rr 1

हिन्दी तथा अन्य भारतीय
भाषाओं की कहानियों में दलित स्त्री का चित्रण और सामाजिक परिवेश
                                 –डॉ॰ स्वाति श्वेता
मोहनदास
नैमिषराय
के अनुसार “दलित
शब्द मार्क्स प्रणीत सर्वहारा शब्द के समानार्थक लगता है
,
लेकिन इन दोनों में पर्याप्त भेद हैं  दलित
की व्याप्ति सीमित है
, तो सर्वहारा की अधिक  सर्वहारा के अंतर्गत प्रत्येक व्यक्ति आ सकता है,लेकिन दलित के अंतर्गत प्रत्येक सर्वहारा नहीं आ सकता “1
दलित-विमर्श
समाज- व्यवस्था में परिवर्तन के लिए वैचारिक आह्वान है  दलित साहित्य प्रतिबद्ध साहित्य है  उसका अपना समाज दर्शन है  दलित साहित्य काल्पनिक साहित्य नहीं है  वह यथार्थ की धरती से जुड़ा है  अदम गोंडवी कहते है–
आइए,महसूस करिए ज़िंदगी के ताप को,मै चमारों की गली तक ले चलूँगा आपको पर यदि हमने
चमारों की गली ही नहीं देखी तो जिंदगी के ताप को कैसे समझ पाएंगे

समीक्षक
डॉ॰एन॰सिंह के अनुसार–
दलित साहित्य दलित लेखकों
द्वारा लिखित वह साहित्य है जो सामाजिक
,धार्मिक और मानसिक
रूप से उत्पीड़ित लोगों की बेहतरी के लिए लिखा गया हो
‘2
ओम
प्रकाश बाल्मीकि
के अनुसार— दलित साहित्य नकार का साहित्य है जो संघर्ष से उपजा है तथा जिसमे समता,स्वतंत्रता और बंधुता का भाव है और वर्ण व्यवस्था से उपजे जातिवाद का
विरोध है
‘3                                          दलित
कहानियों में तथाकथित सवर्ण पुरुषों द्वारा घर के भीतर स्वयं की स्त्रियों के शोषण
की दासता और मुक्ति के स्वर सुने जा सकते हैं 
असमानता और अन्याय का पुरज़ोर विरोध और उसका खात्मा दलित कहानियों की
विषयवस्तु है  दलित कहानी की संवेदना और
सरोकार को साहित्य के परम्परागत ढाँचे पर निर्मित मानदंडों के आधार पर समझना या
परखना तर्कसंगत नहीं कहा जा सकता  दलित
साहित्य की वैचारिक तथा पृष्ठभूमि को समझना अपरिहार्य है  दलित कहानियों की कथावस्तु का मूल आधार —
असमानता
,अन्याय और शोषण का खात्मा तथा अहिंसा पर आधारित
समतापरक समाज की स्थापना करना
,स्वतंत्रता और भाई-चारे के लिए
माहौल बनाना आदि है
हिन्दी
में ओम प्रकाश वाल्मीकि की कहानी
जिनावर दलित स्त्री  के साथ हो रहे
अत्याचारों का चित्रण करती है  कहानी में
बिरजू की बहू का शोषण उसका अपना ससुर करता है पूरी हवेली में बिरजू की बहू के दर्द
को सुनने वाला कोई नहीं सतवीर की किसनी का तीन महीने तक शारीरिक-मानसिक शोषण के
बाद उसकी लाश मिलती है जिसकी गवाह अकेली बिरजू की बहू है  बिरजू की बहू द्वारा विरोध के बाद निकाल दिया
जाता है  वह अपने मायके चली जाती है उसका
वही मायका जहाँ उसके मामा ने दस साल की अवस्था में ही उसके अबोध शरीर को बर्बाद कर
दिया था  बिरजू की बहू का कथन है –
यह सुनसान जंगल हवेलियों से ज़्यादा सुरक्षित है  कम से कम भेड़िये आवेंगे तो रूप-रंग बदल कर तो
नहीं आवेंगे
ओम
प्रकाश वाल्मिकी
की एक और कहानी यह अंत नहीं ग्रामीण दलित स्त्री चेतना की
प्रामाणिक कहानी है जो कुदृष्टि रखने वाले पर साहसिक ढंग से पुरजोर वार करती है और
दुश्मन की बेहयाई को कायरता में तब्दील कर देती है गाँव का बिसन दलित है
, लेकिन वह वह गाँव के सामंतों के हाथों का मोहरा बन कर रह जाता है  ऐसे में दलित स्त्री बिरमा को न्याय की आशा
व्यर्थ दिखती है परंतु बिरमा की मुखरता ने सभी में आशा का संचार कर दिया
  ना बिरमा
यह अंत नही है तुमने हमें ताकत दी है  हार
को जीत में बदलेंगे
, लोगों में विश्वास जगाकर, ताकि कोई बिसन मोहरा न बने
डॉ॰
सुशीला टाकरे
की कहानी – सिलिया
एक दलित लड़की के बाल्यावस्था से युवती के बनने
के बीच के अपमान अंतर्द्वंद्व और संघर्ष की कहानी है जिसे आत्मविश्वास है कि
शिक्षा से ही सम्मान के शिखर तक पहुँचा जा सकता है कहानी धर्म के खोखलेपन पर
प्रहार करती है  भेड़ों और बकरियों का
व्यवसाय करने वाले गाडरी के मुहल्ले के कुएँ से पानी पीने और सिलिया की ममेरी बहन
मालती द्वारा कुएँ की बाल्टी और रस्सी छू जाने से बवेला मच जाता है और
 मामी के हाथों मालती की पिटाई होती है  यह उसके सामने अपमान का पहला दृश्य था  सिलिया के सामने दूसरा दृश्य तब उठता है जब
सहेली हेमलता ठाकुर के बहन की ससुराल में सास द्वारा जाति जान लेने के बाद उसके सामने
से पानी का गिलास हटा लिया जाता है  उस समय
उसे बेहद प्यास लगी होती है  और इस तरह
बचपन के यह घावों को सहती सिलिया बड़ी होती है और समाज को बदलने का संकल्प लेती है
सिलिया ने तस किया, वह जीवनभर कोशिश करेगी कि समाज
इन बातों को समझें
, उनके मर्म को जाने  सम्मान और अपमान के भेद को समझे और सही रूप में
सम्मान का हकदार बने 
नीरा
परमार
की वैतरणी
‘, कावेरी की सुमंगली ‘, कहानी दलित स्त्री की बेबसी, लाचारी की वजहों को समझने समझाने की कोशिश करती नज़र आती है  ये कहानियाँ 
दलित स्त्रियों द्वारा भारतीय समाज की 
भोगी गई विद्रूपताओं और विडंबनाओं की कहानियाँ हैं  कहना न होगा कि ये कहानियाँ दलित स्त्रियों के
दर्द का दस्तावेज़ हैं 
कावेरी
की कहानी
सुमंगली के सुगिया की जीवन कथा मानो शारीरिक शोषण की एक डाक्यूमेंट्री ही है  सुगिया जब बारह साल की थी तब उसे औरत बना दिया
गया और चौदह बरस में वह माँ बन गई  उसके
बाद भी न जाने किस-किस के दोहन का शिकार होती रही —

सुगिया फफकने लगती  आसूँ की बूँद टप-टप चू
पड़ती  वह कैसे समझाए कि उजड़ी हुई गृहस्थी
को वह अब हरा-भरा नहीं देख सकती  ॰॰॰॰॰
जवानी भर उसके शरीर के ठेकेदारों ने अपनी हवस का शिकार बनाया
‘4
कुसुम
मेघवाल
की कहानी अंगारा  की
जमना अपने बलात्कारियों को नहीं छोड़ती है 
प्रतिशोध की आग में जल रही जमना जुल्मी को ऐसी सजा देती है कि वह जीते जी
मरे के समान रह जाता है —
जमना आँखें फाड़े अपनी
इज्जत लूटने वाले नर- पिशाच को देख रही थी 
अब उसकी बारी थी  अंगारा बनी जमना
दौड़ी-दौड़ी घर में गई और कोने में पड़ी दराती उठा लाई
, सरकार
और पुलिस जिसे सजा नहीं दे पाई
, उसे जमना न दे दी अपना
प्रतिशोध पूरा किया
‘5
राजेश
कुमार बौद्ध
की कहानी आतंक
की विमला भी बलात्कारियों को मृत्युदंड देती है  इन स्त्रियों में इस चेतना या उग्रता का एक
आयाम तो दलित जागृति है ही वहीं वे पूरी स्त्रियों का प्रतिनिधित्व करती दिखाई
देती है 
दलित
स्त्री के शोषण और जुल्म की अत्यंत मर्मस्पर्शी कहानी है
उसका फैसला कहानीकार कालीचरण अपनी
कहानी में दिखाते है कि बिंदो जो कहानी की नायिका है पर अत्याचार और प्रताड़णा उसका
अपना पति और ससुर करते हैं
,—” उसके ससुर महाशय जी ने
जमकर दारू पी और आधी रात को सोती हुई बिंदो पर राक्षस की भाँति टूट पड़ा ॰॰॰॰॰ साली
हरमजादी
, तेरा जवानी का जोश थम नहीं रहा है  चंदर से तो होता-हवाता नहीं है  मै ही तेरी आग ठंडी करूँगा ”6 उस रात बिंदो
का
जैसे सब कुछ खत्म हो गया
मराठी
कहानियों में ज्योति लांजवार  की
कहानी
गिद्ध
परिवार में होने वाले यौन उत्पीड़न पर प्रकाश डालती नज़र आती है  कहानी में शब्बों की माँ सोचती है कि मर्दों की
इस दुनिया में मर्द कहलाने वाला नामर्द कैसे हो सकता है
? औरत ही तो इन मर्दों को जन्म देती है 
फिर मर्द का उसकी ओर देखने का नज़रिया ऐसा क्यूँ
?
मराठी
कहानी
आयदान दलित स्त्री लेखन में अपना महत्वपूर्ण स्थान रखती है  उर्मिला पवार इस कहानी की रचयिता
है  आपकी एक और कहानी
कवच चर्चा में रही  इस कहानी में पुरुष का स्त्री की ओर देखने का
दृष्टिकोण कभी खुली भाषा में तो कभी सांकेतिक भाषा में बखूबी व्यक्त किया गया है
मराठी
कथाकार प्रज्ञा दया पवार की कहानी
पैडीक्योर
ब्राह्मणवादी मानसिकता में जीती माया का सुखी दलित दंपत्ति का एक दूसरे
के प्रति समर्पित प्रेम देख ईर्ष्या से भर उठने की कहानी है
गुजरती
कहानी
दरी दलित
स्त्री और उसके सामाजिक परिवेश का चित्रण करती नज़र आती है  लेखिका हास्यदा पंडया की यह कहानी एक
दलित किशोरी के साथ उसके शिक्षक द्वारा किए जाने वाले बलात्कार को दिखती है  कहानी जहाँ इस पर  प्रकाश डालती है कि दलित की इज्जत-विज्ज्त कुछ
नहीं होती वहीं इस पर भी प्रकाश डालती है कि बलात्कार के बारे में लड़की मुँह नहीं
खोलेगी  कहानी में आक्रोश के स्वर को
न्यायोचित रूप से हिंसा और प्रतिरोध तक पहुँचता दिखाया गया है  इस कहानी का कथानक आहत दलित अस्मिता के अपमान
और बलात्कार का है  
कहना
न होगा कि दलित कहानियाँ दलित स्त्री परिवर्तन की इच्छा के साथ समानता
, आत्मबोध, संवेदनशीलता की आवाज़ों को मुखर करती नज़र
आती है  रमणिका गुप्ता के शब्दों में —
ये कहानियाँ सामाजिक बदलाव लाने का आह्वान करती हैं  इन कहानियों में आक्रोश है, आग है , गुस्सा है तो साथ-साथ संवेदना , मानवीयता और सब्र भी है  न्याय की
उत्कृष्ट लालसा है  समानता की तीव्र ललक
है  भाईचारे की भावना है
 ‘7
 संदर्भ
1॰  ओम प्रकाश वाल्मिकी, दलित साहित्य का सौंदर्यशास्त्र,पृ॰ 0-21
2॰  डॉ॰ एन॰ सिंह, अंतिम
दो दशक का हिन्दी साहित्य
,संपादक मीरा गौतम
3॰  ओम प्रकाश वाल्मिकी, दलित साहित्य का सौंदर्यशास्त्र,पृ॰ 0-24
4॰  कावेरी , दलित साहित्य
कहानी संचयन
,सं॰ रमणिका गुप्ता , पृ॰
120
5॰  कुसुम मेघवाल ,दलित
साहित्य कहानी संचयन
,सं॰ रमणिका गुप्ता , पृ॰ 141 6॰  काली चरण प्रेमी,नई सदी की पहचान,श्रेष्ठ दलित कहानियाँ, सं॰मुद्राराक्षस,                पृ॰103
7॰
दूसरी दुनिया का यथार्थ
, रमणिका गुप्ता,नवलेखन प्रकाशन , हजारीबाग ,1997
                                             डॉ॰ स्वाति श्वेता
                                             सहायक प्रोफेसर                                                                                                                                      
    swat.shweta@ymal.com                  
गार्गी
महाविध्यालय
    (M) 9818434369
                          दिल्ली विश्वविद्यालय
                                        
    [लेख साभार: जनकृति पत्रिका] [चित्र साभार: फॉरवर्ड प्रेस]