु की प्रकृति को ध्यान में रखना भी एक बात है | गद्य ,पद्य ,व्याकरण के लिए एक ही तरह की गतिविधियाँ हुई तो निश्चित रूप से रचनात्मकता स्वं ही गौण हो सकती है | १. उदहारण के लिए – संज्ञा सिखाने के लिए नाम ,वस्तु ,स्थान ,भाव का खेल एक मनोरंजनात्मक तरीका है | हालांकि इसकी सफलता इसकी सटीक योजना पर टिकी है कि खेल के निर्देश क्या होंगे , कब संकल्पना को मौखिक रूप से बच्चे गतिविधी के दौरान सीखेंगे फिर अंत में संकल्पना की निजी समझ लिखना और कक्षा की साझी परिभाषा तक पहुंचना जिसमे सीखने वालों के संदेहों , प्रश्नों को हल करना /करवाना कैसे – कैसे हो | रचनात्मक भाषा शिक्षण कक्षा को समग्रता में देखा जाये तो इसके कई आयाम हो सकते है –
१.भित्ति प्रिंट – समृद्ध वातावरण (कक्षा में चल रहे कार्यों या अन्य से जुड़ा लेखन और चित्र बनाने से जुड़े चार्ट )
२. भाषा के विविध उपयोगों को सुनना व् देखना (रेडियो सुनना ,अख़बार का कोई संदर्भानुकूल हिस्सा साझे रूप से पढना इत्यादि )
३. कभी – कभी निजी जीवन से जुडी बातचीत और अनुभव साझा करने के लिए स्थान व् समय होना
४. कक्षा में दैनिक रूप से कोई आवश्यक सन्देश व् सूचना लेखन (पहले अध्यापक फिर विद्यार्थियों द्वारा या फिर आज की कक्षा में क्या क्या करना है लिखना पट पर इत्यादि )
५.. लिखित सामग्री का कोना और उसे देखने व् उसके साथ संलग्नता केलिए सप्ताह में एक या बार का नियत समय जो हिंदी कक्षा में से लिया जा सकताहै (जो और जितनी किताबे हो सकें ,रोज़ का अख़बार ,कोई पत्रिका घर में जिसका उपयोग न हो यहाँ लाकर रखी जा सकती है बच्चे योगदान दे जैसा भी हो )
६. कहानी सुनाने और नाटक खेलने की आदत और जगह (सप्ताह ,पन्द्रह दिन या महीने में इसमें से कुछ किया जा सकता है )
७ . विषयवस्तु से जुडी गतिविधियाँ और उनके बाद के काम की योजना (जिससे कक्षा में वाले संगठित रूप से विषयवस्तु भी आगे बढ़े )
८. कक्षा में जो काम मौखिक व् लिखित हो उनकी सन्दर्भ सहित आवश्यकता भी स्थापित हो और सीखने वालों का भी निर्णय लेने में हिस्सा हो
९. आंकलन की विधियाँ भी इसके अनुरूप होना अति आवश्यक है हालांकि यह परचा इस क्षेत्र पर केंद्र नही करता अत यहाँ इनकी विवरण सहित चर्चा नही है
१० अति आवश्यक रूप से लेखन कार्य के दौरान विषय चयन में सीखने वालों की भागीदारी ,लिखने का ऑथेंटिक उद्देश्य होना साथ ही लेखन से पूर्व मस्तिष्क उद्वेलन ( विषय से जुड़े विचार साझा करना या तस्वीरे उकेरना या कुछ पढना ) से सम्बंधित विषय को स्थापित करना लिखने वाले को विषय से जोड़ता है | लेखन के समय शिक्षक भी अवश्य अपना लेख लिखे और साझा करे (इस तरह से लेखन कौशल से जूझने वाले विद्यार्थी सहयोग और रुझान ले पाएंगे जैसे कि भीड़ भरी मेट्रो यात्रा के बारे में लिखने से पहले सोचना और बात करना कि इससे जुड़े अनुभव क्या – क्या है ?इसमें क्या क्या विचार हो सकते है ? इत्यादि )
इन सभी आयामों का एक साथ होना जरुरी नही किन्तु इनमे से चुनाव करके रचनात्मक शिक्षण की समग्रता की तरफ बढ़ा जा सकता है | रचनात्मक कक्षा कोई याद करके किये जाने वाले कार्यों का समुच्चय नही हो सकता अपितु नित नयी सम्भावनाये तलाशने का नाम है | उपर्युक्त आयामों में से रचनात्मक कक्षा जो अपने हर तरह के विद्यार्थी के लिए कुछ न कुछ अवसर देती हो की झलक अवश्य मिल सकती है | इन आयामों को आगे और समझने केलिए हम कुछ गतिविधियों के उदहारण लेंगे और चर्चा करेंगे |
जैसा कि हम रचनात्मक भाषा शिक्षण की बात करते हुए आयामों को देख रहे थे उसी में से प्रिंट को लें तो – सीखी जाने वाली भाषा में “भाषा से घिराव वाला वातावरण”, “अपने सीखने की जिम्मेदारी स्वं लेना” इत्यादि (7 conditions of language learning by brian cambourn )[3] को मद्देनज़र रखते हुए बात करें तो रचनात्मक भाषा शिक्षण गतिविधियों में कक्षा का प्रिंट अति महत्वपूर्ण है | गतिविधि की और सब खत्म ऐसा न हो और गतिविधियों पर काम होता रहे इसके लिए प्रिंट बहुत बड़ी भूमिका निभा सकता है | जीवंत प्रिंट के साथ बच्चे संलग्न रहते है और उनकी सीखने की क्रिया चलती रहती है | २. उदहारण के लिए – विशेषण सिखाने के दौरान कक्षा में एक चार्ट लगा सकते है जिसमे सप्ताह के नाम से विशेषण जोड़ें और फिर उससे सम्बंधित घटना ,अनुभव लिखे
विशेषण | सप्ताह का दिन | |
शरारती | सोमवार | क्या हुई शरारत तुम्हारे साथ ? / जब की मैंने शरारत ? / शरारत से जुड़े अन्य शब्द इत्यादि |
मजेदार /
मुहावरेदार |
मंगलवार | मज़ा बहुत आया जब तुमको ….
आज की मजेदार बात … मुहावरे में करे मजेदार बात …….. |
…………………………… | बुधवार |
इस प्रकार से अनेकों बच्चों को संलग्न करने वाला प्रिंट उपयोग में लाया जा सकता है | ३. उदाहरन पढ़ी गई किसी कविता को आगे बढ़ना , उसमे चित्र बनाना जैसे काम बच्चों को भाषा में सृजनात्मक रूप से संलग्न कर सकते है| छात्र / छात्राएं अक्सर विषयवस्तु और अवसर अनुकूल भाषा न बोल पाने (अभिव्यक्ति में कमतर ) से जूझते है | कक्षा में १५ से २० मिनट की एक श्रवण गतिविधि का उपयोग इसमें प्रभावशाली सिध्ध हो सकती है | ४. उदाहरन भाषा को विविधता से अनुभव कराने के लिए कक्षा में फ़ोन या रेडियो जो भी हो पर कोई बातचीत , समाचार , वाद – विवाद, कोई वर्णन ,कहानी , साक्षात्कार इत्यादि को सुना जा सकता है और इनकी भाषा में क्या फर्क है ? पर चर्चा करके मौखिक भाषा उपयोग में विविधता के जीवंत अनुभव द्वारा सुनने , बोलने के कौशलों पर काम किया जा सकता है | कक्षा में भाषा के जिस प्रकार के उपयोग को हम सीखना चाहे उसे सुन सकते है यह प्राथमिक कार्य किया जा सकता है | इसी तर्ज़ पर कुछ और रचनात्मक गतिविधियाँ सुझाई जा रही है –
विषयवस्तु / उद्देश्य | गतिविधि | ध्यान रखने योग्य बिंदु |
कहानी – शिक्षण | कुछ स्थितियां दर्शाने वाले चित्र लेकर, उनको आपस में जोड़ते हुए उनपर कहानी बनाना
कहानी को पढने से पहले कहानी के मूल विचार को लेकर विद्यार्थियों से अनुभव या उनकी समझ लेना , अनुमान लगाते हुए शीर्षक की व्याख्या करना चित्र देखकर अनुमान लगाना कहानी में दिए हुए या न भी हो तो google से सम्बंधित चित्र लेकर चित्रों की प्रतियाँ करके कक्षा में लगाना और उन्ही से कहानी को समझना फिर अंशों में कहानी पढना |
इसमें एक जैसे चित्रों से अलग अलग कहानियां मिल सकती है जो रचनाशीलता को सबल करेंगी
किसी कहानी का मूल विचार जैसे – शरारत या फिर कठिन काम करने का साहस इत्यादि को ठीक से पकड़ना होगा तभी उससे सम्बंधित स्थिति को लेकर सटीक और अर्थपूर्ण बात हो सकती है | ऐसी बात से कहानी को समझने में सहायता हो जाती है क्योकि पढने से पहले सम्बंधित मानसिक क्षमता और विचार जागृत हो जाते है | |
कविता – शिक्षण | १.पढ़ी जाने वाली कविता को अंशों में बांटकर स्लिप्स बनाकर समूह में देना , विद्यार्थी उसे अपने अनुसार एक क्रम देंगे अर्थपूर्ण हो
सभी समूहों की कविता सुने और इसी क्रम में लगाने की प्रक्रिया और कारन पर बात करें ; इसी में अर्थ भी प्रकट होगा | २. कविता को पूरा पढना ,फिर अंशों में रुक – रुक कर पढना और जो भी चित्र दिमाग में बने उन्हें उकेरना कक्षा में श्याम/ श्वेत पट पर सामूहिक रूप से कर सकते है या सामूहिक या व्यक्तिगत रूप से भी .. फिर उकेरे हुए चित्र या चित्रों को देखते हुए सामूहिक चर्चा – कविता की मूल बात क्या हो सकती है ? सहायक विचार क्या क्या है ? |
इसमें मूल कविता विद्यार्थियों ने न देखि पढ़ी हो |
क्रम की नवीनता से बनी कविताओं को सही गलत की भावना से परे रखकर कक्षा में सुने व् अर्थ पर बात करें इस गतिविधि में कविता पढना मूल क्रिया है लगभग पूरी कक्षा के दौरान हर सहभागी और अध्यापक कविता को पढ़ते रहेंगे | जिनको चित्र बनाने में सुविधा न हो वे भी सामूहिक रूप से कुछ योगदान दे पाएं ऐसा अवसर मुहैया कराएँ बने हुए चित्र पर किसी ऐसे व्यक्ति की प्रतिक्रिया ले सकते है जो गतिविधि में न हो जिसने कविता न सुनी और और फिर उससे सुनना कि इससे क्या लगता है कि कविता किस बारे में है ? ( एक मजेदार काम होगा प्रतिक्रिया सुनना ) |
निष्कर्ष – पहली भाषा में रचनात्मक शिक्षण की युक्तियाँ उबाऊपन से निजात दिलाने के साथ – साथ समग्रता से भाषा के कौशलों सुनना ,बोलना , पढना ,लिखना को भी संबोधित कर सकती है | सुनने – बोलने के कौशलों में विद्यार्थी यूँ भी काफी अनुभव रखते है इसलिए इसमें उन्हें उच्च स्तरीय चुनौतियां देने के साथ ही पढने और लिखने में गहन संलग्नता सुनिश्चित करने में चिंतन और सृजन की काफी गुंजाइश है जिसका एक सूक्ष्म प्रयास यहाँ किया गया है |
सन्दर्भ पुस्तकें –
- https://archive.org/stream/science71898mich#page/818/mode/2up ↑
- The eleventh Annual Status of Education Report (ASER 2016) was released in New Delhi, 18 January 2017 ↑
- Cambourne, Brian. (1995) “Toward An Educationally Relevant Theory Of Literacy Learning: Twenty Years Of Inquiry”. The Reading Teacher, Vol. 49, No. 3. ↑