बैंकिंग क्षेत्र मे नया क्षितिज : ई-बैंकिंग
डॉ. बिंदिया
सहायक प्रधायापक, अर्थशास्त्र
स्वामी विवेकानंद सुभारती विश्वविद्यालय, मेरठ
आर्थिक क्षेत्र में उदारीकरण और वैश्वीकरण में जहां बैंकिंग के स्वरुप और उसकी संकल्पना तथा स्वरुप को अभिनव प्रदान किया है, वहीं सूचना और प्रौधोगिकी के इस युग ने बैंकिंग की मूलभूत अवधारणा, उसकी परंपरागत सोच और उसकी कार्यप्रणाली में क्रांतिकारी परिवर्तन ला दिए हैं। सामान्य जन की धरोहर की सुरक्षा के रक्षक की पारंपरिक छवि के विपरित भारतीय बैंकिंग उधोग ने संपूर्ण विश्व के साथ कदम मिलाते हुए बैंकिंग में हुए अभूतपूर्व परिवर्तनों को अपनाते हुए स्वयं को बदलते समय के अनुरुप ढ़ालने का प्रयास किया है।
बदलते परिवेश में बैंकों में नए-नए उत्पाद एवं सेवाओं को प्रादुर्भाव हो रहा है। प्रतिस्पर्धी परिवेश और न्यू एज बैंकिंग ने बैंकिंग की सभी अवधाराओं में आमूल परिवर्तन लाना प्रारंभ कर दिया है। आज बैंको का लक्ष्य स्वयं को एक सक्रिय एवं तीव्र समाधान प्रदाता के रुप में प्रस्तुत करना है। सूचना प्रौधोगिकी के विकास एवं बैंको में उसके प्रयोग ने बैंकिंग के परिवत्तित स्वरुप को सर्वाधिक प्रभावित किया है। आज बैंकिंग व्यवहार का प्रत्यके पहलू चाहे वह बैंकिंग परिचालन, ग्राहक सेवा, बैंकिंग उत्पादों को स्वरुप, प्रकृति, विपणन एवं संचालन कोई भी हो सूचना प्रौधोगिकी से ही संचालित हो रही है। वस्तुत: संपूर्ण बैंकिंग परिचालनों को इसने एक नया रुप शैली एवं पहचान प्रदान की है।
ई-बैकिंग का प्रचलित शाब्दिक अर्थ इलेक्ट्रानिक्स बैंकिंग है। समान्यत: बैंको में कम्प्यूटरों का प्रयोग या बैंकिंग व्यवहारों के कम्प्यूटरीकरण का अभिप्राय भी ई बैंकिंग का धोतक है। वर्तमान समय में बैंक अपने उपभोक्ताओं को बेहतर सुविधाएं उपलब्ध कराने व नए ग्राहकों को लुभाने के लिए सूचना प्रौधोगिकी का उपयोग बड़े पैमाने पर कर रहे हैं। इसका प्रयोग करने से जहां बैंको को अपना हिसाब-किताब रखने में आसानी हो गई है वहीं उनकी सेवाएं सिर्फ देश में न रहकर विश्वव्यापी हो गई है। बैंको द्वारा ई-बैंकिंग के रुप में सुविधाएं उपभोक्ताओं को सुलभ कराने से जहां बैंकों की गुणवत्ता में सुधार आम है तथा प्रति कर्मचारी उत्पादकता में वृद्धि हुई है वहीं ग्राहक किसी भी समय बैंक से संपर्क व व्यवहार कर अपना समय एवं भ्रम भी बचा लेता है। बैंकों के द्वारा अपनी वेब साईट के माध्यम से निरंतर नई-नई सुविधाएं ग्राहक को उपलब्ध कराने एवं वेबसाईट के विकास की दिशा में निरंतर प्रयास किए जा रहे है।
वित्तिय सेवाओं के क्षेत्र में बढ़ती प्रतियोगिता ने बैंको को अपने ग्राहकों को प्रदान की जा रही सेवाओं में प्रौधोगिकी उन्मुख विस्तार करने को प्रेरित किया है। सूचना प्रौधोगिकी के विभिन्न विस्तार करने को प्रेरित किसा है। सूचना प्रौधोगिकी के विभिन्न आयमों में बैंकिंग व्यवसाय में निम्नालिखित सेवाओं को शामिल किया है-
· फोन बैंकिग – इस सुविधा के अंतर्गत ग्राहक को बैंक की शाखा से अपने आई.डी.कार्ड नंबर के माध्यम से पहचान के बाद बैंक कम्प्यूटर द्वारा वांछित सर्विस कोड डायल करने को कहा जाता है और तत्पश्चात ग्राहक को उसके प्रश्नों का समुचित उत्तर फोन द्वारा प्राप्त हो जाता है। स्वचालित आवाज रिकार्डर से ग्राहक के सरल प्रश्नों और फोन टर्मिनल द्वारा जटिल प्रश्नों का उत्तर दिया जाता है। मोबाईल फोन बैंकिेंग के अंतर्गत ग्राहक द्वारा मोबाईल फोन के माध्यम से कोई भी संदेश दिया जाता है जो कि कुछ ही सेकन्ड़स में लक्ष्य पर ही ग्राहक के प्रश्न का समुचित समाधान कर दिया जाता है।
· मैगनेटिक इंक करेक्टर रिकग्निशन – यह एक ऐसी प्रणाली है जिसके अंतर्गत समाशोधन ग्रह में आए बहुत से लिखतों की तीव्र गति से प्रोसेसिंग होती है। इस प्रणाली के अर्न्गत केवल ऐसे लिखतों को प्रयोग किया जाता है जिन पर संख्या, बैंक कोड आदि जानकारी चुम्बकीय स्याही से मुद्रित होती है जिसे एम.आई.सी.आर. मशीन पढ़ सके।
· शेयर्ड पेमेन्ट नेटवर्क सिस्टम – इसका प्रारंभ 1 फरवरी 1991 में हुआ । यह मुम्बई में स्थापित है और इसे स्वधन के नाम से जाना जाता है। यह भारतीय बैंक संध द्वारा प्रायोजित है। इसके अंतर्गत विदेशी बैंको, निजी क्षेत्र के बैंको तथा सार्वजनिक क्षेत्र के बैंको के स्वामित्व वाली कई स्वचालित गणक मशीनें एक-दूसरे के साथ इस प्रकार जुड़ी हुई है कि किसी भी एक बैंक के ग्राहक को अपना एटीएम कोर्ड दूसरे बैंक के एटीएम कार्ड के लिए प्रयोग में लाने की सुविधा मिल सके।
· प्लास्टिक कार्ड – यह एक तरह से पोर्टबेल पासबुक की तरह है जिसमें ग्राहक के खाते में वर्तमान शेष राशि तथा नवीनतम लेनदेन का ब्यौरा रहता है। इसमें कम्प्यूटर प्रोसेसर और संकलन की सुविधा कोती है। कार्डधारक किसी भी सहयोगी बैंक अथवा रिटेलर के पास जाकर धनराशि निकाल सकता है या खरीदारी कर सकता है। कार्ड में संकलित किए गए आंकड़ों को एक विशेष टर्मिनल के द्वारा देखा जा सकता है, जिसमें हार्डवेयर, सॉफ्टवेयर और सुरक्षात्मक प्रणाली होती है। ये कार्ड कई प्रकार के होते हैं जैसे – क्रेडिट कार्ड, स्मार्ट कार्ड डेविट कार्ड आदि। विश्वभर में मात्र कुछ संस्थानों द्वारा जारी करा सकते हैं। ऐसा भुगतान प्रणाली को मानक व धोखाधड़ी रहित बनाने के उद्देश्य से किया गया है। विश्व में दो संस्थानों के कार्ड सर्वाधिक प्रचलित है वे हैं – वीसा कार्ड एवं मास्टर कार्ड।
एक अनुमान के अनुसार भारतीय क्रेडिट कार्ड बाजार में प्रतिवर्ष 25 लाख कार्ड की दर से वृद्धि हो रही है अभी इसमें और तेज वृद्धि होन की संभावना भी दिखाई दे रही है क्योंकि अभी तक जहां क्रेडिट कार्ड आदि का प्रयोग अधिकांशत: महानगरों में ही हो रहा था वहां अब इनका प्रयोग देश के अन्य नगरों में भी तेजी से बढ़ रहा है।
· होम बैंकिंग – इसके अन्तर्गत बैंक का कोई भी ग्राहक घर बैठे ही अपने खाते से व्यवहार कर सकता है, अपेक्षित धनराशि निेकालने या जमा करने के लिए अपने पर्सनल कम्प्यूटर के माध्यम से बैंक को आदेश दे सकता है।
· इलेक्ट्रानिक समाशोधन सेवा – इसके माध्यम से ग्राहक उनके टेलीफोन बिल, बिजली बिल आदि का भुगतान बैंक खातों के माध्यम से घर बैठे कर सकते है। इसके द्वारा कॉर्पोरेट क्षेत्र और सरकारी विभागों द्वारा भुगतान किए जाने वाले ब्याज, लाभांस, पेंशन, कमीशन आदि का व्यवहार भी किया जाता है। लेकिन वर्तमान में यह योजना कुछ चुने हुए शहरों में ही लागू है।
· इलेक्ट्रानिक निधि अंतरण – इसके अतंर्गत इस प्रकार की भुगतान प्रणालियां लागू हो गई है जिनमें लिखित चेक, बैंक ड्राफ्ट के बिना एक खाते से दूसरे खाते में, एक शहर से दूसरे शहर में धन अंतरित किया जा सकता है। केवल आवश्यकता इस बात की है कि बैंक में उपयोग किया जाने वाला कम्प्यूटर नई एवं उत्तम, उन्नत तकनीक युक्त होना चाहिए।
· बैंकनेट – बैंकिंग उधोग में संप्रेषण के साधन प्रदान करने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा दिसंबर 1991 में बैंकनेट की स्थापना की गई थी। बैंकनेट कुछ चुने हुए केंद्रों में पोर्ट नेटवर्क के माध्यम से आपस में संप्रेषण सुवधिा प्रदान करता है।
· आरबीआई नेट – मुक्त फार्मेट में सदेश संप्रेषण के लिए भारतीय रिजर्व बैंक ने दिसम्बर 1994 में इस नाम का स्वयं का सॉफ्टवेयर स्थापित किया है। यह मुक्त फार्मेट संदेश संप्रेषण के अतिरिक्त बैंकनेट पर फाइलें अंतरित करना भी संभव बनाता है।
· इलेक्ट्रानिक डाटा इंटरचेंज – इसमें विभिन्न कम्प्यूटर टर्मिनलों के मध्य आंकड़ो का अंतरण एक कम्प्यूटर से दूसरे कम्प्यूटर में बिना किसी मानवीय हस्तेक्षप के किया जाता है। यह अंतरण से संबंधित अशुद्धिता, विलंब से अंतरण आदि का निराकरण कर शुद्धता बनाए रखता है। भारतीय रिजर्व बैंक के निर्देशानुसार सभी प्रविष्टियों का मिलान तीन माह में करने के उद्देश्य से बैंको में इलेक्ट्रानिक डाटा इंटरचेंज प्रणाली शुरु की गई है। इस प्रणाली द्वारा सभी कम्प्यूकृत शाखाओं की सूचना प्रतिदिन केन्द्रीय द्वारा सभी कम्प्यूटर में अधतन की जा सकती है।
· स्वचालित गणक मशीन – यह एक ऐसी मशीन है जो सपताह के सातों दिन, दिन के चौबीसों घंटे, नकद भुगतान करना, जमा राशियों स्वीकार, चेक बुक प्राप्त करना, खाता विवरण प्रापत करना, लेन-देन व खातों में शेष राशि से संबंधित जानकारी प्रदान करने जैसी ग्राहक सेवा प्रदान करती है जिसके कारण यह संतुष्टिपूर्ण ग्राहक सुवधिा की दृष्टि से आज की एक आवश्यकता बन गई है। एटीएम से पैसे निकाल सकेगा एवं उसके काम रुकेंगे नहीं।
वर्तमान में तो स्थिति यह है कि बैंक के 70 फीसदी से अधिक ग्राहक ऐसे होते हैं जो अपने सभी बैंकिंग व्यवहार इन्हीं के माध्यम से पूर्ण कर लेते हैं और बैंक की किसी भी शाखा में स्वयं जाते ही नहीं है। अक्टूबर 2013 के अंत तक हमारे देश में जहां 01 लाख 37 हजार एटीएम कार्यरत थे वहीं अक्टूबर 2014 में इनकी संख्या बढ़कर हो गई है भविष्य में इनकी संख्या में और भी अधिक वृद्धि होने की संभावना है क्योंकि स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के डिप्टी मेनेजिंग डायरेक्टर के अनुसार भविष्य में ग्राहक बैंक एटीएम से न सिर्फ कॉलेज फीस, टैक्स भर पाएंगे बल्कि ई-बैंकिंग की सभी सुविधाएं भी उन्हें इसी मशीन से प्राप्त हो जायेगी।
स्पष्ट है कि ई-बैंकिंग, बैंकिंग की अन्य प्रणालीयों की तुलना में खर्चो में कमी करती है और विभिन्न प्रकार की माध्यमों के द्वारा बैंकिंग सेवाएं प्रदान करना अनुमत करती है। प्रौधोगिकी के विभाग ने भौगोलिक सीमा एवं समय सीमा को कम कर दिया है। समस्त विश्व एक वैश्विक गांव बनकर रह गया है। आज का ग्राहक बैंक शाखाओं और कार्यालयों में पंक्तियों में खड़ा होकर प्रतीज्ञा करने के बजाए कम्प्यूटर, एटीएम आदि के सेवाएं प्राप्त कर रहा है। आज बैंकों ने अपने ग्राहकों को उनके खातों में राशि में किए गए संव्यवहारों की जानकारी, विभिन्न खातों में राशी के अंतरण की सुविधा, सावधि जमा रसीदें बनाने करने मे अधिक तीव्रता दिखाना शुरु कर दिया है। प्रौधोगिकी के क्षेत्र में हुई इस क्रांति ने संभाव्यताओं और अवसरों के नए द्वार खोले हैं।
लेकिन इतने लोभों के बावजूद इस कम्प्यूटर परिवेश में हमें अनेक फ्रॉड या जालसाजियों की घटनाओं ही जानकारी भी सामने आ रही है। इसमं अनेक बैंक चिंतित भी है और आशंकित भी। अब एटीएम को ही ले जीजिए, एक तरफजहां इनकी संख्या में निरंतर वृद्धि होती जा रही है, वहीं एटीएम की सुरक्षा की समस्या भी सामने आ रही है। असामाजिक तत्वों की निगाह में एटीएम ‘पैसा उगाने वाली मशीन’ है इसलिए कहीं-कहीं एटीएम मशीन में तोड़-फोड़ की घटनाएं हो रही है तो हीं विभिन्न कार्ड (एटीएम, क्रेडिट, डेबिट) के दुरुपयोग से धोखाधड़ी की घटनाएं भी सामने आ रही हैं। आवश्यकता इस बात की है कि ई-बैकिंग से बैंकिंग जगत एवं आत उपभोक्ताओं को हो रहे असंख्य लाभों को आगे ले जाना है तो हमे इस प्रकार के कम्प्यूटर एवं इन्टरनेट के माध्यम से होने वाले जाखिमों, अपराधों, जालसाजियों से सतर्क और सावधान रहना होगा, उन्हें रोकने के लिए प्रभावी प्रबंध करना होगा।
निष्कर्ष – मुक्त व्यापार ने जहां संभावनाओं को तराशा है वहीं चुनौतियों का विस्तार भी हुआ है। निरंतर बढ़ती प्रतियोगिता के अन्तर्गत बैंको को अपना अस्तित्व बनाए रखने के लिए बैंकिंग के बाज़ार में नए ग्राहक वर्ग को त्वरित, त्रुटिहीन एवं सुरक्षित सेवा प्रदान करने की दिशा में अग्रसर होना होगा। निश्चित ही ई-बैंकिग बैंको के विशाल संभावित ग्राहकों को मजबूती से जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है लेकिन इसके साथ ही बैंको को बैंकिग क्षेत्र में होने वाले जोखिमों से निपटने की तैयारी भी अधिक सुदृढ़ता से करनी होगी।
· संदर्भ सूची
·डॉ. रामप्रकाश सिंधल ‘ इलेक्ट्रानिक माध्यम से बैंकिंग कारोबार में हुए परिवर्तन, बैंकिंग चिंतन अनुचिंतन, बैंकर प्रतिक्षण महाविद्यालय, भारतीय रिजर्व बैंक, दादर पश्चिम मुम्बई, अक्टूबर-दिसम्बर 2006
· विनय बंसल ‘ प्रौधोगिकी के बढ़ते प्रयोग के बीच मानव संसाधन बैंकिंग चिंतन अनुचिंतन, बैंकिग प्रशिक्षण महाविद्यालय, भारतीय रिजर्व बैंक, दादर पश्चिम मुम्बई, जनवरी –मार्च 2004
· श्यामलाल गौड़ – ई-बैंकिंग: बदलता परिवेश बैंकिंग चिंतन अनुचिंतन, बैंकिग प्रशिक्षण महाविद्यालय, भारतीय रिजर्व बैंक, दादर पश्चिम अक्टूबर –दिसम्बर 2006
· डॉ. राजेश्वर गंगवार – इन्टरनेट बैंकिंग – जोखिम और बचाव, बैंकिग प्रशिक्षण महाविद्यालय, भारतीय रिजर्व बैंक, दादर पश्चिम अक्टूबर – दिसम्बर 2001
· संतोष श्रीवास्तव – एटीएम एंव एटीएम उपयोगकत्ताओं की सुरक्षा चुनौती एवं सुझाव, बैंकिग प्रशिक्षण महाविद्यालय, भारतीय रिजर्व बैंक, दादर पश्चिम, जनवरी-मार्च 2014
· शशि शुक्ला – ई-कॉमर्स, मध्यप्रदेश हिन्दी ग्रन्थ अकादमी 2011
· दैनिक भाष्कर, इंदौर संस्करण
सारांश
बदलते परिवेश …………………………………. पहचान प्रदान की है। प्रौधोगिकी के क्षेत्र में हुई इस क्रांति ने संभावनाओं और अवशरों के नए द्वार खोले हैं।