गीतिका

क्या कह दें इस बाढ़ ने, कैसा किया तबाह
जल, मगरमच्छ हर जगह, लें अब कहाँ पनाह

पहले गर्मी ले उड़ी ,तन का मन का चैन
आ मारा अब बाढ़ ने, साँसे रही  कराह

कोई तो मौसम रहे , दीन दुखी के नाम
कभी अंकुरित हो सके, उनकी जीवन चाह

नदी बाँध ने पाट दी ,भरी गाद  ही गाद
अंध विकास रोड़ा बना, रोका नदी प्रवाह

दर दर ’ओंम ’ भटक रहे, खटिया लेकर साथ
सजा मिली विकास की,हमको बिना गुनाह !!
-ओंम प्रकाश नौटियाल
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