उज्जैन। व्यंग्य परसाई के जमाने का न होकर बदल गया है। आज
समय विकट है,
इसलिए परसाई के अस्त्रों से लड़ा नहीं जा सकता। आपको व्यंग्य के नए
हथियार खोजने होंगे। आप अपनी ही रचना के खुद आलोचक बनें, क्योंकि
बड़ी चुनौतियां व्यंग्यकार के सामने हैं।
समय विकट है,
इसलिए परसाई के अस्त्रों से लड़ा नहीं जा सकता। आपको व्यंग्य के नए
हथियार खोजने होंगे। आप अपनी ही रचना के खुद आलोचक बनें, क्योंकि
बड़ी चुनौतियां व्यंग्यकार के सामने हैं।
यह बात कालिदास
अकादमी में साहित्य मंथन के तत्वावधान में व्यंग्यकार डॉ. पिलकेंद्र अरोरा के
व्यंग्य संकलन “साहित्य के अब्दुल्ला” के विमोचन प्रसंग में
प्रख्यात व्यंग्यकार डॉ. ज्ञान चतुर्वेदी ने मुख्य अतिथि के रूप में कही।
चतुर्वेदी ने कहा कि यह अच्छी बात है, पिलकेंद्र ने ‘कहन’ विषय और मुहावरों में नई बात कही है।
अकादमी में साहित्य मंथन के तत्वावधान में व्यंग्यकार डॉ. पिलकेंद्र अरोरा के
व्यंग्य संकलन “साहित्य के अब्दुल्ला” के विमोचन प्रसंग में
प्रख्यात व्यंग्यकार डॉ. ज्ञान चतुर्वेदी ने मुख्य अतिथि के रूप में कही।
चतुर्वेदी ने कहा कि यह अच्छी बात है, पिलकेंद्र ने ‘कहन’ विषय और मुहावरों में नई बात कही है।
अध्यक्षीय उद्बोधन में प्रसिद्ध व्यंग्यकार डॉ. शिव शर्मा ने
कहा कि पिलकेंद्र शरद जोशी की परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं। पिलकेंद्र के व्यंग्य
कोई जोखिम नहीं उठाते और शालीनता की सीमा में रहकर प्रहार करते हैं। सारस्वत अतिथि
डॉ. मोहन गुप्त ने कहा कि पिलकेंद्र के व्यंग्य में ताजगी रहती है और व्यंग्य में
वक्रोक्ति होने से उनके व्यंग्य इस परंपरा को समृद्ध कर रहे हैं। अतिथि ललित
निबंधकार नर्मदाप्रसाद उपाध्याय ने कहा कि समकालीन व्यंग्य की समृद्ध परंपरा रही
है और व्यंग्य लिखा नहीं जाता बल्कि रचनाकार उसे जीता है।
कहा कि पिलकेंद्र शरद जोशी की परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं। पिलकेंद्र के व्यंग्य
कोई जोखिम नहीं उठाते और शालीनता की सीमा में रहकर प्रहार करते हैं। सारस्वत अतिथि
डॉ. मोहन गुप्त ने कहा कि पिलकेंद्र के व्यंग्य में ताजगी रहती है और व्यंग्य में
वक्रोक्ति होने से उनके व्यंग्य इस परंपरा को समृद्ध कर रहे हैं। अतिथि ललित
निबंधकार नर्मदाप्रसाद उपाध्याय ने कहा कि समकालीन व्यंग्य की समृद्ध परंपरा रही
है और व्यंग्य लिखा नहीं जाता बल्कि रचनाकार उसे जीता है।
संकलन पर चर्चा करते हुए विक्रम विश्वविद्यालय के आचार्य एवं
समालोचक डॉ शैलेन्द्रकुमार शर्मा ने कहा कि पिलकेंद्र की वाचिक परंपरा और लेखन
परंपरा दोनों में मुकम्मल पहचान बनी है। पिलकेंद्र ने अपने आसपास की विद्रूपताओं
कि निर्मम पड़ताल की है। चर्चा करते हुए डॉ. बालकृष्ण शर्मा ने कहा कि शब्द और अर्थ
के संदर्भ में काव्य वही उत्कृष्ट है जिसमे व्यंग्य, व्यंजना के साथ मौजूद
रहता है।
समालोचक डॉ शैलेन्द्रकुमार शर्मा ने कहा कि पिलकेंद्र की वाचिक परंपरा और लेखन
परंपरा दोनों में मुकम्मल पहचान बनी है। पिलकेंद्र ने अपने आसपास की विद्रूपताओं
कि निर्मम पड़ताल की है। चर्चा करते हुए डॉ. बालकृष्ण शर्मा ने कहा कि शब्द और अर्थ
के संदर्भ में काव्य वही उत्कृष्ट है जिसमे व्यंग्य, व्यंजना के साथ मौजूद
रहता है।
कार्यक्रम में स्वागत भाषण साहित्य मंथन के अध्यक्ष डॉ.
हरीशकुमार सिंह ने दिया। अतिथि ज्ञान चतुर्वेदी, मोहन गुप्त, नर्मदाप्रसाद उपाध्याय का सारस्वत सम्मान ऋचा विचार मंच, प्रबुद्ध परिषद के राधेश्याम दुबे, यशवंतसिंह गिल,
अरविन्द भटनागर ने शाल श्रीफल से किया। अतिथि स्वागत हरीशकुमार सिंह,
दिनेश दिग्गज, रमेशचंद्र शर्मा, श्रीराम दवे, अरुण जोशी, प्रकाश
गुप्ता आदि ने किया। विमोचन प्रसंग में बड़ी संख्या में सुधि साहित्यकार उपस्थित
रहे। संचालन पिलकेंद्र अरोरा ने किया और आभार हरीशकुमार सिंह ने माना।
हरीशकुमार सिंह ने दिया। अतिथि ज्ञान चतुर्वेदी, मोहन गुप्त, नर्मदाप्रसाद उपाध्याय का सारस्वत सम्मान ऋचा विचार मंच, प्रबुद्ध परिषद के राधेश्याम दुबे, यशवंतसिंह गिल,
अरविन्द भटनागर ने शाल श्रीफल से किया। अतिथि स्वागत हरीशकुमार सिंह,
दिनेश दिग्गज, रमेशचंद्र शर्मा, श्रीराम दवे, अरुण जोशी, प्रकाश
गुप्ता आदि ने किया। विमोचन प्रसंग में बड़ी संख्या में सुधि साहित्यकार उपस्थित
रहे। संचालन पिलकेंद्र अरोरा ने किया और आभार हरीशकुमार सिंह ने माना।
प्रस्तुति: डॉ हरीश कुमार सिंह