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आदिवासी विमर्श

इक्कीसवीं सदी में आदिवासी अस्मिता के प्रश्न-डॉ.विजय कुमार प्रधान

इक्कीसवीं सदी में आदिवासी अस्मिता के संकट को यह कविता जीवन्तता के साथ अभिव्यक्त करती है। कविता भले ही संताल परगना के आदिवासियों पर केन्द्रित है परन्तु यह भारत के समस्त आदिवासियों के दुःख हैं क्योंकि विकास के दुष्परिणाम सभी को एक समान रूप से भुगतने होते हैं। विकास और विनाश साथ-साथ कदम मिलाकर चलते हैं। विकसित राष्ट्र दोमुहें अजगर की तरह समस्त सृष्टि को निगलते जा रहे हैं।

मुख्यधारा का साहित्य और आदिवासी साहित्य की वैचारिकता-डॉ. अमित कुमार साह

शोध सारांश समकालीन हिन्दी साहित्य को अगर देखा जाय तो दो धाराओं को लेकर, दो विचारधाराओं को लेकर, दो समाज को लेकर लिखा जा रहा...

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