प्राचीन भारतीय वाङमय से लेकर आज तक स्त्री विमर्श किसी न किसी रूप में विचारणीय विषय रहा है। “आज से लगभग सवा सौ साल पहले का श्रद्धाराम फिल्लौरी का उपन्यास ‘भाग्यवती’ से लेकर आज तक स्त्री विमर्श ने आगे कदम बढ़ाया ही है, छलांग भले ही न लगायी हो।
पाठ्यक्रमों के द्वारा जेण्डर संवेदनशीलता
चित्रलेखा अंशु
पी-एच.डी.
स्त्री अध्ययन विभाग
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वर्धा, महाराष्ट्र
समाज में बच्चों को कई तरह के व्यावहारिक पाठशालाओं से होकर गुजरना पड़ता है । प्राथमिक...
जेयनयू तथा संघी राष्ट्रोंमाद
ईश मिश्र
11 फरवरी 2016 को कुछ कुख्यात चैनलों पर जेयनयू में तथा-कथित देशद्रोही नारेबाजी के फर्जी वीडियो के प्रसारण के आधार...