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विचार-विमर्श

शिवमूर्ति की कहानियों में स्त्री (कसाईबाड़ा, तिरिया चरित्तर और कुच्ची का कानून के संदर्भ में)-मनीषा पाल

शिवमूर्ति हमारे समय के एक सशक्त कथाकार हैं। इनकी कहानियाँ शहरी जीवन के बजाय ग्रामीण जीवन के कटु यथार्थ का प्रतिफलन है।

संत साहित्य: सामाजिक चेतना के स्त्रोत-मनीष कुमार कुर्रे

सारांश संत साहित्य आचरण की पवित्रता एवं शुद्धता लेकर लोक के समक्ष आया। उसमें युगबोध एवं लोक चेतना का व्यापक स्वरूप प्रतिफलित है। मध्यकालीन सामाजिक, आर्थिक एवं साँस्कृतिक समस्याओं का संत साहित्य में स्वाभाविक चित्रण हुआ।

सूरजपाल चैहान की कहानियों में व्यक्त दलित चिंतन-अंजलि

सूरजपाल चैहान दलित कथाकारों में अग्रगण्य हैं जिनमें दलित चेतना की धारदार अभिव्यक्ति हुई है। उनकी कहानियां भारतीय समाज और विशेषकर हिंदू धर्म और समाज में व्याप्त ऊँच-नीच की भावना तथा जाति आधारित घृणा - हिंसा आदि को बेनकाब करनेवाली कहानियाँ हैं।

हिंदी लघुकथा का समकालीन परिदृश्य वाया कमल चोपड़ा-चेतन विष्णु रवेलिया

हिंदी साहित्य में सर्वथा नवीन कथा विधा लघुकथा रूप रचना की दृष्टी से है तो अदनी सी लेकिन अपने सूक्ष्म और प्रभावकारी कथ्यों, सीमित किंतु सटीक शब्दों, सारगर्भितता, प्रभावी और तीक्ष्ण संवादों के कारण आज साहित्य के केंद्र में आ गई है।

भाषा-क्षेत्र तथा हिन्दी भाषा के विविध रूप-प्रोफेसर महावीर सरन जैन

स्वाधीनता के लिए जब जब आन्दोलन तेज़ हुआ तब तब हिन्दी की प्रगति का रथ भी तेज़ गति से आगे बढ़ा। हिन्दी राष्ट्रीय चेतना की प्रतीक बन गई। स्वाधीनता आन्दोलन का नेतृत्व जिन नेताओं के हाथों में था, उन्होंने यह पहचान लिया था कि विगत 600 - 700 वर्षों से हिन्दी सम्पूर्ण भारत की एकता का कारक रही है; यह संतों, फकीरों, व्यापारियों, तीर्थ यात्रियों, सैनिकों आदि के द्वारा देश के एक भाग से दूसरे भाग तक प्रयुक्त होती रही है।

महात्मा गाँधी की पुस्तक ‘हिन्द स्वराज’ की प्रासंगिकता-अमन कुमार

महात्मा गाँधी की पुस्तक ‘हिन्द स्वराज’ की प्रासंगिकता अमन कुमार पीएच.डी(शोधार्थी) (गुजरात केन्द्रीय विश्वविद्यालय) मो. 931270598 ई.मेल- aman1994rai@gmail.com सारांशः- 2 अक्टूबर 2021 को महात्मा गांधी जी की 152 वीं जन्म...

आधे-अधूरे : एक यर्थाथवादी रंगशिल्प

‘आधे-अधूरे’ नाटक यथार्थवादी रंगशिल्प का सफल उदाहरण है, इसे समझने से पहले हमें रंगशिल्प के बारे में समझ लेना आवश्यक है

सरगुन निर्गुण मन की छाया बड़े सयाने भटके

एक बूंद,एकै माल मूतर, एक कहां, एक गूदा। एक जोती से सब उतपना, को बामन को शूदा।|

विद्रोह के बीज: थेरीगाथा

बसे पहला महिला लेखन हमें वैदिक काल में मिलता है। वेद की कई ऋचाओं की रचयिता महिलायें थीं। यह लेखन स्त्री लेखन की शुरुआत के लिए महत्वपूर्ण है।

नो मीन्स नो

तुल्या कुमारी शोधार्थी( हिन्दी विभाग) इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय, अमरकंटक ईमेल – tulyakumari216@gmail.com सार: पितृसत्ता भारतीय समाज में स्त्री का ‘हाँ’ जहाँ उसे आदर्श स्त्री बनाता है...
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