परिचय #
केदारनाथ अग्रवाल (१ अप्रैल १९११ – २२ जून २०००) प्रगतिशील काव्य-धारा के एक प्रमुख कवि हैं। उनका पहला काव्य-संग्रह युग की गंगा आज़ादी के पहले मार्च, 1947 में प्रकाशित हुआ। हिंदी साहित्य के इतिहास को समझने के लिए यह संग्रह एक बहुमूल्य दस्तावेज़ है। केदारनाथ अग्रवाल ने मार्क्सवादी दर्शन को जीवन का आधार मानकर जनसाधारण के जीवन की गहरी व व्यापक संवेदना को अपने कवियों में मुखरित किया है। कवि केदार की जनवादी लेखनी पूर्णरूपेण भारत की सोंधी मिट्टी की देन है। इसीलिए इनकी कविताओं में भारत की धरती की सुगंध और आस्था का स्वर मिलता है। (कविता कोश, विकिपीडिया)
उनका पहला काव्य-संग्रह युग की गंगा आज़ादी के पहले मार्च, 1947 में प्रकाशित हुआ। केदारनाथ अग्रवाल ने मार्क्सवादी दर्शन को जीवन का आधार मानकर जनसाधारण के जीवन की गहरी व व्यापक संवेदना को अपने कवियों में मुखरित किया है। केदारनाथ अग्रवाल की कविताओं का अनुवाद रूसी, जर्मन, चेक और अंग्रेज़ी में हुआ है।
पुरस्कार #
केदारनाथ अग्रवाल की कविताओं का अनुवाद रूसी, जर्मन, चेक और अंग्रेज़ी में हुआ है। उनके कविता-संग्रह ‘फूल नहीं, रंग बोलते हैं’, सोवियतलैंड नेहरू पुरस्कार से सम्मानित हो चुका है
रचनाएँ #
गुलमेंहदी, हे मेरी तुम, जमुन जल तुम, जो शिलाएँ तोड़ते हैं, कहें केदार खरी खरी, खुली आँखें खुले डैने, कुहकी कोयल खड़े पेड़ की देह, मार प्यार की थापें, फूल नहीं, रंग बोलते हैं-1, फूल नहीं रंग बोलते हैं-2, आग का आइना, पंख और पतवार (1979), अपूर्वा, नींद के बादल, आत्म गंध, बम्बई का रक्त स्नान, युग-गंगा, बोले बोल अबोल, लोक आलोक, चुनी हुयी कविताएँ, पुष्पदीप, वसंत में प्रसन्न पृथ्वी, अनहारी हरियाली
अनूदित रचनाएँ #
देश की कविताएँ
रचनाओं पर शोध कार्य #
- केदारनाथ अग्रवाल एवं रचना प्रक्रिया – रागिनी राय
- केदारनाथ अग्रवाल के काव्य का सौन्दर्यशास्त्रीय अध्ययन- माधुरी राय
- केदारनाथ अग्रवाल की काव्य संवेदना- प्रज्ञा पाण्डेय
- केदारनाथ अग्रवाल के काव्य में समकालीन बोध और उसका स्वरूप विश्लेषण- रजनी यादव
- केदारनाथ अग्रवाल की रचनाधर्मिता- अंजुलता यादव
- केदारनाथ अग्रवाल के काव्य में संवेदना और शिल्प- अमितेश बोकन
- केदारनाथ अग्रवाल की साहित्यिक कृतियों का अध्ययन- वर्षा सिंह
- प्रगतिशील काव्य आंदोलन और केदारनाथ अग्रवाल- सीमा राय
- हिंदी की प्रगतिशील काव्य परंपरा और केदारनाथ अग्रवाल का काव्य- शरद चन्द्र