प्रेम दिवस के पर्व  में , प्रेम बिका बाजार
महँगी  जितनी  भेंट है, छिछला उतना प्यार

प्रेम गली जब तंग थी , गया वक्त वह बीत
अब है पूरा राजपथ ,  साथ  मीत ही  मीत

गत वर्ष बनी प्रेमिका , अब अतीत की बात
फिर से नई तलाश कर, लुटा रहे सौगात

सात समंदर पार से , मिला ज्ञान  यह खूब
प्रेम दिवस बस नियत है, नियत नही महबूब

दुनियाँ को हमने दिया, पावन प्रेम  स्वरूप
अब करते आयात हम,  भोंडा इसका  रूप

प्रेम शाश्वत सत्य यहाँ ,जन्म जन्म का मेल
पश्चिम की अंधी नकल , इसे बनाती खेल

आई है  वसंती ऋतु  , खिले  प्रेम  के  फ़ूल
जीवन महकेगा तभी , निष्ठा हो   जब मूल
-ओंम प्रकाश नौटियाल
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