जीवन की अरुणाई माँ
कोई माप सका है कब
ममता की गहराई माँ ।
तुझसे सुने कथा किस्से ,
बचपन में पहुँचाते हैं,
उन वक्तों को याद किया,
आँखे भर भर आई माँ।
इस मन की अगम पहेली,
कब किसने सुलझाई माँ,
दूर बसे रिश्तों में बस
डूबी औ’ उतराई माँ ।
खोई बैठी यादों में ,
लगती कुछ तरसाई माँ,
उलझी उलझी और थकी
छुइमुइ सी मुरझाई माँ।
जब तू थी कभी न समझा
तुझे खोने का अहसास,
तड़पन औ’ घुटन दे गई,
तेरी शान्त विदाई माँ।
चेतन मन की चिंताएं ,
शाँत हुई, जब साँस रुकी
छूटे टूटे बंधन सब
रिश्ते बन परछाई माँ।
थमती तेरी साँसो ने
गूढ़ मर्म यह समझाया,
भीड़ भरी इस दुनियाँ में,
क्या होती तनहाई माँ।
-ओंम प्रकाश नौटियाल,बडौदा मोबा. 9427345810
(सर्वाधिकार सुरक्षित )