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विचार-विमर्श

 राज्य-हिंसा पर विचार: क्या भारत एक हिंसक राज्य है?-अम्बिकेश कुमार त्रिपाठी

राज्य-हिंसा पर विचार करने से पहले हम मुख्यरूप से हिंसा की तीन स्थितियों की कल्पना कर राज्य की भूमिका का स्थापन करने का प्रयास करते हैं। पहला,  कुछ व्यक्तियों का समूह उनके निवास-स्थल के   नजदीक   लग रहे परमाणु संयंत्र के खिलाफ शांतिपूर्ण प्रतिरोध कर रहा है ,  क्योंकि इस परमाणु संयंत्र से होने वाले   रेडियोएक्टिव खतरे उनके सुरक्षित जीवन-यापन के विरूद्ध गंभीर खतरा उत्पन्न कर सकते हैं। राज्य की पुलिस ने उस जनसमूह के खिलाफ लाठीचार्ज किया और लोग गंभीर रूप से घायल हो गए है।  दूसरा,  बहुसंख्यक वर्ग के लोग सांप्रदायिक उन्माद में अल्पसंख्यक वर्ग के खिलाफ हथियार लेकर सड़कों पर उतर गए हैं और बड़ी मात्रा में अल्पसंख्यक वर्ग के लोगों की हत्या कर रहे हैं और राज्य की मशीनरी अल्पसंख्यकों को सुरक्षा प्रदान करने में अनिच्छुक और उदासीन दिखाई पड़ रही है।  तीसरा,  राज्य में निवास करने वाले किसी खास वर्ग या जाति समूह को उनके मानवाधिकारों से योजनाबद्ध तरीके से वंचित किया जा रहा है तथा दैनिक जीवन की आधारभूत जरूरतों को उनकी पहुँच से दूर रखा जा रहा है

अंतरविषयी, बहुविषयी और परा विषयी अध्ययन का विश्लेषण: डॉ. अमित राय

विचार यह किया जाना चाहिए कि क्या कारण है कि इतिहास, समाजशास्त्र, हिंदी, समाज विज्ञान आदि पारंपरिक विषयों को स्टडीज शब्द से संबोधित क्यों नहीं किया जाता जबकि नए उत्तर आधुनिक पाठ्यक्रमों जैसे दलित अध्ययन, स्त्री अध्ययन, शान्ति अध्ययन आदि को ‘स्टडीज’ शब्द से संबोधित किया जाता है, दरअसल ये विषय उन पारंपरिक अनुशासनों की जटिलता को समाप्त कर अंतर्विषयकता को जन्म देते है जिसे हम अन्तरानुशासनिकता या अंतर्विषयकता कहते हैं।

आधुनिक महिला उपन्यासों में नारी चेतना के विविध आयाम:-उर्मिला कुमारी

प्रमुख महिला उपन्यासकार मन्नू भंडारी, उषा प्रियंबदा, मैत्रेई पुष्पा, मंजुल भगत, कृष्णा सोबती, प्रभा खेतान आदि के स्त्री पात्र कहीं परंपरावादी दिखाई पड़ती हैं तो कहीं ये परम्परा का विरोध करते हुए पुरुष द्रोह पर उतर आती दिखाई पड़ती हैं। मंजुल भगत की 'अनारो ' की नायिका अनारो, ' इदन्नमम ' की बऊ, पचपन खंभे लाल दीवारें की 'सुषमा ' आदि सभी पात्र परंपरावादी हैं।

भारतीय समाज और स्त्री मुक्ति आंदोलन: डॉ सूर्या ई .वी

भारत में स्त्री आंदोलन का पहला लहर १९ वीं शताब्दी में सुधारवादी आन्दोलनों के रूप में हमारे सामने आया है| इसमें महिलाओं की मुक्ति हेतु अनेक प्रयास किए गए हैं- सती प्रथा व बाल विवाह का विरोध,विधवा पुनर्विवाह,स्त्री शिक्षा आदि प्रमुख मुद्दे थे| स्त्री आंदोलन का दूसरा लहर तब निकल आया जब स्त्रियों ने स्वतंत्रता प्राप्ति हेतु घर के चार दीवारी के बाहर निकलीं थीं| तीसरा लहर स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से शुरू हुआ है| नवजागरण और स्वाधीनता आंदोलन के प्रभाव ने स्वातंत्रोत्तर स्त्री की स्थिति में अनेक परिवर्तन लाये|

कामकाजी महिला: दोहरा शोषण

वर्तमान में नारी जागरण के कारण स्त्री जीवन और जगत में कई परिवर्तन आए हैं । प्रकृति प्रदत्त स्त्री-पुरुष में जो विषमता है उसे...

नये की तलाश में

कितना अच्छा होता यदि जीवन का महासमर द्वंद्व मुक्त हो जाय और चिरंतन दुःख की छाया उससे दूर-दूर तक चली जाय। उसे किसी भी...

अंतरराष्ट्रीय वेबिनार मुख्य विषय :- किन्नर विमर्श : इतिहास , समाज , साहित्य के संदर्भ में

मुख्य विषय :- किन्नर विमर्श : इतिहास , समाज , साहित्य के संदर्भ में आयोजक :- हिन्दी विभाग टांटिया विश्वविद्यालय श्री गंगा नगर, राजस्थान किन्नर अधिकार ट्रस्ट रजि. एवं विलक्षणा एक सार्थक पहल समिति रजि. के सहयोग से दिनांक 31 मई 2020 को आयोजित किया जायेगा।

बाल गीत बाल संस्कार

बाल-गीत ??? बाल-संस्कार सुबह-सवेरे जल्दी उठकर, सेहत खूब बनाओ । नित्य काज जल्दी निपटाकर , और घूमने जाओ ।।1।। ?????? रोज नहाना, शाला जाना, जीवन शुभ बनाना । छेाटे नाखून, केश सुहाने , अच्छापन अपनाना...

मधुबनी लोककला के विविध रंगों में मैथिल स्त्री की संवेदना – डॉ.प्रियंका कुमारी

मधुबनी लोककला के विविध रंगों में मैथिल स्त्री की संवेदना डॉ.प्रियंका कुमारी मधुबनी लोककला में मैथिल स्त्री की अद्वितीय प्रतिभा प्राचीन काल से ही विदेह राजा...

हिंदी सिनेमा में जातिः एक अनछुआ पहलू- शानू कुमार

प्रस्तुत लेख हिंदी सिनेमा में जाति से संबंधित प्रश्नों को ढूँढ़ने का प्रयास करता है। जाति व्यवस्था भारतीय सामाजिक संरचना की बहुत ही महत्त्वपूर्ण विशेषता है। समाज का कोई भी पहलू इसके प्रभाव से अछूता नहीं रहा है।
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