ब्रिटेन
के परिप्रेक्ष्य में प्रवासी साहित्यकार एवं लेखक: एक परिचयात्मक अध्ययन
के परिप्रेक्ष्य में प्रवासी साहित्यकार एवं लेखक: एक परिचयात्मक अध्ययन
डॉ. उर्मिला पोरवाल सेठिया
बेंगलोर
अनेक भारतीय ऐसे हैं जो
भारत से इतर देशों में हिंदी रचना व विकास के काम में लगे हुए हैं। इनमें दूतावास
के अधिकारी और विदेशी विश्वविद्यालयों के प्राध्यापक तो हैं ही, अनेक सामान्य जन भी हैं जो नियमित लेखन व अध्यापन से विदेश में हिंदी को
लोकप्रिय बनाने के काम में लगे हैं। विदेश में रहने वाले हिंदी साहित्यकारों का
महत्व इसलिए बढ़ जाता है क्यों कि उनकी रचनाओं में अलग-अलग देशों की विभिन्न
परिस्थितियों को विकास मिलता है और इस प्रकार हिंदी साहित्य का अंतर्राष्ट्रीय
विकास होता है और समस्त विश्व हिंदी भाषा में विस्तार पाता है।
भारत से इतर देशों में हिंदी रचना व विकास के काम में लगे हुए हैं। इनमें दूतावास
के अधिकारी और विदेशी विश्वविद्यालयों के प्राध्यापक तो हैं ही, अनेक सामान्य जन भी हैं जो नियमित लेखन व अध्यापन से विदेश में हिंदी को
लोकप्रिय बनाने के काम में लगे हैं। विदेश में रहने वाले हिंदी साहित्यकारों का
महत्व इसलिए बढ़ जाता है क्यों कि उनकी रचनाओं में अलग-अलग देशों की विभिन्न
परिस्थितियों को विकास मिलता है और इस प्रकार हिंदी साहित्य का अंतर्राष्ट्रीय
विकास होता है और समस्त विश्व हिंदी भाषा में विस्तार पाता है।
बीसवीं शती के मध्य से
भारत छोड़ कर विदेश जा बसने वाले लोगों की संख्या में काफी वृद्धि हुई। इनमें से
अनेक लोग हिंदी के विद्वान थे और भारत छोड़ने से पहले ही लेखन में लगे हुए थे। ऐसे
लेखक अपने अपने देश में चुपचाप लेखन में लगे थे पर उनमें से कुछ भारत में धर्मयुग
जैसी पत्रिकाओं में प्रकाशित होकर काफी लोकप्रिय हुए, जिनका लोहा भारतीय साहित्य संसार में भी माना गया। ऐसे साहित्यकारों में
उषा प्रियंवदा और सोमावीरा के नाम सबसे पहले आते हैं।
भारत छोड़ कर विदेश जा बसने वाले लोगों की संख्या में काफी वृद्धि हुई। इनमें से
अनेक लोग हिंदी के विद्वान थे और भारत छोड़ने से पहले ही लेखन में लगे हुए थे। ऐसे
लेखक अपने अपने देश में चुपचाप लेखन में लगे थे पर उनमें से कुछ भारत में धर्मयुग
जैसी पत्रिकाओं में प्रकाशित होकर काफी लोकप्रिय हुए, जिनका लोहा भारतीय साहित्य संसार में भी माना गया। ऐसे साहित्यकारों में
उषा प्रियंवदा और सोमावीरा के नाम सबसे पहले आते हैं।
बीसवीं सदी का अंत होते
होते लगभग १०० प्रवासी भारतीय अलग अलग देशों में अलग अलग विधाओं में साहित्य रचना
कर रहे थे। इक्कीसवीं सदी के प्रारंभ होने तक पचास से भी अधिक साहित्यकार भारत में
अपनी पुस्तकें प्रकाशित करवा चुके थे। वेब पत्रिकाओं का विकास हुआ तो ऐसे
साहित्यकारों को एक खुला मंच मिल गया और विश्वव्यापी पाठकों तक पहुँचने का सीधा
रास्ता भी। अभिव्यक्ति और अनुभूति पत्रिकाओं में ऐसे साहित्यकारों की सूची देखी जा
सकती है जिसमें प्रवासी साहित्यकारों के साहित्य को रखा गया है।
होते लगभग १०० प्रवासी भारतीय अलग अलग देशों में अलग अलग विधाओं में साहित्य रचना
कर रहे थे। इक्कीसवीं सदी के प्रारंभ होने तक पचास से भी अधिक साहित्यकार भारत में
अपनी पुस्तकें प्रकाशित करवा चुके थे। वेब पत्रिकाओं का विकास हुआ तो ऐसे
साहित्यकारों को एक खुला मंच मिल गया और विश्वव्यापी पाठकों तक पहुँचने का सीधा
रास्ता भी। अभिव्यक्ति और अनुभूति पत्रिकाओं में ऐसे साहित्यकारों की सूची देखी जा
सकती है जिसमें प्रवासी साहित्यकारों के साहित्य को रखा गया है।
१० जनवरी २००३ को
प्रवासी दिवस मनाए जाने के साथ ही दिल्ली में प्रवासी हिंदी उत्सव का श्रीगणेश
हुआ। प्रवासी हिंदी उत्सव में ऐसे लोगों को रेखांकित करने और प्रोत्साहित करने के
काम की ओर भारत की केंद्रीय और प्रादेशिक सरकारों तथा व्यक्तिगत संस्थाओं ने रुचि
ली,
जो विदेश में रहते हुए हिंदी में साहित्य रच रहे थे। भारत की प्रमुख
पत्रिकाओं जैसे वागर्थ, भाषा और वर्तमान साहित्य ने भी
प्रवासी विशेषांक प्रकाशित कर के इन साहित्यकारों को भारतीय साहित्य की प्रमुख
धारा से जोड़ने का काम किया। इस तरह इक्कीसवीं सदी के प्रारंभ में आधुनिक साहित्य
के अंतर्गत प्रवासी हिंदी साहित्य के नाम से एक नए युग का प्रारंभ हुआ।
प्रवासी दिवस मनाए जाने के साथ ही दिल्ली में प्रवासी हिंदी उत्सव का श्रीगणेश
हुआ। प्रवासी हिंदी उत्सव में ऐसे लोगों को रेखांकित करने और प्रोत्साहित करने के
काम की ओर भारत की केंद्रीय और प्रादेशिक सरकारों तथा व्यक्तिगत संस्थाओं ने रुचि
ली,
जो विदेश में रहते हुए हिंदी में साहित्य रच रहे थे। भारत की प्रमुख
पत्रिकाओं जैसे वागर्थ, भाषा और वर्तमान साहित्य ने भी
प्रवासी विशेषांक प्रकाशित कर के इन साहित्यकारों को भारतीय साहित्य की प्रमुख
धारा से जोड़ने का काम किया। इस तरह इक्कीसवीं सदी के प्रारंभ में आधुनिक साहित्य
के अंतर्गत प्रवासी हिंदी साहित्य के नाम से एक नए युग का प्रारंभ हुआ।
इसी आधार पर प्रत्येक
देश का अध्ययन कर उस में निवास करने वाले और हिंदी की महिमा में वृद्धि करने वाले
प्रवासी साहित्यकारों का अध्ययन करने की प्रवृत्ति वर्तमान समय में सर्वत्र देखी
जा सकती है इसी तारतम्य में ब्रिटेन देश की साहित्य वृद्धि और लेखन परंपरा को
समृद्ध करने वाले सम्मानीय साहित्यकारों का अध्यन कर उनके बारे में संक्षिप्त रूप
से परिचय देने के उद्देश्य से शोध आलेख लेखन प्रारंभ किया गया और परिणाम स्वरुप
अद्भुत और आश्चर्यजनक परिणाम प्राप्त हुए वास्तव में हिंदी साहित्य परंपरा प्रवासी
साहित्यकारों द्वारा कितनी समृद्ध है यह इस शोध आलेख के अध्ययन के माध्यम से समझा
जा सकता है प्रत्येक प्रवासी साहित्यकार अपनी अपनी विविध प्रतिभा के माध्यम से
साहित्य को समृद्ध कर रहा है प्रत्येक साहित्यकार के बारे में संक्षिप्त रूप से
उनके योगदान के बारे में संक्षिप्त रूप से लेखन का पूर्ण रुप ही यह शोध आलेख है।
देश का अध्ययन कर उस में निवास करने वाले और हिंदी की महिमा में वृद्धि करने वाले
प्रवासी साहित्यकारों का अध्ययन करने की प्रवृत्ति वर्तमान समय में सर्वत्र देखी
जा सकती है इसी तारतम्य में ब्रिटेन देश की साहित्य वृद्धि और लेखन परंपरा को
समृद्ध करने वाले सम्मानीय साहित्यकारों का अध्यन कर उनके बारे में संक्षिप्त रूप
से परिचय देने के उद्देश्य से शोध आलेख लेखन प्रारंभ किया गया और परिणाम स्वरुप
अद्भुत और आश्चर्यजनक परिणाम प्राप्त हुए वास्तव में हिंदी साहित्य परंपरा प्रवासी
साहित्यकारों द्वारा कितनी समृद्ध है यह इस शोध आलेख के अध्ययन के माध्यम से समझा
जा सकता है प्रत्येक प्रवासी साहित्यकार अपनी अपनी विविध प्रतिभा के माध्यम से
साहित्य को समृद्ध कर रहा है प्रत्येक साहित्यकार के बारे में संक्षिप्त रूप से
उनके योगदान के बारे में संक्षिप्त रूप से लेखन का पूर्ण रुप ही यह शोध आलेख है।
१)
अचला शर्मा लंदन मे
रहने वाली भारतीय मूल की हिंदी लेखिका है। उनका जन्म भारत के जालंधर शहर में हुआ
तथा शिक्षा दिल्ली विश्वविद्यालय से प्राप्त की। वे लंदन प्रवास से पूर्व भारत में
ही कहानीकार एवं कवि के रूप में स्थापित हो गई थीं। रेडियो से भी वे भारत में ही
जुड़ चुकी थीं, बाद में वे लंदन में बी.बी.सी. रेडियो की
हिन्दी सेवा से जुड़ीं और अध्यक्ष के पद तक पहुँचीं। बीबीसी से जुड़ने के पश्चात
उनके व्यस्त जीवन में कहानी और कविता जहाँ पीछे छूटते गये, वहीं
हर वर्ष एक रेडियो नाटक लिखना उनके दैनिक जीवन का हिस्सा बन गया। इन रेडियो नाटकों
के दो संकलन `पासपोर्ट‘[1] एवं `जड़ें‘[2] के लिए उन्हें वर्ष २००४ के पद्मानंद
साहित्य सम्मान[3] से सम्मानित किया गया। ‘पासपोर्ट’ में बीबीसी हिन्दी सेवा से
प्रसारित उन नाटकों को संकलित किया गया है जिनमें ब्रिटेन में बसे भारतीय मूल के
प्रवासी अपनी पहचान को लेकर संभ्रम में दिखाई देते हैं और दोहरी या चितकबरी
संस्कृति जीतने पर विवश दिखाई देते हैं, जबकि ‘जड़ें’ में
बीबीसी से प्रसारित उन नाटकों को संकलित किया गया है जिनकी केन्द्रीय समस्याओं का
सम्बन्ध भारत से है। अचला शर्मा के लेखन की विशेषता है स्थितियों की सही समझ,
चरित्रों की सही मानसिकता की पकड़ और एक ऐसी भाषा का प्रयोग जो
चरित्रों और स्थितियों के अनुकूल होती है। उनके रेडियो नाटकों में प्रवासी
भारतीयों की दूसरी एवं तीसरी पीढ़ी की मानसिकता एवं संघर्ष का भी सटीक चित्रण
देखने को मिलता है। बर्दाश्त बाहर, सूखा हुआ समुद्र तथा
मध्यांतर उनके चर्चित कहानी संग्रह हैं। सूरीनाम विश्व हिन्दी सम्मेलन में अचला
शर्मा को ब्रिटेन के हिन्दी साहित्य में उत्कृष्ट योगदान के लिए सम्मानित किया
गया।
रहने वाली भारतीय मूल की हिंदी लेखिका है। उनका जन्म भारत के जालंधर शहर में हुआ
तथा शिक्षा दिल्ली विश्वविद्यालय से प्राप्त की। वे लंदन प्रवास से पूर्व भारत में
ही कहानीकार एवं कवि के रूप में स्थापित हो गई थीं। रेडियो से भी वे भारत में ही
जुड़ चुकी थीं, बाद में वे लंदन में बी.बी.सी. रेडियो की
हिन्दी सेवा से जुड़ीं और अध्यक्ष के पद तक पहुँचीं। बीबीसी से जुड़ने के पश्चात
उनके व्यस्त जीवन में कहानी और कविता जहाँ पीछे छूटते गये, वहीं
हर वर्ष एक रेडियो नाटक लिखना उनके दैनिक जीवन का हिस्सा बन गया। इन रेडियो नाटकों
के दो संकलन `पासपोर्ट‘[1] एवं `जड़ें‘[2] के लिए उन्हें वर्ष २००४ के पद्मानंद
साहित्य सम्मान[3] से सम्मानित किया गया। ‘पासपोर्ट’ में बीबीसी हिन्दी सेवा से
प्रसारित उन नाटकों को संकलित किया गया है जिनमें ब्रिटेन में बसे भारतीय मूल के
प्रवासी अपनी पहचान को लेकर संभ्रम में दिखाई देते हैं और दोहरी या चितकबरी
संस्कृति जीतने पर विवश दिखाई देते हैं, जबकि ‘जड़ें’ में
बीबीसी से प्रसारित उन नाटकों को संकलित किया गया है जिनकी केन्द्रीय समस्याओं का
सम्बन्ध भारत से है। अचला शर्मा के लेखन की विशेषता है स्थितियों की सही समझ,
चरित्रों की सही मानसिकता की पकड़ और एक ऐसी भाषा का प्रयोग जो
चरित्रों और स्थितियों के अनुकूल होती है। उनके रेडियो नाटकों में प्रवासी
भारतीयों की दूसरी एवं तीसरी पीढ़ी की मानसिकता एवं संघर्ष का भी सटीक चित्रण
देखने को मिलता है। बर्दाश्त बाहर, सूखा हुआ समुद्र तथा
मध्यांतर उनके चर्चित कहानी संग्रह हैं। सूरीनाम विश्व हिन्दी सम्मेलन में अचला
शर्मा को ब्रिटेन के हिन्दी साहित्य में उत्कृष्ट योगदान के लिए सम्मानित किया
गया।
२)
उषा राजे सक्सेना
युनाइटेड किंगडम मे बसी भारतीय मूल की लेखक है। वे भारत में भी काफी लोकप्रिय है।
लक्ष्मीमल सिंघवी, कमलेश्वर, शिवमंगल सिंह ‘सुमन‘, रामदरश
मिश्र, हिमांशु जोशी, अशोक चक्रधर,
चित्रा मुद्गल एवं हरीश नवल जैसे साहित्यकारों ने समय-समय पर उषा
राजे के साहित्य की सराहना की है। कहानी, कविता, लेख जैसी विधाओं में उषा राजे ने अपनी एक शैली विकसित की है। किन्चित
आलोचको के अनुसार्, उनकी कहानियों की एक पहचान है कि उन्हें
यात्रा में कोई चरित्र मिलता है जो उन्हें या तो अपनी कहानी सुनाता है या वो कुछ
ऐसा कर जाता है जिससे उषा राजे को कहानी मिल जाती है। किन्तु उनकी कहानी इससे भी
कुछ अधिक है| प्रवास मे भारतीय सोच, जो
सन्कीर्णताओ से मुक्त किन्तु शाश्वत सत्यो से गुंथी हुई है, सौम्यता,
सहोदरता और विश्व-बन्धुत्व को साधारण से विशिष्ट होते हुए पात्रो के
माध्यम से अभिव्यक्त करती है| उनकी कहानी मे सदयता के साथ,
मानवीय सत्ता के प्रति विश्वास् और विपरीत परिस्थिति मे साहस उत्तर
आधुनिक काल मे एक प्रकाश-स्तम्भ की भाति उभरते है|
युनाइटेड किंगडम मे बसी भारतीय मूल की लेखक है। वे भारत में भी काफी लोकप्रिय है।
लक्ष्मीमल सिंघवी, कमलेश्वर, शिवमंगल सिंह ‘सुमन‘, रामदरश
मिश्र, हिमांशु जोशी, अशोक चक्रधर,
चित्रा मुद्गल एवं हरीश नवल जैसे साहित्यकारों ने समय-समय पर उषा
राजे के साहित्य की सराहना की है। कहानी, कविता, लेख जैसी विधाओं में उषा राजे ने अपनी एक शैली विकसित की है। किन्चित
आलोचको के अनुसार्, उनकी कहानियों की एक पहचान है कि उन्हें
यात्रा में कोई चरित्र मिलता है जो उन्हें या तो अपनी कहानी सुनाता है या वो कुछ
ऐसा कर जाता है जिससे उषा राजे को कहानी मिल जाती है। किन्तु उनकी कहानी इससे भी
कुछ अधिक है| प्रवास मे भारतीय सोच, जो
सन्कीर्णताओ से मुक्त किन्तु शाश्वत सत्यो से गुंथी हुई है, सौम्यता,
सहोदरता और विश्व-बन्धुत्व को साधारण से विशिष्ट होते हुए पात्रो के
माध्यम से अभिव्यक्त करती है| उनकी कहानी मे सदयता के साथ,
मानवीय सत्ता के प्रति विश्वास् और विपरीत परिस्थिति मे साहस उत्तर
आधुनिक काल मे एक प्रकाश-स्तम्भ की भाति उभरते है|
मिट्टी की सुगंध नामक
कहानी संग्रह संपादित कर उषा राजे सक्सेना ने युनाइटेड किंगडम के कथाकारों को पहली
बार एक संगठित मंच प्रदान किया। वे `पुरवाई‘
पत्रिका की सह-संपादिका हैं। उषा राजे सक्सेना के साहित्य पर भारत
में एम. फिल. की जा चुकी है। उषा राजे सक्सेना की नवीनतम पुस्तक ब्रिटेन में
हिन्दी ने पहली बार यू॰के॰ में हिन्दी भाषा और साहित्य को एक ऐतिहासिक परिपेक्ष्य
में रखने का प्रयास किया है। उनकी इस पुस्तक का भारत एवं ब्रिटेन में समान स्वागत
हुआ है।
कहानी संग्रह संपादित कर उषा राजे सक्सेना ने युनाइटेड किंगडम के कथाकारों को पहली
बार एक संगठित मंच प्रदान किया। वे `पुरवाई‘
पत्रिका की सह-संपादिका हैं। उषा राजे सक्सेना के साहित्य पर भारत
में एम. फिल. की जा चुकी है। उषा राजे सक्सेना की नवीनतम पुस्तक ब्रिटेन में
हिन्दी ने पहली बार यू॰के॰ में हिन्दी भाषा और साहित्य को एक ऐतिहासिक परिपेक्ष्य
में रखने का प्रयास किया है। उनकी इस पुस्तक का भारत एवं ब्रिटेन में समान स्वागत
हुआ है।
३)
उषा वर्मा ब्रिटेन मे
बसी भारतीय मूल की लेखक है। राजधानी लंदन की चहल-पहल से दूर यॉर्क जैसे छोटे शहर में
रहते हुए साहित्य साधना में लगी हुई उषा वर्मा का रचना संसार छोटा है, पर वह मानव मनोविज्ञान से सुपरिचित एक सिद्धार्थ लेखिका हैं। उनकी सिद्धि
का आधार मानवीय करुणा और अन्याय के प्रति तीका विरोध का भाव है। उनकी कविताएं तथा
कहानियां सजीव और सस्पंद हैं, जिनमें प्रश्न है, पीड़ा है और एक ईमानदार पारदर्शी अभिव्यक्ति है। साहित्य अमृत, समकालीन भारतीय साहित्य, आजकल, कथन, कादम्बिनी आदि पत्रिकाओं में आपकी कविताएं तथा
कहानियां छपती रहती हैं। आप `पुरवाई‘ में
समीक्षा कॉलम लिखती हैं। उनके द्वारा संपादित कहानी संग्रह सांझी कथा यात्रा की
काफ़ी चर्चा रही है।
बसी भारतीय मूल की लेखक है। राजधानी लंदन की चहल-पहल से दूर यॉर्क जैसे छोटे शहर में
रहते हुए साहित्य साधना में लगी हुई उषा वर्मा का रचना संसार छोटा है, पर वह मानव मनोविज्ञान से सुपरिचित एक सिद्धार्थ लेखिका हैं। उनकी सिद्धि
का आधार मानवीय करुणा और अन्याय के प्रति तीका विरोध का भाव है। उनकी कविताएं तथा
कहानियां सजीव और सस्पंद हैं, जिनमें प्रश्न है, पीड़ा है और एक ईमानदार पारदर्शी अभिव्यक्ति है। साहित्य अमृत, समकालीन भारतीय साहित्य, आजकल, कथन, कादम्बिनी आदि पत्रिकाओं में आपकी कविताएं तथा
कहानियां छपती रहती हैं। आप `पुरवाई‘ में
समीक्षा कॉलम लिखती हैं। उनके द्वारा संपादित कहानी संग्रह सांझी कथा यात्रा की
काफ़ी चर्चा रही है।
४)
कादंबरी मेहरा का नाम
ब्रिटेन के उन प्रवासी कथाकारों के साथ लिया जाता हैं जिन्होंने पिछले दशक में
अपनी उपस्थिति से समस्त हिंदी साहित्यकारों का ध्यान अपनी ओर खींच। उनके लेखन की
शुरुआत वाराणसी के ‘आज‘ अखबार
से हुई और बाद में वे स्कूल व कॉलेज की साहित्यिक गतिविधियों से जुडी रहीं।
ब्रिटेन के उन प्रवासी कथाकारों के साथ लिया जाता हैं जिन्होंने पिछले दशक में
अपनी उपस्थिति से समस्त हिंदी साहित्यकारों का ध्यान अपनी ओर खींच। उनके लेखन की
शुरुआत वाराणसी के ‘आज‘ अखबार
से हुई और बाद में वे स्कूल व कॉलेज की साहित्यिक गतिविधियों से जुडी रहीं।
अंग्रेजी साहित्य से
स्नातकोत्तर उपाधि लेने के बाद वे लंदन चली गयीं जहां अध्यापन को अपना
कार्यक्षेत्र बनाया और 25 वर्षों तक इससे जुडी रहीं।
स्नातकोत्तर उपाधि लेने के बाद वे लंदन चली गयीं जहां अध्यापन को अपना
कार्यक्षेत्र बनाया और 25 वर्षों तक इससे जुडी रहीं।
अवकाश प्राप्ति के बाद
अब फिर से कहानी और उपन्यास की दुनिया में प्रवेश किया है। ‘कुछ जग की‘ शीर्षक से उनका एक कहानी संग्रह भी
प्रकाशित हुआ है।
अब फिर से कहानी और उपन्यास की दुनिया में प्रवेश किया है। ‘कुछ जग की‘ शीर्षक से उनका एक कहानी संग्रह भी
प्रकाशित हुआ है।
५)
जन्म- १ जनवरी, १९३४ को उत्तर प्रदेश के उन्नाव ज़िले के नईमपुर गाँव में एक कायस्थ
परिवार में उनका जन्म हुआ था। कीर्ति चौधरी का मूल नाम कीर्ति बाला सिन्हा था।
परिवार में उनका जन्म हुआ था। कीर्ति चौधरी का मूल नाम कीर्ति बाला सिन्हा था।
शिक्षा- उन्नाव में
जन्म के कुछ बरस बाद उन्होंने पढ़ाई के लिए कानपुर का रुख़ किया। १९५४ में एम.ए.
करने के बाद ‘उपन्यास के कथानक तत्व‘ जैसे विषय पर उन्होंने शोध भी किया।
जन्म के कुछ बरस बाद उन्होंने पढ़ाई के लिए कानपुर का रुख़ किया। १९५४ में एम.ए.
करने के बाद ‘उपन्यास के कथानक तत्व‘ जैसे विषय पर उन्होंने शोध भी किया।
कार्यक्षेत्र- साहित्य
उन्हें विरासत में भी मिला और फिर जीवन साथी के साथ भी साहित्य, संप्रेषण जुड़े रहे। उनके पिता ज़मींदार थे और माँ, सुमित्रा
कुमारी सिन्हा जानी-मानी कवयित्री, लेखिका और गीतकार थीं।
तीसरा सप्तक’ (1960) के संपादक अज्ञेय ने 60 के दशक में प्रयाग नारायण त्रिपाठी,
केदारनाथ सिंह, कुँवर नारायण, विजयदेव नारायण साही, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना और मदन
वात्स्यायन जैसे साहित्यकारों के साथ कीर्ति चौधरी को भी तीसरा सप्तक का हिस्सा
बनाया।
उन्हें विरासत में भी मिला और फिर जीवन साथी के साथ भी साहित्य, संप्रेषण जुड़े रहे। उनके पिता ज़मींदार थे और माँ, सुमित्रा
कुमारी सिन्हा जानी-मानी कवयित्री, लेखिका और गीतकार थीं।
तीसरा सप्तक’ (1960) के संपादक अज्ञेय ने 60 के दशक में प्रयाग नारायण त्रिपाठी,
केदारनाथ सिंह, कुँवर नारायण, विजयदेव नारायण साही, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना और मदन
वात्स्यायन जैसे साहित्यकारों के साथ कीर्ति चौधरी को भी तीसरा सप्तक का हिस्सा
बनाया।
निधन- १३ जून २००८ को
लंदन में उनका देहांत हो गया।
लंदन में उनका देहांत हो गया।
६)
गोविन्द शर्मा लंदन मे
बसे भारतीय मूल के हिंदी लेखक है। श्री गोविन्द शर्मा को हाल ही में लंदन के हाउस
ऑफ़ लार्डस में उनकी फ़िल्मी पटकथा पर लिखी गई पुस्तक के लिये पद्मानंद साहित्य
सम्मान 2006 से सम्मानित किया गया। गोविन्द शर्मा ने हिन्दी फ़िल्मों पर लिखे अपने
लेखों को साहित्यक स्तर प्रदान करने का भरपूर एवं सफल प्रयास किया है। उनका मानना
है कि बॉलीवुड का पटकथा लेखन हॉलीवुड से एकदम भिन्न है।
बसे भारतीय मूल के हिंदी लेखक है। श्री गोविन्द शर्मा को हाल ही में लंदन के हाउस
ऑफ़ लार्डस में उनकी फ़िल्मी पटकथा पर लिखी गई पुस्तक के लिये पद्मानंद साहित्य
सम्मान 2006 से सम्मानित किया गया। गोविन्द शर्मा ने हिन्दी फ़िल्मों पर लिखे अपने
लेखों को साहित्यक स्तर प्रदान करने का भरपूर एवं सफल प्रयास किया है। उनका मानना
है कि बॉलीवुड का पटकथा लेखन हॉलीवुड से एकदम भिन्न है।
७)
ज़किया ज़ुबैरी (१
अप्रैल १९४२) ब्रिटेन की प्रवासी हिन्दी लेखिका और राजनयिक हैं। उन्होंने भारत एवं
पाकिस्तान की अनेक साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं के विकास का काम किया है।
उनका जन्म लखनऊ में हुआ और बचपन आज़मगढ़ में बीता। प्रारंभिक शिक्षा आज़मगढ़ की
सरकारी कन्या पाठशाला में हुई। सातवीं कक्षा के बाद इलाहाबाद के सरकारी स्कूल में
पढ़ाई हुई। इंटरमीडियेट में अपने महाविद्यालय की यूनियन की अध्यक्ष बनीं और बनारस
हिंदू विश्वविद्यालय से स्नातक की डिग्री प्राप्त की। उन्हें बचपन से ही चित्रकला
एवं कविता व कहानी लिखने का शौक रहा है। वे लंदन में एशियन कम्यूनिटी आर्ट्स नाम
की संस्था की अध्यक्षा हैं जिसके द्वारा वे नृत्य, संगीत,
गीत एवं लेखन क्षेत्र में बहुत से नये नर्तकों, गायकों, एवं लेखकों को लंदन में मंच प्रदान कर चुकी
हैं। वे भारत एवं पाकिस्तान से लंदन आने वाली साहित्यिक एवं सांस्कृतिक हस्तियों
के सम्मान में समारोह आयोजित और कथा यू॰के॰ के साथ मिल कर अनेक कार्यक्रमों का
आयोजन भी करती हैं।
अप्रैल १९४२) ब्रिटेन की प्रवासी हिन्दी लेखिका और राजनयिक हैं। उन्होंने भारत एवं
पाकिस्तान की अनेक साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं के विकास का काम किया है।
उनका जन्म लखनऊ में हुआ और बचपन आज़मगढ़ में बीता। प्रारंभिक शिक्षा आज़मगढ़ की
सरकारी कन्या पाठशाला में हुई। सातवीं कक्षा के बाद इलाहाबाद के सरकारी स्कूल में
पढ़ाई हुई। इंटरमीडियेट में अपने महाविद्यालय की यूनियन की अध्यक्ष बनीं और बनारस
हिंदू विश्वविद्यालय से स्नातक की डिग्री प्राप्त की। उन्हें बचपन से ही चित्रकला
एवं कविता व कहानी लिखने का शौक रहा है। वे लंदन में एशियन कम्यूनिटी आर्ट्स नाम
की संस्था की अध्यक्षा हैं जिसके द्वारा वे नृत्य, संगीत,
गीत एवं लेखन क्षेत्र में बहुत से नये नर्तकों, गायकों, एवं लेखकों को लंदन में मंच प्रदान कर चुकी
हैं। वे भारत एवं पाकिस्तान से लंदन आने वाली साहित्यिक एवं सांस्कृतिक हस्तियों
के सम्मान में समारोह आयोजित और कथा यू॰के॰ के साथ मिल कर अनेक कार्यक्रमों का
आयोजन भी करती हैं।
वे ब्रिटेन की लेबर
पार्टी के सक्रिय सदस्या हैं। लेबर पार्टी के टिकट पर आप दो बार चुनाव जीत कर
काउंसलर निर्वाचित हो चुकी हैं। वर्तमान में वे लंदन के बारनेट संसदीय क्षेत्र के
कॉलिंडेल वार्ड की पहली और एकमात्र मुस्लिम महिला काउंसलर हैं।
पार्टी के सक्रिय सदस्या हैं। लेबर पार्टी के टिकट पर आप दो बार चुनाव जीत कर
काउंसलर निर्वाचित हो चुकी हैं। वर्तमान में वे लंदन के बारनेट संसदीय क्षेत्र के
कॉलिंडेल वार्ड की पहली और एकमात्र मुस्लिम महिला काउंसलर हैं।
८)
डॉ॰ कृष्ण कुमार
बर्मिंघम मे बसे भारतीय मूल के हिंदी लेखक है। में डॉ॰ कृष्ण कुमार एक लम्बे अर्से
से भारतीय भाषाओं की ज्योति `गीतांजलि बहुभाषी समाज‘
के माध्यम से जगाये हुए हैं। गीतांजलि ब्रिटेन की एकमात्र ऐसी
संस्था है जो भारत की तमाम भाषाओं को साथ लेकर चलने का प्रयास करती है। डॉ॰ कुमार
1999 के विश्व हिन्दी सम्मेलन, लंदन के अध्यक्ष भी थे। डॉ॰
कुमार की कविताएं गहराई और अर्थ का संगीतमय मिश्रण होती हैं। विचार उनकी कविताओं
पर हावी रहता है। उन्हें एक अर्थ में यदि कवियों का कवि कहा जाय तो शायद गलत न
होगा क्योंकि गीतांजलि के माध्यम से वे बर्मिंघम के कवियों कवयित्रियों को एक नई
राह भी दिखा रहे हैं। उनके अब तक दो कविता संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं।
बर्मिंघम मे बसे भारतीय मूल के हिंदी लेखक है। में डॉ॰ कृष्ण कुमार एक लम्बे अर्से
से भारतीय भाषाओं की ज्योति `गीतांजलि बहुभाषी समाज‘
के माध्यम से जगाये हुए हैं। गीतांजलि ब्रिटेन की एकमात्र ऐसी
संस्था है जो भारत की तमाम भाषाओं को साथ लेकर चलने का प्रयास करती है। डॉ॰ कुमार
1999 के विश्व हिन्दी सम्मेलन, लंदन के अध्यक्ष भी थे। डॉ॰
कुमार की कविताएं गहराई और अर्थ का संगीतमय मिश्रण होती हैं। विचार उनकी कविताओं
पर हावी रहता है। उन्हें एक अर्थ में यदि कवियों का कवि कहा जाय तो शायद गलत न
होगा क्योंकि गीतांजलि के माध्यम से वे बर्मिंघम के कवियों कवयित्रियों को एक नई
राह भी दिखा रहे हैं। उनके अब तक दो कविता संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं।
गीतांजलि के सदस्यों
में विभिन्न भारतीय भाषाओं के कवि शामिल हैं। अजय त्रिपाठी, स्वर्ण तलवार, रमा जोशी, चंचल
जैन, विभा केल आदि काफी अर्से से कविता लिख रहे हैं।
प्रियंवदा देवी मिश्र की रचनाओं में महादेवी वर्मा का प्रभाव साफ महसूस किया जा
सकता है।
में विभिन्न भारतीय भाषाओं के कवि शामिल हैं। अजय त्रिपाठी, स्वर्ण तलवार, रमा जोशी, चंचल
जैन, विभा केल आदि काफी अर्से से कविता लिख रहे हैं।
प्रियंवदा देवी मिश्र की रचनाओं में महादेवी वर्मा का प्रभाव साफ महसूस किया जा
सकता है।
९) डॉ॰ पद्मेश गुप्त
ब्रिटेन मे बसे भारतीय मूल के हिंदी लेखक है। डॉ॰ पद्मेश गुप्त ने यू॰के॰ हिन्दी
समिति एवं `पुरवाई‘ पत्रिका के
माध्यम से हिन्दी को इस देश में प्रतिष्ठित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई
है। वे स्वयं मूलत: कवि हैं लेकिन बीच-बीच में कहानियां भी लिख लेते हैं। कथा
यू॰के॰ की कथा गोष्ठी में कहानी पाठ भी कर चुके हैं। कृति यू॰के॰ द्वारा आयोजित एक
प्रतियोगिता में (जिसके निर्णायक भारत और अमरीका से थे) डॉ॰ पद्मेश गुप्त को कविता
में प्रथम एवं कहानी में द्वितीय स्थान मिला। पद्मेश की कविताओं की विशेषता यह है
कि वे पढ़ने में भी उतना ही प्रभावित करती हैं जितनी कि सुनने में। उनकी कविताएं
समकालीन विषयों को उठाती हैं और बहुत से नए बिम्ब भी प्रस्तुत करती हैं।
ब्रिटेन मे बसे भारतीय मूल के हिंदी लेखक है। डॉ॰ पद्मेश गुप्त ने यू॰के॰ हिन्दी
समिति एवं `पुरवाई‘ पत्रिका के
माध्यम से हिन्दी को इस देश में प्रतिष्ठित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई
है। वे स्वयं मूलत: कवि हैं लेकिन बीच-बीच में कहानियां भी लिख लेते हैं। कथा
यू॰के॰ की कथा गोष्ठी में कहानी पाठ भी कर चुके हैं। कृति यू॰के॰ द्वारा आयोजित एक
प्रतियोगिता में (जिसके निर्णायक भारत और अमरीका से थे) डॉ॰ पद्मेश गुप्त को कविता
में प्रथम एवं कहानी में द्वितीय स्थान मिला। पद्मेश की कविताओं की विशेषता यह है
कि वे पढ़ने में भी उतना ही प्रभावित करती हैं जितनी कि सुनने में। उनकी कविताएं
समकालीन विषयों को उठाती हैं और बहुत से नए बिम्ब भी प्रस्तुत करती हैं।
१०)
डॉ॰ महेन्द्र वर्मा
ब्रिटेन मे बसे भारतीय मूल के हिंदी लेखक है। यॉर्क विश्वविद्यालय में डॉ॰
महेन्द्र वर्मा हिन्दी का बीड़ा उठाए हुए हैं। 1999 के विश्व हिन्दी सम्मेलन के
कर्णधारों में से एक महेन्द्र वर्मा कविता भी करते हैं। वे ब्रिटेन के एकमात्र ऐसे
प्राध्यापक हैं जिन्होंने विश्वविद्यालय में हिन्दी के कथाकारों को निमंत्रित करके
वहां कार्यशालाएं करवाई हैं। स्थानीय हिन्दी लेखक एवं विद्यार्थियों के बीच यह एक
अनूठा अनुभव पैदा करता है।
ब्रिटेन मे बसे भारतीय मूल के हिंदी लेखक है। यॉर्क विश्वविद्यालय में डॉ॰
महेन्द्र वर्मा हिन्दी का बीड़ा उठाए हुए हैं। 1999 के विश्व हिन्दी सम्मेलन के
कर्णधारों में से एक महेन्द्र वर्मा कविता भी करते हैं। वे ब्रिटेन के एकमात्र ऐसे
प्राध्यापक हैं जिन्होंने विश्वविद्यालय में हिन्दी के कथाकारों को निमंत्रित करके
वहां कार्यशालाएं करवाई हैं। स्थानीय हिन्दी लेखक एवं विद्यार्थियों के बीच यह एक
अनूठा अनुभव पैदा करता है।
११)
तेजेंद्र शर्मा
जन्म 21 अक्टूबर 1952 (आयु 64 वर्ष)
जगरांव, पंजाब, भारत
उपजीविका कहानीकार, नाटककार, कवि, लेखक
राष्ट्रीयता ब्रिटेन
विषय साहित्य
प्रमुख पुरस्कार डॉ॰ मोटूरि
सत्यनारायण सम्मान (२०११)
सत्यनारायण सम्मान (२०११)
हरियाणा राज्य साहित्य
अकादमी सम्मान (२०१२)[1]
अकादमी सम्मान (२०१२)[1]
डॉ॰ हरिवंशराय बच्चन
सम्मान (२००८)
सम्मान (२००८)
अंतरराष्ट्रीय स्पंदन
कथा सम्मान (२०१४)
कथा सम्मान (२०१४)
तेजेंद्र शर्मा (जन्म
२१ अक्टूबर १९५२)[2] ब्रिटेन में बसे भारतीय मूल के हिंदी कवि लेखक एवं नाटककार
है।[3][4] इनका जन्म 21 अक्टूबर 1952 में पंजाब के जगरांव शहर में हुआ। तेजेन्द्र
शर्मा की स्कूली पढ़ाई दिल्ली के अंधा मुग़ल क्षेत्र के सरकारी स्कूल में हुई।
दिल्ली विश्वविद्यालय से अंग्रेजी विषय में एम.ए. तथा कम्प्यूटर में डिप्लोमा करने
वाले तेजेन्द्र शर्मा हिन्दी, अंग्रेजी, पंजाबी, उर्दू तथा गुजराती भाषाओं का ज्ञान रखते
हैं।[5] उनके द्वारा लिखा गया धारावाहिक ‘शांति‘ दूरदर्शन से १९९४ में अंतर्राष्ट्रीय लोकप्रियता प्राप्त कर चुका है।
अन्नू कपूर निर्देशित फ़िल्म ‘अमय‘ में
नाना पाटेकर के साथ उन्होंने प्रमुख भूमिका निभाई है। वे इंदु शर्मा मेमोरियल
ट्रस्ट के संस्थापक तथा हिंदी साहित्य के एकमात्र अंतर्राष्ट्रीय सम्मान इन्दु
शर्मा अंतर्राष्ट्रीय कथा सम्मान प्रदान करनेवाली संस्था ‘कथा
यू॰के॰‘ के सचिव हैं।
२१ अक्टूबर १९५२)[2] ब्रिटेन में बसे भारतीय मूल के हिंदी कवि लेखक एवं नाटककार
है।[3][4] इनका जन्म 21 अक्टूबर 1952 में पंजाब के जगरांव शहर में हुआ। तेजेन्द्र
शर्मा की स्कूली पढ़ाई दिल्ली के अंधा मुग़ल क्षेत्र के सरकारी स्कूल में हुई।
दिल्ली विश्वविद्यालय से अंग्रेजी विषय में एम.ए. तथा कम्प्यूटर में डिप्लोमा करने
वाले तेजेन्द्र शर्मा हिन्दी, अंग्रेजी, पंजाबी, उर्दू तथा गुजराती भाषाओं का ज्ञान रखते
हैं।[5] उनके द्वारा लिखा गया धारावाहिक ‘शांति‘ दूरदर्शन से १९९४ में अंतर्राष्ट्रीय लोकप्रियता प्राप्त कर चुका है।
अन्नू कपूर निर्देशित फ़िल्म ‘अमय‘ में
नाना पाटेकर के साथ उन्होंने प्रमुख भूमिका निभाई है। वे इंदु शर्मा मेमोरियल
ट्रस्ट के संस्थापक तथा हिंदी साहित्य के एकमात्र अंतर्राष्ट्रीय सम्मान इन्दु
शर्मा अंतर्राष्ट्रीय कथा सम्मान प्रदान करनेवाली संस्था ‘कथा
यू॰के॰‘ के सचिव हैं।
प्रकाशित कृतियाँ
कहानी संग्रह- काला
सागर[6],
ढिबरी टाईट[7], देह की कीमत[8], ये क्या हो गया[9], पासपोर्ट के रंग, बेघर आंखें[10], सीधी रेखा की परतें[11], कब्र का मुनाफा[12], प्रतिनिधि कहानियां[13] मेरी
प्रिय कथाएं[14], दीवार में रास्ता[15]
सागर[6],
ढिबरी टाईट[7], देह की कीमत[8], ये क्या हो गया[9], पासपोर्ट के रंग, बेघर आंखें[10], सीधी रेखा की परतें[11], कब्र का मुनाफा[12], प्रतिनिधि कहानियां[13] मेरी
प्रिय कथाएं[14], दीवार में रास्ता[15]
कविता एवं गजल संग्रह-
ये घर तुम्हारा है[16]
ये घर तुम्हारा है[16]
अनूदित साहित्य- ढिबरी
टाइट नाम से पंजाबी (2004), पासपोर्ट का रंगहरू नाम से
नेपाली (2006), ईंटों का जंगल नाम से उर्दू (2007) में उनकी
अनूदित कहानियों के संग्रह प्रकाशित हुए हैं।
टाइट नाम से पंजाबी (2004), पासपोर्ट का रंगहरू नाम से
नेपाली (2006), ईंटों का जंगल नाम से उर्दू (2007) में उनकी
अनूदित कहानियों के संग्रह प्रकाशित हुए हैं।
संपादन
समुद्र पार रचना
संसार-2008(21 प्रवासी लेखकों की कहानियों का संकलन)
संसार-2008(21 प्रवासी लेखकों की कहानियों का संकलन)
यहाँ से वहाँ तक-2006
(ब्रिटेन के कवियों का कविता संग्रह)
(ब्रिटेन के कवियों का कविता संग्रह)
ब्रिटेन में उर्दू
क़लम-2010
क़लम-2010
समुद्र पार हिन्दी
ग़ज़ल-2011
ग़ज़ल-2011
प्रवासी संसार कथा
विशेषांक-2011
विशेषांक-2011
सृजन संदर्भ पत्रिका का
प्रवासी साहित्य विशेषांक-2012
प्रवासी साहित्य विशेषांक-2012
देशान्तर- प्रवासी
कहानी संग्रह (दिल्ली हिन्दी अकादमी-2012)
कहानी संग्रह (दिल्ली हिन्दी अकादमी-2012)
दो वर्ष तक ब्रिटेन से
प्रकाशित होने वाली पत्रिका पुरवाई का संपादन।
प्रकाशित होने वाली पत्रिका पुरवाई का संपादन।
पुरस्कार व सम्मान
भारत में-
केन्द्रीय हिन्दी
संस्थान,
आगरा का डॉ॰ मोटूरि सत्यनारायण सम्मान-२०११[17][18]
संस्थान,
आगरा का डॉ॰ मोटूरि सत्यनारायण सम्मान-२०११[17][18]
यू.पी. हिन्दी संस्थान
का प्रवासी भारतीय साहित्य भूषण सम्मान-२००३
का प्रवासी भारतीय साहित्य भूषण सम्मान-२००३
हरियाणा राज्य साहित्य
अकादमी सम्मान- २०१२[19]
अकादमी सम्मान- २०१२[19]
ढिबरी टाइट के लिये
महाराष्ट्र राज्य साहित्य अकादमी पुरस्कार-१९९५ प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी
वाजपेयी के हाथों
महाराष्ट्र राज्य साहित्य अकादमी पुरस्कार-१९९५ प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी
वाजपेयी के हाथों
सहयोग फ़ाउंडेशन का
युवा साहित्यकार पुरस्कार-१९९८
युवा साहित्यकार पुरस्कार-१९९८
सुपथगा सम्मान-१९८७
प्रथम संकल्प साहित्य
सम्मान- दिल्ली (२००७)
सम्मान- दिल्ली (२००७)
तितली बाल पत्रिका का
साहित्य सम्मान – बरेली (२००७)
साहित्य सम्मान – बरेली (२००७)
विदेश में-
भारतीय उच्चायोग, लन्दन द्वारा डॉ॰ हरिवंशराय बच्चन सम्मान (२००८)
कृति यू॰के॰ द्वारा
वर्ष २००२ के लिये बेघर आंखें को सर्वश्रेष्ठ कहानी का पुरस्कार
वर्ष २००२ के लिये बेघर आंखें को सर्वश्रेष्ठ कहानी का पुरस्कार
अंतरराष्ट्रीय स्पंदन
कथा सम्मान (२०१४)[20]
कथा सम्मान (२०१४)[20]
१२)
तोषी अमृता ब्रिटेन मे
बसी भारतीय मूल की हिंदी लेखक है। तोषी अमृता शृंगार रस की कवयित्री हैं। उनके
गीतों में प्रेम एवं शृंगार मुखर रूप से दिखाई देते हैं। उनकी भाषा सरल, पठनीय एवं सुरीली होती है। वैसे उन्होंने कुछ छुटपुट कहानियां भी लिखी हैं
लेकिन मूलत: वे गीतकार हैं और हिन्दी साहित्य को कुछ सुन्दर से प्रेमगीत देने की
तैयारी में हैं।
बसी भारतीय मूल की हिंदी लेखक है। तोषी अमृता शृंगार रस की कवयित्री हैं। उनके
गीतों में प्रेम एवं शृंगार मुखर रूप से दिखाई देते हैं। उनकी भाषा सरल, पठनीय एवं सुरीली होती है। वैसे उन्होंने कुछ छुटपुट कहानियां भी लिखी हैं
लेकिन मूलत: वे गीतकार हैं और हिन्दी साहित्य को कुछ सुन्दर से प्रेमगीत देने की
तैयारी में हैं।
१३)
दिव्या माथुर ब्रिटेन
मे बसी भारतीय मूल की हिंदी लेखक है। कविता और कहानी समान रूप से लिखती रही हैं।
उनके कहानी संग्रह `आक्रोश‘ के
लिए उन्हें वर्ष 2001 का पद्मानंद साहित्य सम्मान प्राप्त हो चुका है। उनकी
कविताओं में जहां तीखा क्षोभ है, वहीं मार्मिकता भी है,
संवेदनशील बुनावट है तो भावात्मक कसावट भी है। उनके कहानी संग्रह
में संग्रहित अधिकतर रिश्तों और स्थितियों में पिस रही औरत की कहानियां हैं। उनके
रचना संसार में सास और पति आमतौर पर ज़ुल्म का प्रतीक बनकर उभरते हैं। उनकी
कहानियों का अनुवाद कई भाषाओं में हुआ है। उनकी कहानियों एवं कविताओं को भी कई
संकलनों में शामिल किया गया है। उनके अब तक चार कविता संग्रह प्रकाशित हो चुके
हैं। भारत में उनके रचना संसार पर एम. फिल. भी की जा चुकी है। साहित्य रचने के
अतिरिक्त दिव्या माथुर `वातायन‘ संस्था
की अध्यक्षा, `यू॰के॰ हिन्दी समिति‘ की
उपाध्यक्षा एवं `नेहरू केन्द्र‘ की
कार्यक्रम अधिकारी हैं।
मे बसी भारतीय मूल की हिंदी लेखक है। कविता और कहानी समान रूप से लिखती रही हैं।
उनके कहानी संग्रह `आक्रोश‘ के
लिए उन्हें वर्ष 2001 का पद्मानंद साहित्य सम्मान प्राप्त हो चुका है। उनकी
कविताओं में जहां तीखा क्षोभ है, वहीं मार्मिकता भी है,
संवेदनशील बुनावट है तो भावात्मक कसावट भी है। उनके कहानी संग्रह
में संग्रहित अधिकतर रिश्तों और स्थितियों में पिस रही औरत की कहानियां हैं। उनके
रचना संसार में सास और पति आमतौर पर ज़ुल्म का प्रतीक बनकर उभरते हैं। उनकी
कहानियों का अनुवाद कई भाषाओं में हुआ है। उनकी कहानियों एवं कविताओं को भी कई
संकलनों में शामिल किया गया है। उनके अब तक चार कविता संग्रह प्रकाशित हो चुके
हैं। भारत में उनके रचना संसार पर एम. फिल. भी की जा चुकी है। साहित्य रचने के
अतिरिक्त दिव्या माथुर `वातायन‘ संस्था
की अध्यक्षा, `यू॰के॰ हिन्दी समिति‘ की
उपाध्यक्षा एवं `नेहरू केन्द्र‘ की
कार्यक्रम अधिकारी हैं।
देश-विदेश के बीच
आवागमन करती कहानियां दिव्या माथुर प्रवासी हिंदी लेखन की प्रतिनिधि रचनाकार हैं।
मैथिलीशरण गुप्त प्रवासी लेखन सम्मान से सम्मानित दिव्या जी की साहित्यिक प्रतिभा
गद्य और पद्य दोनों विधाओं में समानांतर रूप से गतिशील है। दिव्या जी 1984 में
भारतीय उच्चायोग से जुड़ी और 1992 से नेहरु केंद्र में वरिष्ठ कार्यक्रम अधिकारी
के पद पर कार्यरत हैं। लंदन में बसे प्रवासी भारतीय लेखकों के बीच दिव्या जी अह्म
स्थान रखती हैं। उनके सद्य प्रकाशित कहानी संग्रह ‘2050 तथा अन्य कहानियां’ में
संकलित कहानियां देश और विदेश के बीच के परिवेश को सामने लाती हैं। इन कहानियों का
कथ्य भारत तथा लंदन दोनों देशों से जुड़कर बनता है। प्रवासी जीवन सुखद और आकर्षक
लगता है। परंतु इन कहानियों में प्रवासी जीवन की जो विड़म्बनायें चित्रित हुई हैं, वे विदेश के प्रति हमारे मोह को तोड़ती हैं और स्वदेश से जोड़ती हैं।
अर्थकेंद्रीत पारिवारिक तथा सामाजिक संरचना की जकड़न में संवेदनाओं और भावनाओं का
दम घुटने लगता है तो हमें देश और विदेश का फर्क साफ-साफ दिखाई देता है। यह फर्क
दिव्या जी की कहानियों में प्रमुखता से उद्घाटित हुआ है। ये कहानियां इस मिथक को
भी तोड़ती हैं कि सेक्सुअल इंडिपेडेंसी सेक्स अपराध को रोकती है। ‘वैलेन्टाइन्स
डे’ और ‘नीली डायरी’ जैसी कहानियां इस संदर्भ में उल्लेखनीय हैं। ‘फिक्र’ में अपनी
दूसरी मां के प्रति बेटी की घृणा प्रकट हुई है। ‘पुरु और प्राची’ कहानी बाजारवादी
शक्तियों द्वारा मनुष्य को गुलाम बनाये जाने को रेखांकित करती है। झूठी प्रतिष्ठा
और शान के लिए अपना सब कुछ दांव पर लगा देने वाले बद्रीनारायण ओसवाल और उसके
पुत्र-पुत्रवधू चंद्रमा की यात्रा पर चले तो जाते हैं परंतु इस यात्रा में सिवाय
खीझ और दुख के उन्हें कुछ नहीं मिलता। ‘वैलेन्टाइन्स-डे’ मांसल प्रेम पर चोट करती
है। ‘फैसला’ की भारतीय सास अपनी ब्रिटिश बहू से सांमजस्य नहीं बिठा पाती। पुत्र और
मां दोनों ही ब्रिटिश बहू के प्रति दुराग्रहों से ग्रस्त हैं जबकि रेचल अपने पति
और सास के प्रति समर्पित रहती है। अन्ततः सास अमृत को अपनी गलती का अहसास होता है
और वह अपने बेटे-बहू से माफी मांग लेती है। कहानियों में हिन्दी, अंग्रेजी और पंजाबी तीन भाषाओं का मिश्रित सौंदर्य पाठकों को आकर्षित करता
है। हिंदी भाषा की शक्ति, सामर्थ्य तथा संप्रेषनीयता को एक
प्रवासी लेखिका द्वारा जिस अंदाज में बयान किया गया है, वह
प्रशंसनीय है। ‘सौ सुनार की’ शीर्षक कहानी का संवाद मुहावरों-लोकोक्तियों में चलता
है। यह संवाद न केवल कथा को रोचक तथा सरस बनाता है अपितु हिन्दी के दर्जनों
मुहावरों-लोकोक्तियों को संदर्भ सहित प्रस्तुत करता है। इन कहानियों में प्रूफ
संशोधन का अभाव है। वर्तनी तथा वाक्य अशुद्धि के साथ कहीं-कहीं शब्दों का अनावश्यक
प्रयोग मिलता है। इन त्रुटियों के प्रति प्रकाशक तथा लेखिका दोनों को सचेत रहने की
आवश्यकता है। संग्रह की शीर्षक कहानी ‘2050’ प्रजाति-भेद पर आधारित श्रेष्ठ कहानी
है। तथाकथित आधुनिक देशों में नस्ल और रंग-रूप के आधार पर होने वाले भेदभाव को जिस
काल्पनिक शैली में उभारा गया है, वह दर्शनीय है। कहानी के
एशियन दंपति ऋचा और वेद बच्चा पैदा करना चाहते हैं परंतु समाज सुरक्षा परिषद के
अधिकारी उन्हें अनुमति नहीं देते। भावी पीढ़ी को परफैक्ट बनाने की बात कहकर समाज
सुरक्षा परिषद एशियन जोडों को बच्चा पैदा करने की अनुमति नहीं देती जबकि उनके अपने
नागरिकों के लिए नियमों में काफी छूट है। ऋचा द्वारा अधिकारियों को मनाने की तमाम
कोशिशें असफल रहती है। अवसादग्रस्त ऋचा जब आत्महत्या की इच्छा जताती है तो
अधिकारियों द्वारा उसे आत्महत्या परामर्श परिषद का पता बता दिया जाता है। कहानी
उत्तर आधुनिक सभ्यता के खोखलेपन तथा नस्लवाद के घिनौने यथार्थ को उभारती है।
दिव्या जी की इन कहानियों में परंपरा और आधुनिकता तथा प्रेम और सेक्स के बीच के
अंतर को दर्शाया गया है। लेखिका सेक्स और आधुनिकता को तटस्थ रहकर व्यक्त करती हैं,
वे अपनी निजी सोच और विचारधारा से घटनाओं को संचालित नहीं करती,
अपितु कथानक को अपने जीवंत रूप से आकार लेने की स्वतंत्रता देती
हैं। दिव्या जी न तो यथार्थ के प्रति आग्रहशील हैं, न ही
आदर्श थोपना उनकी नीयत है। इस संग्रह की सभी कहानियां इस कसौटी पर खरी उतरती हैं।
आवागमन करती कहानियां दिव्या माथुर प्रवासी हिंदी लेखन की प्रतिनिधि रचनाकार हैं।
मैथिलीशरण गुप्त प्रवासी लेखन सम्मान से सम्मानित दिव्या जी की साहित्यिक प्रतिभा
गद्य और पद्य दोनों विधाओं में समानांतर रूप से गतिशील है। दिव्या जी 1984 में
भारतीय उच्चायोग से जुड़ी और 1992 से नेहरु केंद्र में वरिष्ठ कार्यक्रम अधिकारी
के पद पर कार्यरत हैं। लंदन में बसे प्रवासी भारतीय लेखकों के बीच दिव्या जी अह्म
स्थान रखती हैं। उनके सद्य प्रकाशित कहानी संग्रह ‘2050 तथा अन्य कहानियां’ में
संकलित कहानियां देश और विदेश के बीच के परिवेश को सामने लाती हैं। इन कहानियों का
कथ्य भारत तथा लंदन दोनों देशों से जुड़कर बनता है। प्रवासी जीवन सुखद और आकर्षक
लगता है। परंतु इन कहानियों में प्रवासी जीवन की जो विड़म्बनायें चित्रित हुई हैं, वे विदेश के प्रति हमारे मोह को तोड़ती हैं और स्वदेश से जोड़ती हैं।
अर्थकेंद्रीत पारिवारिक तथा सामाजिक संरचना की जकड़न में संवेदनाओं और भावनाओं का
दम घुटने लगता है तो हमें देश और विदेश का फर्क साफ-साफ दिखाई देता है। यह फर्क
दिव्या जी की कहानियों में प्रमुखता से उद्घाटित हुआ है। ये कहानियां इस मिथक को
भी तोड़ती हैं कि सेक्सुअल इंडिपेडेंसी सेक्स अपराध को रोकती है। ‘वैलेन्टाइन्स
डे’ और ‘नीली डायरी’ जैसी कहानियां इस संदर्भ में उल्लेखनीय हैं। ‘फिक्र’ में अपनी
दूसरी मां के प्रति बेटी की घृणा प्रकट हुई है। ‘पुरु और प्राची’ कहानी बाजारवादी
शक्तियों द्वारा मनुष्य को गुलाम बनाये जाने को रेखांकित करती है। झूठी प्रतिष्ठा
और शान के लिए अपना सब कुछ दांव पर लगा देने वाले बद्रीनारायण ओसवाल और उसके
पुत्र-पुत्रवधू चंद्रमा की यात्रा पर चले तो जाते हैं परंतु इस यात्रा में सिवाय
खीझ और दुख के उन्हें कुछ नहीं मिलता। ‘वैलेन्टाइन्स-डे’ मांसल प्रेम पर चोट करती
है। ‘फैसला’ की भारतीय सास अपनी ब्रिटिश बहू से सांमजस्य नहीं बिठा पाती। पुत्र और
मां दोनों ही ब्रिटिश बहू के प्रति दुराग्रहों से ग्रस्त हैं जबकि रेचल अपने पति
और सास के प्रति समर्पित रहती है। अन्ततः सास अमृत को अपनी गलती का अहसास होता है
और वह अपने बेटे-बहू से माफी मांग लेती है। कहानियों में हिन्दी, अंग्रेजी और पंजाबी तीन भाषाओं का मिश्रित सौंदर्य पाठकों को आकर्षित करता
है। हिंदी भाषा की शक्ति, सामर्थ्य तथा संप्रेषनीयता को एक
प्रवासी लेखिका द्वारा जिस अंदाज में बयान किया गया है, वह
प्रशंसनीय है। ‘सौ सुनार की’ शीर्षक कहानी का संवाद मुहावरों-लोकोक्तियों में चलता
है। यह संवाद न केवल कथा को रोचक तथा सरस बनाता है अपितु हिन्दी के दर्जनों
मुहावरों-लोकोक्तियों को संदर्भ सहित प्रस्तुत करता है। इन कहानियों में प्रूफ
संशोधन का अभाव है। वर्तनी तथा वाक्य अशुद्धि के साथ कहीं-कहीं शब्दों का अनावश्यक
प्रयोग मिलता है। इन त्रुटियों के प्रति प्रकाशक तथा लेखिका दोनों को सचेत रहने की
आवश्यकता है। संग्रह की शीर्षक कहानी ‘2050’ प्रजाति-भेद पर आधारित श्रेष्ठ कहानी
है। तथाकथित आधुनिक देशों में नस्ल और रंग-रूप के आधार पर होने वाले भेदभाव को जिस
काल्पनिक शैली में उभारा गया है, वह दर्शनीय है। कहानी के
एशियन दंपति ऋचा और वेद बच्चा पैदा करना चाहते हैं परंतु समाज सुरक्षा परिषद के
अधिकारी उन्हें अनुमति नहीं देते। भावी पीढ़ी को परफैक्ट बनाने की बात कहकर समाज
सुरक्षा परिषद एशियन जोडों को बच्चा पैदा करने की अनुमति नहीं देती जबकि उनके अपने
नागरिकों के लिए नियमों में काफी छूट है। ऋचा द्वारा अधिकारियों को मनाने की तमाम
कोशिशें असफल रहती है। अवसादग्रस्त ऋचा जब आत्महत्या की इच्छा जताती है तो
अधिकारियों द्वारा उसे आत्महत्या परामर्श परिषद का पता बता दिया जाता है। कहानी
उत्तर आधुनिक सभ्यता के खोखलेपन तथा नस्लवाद के घिनौने यथार्थ को उभारती है।
दिव्या जी की इन कहानियों में परंपरा और आधुनिकता तथा प्रेम और सेक्स के बीच के
अंतर को दर्शाया गया है। लेखिका सेक्स और आधुनिकता को तटस्थ रहकर व्यक्त करती हैं,
वे अपनी निजी सोच और विचारधारा से घटनाओं को संचालित नहीं करती,
अपितु कथानक को अपने जीवंत रूप से आकार लेने की स्वतंत्रता देती
हैं। दिव्या जी न तो यथार्थ के प्रति आग्रहशील हैं, न ही
आदर्श थोपना उनकी नीयत है। इस संग्रह की सभी कहानियां इस कसौटी पर खरी उतरती हैं।
१४)
नरेश भारतीय (नरेश
अरोड़ा) ब्रिटेन मे बसे भारतीय मूल के हिंदी लेखक है। एक लम्बे अर्से से बी.बी.सी.
रेडिया हिन्दी सेवा से जुड़े रहे। उनके लेख भारत की प्रमुख पत्रिकाओं में प्रकाशित
होते रहे हैं। पुस्तक रूप में उनके लेख संग्रह `उस पार
इस पार‘ के लिए उन्हें पद्मानंद साहित्य सम्मान (2002)
प्राप्त हो चुका है। उनके इस संकलन की विशेषता यह है कि उनके जो लेख पहले
पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके थे उन्होंने संकलन में आवश्यक बदलाव करने में कोई
गुरेज़ नहीं किया। हिन्दी लेखकों के लिए यह एक अनुकरणीय कदम है। वर्ष 2003 में
आतंकवाद पर उनकी पुस्तक `आतंकवाद‘ प्रकाशित
हुई है। नरेश भारतीय कविता भी लिखते हैं किन्तु लेख उनकी प्रिय विधा है। नरेशजी
किसी भी प्रकार की साहित्यिक राजनीति से दूर निरंतर लेखन में व्यस्त रहते हैं।
उनके पहले उपन्यास दिशाए बदल गई का विमोचन भारत की राजधानी दिल्ली में किया गया।
अरोड़ा) ब्रिटेन मे बसे भारतीय मूल के हिंदी लेखक है। एक लम्बे अर्से से बी.बी.सी.
रेडिया हिन्दी सेवा से जुड़े रहे। उनके लेख भारत की प्रमुख पत्रिकाओं में प्रकाशित
होते रहे हैं। पुस्तक रूप में उनके लेख संग्रह `उस पार
इस पार‘ के लिए उन्हें पद्मानंद साहित्य सम्मान (2002)
प्राप्त हो चुका है। उनके इस संकलन की विशेषता यह है कि उनके जो लेख पहले
पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके थे उन्होंने संकलन में आवश्यक बदलाव करने में कोई
गुरेज़ नहीं किया। हिन्दी लेखकों के लिए यह एक अनुकरणीय कदम है। वर्ष 2003 में
आतंकवाद पर उनकी पुस्तक `आतंकवाद‘ प्रकाशित
हुई है। नरेश भारतीय कविता भी लिखते हैं किन्तु लेख उनकी प्रिय विधा है। नरेशजी
किसी भी प्रकार की साहित्यिक राजनीति से दूर निरंतर लेखन में व्यस्त रहते हैं।
उनके पहले उपन्यास दिशाए बदल गई का विमोचन भारत की राजधानी दिल्ली में किया गया।
१५)
निखिल कौशिक ब्रिटेन मे
बसे भारतीय मूल के हिंदी लेखक है। वेल्स निवासी निखिल कौशिक पेशे से डॉक्टर हैं
लेकिन उनका व्यक्तित्व कवितामय ही है। उनके अब तक दो कविता संग्रह प्रकाशित हो
चुके हैं। उनकी कविताओं में नॉस्टेलजिया मौजूद है तो इस देश की समस्याओं की पूरी
पकड़ भी। उनकी कविताओं में व्यंग्य की एक पैनी धार महसूस की जा सकती है। निखिल कवि
सम्मेलनों में अपनी कविताओं को अपनी सुरीली आवाज़ में गाकर भी सुनाते हैं। निखिल
सिनेमा को भी साहित्य की एक धारा ही मानते हैं। हाल ही में उन्होंने एक चलचित्र का
निर्माण भी किया है जिसके वे निर्माता, निर्देशक,
लेखक, गीतकार सभी कुछ हैं।
बसे भारतीय मूल के हिंदी लेखक है। वेल्स निवासी निखिल कौशिक पेशे से डॉक्टर हैं
लेकिन उनका व्यक्तित्व कवितामय ही है। उनके अब तक दो कविता संग्रह प्रकाशित हो
चुके हैं। उनकी कविताओं में नॉस्टेलजिया मौजूद है तो इस देश की समस्याओं की पूरी
पकड़ भी। उनकी कविताओं में व्यंग्य की एक पैनी धार महसूस की जा सकती है। निखिल कवि
सम्मेलनों में अपनी कविताओं को अपनी सुरीली आवाज़ में गाकर भी सुनाते हैं। निखिल
सिनेमा को भी साहित्य की एक धारा ही मानते हैं। हाल ही में उन्होंने एक चलचित्र का
निर्माण भी किया है जिसके वे निर्माता, निर्देशक,
लेखक, गीतकार सभी कुछ हैं।
१६)
प्रतिभा डावर ब्रिटेन
में बसी भारतीय मूल की हिंदी लेखक है। लंदन में प्रतिभा डावर ने दो उपन्यासों की
रचना की है : `वह मेरा चांद‘ एवं `दो चम्मच चीनी के‘।
में बसी भारतीय मूल की हिंदी लेखक है। लंदन में प्रतिभा डावर ने दो उपन्यासों की
रचना की है : `वह मेरा चांद‘ एवं `दो चम्मच चीनी के‘।
१७)
प्राण शर्मा ब्रिटेन
में बसे भारतीय मूल के हिंदी लेखक है। कॉवेन्टरी के प्राण शर्मा ब्रिटेन में
हिन्दी ग़ज़ल के उस्ताद शायर हैं। प्राणजी बहुत शिद्दत के साथ ब्रिटेन के ग़ज़ल
लिखने वालों की ग़ज़लों को पढ़कर उन्हें दुरुस्त करने में सहायता करते हैं। हिन्दी
ग़ज़ल पर उनका एक लंबा लेख चार-पांच किश्तों में ‘पुरवाई’ में प्रकाशित हो चुका
है। कुछ लोगों का कहना है कि ब्रिटेन में पहली हिन्दी कहानी शायद प्राण शर्मा ने
ही लिखी थी। भारत के साहित्य से पत्रिकाओं के जरिए रिश्ता बनाए रखने वाले प्राण
शर्मा अपने मित्र एवं सहयोगी श्री रामकिशन के साथ कॉवेन्टरी में कवि सम्मेलन एवं
मुशायरा भी आयोजित करते हैं। उन्हें कविता, कहानी और उपन्यास
की गहरी समझ है।
में बसे भारतीय मूल के हिंदी लेखक है। कॉवेन्टरी के प्राण शर्मा ब्रिटेन में
हिन्दी ग़ज़ल के उस्ताद शायर हैं। प्राणजी बहुत शिद्दत के साथ ब्रिटेन के ग़ज़ल
लिखने वालों की ग़ज़लों को पढ़कर उन्हें दुरुस्त करने में सहायता करते हैं। हिन्दी
ग़ज़ल पर उनका एक लंबा लेख चार-पांच किश्तों में ‘पुरवाई’ में प्रकाशित हो चुका
है। कुछ लोगों का कहना है कि ब्रिटेन में पहली हिन्दी कहानी शायद प्राण शर्मा ने
ही लिखी थी। भारत के साहित्य से पत्रिकाओं के जरिए रिश्ता बनाए रखने वाले प्राण
शर्मा अपने मित्र एवं सहयोगी श्री रामकिशन के साथ कॉवेन्टरी में कवि सम्मेलन एवं
मुशायरा भी आयोजित करते हैं। उन्हें कविता, कहानी और उपन्यास
की गहरी समझ है।
१७)
कैलाश बुधवार ब्रिटेन
मे बसे भारतीय मूल के हिंदी लेखक है। अब तक के एकमात्र भारतीय हैं जो बी.बी.सी.
रेडियों में हिन्दी एवं तमिल विभागों के अध्यक्ष रह चुके हैं। एक लम्बे अर्से तक
बी.बी.सी. रेडियो में काम करने के पश्र्चात आजकल सक्रिय अवकाश प्राप्त जीवन जी रहे
हैं। लंदन का शायद ही कोई ऐसा कार्यक्रम होगा जिसमें शिरकत या अध्यक्षता कैलाशजी न
कर चुके हों। हिन्दी के यह कर्मठ सिपाही कविता भी लिखते हैं और मंच पर कवि
सम्मेलनों का संचालन भी करते हैं। मंच से उनका रिश्ता पृथ्वी थियेटर के दिनों से
है। पापाजी पृथ्वीराज कपूर का असर उनके रेडियो प्रसारण एवं नाटक दोनों ही
क्षेत्रों में महसूस किया जा सकता है।
मे बसे भारतीय मूल के हिंदी लेखक है। अब तक के एकमात्र भारतीय हैं जो बी.बी.सी.
रेडियों में हिन्दी एवं तमिल विभागों के अध्यक्ष रह चुके हैं। एक लम्बे अर्से तक
बी.बी.सी. रेडियो में काम करने के पश्र्चात आजकल सक्रिय अवकाश प्राप्त जीवन जी रहे
हैं। लंदन का शायद ही कोई ऐसा कार्यक्रम होगा जिसमें शिरकत या अध्यक्षता कैलाशजी न
कर चुके हों। हिन्दी के यह कर्मठ सिपाही कविता भी लिखते हैं और मंच पर कवि
सम्मेलनों का संचालन भी करते हैं। मंच से उनका रिश्ता पृथ्वी थियेटर के दिनों से
है। पापाजी पृथ्वीराज कपूर का असर उनके रेडियो प्रसारण एवं नाटक दोनों ही
क्षेत्रों में महसूस किया जा सकता है।
१८)
भारतेन्दु विमल ब्रिटेन
मे बसे भारतीय मूल के हिंदी लेखक है। उपन्यास `सोन मछली‘
के लेखक भारतेन्दु विमल बी.बी.सी. रेडियो से जुड़े हैं। कमलेश्वरजी
ने इस उपन्यास को गटर गंगा की संज्ञा देते हुए इस उपन्यास की भूमिका में इसकी
भूरि-भूरि प्रशंसा की है। भारतेन्दु विमल ग़ज़ल एवं कविता भी लिखते हैं। मुंबई के
फिल्म जगत से जुड़े विमलजी को वर्ष 2003 के लिए अपने उपन्यास `सोन मछली‘ के लिए पद्मानंद साहित्य सम्मान प्राप्त
हो चुका है। वे किसी भी गुटबाज़ी या वाद-विवाद का हिस्सा नहीं बनते और किसी शांत
कोने में आराम से अपना काम करते रहते हैं। विमलजी ब्रिटेन भर के बहुत से कवि
सम्मेलनों का कुशल संचालन भी कर चुके हैं।
मे बसे भारतीय मूल के हिंदी लेखक है। उपन्यास `सोन मछली‘
के लेखक भारतेन्दु विमल बी.बी.सी. रेडियो से जुड़े हैं। कमलेश्वरजी
ने इस उपन्यास को गटर गंगा की संज्ञा देते हुए इस उपन्यास की भूमिका में इसकी
भूरि-भूरि प्रशंसा की है। भारतेन्दु विमल ग़ज़ल एवं कविता भी लिखते हैं। मुंबई के
फिल्म जगत से जुड़े विमलजी को वर्ष 2003 के लिए अपने उपन्यास `सोन मछली‘ के लिए पद्मानंद साहित्य सम्मान प्राप्त
हो चुका है। वे किसी भी गुटबाज़ी या वाद-विवाद का हिस्सा नहीं बनते और किसी शांत
कोने में आराम से अपना काम करते रहते हैं। विमलजी ब्रिटेन भर के बहुत से कवि
सम्मेलनों का कुशल संचालन भी कर चुके हैं।
१९)
महावीर शर्मा (२०
अप्रैल १९३३-१७ नवम्बर २०१०) आप्रवासी हिंदी लेखक थे, जिन्होंने ब्रिटेन को अपना कार्यक्षेत्र बनाया। उन्होंने हिंदी में एम.ए.
किया तथा लंदन यूनिवर्सिटी तथा ब्राइटन यूनिवर्सिटी में मॉडर्न गणित, ऑडियो विज़ुअल एड्स तथा स्टटिस्टिक्स की शिक्षा ली। उन्होंने उर्दू भी
पढ़ी थी और वे कुशल गजलकार के रूप में भी जाने जाते थे।
अप्रैल १९३३-१७ नवम्बर २०१०) आप्रवासी हिंदी लेखक थे, जिन्होंने ब्रिटेन को अपना कार्यक्षेत्र बनाया। उन्होंने हिंदी में एम.ए.
किया तथा लंदन यूनिवर्सिटी तथा ब्राइटन यूनिवर्सिटी में मॉडर्न गणित, ऑडियो विज़ुअल एड्स तथा स्टटिस्टिक्स की शिक्षा ली। उन्होंने उर्दू भी
पढ़ी थी और वे कुशल गजलकार के रूप में भी जाने जाते थे।
२०)
जन्म 9 मार्च 1964 (आयु 53 वर्ष)
दिल्ली, भारत
नस्ल भारतीय
व्यवसाय कवि
मोहन राणा का जन्म 1964
में दिल्ली में हुआ। वे ब्रिटेन में बसे भारतीय मूल के हिंदी कवि हैं और बाथ
(इंग्लैंड की समरसेट काउंटी में एक रोमन शहर) में निवासी हैं।[1]}} उनकी कविताओं में जीवन के सूक्ष्म अनुभव महसूस किये जा सकते हैं। बाज़ार
संस्कृति की शक्तियों के विरुद्ध उनकी सोच भी कविता में उभरकर सामने आती है।[1]
उनकी कविताएँ स्थितियों पर तात्कालिक प्रतिक्रिया मात्र नहीं होती हैं। वे पहले
अपने भीतर के कवि और कविता के विषय में एक तटस्थ दूरी पैदा कर लेते हैं। फिर होता
है सशक्त भावनाओं का नैसर्गिक विस्फोट। उनकी कविता पढ़कर महसूस होता है कि जैसे वे
सच की एक निरंतर खोज यात्रा कर रहे हों।[1][2]
में दिल्ली में हुआ। वे ब्रिटेन में बसे भारतीय मूल के हिंदी कवि हैं और बाथ
(इंग्लैंड की समरसेट काउंटी में एक रोमन शहर) में निवासी हैं।[1]}} उनकी कविताओं में जीवन के सूक्ष्म अनुभव महसूस किये जा सकते हैं। बाज़ार
संस्कृति की शक्तियों के विरुद्ध उनकी सोच भी कविता में उभरकर सामने आती है।[1]
उनकी कविताएँ स्थितियों पर तात्कालिक प्रतिक्रिया मात्र नहीं होती हैं। वे पहले
अपने भीतर के कवि और कविता के विषय में एक तटस्थ दूरी पैदा कर लेते हैं। फिर होता
है सशक्त भावनाओं का नैसर्गिक विस्फोट। उनकी कविता पढ़कर महसूस होता है कि जैसे वे
सच की एक निरंतर खोज यात्रा कर रहे हों।[1][2]
कवि-आलोचक नंदकिशोर
आचार्य के अनुसार – हिंदी कविता की नई पीढ़ी में मोहन राणा की कविता अपने
उल्लेखनीय वैशिष्टय के कारण अलग से पहचानी जाती रही है, क्योंकि उसे किसी खाते में खतियाना संभव नहीं लगता। यह कविता यदि किसी
विचारात्मक खाँचे में नहीं अँटती तो इसका यह अर्थ नहीं लिया जाना चाहिए कि मोहन
राणा की कविता विचार से परहेज करती है – बल्कि वह यह जानती है कि कविता में विचार
करने और कविता के विचार करने में क्या फर्क है। मोहन राणा के लिए काव्य रचना की
प्रक्रिया अपने में एक स्वायत्त विचार प्रक्रिया भी है।[1]
आचार्य के अनुसार – हिंदी कविता की नई पीढ़ी में मोहन राणा की कविता अपने
उल्लेखनीय वैशिष्टय के कारण अलग से पहचानी जाती रही है, क्योंकि उसे किसी खाते में खतियाना संभव नहीं लगता। यह कविता यदि किसी
विचारात्मक खाँचे में नहीं अँटती तो इसका यह अर्थ नहीं लिया जाना चाहिए कि मोहन
राणा की कविता विचार से परहेज करती है – बल्कि वह यह जानती है कि कविता में विचार
करने और कविता के विचार करने में क्या फर्क है। मोहन राणा के लिए काव्य रचना की
प्रक्रिया अपने में एक स्वायत्त विचार प्रक्रिया भी है।[1]
प्रकाशित कृतियाँ
संपादित करें
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कविता संग्रह-
‘जगह‘ (1994), जयश्री प्रकाशन
‘जैसे जनम कोई
दरवाजा‘ (1997), सारांश प्रकाशन
दरवाजा‘ (1997), सारांश प्रकाशन
‘सुबह की डाक‘
(2002), वाणी प्रकाशन
(2002), वाणी प्रकाशन
‘इस छोर पर‘ (2003), वाणी प्रकाशन
‘पत्थर हो जाएगी
नदी‘ (2007), सूर्यास्त्र
नदी‘ (2007), सूर्यास्त्र
‘धूप के अँधेरे
में‘ (2008), सूर्यास्त्र
में‘ (2008), सूर्यास्त्र
‘रेत का पुल’ (2012), अंतिका प्रकाशन
‘शेष अनेक‘
(2016), कॉपर कॉइन पब्लिशिंग प्रा. लि.
(2016), कॉपर कॉइन पब्लिशिंग प्रा. लि.
अंग्रेजी में अनुवादित
कविता संग्रह-
कविता संग्रह-
‘With Eyes Closed’ (द्विभाषी संग्रह, अनुवादक – लूसी रोजेंश्ताइन) 2008
‘Poems’
(द्विभाषी संग्रह, अनुवादक – बर्नार्ड ओ
डोनह्यू और लूसी रोज़ेंश्ताइन) 2011
(द्विभाषी संग्रह, अनुवादक – बर्नार्ड ओ
डोनह्यू और लूसी रोज़ेंश्ताइन) 2011
२१)
रमेश पटेल ब्रिटेन मे
बसे भारतीय मूल के हिंदी लेखक है। वर्ष 2006 में अपने जीवन के 70 वर्ष पूरे करने
वाले रमेश पटेल प्रेमोर्मी ब्रिटेन में भारतीय संगीत और कला के सच्चे राजदूत माने
जा सकते हैं। `नव कला‘ नामक संस्था की
स्थापना कर लंदन में भारतीय कलाकारों को अपनी कला का प्रदर्शन करने का मौका दे
चुके हैं। उनका रचित काव्य संग्रह `हृदय गंगा‘ नौ भाषाओं में प्रकाशित हो चुका है। उसके अतिरिक्त उनका एक गीत संग्रह भी
प्रकाशित हुआ है। रमेश पटेल के गीतों में प्रेम एवं भक्ति रस की प्रधानता है।
बसे भारतीय मूल के हिंदी लेखक है। वर्ष 2006 में अपने जीवन के 70 वर्ष पूरे करने
वाले रमेश पटेल प्रेमोर्मी ब्रिटेन में भारतीय संगीत और कला के सच्चे राजदूत माने
जा सकते हैं। `नव कला‘ नामक संस्था की
स्थापना कर लंदन में भारतीय कलाकारों को अपनी कला का प्रदर्शन करने का मौका दे
चुके हैं। उनका रचित काव्य संग्रह `हृदय गंगा‘ नौ भाषाओं में प्रकाशित हो चुका है। उसके अतिरिक्त उनका एक गीत संग्रह भी
प्रकाशित हुआ है। रमेश पटेल के गीतों में प्रेम एवं भक्ति रस की प्रधानता है।
२२)
शैल अग्रवाल (जन्म २१
जनवरी १९४७)[1]) ब्रिटेन मे बसी भारतीय मूल की हिंदी लेखक है। उनका जन्म बनारस में
हुआ था। वे गद्य एवं पद्य दोनों विधाओं में समान अधिकार रखती हैं। उनके लेखन का
कैनवस अत्यंत विस्तृत है। उनकी कहानियां मानव मन की सूक्ष्म अभिव्यंजना प्रस्तुत
करती हैं तो कविताएं अपनी एक विशेष छाप छोड़ती हैं। उनके लेखन में बनारस की ताज़गी
और ब्रिटेन की समझ दोनों की झलक देखी जा सकती है। उनका एक कहानी संग्रह ‘ध्रुवतारा‘ और एक कविता संग्रह ‘समिधा‘ प्रकाशित हो चुका है।
जनवरी १९४७)[1]) ब्रिटेन मे बसी भारतीय मूल की हिंदी लेखक है। उनका जन्म बनारस में
हुआ था। वे गद्य एवं पद्य दोनों विधाओं में समान अधिकार रखती हैं। उनके लेखन का
कैनवस अत्यंत विस्तृत है। उनकी कहानियां मानव मन की सूक्ष्म अभिव्यंजना प्रस्तुत
करती हैं तो कविताएं अपनी एक विशेष छाप छोड़ती हैं। उनके लेखन में बनारस की ताज़गी
और ब्रिटेन की समझ दोनों की झलक देखी जा सकती है। उनका एक कहानी संग्रह ‘ध्रुवतारा‘ और एक कविता संग्रह ‘समिधा‘ प्रकाशित हो चुका है।
प्रकाशित कृतियाँ
संपादित करें
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कहानी-संग्रह :‘ध्रुव-तारा‘
काव्य-संग्रह ‘समिधा‘ व ‘नेति-नेति‘
२३)
सत्येन्द्र श्रीवास्तव
ब्रिटेन मे बसे भारतीय मूल के हिंदी लेखक है। युनाइटेड किंगडम में हिन्दी के
वरिष्ठतम लेखक हैं। कविता, नाटक एवं लेख उनकी प्रिय विधाएं
हैं। हिन्दी के अतिरिक्त उनके तीन कविता संग्रह अंग्रेजी भाषा में भी प्रकाशित हो
चुके हैं। सत्येन्द्र श्रीवास्तव ने टोरोंटो एवं लंदन विश्वविद्यालयों में अध्यापन
के बाद पच्चीस वर्षों तक केम्ब्रिज विश्वविद्यालय में हिन्दी साहित्य पढ़ाया है।
केम्ब्रिज विश्वविद्यालय से सेवा निवृत्ति के पश्र्चात सत्येन्द्र श्रीवास्तव ने
दक्षिण अफ्रीका, जापान, केन्या,
जाम्बिया आदि देशों की यात्रा करते हुए वहां व्याख्यान दिये हैं व
कविता पाठ किये हैं।
ब्रिटेन मे बसे भारतीय मूल के हिंदी लेखक है। युनाइटेड किंगडम में हिन्दी के
वरिष्ठतम लेखक हैं। कविता, नाटक एवं लेख उनकी प्रिय विधाएं
हैं। हिन्दी के अतिरिक्त उनके तीन कविता संग्रह अंग्रेजी भाषा में भी प्रकाशित हो
चुके हैं। सत्येन्द्र श्रीवास्तव ने टोरोंटो एवं लंदन विश्वविद्यालयों में अध्यापन
के बाद पच्चीस वर्षों तक केम्ब्रिज विश्वविद्यालय में हिन्दी साहित्य पढ़ाया है।
केम्ब्रिज विश्वविद्यालय से सेवा निवृत्ति के पश्र्चात सत्येन्द्र श्रीवास्तव ने
दक्षिण अफ्रीका, जापान, केन्या,
जाम्बिया आदि देशों की यात्रा करते हुए वहां व्याख्यान दिये हैं व
कविता पाठ किये हैं।
सत्येन्द्र श्रीवास्तव
के लेखन की एक विशेषता यह भी है कि उनका लेखन केवल नॉस्टेलजिक साहित्य नहीं है। वे
केवल भारत के साथ भावनात्मक रिश्तों को ही नहीं भुनाते, वे युनाइटेड किंगडम की राजनीतिक, सामाजिक और
सांस्कृतिक समस्याओं पर भी गहरी नज़र रखते हैं। उन्हें अपनी पुस्तक टेम्स में बहती
गंगा की धार के लिए पहले पद्मानंद साहित्य सम्मान से अलंकृत किया गया। सत्येन्द्र
श्रीवास्तव की कविताओं में गहराई है तो लेखों में विषय की पकड़ एवं भाषा का
निर्वाह। मिसेज जोन्स और वह गली एवं विन्सटन चर्चिल मेरी मां को जानते थे जैसे
उदाहरण इस बात का सबूत है कि सत्येन्द्र श्रीवास्तव सही मायने में ब्रिटिश हिन्दी
साहित्य का प्रतिनिधित्व करते हैं।
के लेखन की एक विशेषता यह भी है कि उनका लेखन केवल नॉस्टेलजिक साहित्य नहीं है। वे
केवल भारत के साथ भावनात्मक रिश्तों को ही नहीं भुनाते, वे युनाइटेड किंगडम की राजनीतिक, सामाजिक और
सांस्कृतिक समस्याओं पर भी गहरी नज़र रखते हैं। उन्हें अपनी पुस्तक टेम्स में बहती
गंगा की धार के लिए पहले पद्मानंद साहित्य सम्मान से अलंकृत किया गया। सत्येन्द्र
श्रीवास्तव की कविताओं में गहराई है तो लेखों में विषय की पकड़ एवं भाषा का
निर्वाह। मिसेज जोन्स और वह गली एवं विन्सटन चर्चिल मेरी मां को जानते थे जैसे
उदाहरण इस बात का सबूत है कि सत्येन्द्र श्रीवास्तव सही मायने में ब्रिटिश हिन्दी
साहित्य का प्रतिनिधित्व करते हैं।
२४)
सोहन राही ब्रिटेन मे
बसे भारतीय मूल के हिंदी लेखक है। सर्रे निवासी सोहन राही इंगलैण्ड में गीत और
ग़ज़ल विधा के बेहतरीन कलाकार हैं। वे इस देश के पहले साहित्यकार हैं जिनकी
ग़ज़लों एवं गीतों के कैसेट एवं सी. डी. तैयार हुए। इंग्लैण्ड के कई गायक एवं
गायिकाएं उनके गीत एवं ग़ज़लों को मंच से भी गा चुके हैं। सोहन राही के अनुसार गीत
विधा साहित्य की सबसे कठिन एवं श्रेष्ठ विधा है। उनका कहना है कि जब तक कोई कवि
गीत नहीं रच लेता तब तक उसका सृजनात्मक विकास पूर्ण नहीं माना जा सकता। सोहन राही
मंच से अपने गीत एवं ग़ज़लों का स्वयं भी सुर में पाठ करते हैं। उर्दू के अतिरिक्त
उनके ग़ज़ल एवं गीतों का एक संग्रह हिन्दी में भी प्रकाशित हो चुका है।
बसे भारतीय मूल के हिंदी लेखक है। सर्रे निवासी सोहन राही इंगलैण्ड में गीत और
ग़ज़ल विधा के बेहतरीन कलाकार हैं। वे इस देश के पहले साहित्यकार हैं जिनकी
ग़ज़लों एवं गीतों के कैसेट एवं सी. डी. तैयार हुए। इंग्लैण्ड के कई गायक एवं
गायिकाएं उनके गीत एवं ग़ज़लों को मंच से भी गा चुके हैं। सोहन राही के अनुसार गीत
विधा साहित्य की सबसे कठिन एवं श्रेष्ठ विधा है। उनका कहना है कि जब तक कोई कवि
गीत नहीं रच लेता तब तक उसका सृजनात्मक विकास पूर्ण नहीं माना जा सकता। सोहन राही
मंच से अपने गीत एवं ग़ज़लों का स्वयं भी सुर में पाठ करते हैं। उर्दू के अतिरिक्त
उनके ग़ज़ल एवं गीतों का एक संग्रह हिन्दी में भी प्रकाशित हो चुका है।
निष्कर्षतः इस प्रकार
हम देखते हैं की प्रवासी साहित्यकार ब्रिटेन में रहकर हिंदी परंपरा को निरंतर
समृद्धि कर रहे हैं और ब्रिटेन में रहकर वहां की परंपरा और संस्कृति के आलोक में
हमारे हिंदी साहित्य के विकास में सहयोग प्रदान कर रहे हैं।
हम देखते हैं की प्रवासी साहित्यकार ब्रिटेन में रहकर हिंदी परंपरा को निरंतर
समृद्धि कर रहे हैं और ब्रिटेन में रहकर वहां की परंपरा और संस्कृति के आलोक में
हमारे हिंदी साहित्य के विकास में सहयोग प्रदान कर रहे हैं।
संदर्भ
प्रवासी साहित्य एवं
साहित्यकार पुस्तकें।
साहित्यकार पुस्तकें।
इंटरनेट और Wikipedia
माध्यम
माध्यम
स्वयं लेखक और लेखक संघ
स्रोत
स्रोत
[साभार: जनकृति पत्रिका]