सीख सभी को दे रहा, कोविड़ का यह रोग
प्रभु समझना बंद करें, इस धरती पर लोग

प्रकृति मानवी चलन से, क्रोधित हुई प्रचंड़
कोरौना को बुला कर , देती जग को दंड़

कौरोना है सूक्ष्म सा, कर्मों से भी नीच
रहने लायक है नहीं , इंसानो के  बीच

कौरोना का क्या पता, कब तक ठहरे ढीठ
करते रहिए उपेक्षा, दिखा दिखा कर पीठ

जीवन जीना सीखिए , कौरोना के संग
हँसना सदा बना रहे, जीने का इक ढंग

पशुओं ने सोचा नहीं , होगा उनका राज
नगर पथों पर रात दिन, विचरेंगे बेताज

डगमग जीवन नाव है , हावी फिर भी स्वार्थ
संग्रह करते थोक में , नित नित खाद्य पदार्थ

पुलिस ,चिकित्सक आपका,ऋणी रहेगा देश
प्राणों की बाजी लगा,  करते कर्म अशेष

धनार्जन के लिये गया, गाँव छोड़ मजदूर
धन बिन पैदल लौटता ,किस्मत से मजबूर

सेवा में जो लीन हैं, आपद में दिन रात
ईश्वर लम्बी आयु दे , खुशी मिले सौगात

-ओंम प्रकाश नौटियाल
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